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श्रीकृष्ण को माधव भी कहा जाता है। मान्यता है कि प्रयागराज में संगम की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने 12 रूप धारण किए थे और उन्हीं रूपों में वहां विराजमान भी रहे। उन रूपों की याद में 12 स्थानों पर मंदिर बने थे, जो अब जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। उत्तर प्रदेश सरकार अब उन मंदिरों का जीर्णोद्धार करा रही है
सुनील राय
पौराणिक मान्यता है कि भगवान माधव ने प्रयाग में अवतरित होकर गंगा, यमुना और सरस्वती को बचाने के लिए राक्षस से युद्ध कर उसका वध किया था। गजकर्ण राक्षस वध के बाद संगम की रक्षा के लिए भगवान माधव 12 रूपों में प्रयाग में विराजमान हुए थे। इन्हीं रूपों की स्मृति में प्रयाग और उसके आसपास 12 मंदिर बने थे, जिन्हें माधव मंदिर कहा जाता है। समय बीतने के साथ-साथ ये मंदिर जीर्ण-शीर्ण होते गए। अब इन मंदिरों के बारे में कोई बता भी नहीं पाता। इनमें से कई तो लुप्तप्राय हैं। चंूकि ग्रंथों में इन मंदिरों का उल्लेख है, इसलिए देशभर से प्रयाग आने वाले जिज्ञासु श्रद्धालु इनके बारे में पूछते हैं। लेकिन कोई उन्हें कुछ बता नहीं पाता। वर्षों तक किसी ने इन मंदिरों की सुध नहीं ली। मगर इस बार कुंभ मेले से ठीक पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने इन मंदिरों की सुध ली है। इन सभी 12 माधव मंदिरों को भव्य बनाने के लिए धन की व्यवस्था भी कर दी गई है और यह लक्ष्य निर्धारित किया गया है कि 2019 में कुंभ शुरू होने से पहले ये मंदिर तैयार हो जाएं।
इन 12 मंदिरों में सबसे प्रमुख है श्री आदि वेणी माधव मंदिर। यह मंदिर प्रयाग के दारागंज मुहल्ले में स्थित है। मंदिर के महंत ओंकार देव गिरि बताते हैं, ‘‘भगवान वेणी माधव को ही प्रयागराज कहा जाता है। वेदों में माधव मंदिर का वर्णन है। जब भगवान राम प्रयाग आए थे तब भारद्वाज मुनि के आश्रम में रुके थे।’’ इन महंत जी के पास ‘बारह माधव’ नाम से एक पुस्तिका है। इसमें सभी 12 मंदिरों की जानकारी दी गई है।
एक धार्मिक कथा के अनुसार गजकर्ण नाम के राक्षस को एक्जिमा हो गया था। नारद जी ने उसे संगम स्नान करने का परामर्श दिया। संगम स्नान करने से गजकर्ण का एक्जिमा ठीक हो गया। इसके बाद उसे लगा कि ये तीनों नदियां तो बहुत उपयोगी हैं। इसके बाद वह तीनों नदियों का जल पी गया। उस राक्षस से नदियों को मुक्त कराने के लिए भगवान माधव मंगलवार के दिन प्रयाग आए। दो दिन तक युद्ध चला और गुरुवार को गजकर्ण मारा गया। मगर इस दौरान गंगा और यमुना को ही छुड़ाया जा सका। सरस्वती नदी को गजकर्ण पूरी तरह पी चुका था। उसके बाद माधव भगवान 12 रूपों में प्रयाग की रक्षा के लिए यहां पर विराजमान हुए।
ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व वाले इन मंदिरों के बारे में किसी ने कोई चिंता नहीं की। इस बार कुंभ मेले की तैयारी शुरू होने के साथ ही साधु-संतों ने प्रदेश सरकार से इन मंदिरों के जीर्णोद्धार की मांग की। प्रदेश सरकार ने इसे गंभीरता से लिया और मंदिरों के जीर्णोद्धार के लिए आवश्यक कदम उठाए। कुंभ मेला प्रशासन जल्दी ही सभी माधव मंदिरों को चिन्हित करके उन्हें भव्य रूप देने की तैयारी कर रहा है। इन दिनों श्रद्धालु केवल वेणी माधव मंदिर के ही दर्शन कर पाते हैं। अन्य मंदिरों के बारे में उन्हें ज्यादा जानकारी नहीं मिल पाती।
वेणी माधव मंदिर के बाद चक्र माधव मंदिर का स्थान है। यह मंदिर अरैल में सोमेश्वर महादेव वाली सड़क पर है। माना जाता है कि चक्र माधव जी अपने चक्र के द्वारा सबकी रक्षा करते हैं। यह 14 महाविद्याओं से परिपूर्ण है। भगवान माधव की यह दूसरी पीठ है। इनके दर्शन-पूजन से 14 विद्याएं प्राप्त होती हैं।
