कांग्रेस आलाकमान राहुल गांधी अपने बहुचर्चित अज्ञातवास से स्वदेश लौट आए हैं। खबरों के अनुसार उन्होंने वापस आकर चुनावी बैठकें लेना भी शुरू कर दिया है। कोविड के किस नियम के तहत राहुल ने बैठकें लेनी शुरू कर दी। वे कोरेंटाइन हुए या नहीं… टीका भी उन्होंने कब लिया… कहां लिया… कौन से टीके लिये उन्होंने… ये सारे सवाल तो हैं ही। लेकिन इससे भी बड़ा सवाल है कि ऐसे समय में जबकि उत्तर प्रदेश जैसे बड़े प्रदेश समेत देश के पांच राज्यों में चुनाव चल रहे हों, इन चुनावी राज्यों में कांग्रेस शासित पंजाब भी शामिल हो, जहां प्रधानमंत्री की सुरक्षा के साथ किए गए आपराधिक लापरवाही मामले में अभी दुनिया भर में चर्चा हो रही है, इन सब के बीच देश के मुख्य विपक्षी दल (भले सदन में दो बार से मुख्य विपक्षी दल का दर्जा भी जनता ने छीन लिया हो) के सबसे बड़े, सक्रिय नेता कहां थे? ऐसे समय, इतने दिनों तक किसी अज्ञातवास में रहना अनेक अटकलों को जन्म तो देता ही है।
पंजाब के सत्ताधारी कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने इन अटकलों पर यह कह कर विराम लगाने की कोशिश की है कि राहुल किसी ‘गुप्त मीटिंग’ पर हो सकते हैं। लेकिन सिद्धू के बयान ने एक तरह से विपक्ष द्वारा लगाए जा रहे अनुमानों पर मुहर ही लगाई कि राहुल की कथित ‘गुप्त मीटिंग’ देश विरोधी ताकतों के साथ गलबहियां की कोशिशें भी हो सकती है। सवाल यह इसलिए है क्योंकि एक इतने बड़े जन-प्रतिनिधि का ऐसे संवेदनशील मौकों पर किसी अज्ञात स्थान पर रहना क्या उचित है? क्या देश को यह जानने का अधिकार नहीं है कि ऐसे समय पर अक्सर राहुल गांधी कहां चले जाते हैं? बहरहाल!
चीनी प्रचार को कांग्रेसी हवा
प्रधानमंत्री की जान पर आए खतरे की काफी बड़ी खबर के बीच चीन से संबंधित एक और बड़ी खबर अधिक स्थान नहीं बना पाई जिसका सरोकार कुछ हद तक कांग्रेस और राहुल गांधी से भी है। खबर गलवान से थी जहां के बारे में खुलासा हुआ है कि वहां पर जिस चीनी कब्जे की खबर राहुल गांधी ने ट्वीट कर उड़ाई थी, वह फर्जी थी। उस खबर को फर्जी वीडियो के माध्यम से चीन ने सृजित किया था। वास्तव में गलवान पर कब्जे के कथित समारोह का एक वीडियो चीन ने जारी किया था। उस कथित समारोह का फर्जी वीडियो बनाने में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने चीनी एक्टर वू जिंग और उनकी पत्नी शी नान से एक्टिंग कराई थी। खबरों के अनुसार उसकी शूटिंग चीन ने गलवान नदी से करीब 28 किलोमीटर पीछे शूटिंग अकसाई चिन में की थी।
नए साल पर चीन ने गलवान में कब्जे से संबंधित ये वीडियो जारी किए थे। उसे चीन के अलावा पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने अपनी पूरी ताकत लगा कर प्रसारित किया था।
और, इन दोनों के अलावा जिस एक व्यक्ति और समूंह ने भारत में पूरी ताकत से उसे प्रसारित किया, वे थे राहुल गांधी और पार्टी, जाहिर है कांग्रेस थी! राहुल गांधी ने उस झूठी खबर पर ट्वीट कर अपने ही देश की सरकार को हमेशा की तरह कठघरे में खड़ा किया था। अगर राहुल की यात्रा के बारे में लगाई जा रही अटकलों को नजरंदाज भी कर दें, उनकी हालिया अज्ञात यात्रा में भी इन्हें संदेह का लाभ दे दें, फिर भी परिस्थितिजन्य साक्ष्य ऐसे हैं जो राहुल की देशविरोधी गतिविधियों की तरफ इशारा तो करते ही हैं।
युद्ध सी स्थिति में चीनी राजदूत से गुप्त मीटिंग
