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अमेरिकी विचारक जेनेट लेवी ने 2015 में पश्चिम बंगाल की स्थिति का आकलन करके अंग्रेजी में यह लेख लिखा था, जिसमें स्पष्ट संकेत किया था कि तेजी से बढ़ती मुस्लिम आबादी और बांग्लादेश से होती घुसपैठ राज्य में एक बड़ा संकट पैदा कर रही है। पश्चिम बंगाल के कई इलाकों में पिछले दिनों रामनवमी पर हुए उत्पात के संदर्भ में उनका आकलन सही ठहरता है
प्रतिनिधि
डॉ.पीटर हेमंड के अनुसार गैर-मुस्लिम देशों में मुस्लिम अप्रवासियों की संख्या बढ़ने के साथ दंगे, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन, धर्म, राजनीति और कानून पालन प्रक्रिया पर नियंत्रण जैसे चंद अवांछनीय परिवर्तन दिख सकते हैं। दक्षिण अफ्रीका स्थित एक ईसाई मिशनरी और 40 पुस्तकों के लेखक हेमंड ने अपनी किताब ‘स्लेवरी, टेररिज्म एंड इस्लाम’ में बताया है कि किस तरह मुसलमान समाज की मूल संरचना बदल देते हैं। हेमंड ने दुनिया भर के देशों के उदाहरणों को पेश करते हुए कुछ खास लक्षणों की ओर इशारा किया है, जो कुल आबादी में मुस्लिम प्रतिशत बढ़ने के साथ उभरने लगते हैं। यह उन देशों में बदलाव के भावी बवंडर की चेतावनी है जहां मुस्लिम घुसपैठ तेजी से बढ़ रही है।
इन सामाजिक परिवर्तनों के पीछे कट्टर इस्लामी भाव काम करता है, जो 1,400 साल पुराने मजहब का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध है। जिसके अनुसार मोहम्मद मक्का से मदीना आए थे। मजहबी निर्देश या हिज्र कहता है कि इस्लाम का ज्यादा से ज्यादा विस्तार हो और सभी गैर-मुसलमान शरीयत या इस्लाम अपना लें। इस्लामी विस्तारवाद और इसका प्रतिरूप जिहाद मुसलमानों द्वारा मेजबान देशों में विशेष स्थिति और विशेषाधिकार की पहली मांग के रूप में व्यक्त होता है। फिर उनकी आबादी बढ़ने के साथ मेजबान देश की राजनीतिक गतिविधियों से लेकर कानून व्यवस्था, मीडिया और अर्थव्यवस्था तक उनका नियंत्रण हो जाता है। इसके साथ आने-जाने, अभिव्यक्ति और धार्मिक परंपराओं के पालन की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लग जाते हैं। सामान और संपत्ति पर कब्जा, बेलगाम हिंसा जैसी घटनाएं आम हो जाती हैं, जिनपर कोई सुनवाई नहीं होती। आज ऐसे ही हालात पश्चिम बंगाल के हैं। बढ़ती मुस्लिम आबादी, हिन्दुओं के तीज-त्योहार से लेकर छोटी-बड़ी घटनाओं पर दंगे जैसी स्थिति उत्पन्न करने के कारण राज्य की स्थिति दिन-प्रतिदिन बदतर होती जा रही है।
1947 में ब्रिटिश भारत के दो स्वतंत्र देशों -भारत और पाकिस्तान में विभाजन के दौरान विभिन्न लोक संस्कृतियों से समृद्ध बंगाल राजनीतिक तौर पर विभाजित हो गया था। इस व्यवस्था के तहत बंगाल प्रांत को दो हिस्सों में बांटा गया। हिन्दू बहुल क्षेत्र पश्चिम बंगाल भारत का हिस्सा बना और मुस्लिम बहुल पूर्वी बंगाल पाकिस्तान का राज्य बन गया, जो 1971 में अंतत: एक अलग मुस्लिम बहुसंख्यक देश, बांग्लादेश, के रूप में अस्तित्व में आया।