गदा माधव के रूप में विष्णु जी प्रयाग के छिवकी रेलवे स्टेशन के समीप नैनी में विराजमान हैं। मान्यता है कि वैशाख मास में इनका पूजन करने से काल का भय नहीं रह जाता। भाद्र शुक्ल की पंचमी को यहां मेला लगता है। यह स्थान रिक्त है। इसलिए श्रद्धालु यहां पर शयन माता के मंदिर में पूजा करते हैं। कहते हैं कि वन गमन के समय भगवान राम ने एक रात यहां पर विश्राम किया था। उसी जगह पर शयन माता का मंदिर है। यह भगवान माधव की तीसरी पीठ है।
प्रयाग के पास यमुनापार इलाके में अत्यंत प्राचीन सुजावन देव मंदिर है। बीते समय में जब यमुना जी की जलधारा परिवर्तित हुई तब यह मंदिर यमुना के बीच में आ गया। स्थानीय लोग बताते हैं कि यही मंदिर प्राचीन काल का पद्म माधव मंदिर है। यहां माधव जी लक्ष्मी जी के साथ विराजमान हैं। इनकी पूजा-अर्चना करने से योगियों को सिद्धि और गृहस्थों को पुत्र एवं धन-धान्य की प्राप्ति होती है। यह माधव भगवान की चौथी पीठ है।
प्रयाग के पश्चिमी क्षेत्र में मामा-भांजा के तालाब के पास अनंत माधव का मंदिर स्थित है। मुगलकाल के पहले यदुवंशी राजा रामचंद्रदेव के पुत्र राजा श्रीकृष्णदेव के समय यह क्षेत्र उनकी राजधानी देवगिरवा के नाम से जाना जाता था। यवनों के आक्रमण से बचाने के लिए इस मंदिर के पुजारी स्वर्गीय मुरलीधर शुक्ल ने अनंत माधव भगवान की मूर्ति को अपने निजी निवास दारागंज में स्थापित कर दिया था। यह स्थान बेनी माधव की बगल वाली गली में स्थित है। यहां अनंत माधव मां लक्ष्मी जी के साथ विराजमान हैं। यह माधव भगवान का पांचवां रूप है।
बिंदु माधव की पूजा-अर्चना देवताओं और महर्षि भारद्वाज द्वारा भी की गई है। यह वह स्थान है जहां सप्त ऋषिगण विराजते हैं। कहा जाता है कि बिंदु माधव जी का मंदिर वहां पर था जहां पर इन दिनों लेटे हुए हनुमान जी का पौराणिक मंदिर है। यह माधव भगवान का छठा रूप है।
शहर के उत्तरी भाग में जानसेनगंज क्षेत्र में स्थित दुर्येश्वर नाथ जी के मंदिर में मनोहर माधव अपनी पत्नी मां लक्ष्मी के साथ विराजमान हैं। यह माधव की सातवीं पीठ है। नगर के ईशान कोण में शिव जी के आश्रम के समीप असि माधव विराजते हैं। मान्यता है कि असि माधव के पूजन एवं दर्शन से समस्त उपद्रवियों का नाश होता है। यह माधव का आठवां रूप है।
संकट हर माधव झूंसी के हंस तीर्थ के पीछे स्थित है। यह उनका नौवां रूप है। यहां पर दर्शन करने से भक्तों के संकट और पाप का हरण हो जाता है। इस पीठ की पुस्स्थापना प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने 1931 में की थी। पुराना वट वट वृक्ष आज भी मौजूद है। आदि माधव का मंदिर नैनी के अरैल क्षेत्र में यमुना तट पर है। यह उनका 10वां रूप है।
विष्णु माधव की पहचान संगम नगरी के रूप में की जाती है। यहां पर गंगा, यमुना और सरस्वती के मध्य में विष्णु जी जल रूप में विराजते हैं। यह उनका 11वां रूप है। प्रयाग के झूंसी में सदाफल आश्रम में शंख माधव जी का मंदिर है। शंख माधव की पूजा करने से आठों सिद्धियां प्राप्त होती हैं। यहां माधव 12वें रूप में विराजमान हैं। उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने बताया कि इन 12 माधव मंदिरों का जीर्णोद्धार और पंचकोसी परिक्रमा के पहुंच मार्ग के नवीनीकरण एवं शेष भाग का चौड़ीकरण कराया जाएगा।
इस कार्य पर 361.69 लाख रु. की लागत आएगी। बारह माधव मंदिर, पंचकोसी परिक्रमा एवं शिव मंदिरों के पहुंच मार्ग का विद्युतीकरण भी किया जाएगा। इस पर 151.89 लाख रु. खर्च होंगे। माधव मंदिरों को भव्य स्वरूप देने के साथ ही इनका साहित्य भी प्रकाशित किया जाएग। कुंभ मेले की वेबसाइट पर माधव भगवान की महिमा और उनके मंदिरों की जानकारी भी दी जाएगी। अब उम्मीद की जानी चाहिए कि आगामी कुंभ मेले के अवसर पर श्रद्धालु माधव के इन रूपों के दर्शन कर पाएंगे।
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