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होम भारत

रहें न रहें हम महका करेंगे…

by WEB DESK
Feb 7, 2022, 12:46 am IST
in भारत, दिल्ली
लता मंगेशकर ( फाइल फोटो)

लता मंगेशकर ( फाइल फोटो)

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स्वर कोकिला के नाम से प्रसिद्ध लता मंगेशकर को सभी प्यार और स्नेह से लता दीदी बुलाते थे। लंबे समय से वह बेशक फिल्म संगीत की दुनिया में पहले जैसी सक्रिय तो नहीं थीं, लेकिन सोशल मीडिया के माध्यम से वह अपने प्रशंसकों एवं शुभचिंतकों के बीच लगातार बनी रहती थीं।

 

विशाल ठाकुर

भारतीय फिल्म संगीत की दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित और सम्माननीय हस्तियों में से एक स्वर सम्राज्ञी तला मंगेशकर (92 वर्ष) आज हमारे बीच नहीं रहीं। आज रविवार सुबह मुंबई में उन्होंने आखिरी सांस ली। उनके निधन की खबर से पूरे देश में शोक की लहर छा गयी है। संगीत क्षेत्र के लोग सदमे में हैं। देश की इस महान गायिका को भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविन्द और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने अपनी शोक संवेदना प्रकट की है। 

स्वर कोकिला के नाम से प्रसिद्ध लता मंगेशकर को सभी प्यार और स्नेह से लता दीदी बुलाते थे। लंबे समय से वह बेशक फिल्म संगीत की दुनिया में पहले जैसी सक्रिय तो नहीं थीं, लेकिन सोशल मीडिया के माध्यम से वह अपने प्रशंसकों एवं शुभचिंतकों के बीच लगातार बनी रहती थीं। कोई तीज त्योहार हो या किसी महान प्रतिभा का जन्मदिन इत्यादि। वह हमेशा अपनी शुभकामनाएं प्रकट करती थीं। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय एनडीए की सरकार के कार्यकाल के दौरान साल 2001 में लता मंगेशकर को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया था। इसके अलावा उन्हें वर्ष 1969 में पद्मभूषण सम्मान, वर्ष 1989 में दादा साहब फाल्के सम्मान और वर्ष 1999 में पद्मविभूषण सम्मान भी प्रदान किए गये। उनके जाने से संगीत की दुनिया का एक अध्याय समाप्त हो गया है। 

भारतीय फिल्म संगीत की दुनिया में बीते सात दशकों से अधिक उनकी उपस्थिति का यूं बने रहना वाकई किसी महान उपलब्धि से कम नहीं है। संगीत के प्रति उनकी निष्ठा, लगाव और समर्पण का भाव इस बात से भी पता चलता है कि एक बार एकांत में ईश्वर के दर्शन पर उनके विचार पूछे गये, जिस पर उन्होंने कहा था- मुझे गाना मिला है, वही मेरा ईश्वर है। शायद मौजूदा दौर की युवा पीढ़ी के लिए यह लता मंगेशकर का अर्थ समझना थोड़ा मुश्किल है। वह केवल एक आवाज नहीं थीं। इन 70 वर्षों में वह संगीत प्रेमियों की एक हमसफर की तरह थीं, जो अपनी सुरीली आवाज और गीतों के माध्यम से जीवन के अलग-अलग रंगों, संघर्षों और धूप-छांव में अपने श्रोताओं के संग रहतीं। शायद इसीलिए लता दीदी का जाना, ऐसा लग रहा है मानो कोई अपना चला गया हो। हाल में उन्हें कोरोना हुआ। लेकिन बीते कई वर्षों के दौरान वह सेहत ठीक न रहने के चलते कई बार अस्पताल में भर्ती होती रहीं। हर बार उनकी सलामती के लिए ईश्वर से प्रार्थना की जाती। वह कुछ दिनों बाद बेहतर होकर घर आ जाती थीं। लेकिन शायद इस बार ईश्वर को कुछ और मंजूर था। आज उनके यूं चले जाने से फिल्म सजा (1951) में उनका गाया एक गीत बरबस याद आ रहा है और शायद बहुत से लोगों को भी याद आ रहा हो- तुम ना जाने किस जहां में खो गये, हम भरी दुनिया में तन्हा हो गये… 