विभाजन के समय पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी 12 प्रतिशत थी और पूर्वी बंगाल की हिंदू जनसंख्या 30 प्रतिशत। आज, बड़ी संख्या में बांग्लादेशी मुस्लिमों की घुसपैठ, हिंदुओं के उत्पीड़न और जबरदस्ती कराए जा रहे कन्वर्जन के कारण 2011 की जनगणना के मुताबिक पश्चिम बंगाल की मुस्लिम आबादी 27 प्रतिशत (कुछ जिलों में 63 प्रतिशत तक) बढ़ गई है और बांग्लादेश की हिंदू आबादी में 8 प्रतिशत की कमी आई है। जहां बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति नारकीय है, वहीं अपने देश के राज्य पश्चिम बंगाल में भी हिंदुओं के लिए जीवन मुश्किल होता जा रहा है। इसकी वजह है मुस्लिम वोटों के लिए मुसलमानों को खुश रखने में जुटी सरकार और उन्मादियों को सहज-सुलभ-सुरक्षित आश्रय मुहैया करा रहा यह क्षेत्र, जो कई वर्षों से मुसलमानों द्वारा शरिया लागू करने, सरकारी रियायतों का उपभोग करने और ज्यादा क्षेत्र हासिल करने के उद्देश्य से उकसाए गए दंगों का शिकार हो रहा है।
दंगों की पृष्ठभूमि
2007 में बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन के खिलाफ कोलकाता में एक हिंसक विरोध प्रदर्शन हुआ था। नसरीन के खिलाफ प्रदर्शन दरअसल इस्लामी ईश निन्दा कानूनों को स्थापित करने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का प्रयास था। बांग्लादेश में एक मुस्लिम परिवार में जन्मीं नसरीन ने एक चिकित्सक के तौर पर मुस्लिम महिलाओं के साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार को देखा था। इसलिए उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, महिलाओं के अधिकार, गैर-मुस्लिम अधिकारों और शरिया कानून के उन्मूलन की वकालत की थी। 1993 में उन्होंने लज्जा नाम से एक उपन्यास प्रकाशित किया जो मुसलमानों द्वारा उत्पीड़ित एक हिंदू परिवार की कहानी है। इस उपन्यास से मुस्लिम समुदाय भड़क उठा और उन पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने लगा और उनकी मौत पर इनाम भी रख दिया। बाद में भारत सरकार ने उपन्यास पर प्रतिबंध लगा दिया था। नसरीन पर हमले होने लगे जिससे उन्हें छिपना पड़ा और बाद में जान बचाने के लिए अपने ही देश बांग्लादेश से यूरोप भागना पड़ा। 10 साल के निर्वासन के बाद वह लौटीं और कोलकाता में बस गर्इं। उनका बांग्लादेशी पासपोर्ट रद्द कर दिया गया था और भारत के वीजा के लिए उन्हें कई साल इंतजार करना पड़ा। कोलकाता में सिर कलम कर देने की नई धमकियों से डरे बगैर उन्होंने इस्लाम के खिलाफ लेख लिखना जारी रखा।
नवंबर, 2007 में नसरीन के खिलाफ उग्रवादी मुस्लिमों द्वारा आयोजित विरोध दंगों में तब्दील हो गया, क्योंकि मुसलमानों ने यातायात जाम कर दिया था, पुलिस और पत्रकारों पर पत्थर फेंके, कारों को आग लगा दी और बसों को नुकसान पहुंचाया। राज्य के मुसलमान नसरीन को मौत की सजा देने की मांग कर रहे थे क्योंकि शरिया के अनुसार इस्लाम की आलोचना करने वाले को मौत की सजा मिलनी चाहिए। स्थिति बिगड़ने पर सेना को हस्तक्षेप करना पड़ा, नसरीन को नजरबंद कर दिया गया और बाद में विवश होकर उन्हे वह क्षेत्र छोड़ना पड़ा। माना जाता है कि इस पूरे हंगामे के पीछे प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिमी और आईएसआई का हाथ था।
ऐसे ही 2013 में राज्य के मुसलमान भारत का दूसरा विभाजन कर इस्लामी राज्य ‘मुगलिस्तान’ का निर्माण करने की जुगत में सक्रिय रूप से जनमत तैयार करने में जुटे थे, जिसके अंदर पाकिस्तान, बांग्लादेश और भारत के कुछ हिस्से शामिल किए जाते। इसी बीच, आगामी स्थानीय चुनावी रण में जातीय विभाजन के मुद्दे को उछाल दिया गया। ऐसे तपते माहौल में अज्ञात हमलावरों द्वारा मुस्लिम मौलवी की हत्या से मुसलमानों में आक्रोश उठा और कैनिंग क्षेत्र में दंगा करने के लिए हजारों की भीड़ जमा हो गई। 