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महापुरुषों पर समग्र दृष्टि

by WEB DESK
Jan 22, 2022, 02:54 am IST
in भारत, पुस्तकें, दिल्ली
नेताजी सुभाषचंद्र बोस

नेताजी सुभाषचंद्र बोस

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पाञ्चजन्य ने राजनीतिक, साहित्यिक और अकादमिक जगत के महापुरुषों को खंड-खंड देखने की दृष्टि का परिष्कार करने का गुरुतर दायित्व संभाला। पाञ्चजन्य ने महापुरुषों को बांटे जाने के विरुद्ध उन्हें सही और समग्र परिप्रेक्ष्य में देखने की दृष्टि दी। इस क्रम में पाञ्चजन्य ने कई महापुरुषों पर केंद्रित अंक प्रकाशित किए। इनमें कुछ अंकों की झलकियां अपने अभिलेखागार से पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।

5 अगस्त, 2018 का अंक उपन्यास सम्राट प्रेमचंद को समर्पित था। वही प्रेमचंद जिन्हें भारतीय समाज का ऐसा आईना कहा जाता है जिसमें आप किसी भी कालखंड को देख लो। वही प्रेमचंद जिनकी रचनाएं वामपंथियों को बाएं झुकी दिखती हैं और वे उन्हें अपनी जमात का बताते नहीं थकते। लेकिन क्या यह संभव है कि जिस व्यक्ति की रचनाएं कालजयी हैं, उसकी सोच कालजयी न हो? प्रेमचंद का स्पष्ट मानना था कि राष्ट्र को सम्प्रदाय से ऊपर रखना एक पवित्र कार्य है, क्योंकि इसी से देश-समाज की बुनियाद मजबूत होती है। प्रेमचंद के लेखन में विवेकानंद, तुलसी, सनातन संस्कृति से जुड़े आग्रह/उल्लेखों को सामने रखता और साहित्य गलियारों से बुहार दी गई उनकी जिहाद तथा अन्य अल्प चर्चित कहानियों  को समेटे यह महत्वपूर्ण विशेषांक था।

26 अप्रैल, 2015 के अंक में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की कथित रहस्यमयी मौत से जुड़े प्रश्नों के उत्तर खोजने के प्रयास किए गए हैं। उल्लेखनीय है कि 18 अगस्त, 1945 को मंचूरिया जाते समय अचानक खबर फैली या फैलाई गई कि एक विमान दुर्घटना में नेताजी का निधन हो गया है। लेकिन साक्ष्य कहते हैं कि मंचूरिया पहुंचने के बाद उन्हें गिरμतार कर मास्को की एक जेल में बंद कर दिया गया था। इस पर पर्दा डालने के लिए संबंधित कागजातों को दबा दिया गया। कहा जाता है कि यदि 1945 में वे भारत लौट आते तो वही प्रधानमंत्री बनते। शायद यही कारण है कि उन्हें जेल में बंद करवा कर उनकी मौत की खबर उड़ाई गई।

17 जून, 2018 का अंक महाराणा प्रताप को समर्पित है। इसमें उनकी राज्य व्यवस्था, उनकी रणनीति, उनका त्याग, उनका देशप्रेम आदि पर अनेक ख्यातिप्राप्त इतिहासकारों के शोधपरक आलेख हैं। इसके साथ ही उनको लेकर वामपंथी इतिहासकारों ने किस तरह का छल किया, उनके बारे में झूठ फैलाया और सच को सामने नहीं आने दिया, इस पर पर्याप्त सामग्री दी गई है। बता दें कि वामपंथी इतिहासकारों ने लिखा है कि हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा को हार मिली थी, लेकिन साक्ष्य इसके उलट हैं। यानी महाराणा की जीत हुई थी। जीत के क्या साक्ष्य हैं, इस पर भी अंक में लेख हैं।

काल के प्रस्तर पर अमिट शिलालेख 5 अप्रैल, 2020 का अंक एक पुरातत्वविद, सिद्धहस्त कलाकार, भाषा-लिपियों का जानकार, इतिहास का वैज्ञानिक विमर्शकार और संस्कृति के गहरे अनुरागी-अध्येता और को समर्पित रहा। आर्य आक्रमण के 'गल्प सिद्धान्त' को बहा ले जाने वाला सरस्वती के प्रवाह का अनुसंधान, ग्रीनविच 'मीन टाइम' को चुनौती देता ठीक कर्क रेखा पर बैठा उज्जैन का डोंगला या भीमबैठका शैलचित्रों की कार्बन डेटिंग। डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर के जीवन, उनके शिष्य-संपर्कसंसार के विविध आयामों को सहेजे पाञ्चजन्य का यह विशेषांक कोविड की पहली लहर के दौरान अति दुरुह स्थितियों में निकाला गया और डिजिटल प्रसार के बाद भरपूर सराहा भी गया।


 

25 दिसम्बर, 2016 का अंक गुरु गोविन्द सिंह जी पर केन्द्रित था। इसमें उनके जीवन से जुड़े स्थलों, विचारों और सनातन समाज के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों को समाहित किया गया है। गुरु गोविन्द सिंह जी अध्यात्म और साहित्य में जितने निपुण थे, उतने ही सामरिक मामलों में। इसलिए उन्हें योगी योद्धा कहा जाता है। इस योगी के आध्यात्मिक, सांसारिक और सामरिक विचारों के प्रसार का वाहक बना यह विशेषांक।
 

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