मनोज ठाकुर
पंजाब में हिंदू मतदाताओं को अल्पसंख्यक माना जाता है। न सिर्फ रोजमर्रा के दिनों में, बल्कि चुनाव में भी इनकी ज्यादा बात नहीं होती। इस बार यह स्थित बदल रही है। इसका श्रेय भाजपा को जाता है। एक लंबे अंतराल के बाद भाजपा पंजाब में बड़ी पार्टी की तरह चुनाव लड़ रही है। इससे हिंदू मतदाताओं में विश्वास का संचार हुआ है।
पंजाब इंस्टीट्यूट ऑफ मॉस कम्यूनिकेशन के प्रोफेसर हरबंस सिंह चीमा ने बताया कि पंजाब की कुछ सीटों को छोड़ दिया जाए तो बाकी जगह हिंदू मतदाता आमतौर पर चुप रहते हैं। वे हमेशा ही डर के साए में जीते हैं। राजनीतिक नेतृत्व का अभाव इसकी बड़ी वजह है। इसके अलावा राज्य में लगातार हिंदुओं को लक्षित किया जाता रहा है। प्रोफेसर हरबंस बताते हैं कि ऐसा नहीं है कि पंजाब में हिंदुओं की संख्या कम है। 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य की कुल आबादी में हिंदुओं की भागीदारी 38.5 प्रतिशत है। राज्य में 45 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां हिंदू मतदाताओं की संख्या अधिक है। मोगा विधानसभा क्षेत्र के 1.84 लाख मतदाताओं में से करीब एक लाख शहरी हिंदू मतदाता हैं। बठिंडा में 62 प्रतिशत मतदाता शहरी हैं। वोट संख्या के हिसाब से देखा जाए तो पंजाब में हिंदू मतदाताओं की संख्या 83 लाख 56 हजार के आस पास है।
दूसरे दल भी हिंदुओं को लुभाने में जुटे
राजनीतिक समीक्षक वीरेंद्र भारत ने बताया कि इस बार पंजाब में जिस तरह से भाजपा लगातार सक्रिय है, इससे कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल और आम आदमी पार्टी को हिंदू मतदाता की अहमियत समझ में आ रही है। यह दल भी अब हिंदू मतदाताओं को रिझाने के प्रयास कर रहे हैं। कांग्रेस ने पहली बार ब्राह्मण कल्याण बोर्ड और अग्रवाल कल्याण बोर्ड का गठन किया। महाराजा अग्रसेन की जीवनी को पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड की सातवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। कांग्रेस सरकार ने हर जिले में महाराजा अग्रसेन की प्रतिमा भी लगाई है। पहली बार कांग्रेस सरकार का ध्यान फगवाड़ा जिले के ग्राम खाटी में भगवान परशुराम के मंदिर की ओर गया। सरकार ने न केवल मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए राशि जारी की है, बल्कि भगवान परशुराम के जीवन और दर्शन का अध्ययन करने के लिए एक शोध केंद्र स्थापित करने की परियोजना पर भी काम शुरू कर दिया है। इसके अलावा, मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी उत्तराखंड के केदारनाथ धाम व हिमाचल के बगलामुखी और चिंतपूर्णी धाम सहित अन्य मंदिरों का दौरा भी लगातार कर रहे हैं। शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल को भी राजस्थान के चिंतपूर्णी धाम और सालासर बालाजी धाम के अलावा मंदिरों में जाते देखा गया। AAP के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल भी जालंधर के श्री देवी तालाब मंदिर पहुंचे। AAP हिंदू मतदाताओं को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। पहली बार शिरोमणि अकाली दल को भी हिंदू मतदाताओं की जरूरत महसूस हो रही है, क्योंकि अभी से पहले तो भाजपा के साथ अकाली दल गठबंधन में रहता था। इसलिए हिंदू वोट भाजपा की वजह से मिल ही जाते थे। अब पहली बार अकाली दल के रणनीतिकारों का ध्यान हिंदू मतदाताओं की ओर गया है। चुनाव के लिए हिंदू बहुल सीटों पर हिंदू चेहरों की तलाश की जा रही है।
एकजुट होकर डालते हैं वोट
हिंदू मतदाता हमेशा एकजुट होकर एक पार्टी को वोट देते हैं। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक सिर्फ 14 प्रतिशत मतदाता ही फिसलते हैं। 2007 में 13.5 प्रतिशत हिंदू मतदाताओं ने कांग्रेस से दूरी बना ली थी। नतीजतन, कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। 2012 के चुनाव में भी यही स्थिति थी। दोनों बार शिअद-भाजपा गठबंधन की सरकार बनी। 42 से 46 सीटों पर हिंदू वोटर निर्णायक भूमिका में रहते हैं। इसमें जालंधर की चारों सीट पर 60 प्रतिशत, लुधियाना 45, खन्ना 50, मानसा 45, पठानकोट 70, बठिंडा 35 और अमृतसर जिले में 38 प्रतिशत हिंदू हैं। इसी तरह, होशियारपुर में 60 प्रतिशत, नवाशहर में 63 प्रतिशत, मोहाली में 45 प्रतिशत, रोपड़ में 45 प्रतिशत, संगरूर में 40 प्रतिशत, पटियाला में 48 प्रतिशत, गुरदासपुर ओर फिरोजपुर में 50 प्रतिशत हिंदू मतदाता हैं।
हिंदू मतदाताओं का रुझान भाजपा की ओर
इस बार पंजाब के मतदाताओं का रुझान बीजेपी की ओर जाता दिखाई दे रहा है। यदि यह रुझान वोटों में तब्दील होता है तो इससे कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को नुकसान हो सकता है। कांग्रेस के प्रति पंजाब के हिंदू मतदाताओं का सॉफ्ट कार्नर रहता है, लेकिन अब भाजपा सीधे चुनाव मैदान में हैं, इसलिए हिंदू मतदाताओं के पास विकल्प है। भाजपा को राममंदिर धारा 370 का भी यहां लाभ मिलता नजर आ रहा है। इससे हिंदू मतदाता भाजपा के साथ जुड़ रहे हैं।
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