चीनी प्रोपगंडा में कांग्रेस के शामिल हो जाने का का यह कोई पहला मामला भी नहीं है। पिछले कुछ वर्षों से, खासकर जब से कांग्रेस के हाथ से सत्ता गई है, नेहरू परिवार और कांग्रेस की चीन को लेकर अनेक गतिविधियां तो अत्यधिक संदिग्ध रही ही हैं। जैसा कि आप सभी जानते हैं, समूची लोकतांत्रिक दुनिया में यह मान्य परम्परा है कि जब भी किसी दुश्मन देश से युद्ध की स्थिति हो, तब देश में कोई विपक्ष नहीं होता है। ऐसे मामले में सारा देश और सभी पार्टियां चट्टान की तरह अपनी सरकार के साथ खड़ी रहती हैं। सभी साथ मिलकर अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाते रहते हैं। भारत में भी हमेशा से ऐसा ही होता रहा है। विपरीत से विपरीत हालात में भी अपने देश की जीत के प्रति आश्वस्त रहना, ऐसा जताते भी हैं, यह मान्य सिद्धांत और परम्परा भी है। और ऐसा होना उचित भी।
लेकिन गलवान गतिरोध का पिछले वर्षों का मामला याद कीजिए। जब भी वहां या डोकलाम समेत किसी भी जगह कोई गतिरोध उत्त्पन्न हुआ, कांग्रेस हमेशा केंद्र सरकार के खिलाफ खड़ी दिखी। एक से एक झूठ गढ़ कर विदेशी मामलों में भी अपनी ही सरकार को बदनाम किया गया। एक स्वर में राहुल गांधी समेत कांग्रेस के लगभग सभी नेताओं ने गलवान में भी भारत की पराजय, देश के समर्पण की घोषणा कर दी थी। सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर तो बाकायदे अभियान चलाए गए। जहां सरेंडर हुए नरेंदर… आदि हैशटैग तक ट्रेंड कराए गए थे। बाकायदा अपने ही चुने गए प्रधानमंत्री को गद्दार आदि बताया गया था। कल्पना कीजिए कि ऐसे अभियानों से आखिर किसे लाभ मिल सकता है? जाहिर है दुश्मन देश को ही। है न?
तथ्य महज इतने ही नहीं हैं। आप अगर चीन से कांग्रेस के संबंध की अन्य कड़ियां भी जोड़ते जाएंगे तो हालात की भयावहता का अनुमान लगा सकते हैं। याद कीजिए, डोकलाम गतिरोध के समय ही राहुल गांधी की एक और ‘गुप्त मीटिंग’, जो तब के शीर्ष चीनी राजनयिक के साथ हुई थी। पहले तो कांग्रेस ने ऐसी किसी मीटिंग से साफ इनकार किया था लेकिन बाद में साक्ष्य सामने आ जाने पर उन्हें मानना पड़ा कि ऐसी मुलाकात हुई थी। इसके अलावा कांग्रेस पार्टी द्वारा चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट से सोनिया-राहुल की उपस्थिति में किए गए एमओयू की याद कीजिए। राहुल गांधी की तब की मानसरोवर यात्रा की याद कीजिए।
कांग्रेस के अन्य राष्ट्रविरोधी दृष्टांत
चीन से इतर बात भी करें, तो कांग्रेस के नेता द्वारा मोदी जी को हराने के लिए पाकिस्तान से मदद मांगने की बात याद कीजिए, पंजाब के कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा पाकिस्तान के पक्ष में दिए बयान की याद कीजिए, पाकिस्तान से लगे सीमाई इलाके फिरोजपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ की गई साजिश और जश्न मनाने में खालिस्तानियों और कांग्रेस नेताओं की प्रतिक्रियाओं की साम्यता देखिए… ऐसे तमाम तथ्य जिस अवैध गठजोड़ की तरफ संकेत करते हैं, वह हमारी नींदें उड़ा देने के लिए काफी होनी चाहिए। राहत की बात महज इतनी है कि देश में प्रखर राष्ट्रभक्त और सशक्त नेतृत्व मौजूद है, जिसके कारण ऐसे कोई भी षड्यंत्र सफल नहीं हो रहे।
विपक्ष में लम्बे समय तक रही भाजपा ने दुश्मन देशों के मामले में या कूटनीतिक मामलों में कभी भी देश की सरकार की आलोचना नहीं की। उलटे अपनी सरकार का पक्ष रखने अटल जी विदेश तक गए थे। ऐसे शानदार लोकतांत्रिक इतिहास वाले देश में नेहरू परिवार द्वारा लगातार की जा रही संदिग्ध हरकतों पर जनता को संज्ञान लेने की जरूरत है। देश को सोचना होगा कि क्या हम ऐसे नेताओं को अब सहन करने की स्थिति में हैं?
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