200 से अधिक हिंदू घरों को लूटा गया, उन पर बम फेंके गए, सैकड़ों मंदिरों और मूर्तियों को नष्ट कर दिया गया और अल्लाहो-अकबर के नारे के साथ गाड़ियों में आग लगा दी गई। हिंदुओं की ओर से पुलिस से लगाई गई मदद की गुहार पर कोई जवाब नहीं मिला। स्थानीय निवासियों का दावा है कि पुलिस की मुस्लिम भीड़ के साथ मिलीभगत थी। इस घटना के कुछ समय बाद कोलकाता के उपनगर उस्ती के एक बाजार में हिंदुओं की 50 से अधिक दुकानों को हिंसक जिहादियों ने तहस-नहस कर दिया और जमकर लूटपाट की। हिंदुओं पर अंधाधुंध बम फेंके गए और पुलिस तमाशा देखती रही। बस दिखाने भर के लिए पुलिस ने चंद गोलियां चलाईं और हमलावरों को पकड़ने के बजाय ज्यादातर सताए जा रहे हिंदू दुकान मालिकों को ही हिरासत में लिया। हैरानी की बात है कि एक विधायक और अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री ने मांग की कि स्थानीय पुलिस हिरासत में रखे कुछ दंगाइयों को रिहा कर दे। मुख्यधारा की मीडिया ने इस दंगे को बिल्कुल अनदेखा कि, जैसे कुछ हुआ ही नहीं।
तुष्टीकरण की पराकाष्ठा
पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी निर्वाचित नेताओं पर इस्लामी एजेंडे को आगे रखने और मुसलमानों को वरीयता दिलाने का दबाव बनाती है। मुर्शीदाबाद सहित कई सीमावर्ती जिलों में जहां 63 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम हंै वहां अघोषित रूप से शरिया का कानून सभी निवासियों पर लागू है। राजनीतिक उम्मीदवारों, प्रशासनिक अधिकारियों और कानून व्यवस्था लागू करने वालों में मुसलमानों की संख्या बहुत ज्यादा है और हिंदुओं के लिए आर्थिक संभावनाएं न के बराबर हैं। क्योंकि मुसलमान गैर-मुस्लिमों के व्यवसायों को सुविधाएं देने से परहेज करते हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, जिनके राज्य में हिलेरी क्लिंटन और कई अमेरिकी राजदूतों ने दौरा किया है, एक ऐसी राजनेता हैं जिन्होंने मुस्लिम मतदाताओं को सिर-आंखों पर बैठा रखा है और उनकी मांगों की पूर्ति के साथ उन्हें विशेष लाभ और विशेषाधिकार भी प्रदान करती हैं। इस तुष्टीकरण की राजनीति की वास्तविकता यह है कि पूरा मुस्लिम समुदाय स्थानीय इमाम या मजहबी नेता द्वारा निर्धारित उम्मीदवारों को ही वोट देता है और यही समस्या में चिंगारी का काम करती है। इसके कारण राज्य पर मुस्लिम नियंत्रण को और मजबूत मिलती है। ममता ने मुसलमानों को अपने पाले में लाने के लिए हर वह कार्य करती हैं, जो हिन्दुओं के विरोध में हो और मुसलमानों के हित में। उन्होंने 10,000 मान्यतारहित (अरब देशों से वित्त पोषित और नियंत्रित) मदरसों की शैक्षणिक डिग्री को मान्यता दी और इमामों के लिए मानदेय और मुसलमानों के लिए एक विशेष टाउनशिप की स्वीकृति भी दी। मुसलमानों को लुभाने के लिए उन्होंने मुस्लिम लड़कियों को मुफ्त साइकिल, रेल पास और मुसलमान लड़कों को लैपटॉप भेंट किए। सूत्रों की मानें तो जिहादी स्लीपर सेल उनके संरक्षण वाले क्षेत्र में ही बसे हैं। दूसरी तरफ, बांग्लादेश से आए हिंदू शरणार्थियों की जरूरतों पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा। वे पश्चिम बंगाल में अत्यंत बदहाली में जी रहे हैं।