सुरीले गीतों का जादू और साधारण व्यक्तित्व
भारतीय फिल्म संगीत हो या कोई अन्य संगीत, आधुनिक भारत के संदर्भ में लता मंगेशकर का नाम हमेशा याद किया जाएगा। लोगों ने माना कि उनकी आवाज में वो बात थी कि प्रशंसा के शब्द कम पड़ जाएं। और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि वह एक बेहतरीन गायिका होने के साथ-साथ एक नेक दिल इंसान भी थीं। इसीलिए वह पूरे देश की लता दीदी कहलाईं। उनकी आवाज में ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी… देशभक्ति गीत सैनिकों की शहादत को नमन करता है, जिसे सुनकर आज भी हर देशवासी की आंखों में आंसू आ जाएं। ये गीत उन्होंने भारत-चीन युद्ध (1962) में शहीद हुए भारतीय सैनिकों की याद में गाया था। लता जी ने लगभग हर मौके और परिस्थिति के लिए गीत गाये, जिससे अलग-अलग पीढ़ी के न जाने कितने ही कलाकारों का करियर आगे बढ़ने में मदद मिली होगी। लेकिन चकाचौध से भरी इस फिल्म इंडस्ट्री के ग्लैमर का रंग उन पर कभी हावी नहीं दिखा। वह एक बेहद साधारण परिवार से थीं और उन्होंने पूरी जिंदगी खुद को एक साधारण महिला माना और ऐसा करती वह दिखती भी थीं। आप जब भी आंखे बंद करके उनकी छवि याद करेंगे तो वह हल्के बार्डर वाली आफ व्हाइट साड़ी में दिखाई देंगी। चेहरे पर स्नेहभरी हल्की सुस्कान, मानो सामने वाले को बड़े होने के नाते आर्शीवाद दे रही हों। और अपने जीवन के अंत समय तक उन्होंने यह छवि ही बनाए रखी। लेकिन इस मुस्कान और स्नेहमन के पीछे एक लंबा संघर्ष भी था। वह संघर्ष जो उन्होंने अपने पिता की मृत्यु के बाद झेला। 

उनके पिता थे पहले गुरु    
लता मंगेशकर का जन्म 29 सितंबर, 1929 को इंदौर में हुआ। उनका कहना था कि उनके पिता ही उनके पहले गुरु थे जो कि चित्रपट की दुनिया से जुड़े थे। उन्हें सब बचपन में प्यार से हेमा बुलाते थे और गायकी से पहले वह अभिनय को लेकर उत्सुक रहती थीं। यही वजह थी कि उन्होंने पांच साल की उम्र में पहली बार एक नाटक में काम किया। अभिनय के लिए उन्हें मिला पहला पारिश्रमिक 25 रु था और फिर यहां से शुरू हुआ एक नया सफर जो जल्द ही संगीत की तरफ मुड़ने लगा। लेकिन राह कठिन थी। उसी दौरान उन्होंने एक मराठी फिल्म के लिए गीत गाया, जिसे लेकर वह बहुत उत्साहित थीं पर बाद में पता चला कि पह गीत ही फिल्म से निकाल दिया गया था। और दूसरा बड़ा झटका लगा उन्हें अपने पिताजी की मृत्यु से, जिसके बाद उन पर सारे परिवार की जिम्मेदारी आ गयी थी। 

बेहतर भविष्य की तलाश में वह मुंबई आ गयीं, जहां से काम के एक लंबे संघर्ष की शुरुआत हुई। प्रतिभा होने के बावजूद उन्हें गायन के मौके के लिए कई जगह जाना पड़ता। उस दौर में नूरजहां का जादू चलता था। संगीतकारों को या उनके जैसी आवाज चाहिये थी, या उससे मिलती जुलती। हालांकि उन्हें कुछेक फिल्मों में अभिनय का काम भी मिला, लेकिन लता को गायन के मौके की तलाश रहती। कई साल बीत गये और फिर वो दिन आया जब उनकी आवाज पर संगीतकारों, फिल्मकारों और श्रोताओं का ध्यान गया। 1948 में आयी फिल्म ‘मजबूर’ का गीत- दिल मेरा तोड़ा, कहीं का ना छोड़ा… चर्चा में आया। और इसके बाद अशोक कुमार अभिनीत एवं कमाल अमरोही की पहली निर्देशित फिल्म महल (1949) का गीत आयेगा, आयेगा आनेवाला…ने धूम मचा दी। 

पहली बार जब यह गीत ऑल इंडिया रेडियो पर बजाया गया तो श्रोतागण लता की आवाज के मुरीद हो गये। उत्सुकता के मारे लोगों ने आकाशवाणी के दफ्तर में फोन घनघनाने शुरू कर दिये। सब जानना चाहते कि आखिर यह कौन गायिका है। कहते हैं कि गायिका के नाम की घोषणा से पहले अधिकारियों को पड़ताल करनी पड़ी, क्योंकि उन्हें मिली पहली कॉपी के क्रेडिट में कामिनी नाम लिखा था जो कि इस फिल्म की अभिनेत्री मधुबाला के किरदार का नाम था। कहा जाता है कि इस गीत की कामयाबी के मधुबाला ने तो अपने कॉन्ट्रेक्ट में ही लिखवाना शुरू कर दिया था कि उनके लिए गीत केवल लता जी ही गाया करेंगी। लता मंगेशकर ने 36 भारतीय भाषाओं के अलावा कई विदेशी भाषाओं में भी गीत गाये। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकाड्र्स के अनुसार सन 1948 से 1987 के बीच लता मंगेशकर ने 30 हजार गीत गाये थे, जो कि इतिहास में इससे पहले कभी किसी ने नहीं गाये थे। रोचक तथ्य है कि उनके जीते जी ऐसा कोई अन्य न कर पाया और शायद भविष्य में भी न कर पाये। 

(लेखक फिल्म समीक्षक एवं पत्रकार हैं)

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