मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में ईडी की हिरासत में चल रहे सुखपाल खैहरा को भुलत्थ सीट से उम्मीदवार बना कर राजनीति की कौन सी नई परिभाषा गढ़ी जा रही है। यह सवाल कोई और नहीं, बल्कि कांग्रेस के मंत्री राणा गुरजीत सिंह ने पार्टी से पूछा है। राणा ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर खैहरा को पार्टी से निष्कासित करने की मांग की है।
खैहरा पंजाब की राजनीति का विवादित चेहरा है। 2017 विधानसभा चुनाव से पहले खैहरा कांग्रेस में थे, लेकिन फिर पाला बदलकर आम आदमी पार्टी में चले गए और आआपा के टिकट पर ही भुलत्थ विधानसभा सीट से विधायक चुने गए। एक समय खैहरा आआपा मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के चहेते थे। इसलिए चुनाव के बाद पार्टी ने उन्हें विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाया था। अब एक बार फिर वे आआपा से कांग्रेस में शामिल हो गए हैं।
पंजाब के वरिष्ठ पत्रकार दीपक शर्मा ने बताया कि कांग्रेस और केजरीवाल, दोनों ही पंजाब में झूठ की राजनीति कर रहे हैं। जो नेता ईडी की हिरासत में हो, उसे टिकट देना कांग्रेस, खासतौर पर प्रदेशाध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू पर सवाल खड़े करता है। यह सवाल पंजाब में माफिया राज खत्म करने का दावा करने वाली आआपा से पूछा जाना चाहिए कि उसने किस आधार पर खैहरा को टिकट दिया और बाद में विपक्ष का नेता बनाया। राज्य के एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार सुखदेव सिंह का कहना है कि यह सोचने वाली बात है कि खैहरा के खिलाफ अब राणा ने यह मांग क्यों उठाई? यह मांग तो उन्हें बहुत पहले उठानी चाहिए थी। खैहरा को तो कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस में लेकर आए थे। बाद में वे पार्टी छोड़कर चले गए थे। इसके बाद भी मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और प्रदेशाध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने खैहरा पर सवाल नहीं उठाया। यहां तक की उन्हें टिकट भी दे दिया गया।
सुखदेव कहते हैं कि खैहरा पंजाब की राजनीति का वह विवादित चेहरा है, जिसे देख कर यहां की राजनीति समझी जा सकती है। ड्रग तस्करों से संबंध, फर्जी पासपोर्ट बनाने जैसे आरोप खैहरा पर लगे हैं। इसके बाद भी वे पहले आआपा और फिर कांग्रेस में शामिल हो जाते हैं। आम आदमी पार्टी जो पंजाब में भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था देने का दावा करती है और केजरीवाल जो हर छोटी-छोटी बात पर सर्वे, शोध और रायशुमारी की बात करते हैं, क्यों उन्हें खैरा के बारे में पता नहीं लगाया? यह अलग बात है, विवाद जब ज्यादा बढ़ा तो खैहरा को नेता विपक्ष के पद से हटा दिया। लेकिन एक समय तो वह पार्टी का प्रमुख चेहरा रहे हैं। 2017 में फाजिल्का के एक ड्रग तस्करी में भी खैहरा का नाम आया था। जो तस्कर पकड़े गए थे, उनसे दो किलो हेरोइन, 24 सोने के बिस्किट, दो पाकिस्तानी सीम व एक पिस्टल बरामद हुई थी। आरोप है कि खैहरा अपने निजी सचिव के फोन से तस्करों से बात करते थे। उस पर मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप लगे। तब ईडी ने उनके ठिकानों पर छापे मारे। बाद ईडी ने मार्च 2021 में उसे गिरफ्तार कर लिया।
इसलिए खैरा का मामला यदि पंजाब विधानसभा चुनाव में उठता है तो कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी भी लपेटे में आ सकती है, क्योंकि एक सवाल तो अरविंद केजरीवाल से भी बनता है? क्यों खैरा को इतना नवाजा गया? पंजाब इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के प्रोफेसर एसएस विर्क ने बताया कि जब इस तरह के मामलों में नेताओं का नाम आता है, निश्चित ही आम आदमी के मन में भय पैदा होता है। आखिर यह नेता कर क्या रहे हैं? पंजाब के मामले में तो दिक्कत यह है कि यहां के कई वरिष्ठ नेताओं पर माफिया, नशा तस्करों का साथ देेने के आरोप लगते रहते हैं। लगभग सभी दल इस तरह के मामले उठाते हैं, लेकिन बाद में पता चलता है कि उनकी पार्टी में भी ऐसा ही कुछ चल रहा है।
यह आरोप पंजाब की राजनीति का वह चेहरा है जो डराता है। पंजाब जो देश और विदेश में समृद्ध राज्य के तौर पर जाना जाता है, वहां की राजनीति का यह हाल है। निश्चित ही यह पंजाब की छवि को खराब कर रहा है। लेकिन दिक्कत यह है कि इसे दूर करेगा भी कौन? सुखबीर सिंह कहते हैं कि नवजोत सिंह सिद्धू जो बार-बार पंजाब से माफिया को खत्म करने की बात करते हैं, उनकी प्रधानगी में कैसे खैरा को टिकट दे दिया गया? मंत्री राणा ने जो सवाल उठाया है, निश्चित ही इसका जवाब सिद्धू को देना चाहिए। यह नौबत तो आनी ही नहीं चाहिए थी। यदि प्रदेशाध्यक्ष अपनी बात पर खरे उतरते तो खैहरा को टिकट देने का सवाल ही नहीं था।
यदि टिकट दिया गया तो इसमें किसी न किसी स्तर पर प्रधान की सहमति है। अब जबकि उनकी सरकार के मंत्री ही सवाल उठा रहे हैं तो फिर प्रधान को आगे आकर इसका जवाब देना चाहिए। अभी तो सवाल कांग्रेस के मंत्री ने ही अपनी पार्टी पर उठाया है, लेकिन जैसे-जैसे चुनाव प्रचार आगे बढ़ेगा तो विपक्ष भी इस मामले में कांग्रेस को घेरने की कोशिश करेगा। इसलिए खैरा के विवादों की आंच न सिर्फ कांग्रेस, बल्कि आआपा से होते हुए प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू तक भी पहुंचेगी। जिससे वह चाह कर भी बच नहीं सकते। सिद्धू भले ही चुप्पी साध लें, लेकिन पंजाब के लिजिए यह मुद्दा बड़ा तो है ही।
ईडी की जांच में पता चला है कि खैहरा ने पिछले कुछ वर्षों में अपने और अपने परिवार के सदस्यों के बैंक खातों में पर्याप्त नकदी जमा की। यह नकदी कहां से आई इस बारे में वह पूछताछ में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं बता सके। ईडी की चार्जशीट में कहा गया है कि 2014 से 2020 के बीच खैहरा ने अपने और परिवार के सदस्यों पर 6.5 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए। इस अवधि के दौरान उनकी आय 3 करोड़ रुपये से कम थी, लेकिन खर्च 3.5 करोड़ रुपये से अधिक था।
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