जून, 2014 में जब ममता बनर्जी ने सबको हैरान करते हुए हसन इमरान को राज्यसभा का सांसद नियुक्त किया, जिसके बारे में खुफिया एजेंसियों ने कई बार चेतावनी दी थी कि हिंदुओं के खिलाफ हिंसा और खासकर कोलकाता और कैनिंग दंगों को भड़काने में उसका हाथ है और वह कथित तौर पर आंतकवादियों को भी आश्रय देता रहा है। इमरान प्रतिबंधित संगठन सिमी का संस्थापक सदस्य है। उसने कलाम नाम की एक कट्टरपंथी साप्ताहिक पत्रिका निकाली और उसका संपादन किया जिसे बाद में दैनिक कलाम के नाम से शारदा समूह को बेच दिया। यह पश्चिम बंगाल सरकार के अधिकारियों के साथ मिल कर बनाया गया एक वित्तीय समूह था। इसके जरिए मुस्लिम-नियंत्रित क्षेत्रों को शरीयत के अनुसार चलाने की वकालत की जाती रही है। हसन की स्थानीय इस्लामवादी नेताओं के करीबी रिश्ते हैं और उसने जमात-ए-इस्लामी के साथ काम किया है, जो एक सऊदी जिहादी समर्थक समूह है, जिसे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से सहायता मिलती है। सांसद हसन इमरान के सऊदी से पैसा पाने वाले आतंकवादी समूह जमीयतुल-मुजाहिदीन से भी संबंध हैं, जिसने पश्चिम बंगाल में अपना प्रमुख अड्डा बना रखा है जिसमें बम बनाने की इकाइयां भी शामिल हैं। यह वहाबी पैसों से पूरे राज्य में मस्जिद बना रहे हैं।
बांग्लादेश से होती घुसपैठ
अगर सीमापार से बंगलादेशी मुस्लिमों की घुसपैठ होती रही और उनकी आबादी मौजूदा 27 प्रतिशत से बढ़ती रही तो आने वाले दिनों में पश्चिम बंगाल के हिंदुओं का भविष्य क्या होगा? इस तथ्य की हकीकत जानने के लिए बांग्लादेश की सीमा पर एक बार नजर डालना जरूरी है। बांग्लादेश में 89 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है, जो जातीय हिंसा भड़का कर हिंदुओं की हत्या, उनकी जमीन पर जबरन कब्जा और उनके व्यवसायों को तबाह करते रहते हैं। हिंदुओं से मारपीट की जाती है और पुलिस कोई हस्तक्षेप नहीं करती। उनपर अत्याचार होता है और जजिया देने के लिए जबरदस्ती की जाती है। यह ऐसा कर है जो गैर मुसलमानों को मुस्लिम आतंकवाद से बचने के लिए देना पड़ता है। हिंदू लड़कियों, विवाहिताओं का भी बलात्कार होता है, उनके शरीर विकृत कर दिए जाते हैं, उनका अपहरण होता है, गुलाम बना दिया जाता है और मुस्लिमों के साथ शादी करने के लिए मजबूर किया जाता है। कानून व्यवस्था से उन्हें कोई मदद नहीं मिलती और अगर पीड़िता पुलिस में शिकायत दर्ज करने जाती है तो उलटे उसे ही धमकी मिलती है। अपहरण के मामलों में भी पुलिस शिकायत दर्ज करने से इंकार करती है और अगर लड़की 9 या 10 साल की भी हुई तो यह कह कर पल्ला झाड़ लेती है कि मर्जी से शारीरिक संबंध बने होंगे।
किसी तरह कैद से निकल भागने में सफल होने वाली अपहत लड़कियों के अनुसार उन्हें मुस्लिम परिवारों में पहुंचाया जाता है और कई मामलों में उन परिवारों के रिश्तेदार और मित्र कई दिनों तक इनका बलात्कार करते हैं और मुस्लिम औरतें इस दौरान उनकी खातिरदारी करती हैं। पश्चिम बंगाल का भविष्य ऐसा भयावह न हो, इसके लिए जरूरी है कि शारदा वित्तीय घोटाले की परतों को अच्छे से खंगाला जाए, ताकि ममता बनर्जी के खतरनाक इस्लामवादियों के साथ रिश्ते उजागर हों जो हिंदुओं से पश्चिम बंगाल का नियंत्रण हथियाने की ताक में हैं। अगर उनकी सरकार हारती है तो यह मौजूदा स्थिति को संवारने के दरवाजे खोल सकती है। यह उन दशों के लिए भी मिसाल बन सकता है जो बढ़ती मुस्लिम घुसपैठ और गैर मुसलमानों पर जबरन थोपे जा रहे मुस्लिम आचार-विचार से परेशान हैं।
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