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कर्नाटकवासी मानते हैं कि लिंगायत हिन्दू धर्म से अलग नहीं हैं। वे कर्नाटक की आबादी का 18 प्रतिशत हैं और 100 विधानसभा सीटों को प्रभावित करते हैं। कांग्रेस की लिंगायत को अलग पंथ का दर्जा देने की सिफारिश का समाज और पार्टी, दोनों में भारी विरोध हो रहा
आदित्य भारद्वाज
कर्नाटक सरकार की लिंगायत को अलग पंथ का दर्जा देने की कोशिश कांग्रेस के ही गले की फांस चुकी है। चर्चा है कि कांग्रेस में अंदरूनी स्तर पर भी इसका विरोध है तो वहीं राज्य की अनुसूचित जाति और जनजातियों के लोग भी इससे काफी नाराज हैं।
‘‘कांग्रेस के लोग अपने निजी स्वार्थ के लिए समाज में फूट डालने का काम कर रहे हैं। वे लोगों को यह कहकर भड़का रहे हैं कि अलग पंथ का दर्जा मिलने से उन्हें अल्पसंख्यक समुदाय की तरह नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण मिलेगा। बावजूद इसके वीरशैव लिंगायत समुदाय के 90 प्रतिशत लोग इससे सहमत नहीं हैं। वे स्वयं को हिंदू ही मानते हैं।’’ —जगन्नाथ करण्जे, वीरशैव दर्शन के शोधार्थी
पिछले साल जुलाई में कर्नाटक के सीमावर्ती जिले बिदर में बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ जुटी थी, जिन्हें लिंगायत समुदाय से बताया गया था और कहा गया था कि वे अपने समुदाय के लिए अलग पांथिक पहचान की मांग कर रहे हैं। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने तब खुलकर इस बेबुनियाद बात को हवा दी थी। अब चुनावों को देखते हुए प्रदेश की कांगे्र्रेस सरकार ने लिंगायत और वीरशैव लिंगायत को पांथिक अल्पसंख्यक के नाते अधिसूचित कर केंद्र सरकार के पास सिफारिश भेजी है। हालांकि पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के समय भी कुछ लोगों ने अपने चुनावी स्वार्थ के लिए वीरशैव लिंगायत को अलग पंथ का दर्जा देने की मांग की थी, लेकिन इसे खारिज कर दिया गया था। दरअसल वीरशैव और लिंगायत एक ही आस्था प्रवाह की धाराएं हैं। दोनों की पूजा पद्धति में जरा अंतर है लेकिन मूल में एक ही बात है। वीरशैव शिवलिंग की पूजा करते हैं जबकि लिंगायत इष्टलिंग की पूजा करते हैं, इष्टलिंग को बाजू में बांधते हैं और उसे आत्मा और निर्विकारका भूर्तस्वरूप मानकर अपनी हथेली पर रखकर पूजा करते हैं। 12वीं शताब्दी के समाज सुधारक बसवन्ना के अनुयायी स्वयं को लिंगायत कहते हैं, लेकिन वीरशैव से अलग नहीं मानते। इस संबंध में कर्नाटक सरकार में राज्यमंत्री ईश्वर बी. खंडरे कहते हैं कि समÞुदाय के लोगों की मांग पर ही लिंगायत को अलग पंथ बताने का फैसला लिया गया था, इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं है। लिंगायत कनार्टक की आबादी का 18 प्रतिशत हैं और 100 विधानसभा सीटों को प्रभावित करते हैं। कांग्रेस की वीरशैव और लिंगायत को अलग पंथ का दर्जा देने की सिफारिश का दोनों ही तरफ के लोग विरोध कर रहे हैं।
अंग्रेजों के समय 1871 में पहली जनगणना में भी वीरशैव को हिंदुओं की सूची में ही रखा गया था।1921 में अंग्रेजी सरकार के गजट में तो स्पष्ट लिखा है कि वीरशैव-लिंगायत हिंदू ही हैं।
कांग्रेस प्रदेश समिति के सचिव एन. ननजुंडिश का कहना है कि वीरशैव और लिंगायत एक ही हैं, हिन्दू ही हैं। दोनों को अलग नहीं किया जा सकता। उन्हें अलग बताना गलत है। उन्होंने कहा कि यह उनका निजी विचार है। पर वे स्पष्ट तौर पर इसे कांग्रेस के लिए आत्मघाती कदम मानते हैं। वे कहते हैं कि इससे कांग्रेस को नुकसान होना तय है क्योंकि 80 प्रतिशत लिंगायत अलग पंथ का दर्जा दिए जाने के विचार से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि लिंगायत भले ही अष्टलिंग की पूजा करते हैं, लेकिन सृष्टि में एक ही लिंग है-शिवलिंग, भले ही उसका स्वरूप कुछ भी क्यों न हो। बसवन्ना ने समय के साथ मान्यताओं में आ गई गलत बातों के खिलाफ आवाज उठाई और समाज को एक विचार दिया, जिसमें ऊंच-नीच का भेदभाव मिटाने की बात कही गई, लेकिन उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि वे हिंदू नहीं हैं। पेशे से अधिवक्ता व अनुसूचित जाति से आने वाले बिदर जिले के निवासी जयकुमार कांगे कहते हैं कि अगर कांग्रेस यह सोचती है कि इससे उसे कर्नाटक चुनाव में लाभ होगा, तो यह उसकी गलतफहमी है। गैर-लिंगायत हिन्दुओं में इस फैसले के खिलाफ प्रतिक्रिया होगी जिसका कांग्रेस को नुकसान होना तय है और भाजपा को फायदा। सोशल मीडिया और ट्विटर पर भी लोग कांग्रेस का विरोध कर रहे हैं। वे स्पष्ट कह रहे हैं कि वे लिंगायत हैं और लिंगायत हिंदू ही हैं, उन्हें हिन्दू धर्म से कोई अलग नहीं कर सकता।
2011 की जनगणना के अनुसार कर्नाटक में हिन्दुओं की 84 प्रतिशत आबादी है, लिंगायत भी इन्हीं में से हैं। कनार्टक की ज्यादातर बड़ी शैक्षणिक संस्थाएं लिंगायतों की हैं। अभी सरकार के नियमानुसार इन संस्थाओं में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए कोटा है। कांगे कहते हैं कि यदि लिंगायत को अल्पसंख्यक दर्जा देकर अलग पंथ बनाया गया तो उन शैक्षणिक संस्थाओं में इन छात्रों का कोटा खत्म हो जाएगा, क्योंकि अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा मिलने पर वे अपने शैक्षणिक संस्थानों में कोटे के तहत दाखिला देने के लिए बाध्य नहीं होंगे। कनार्टक की कुल जनसंख्या में एक करोड़ आठ लाख के करीब अनुसूचित जाति के लोग हैं जबकि 42 लाख अनुसूचित जनजाति के लोग हैं। प्रतिशत के हिसाब से राज्य की कुल जनसंख्या में अनुसूचित जाति और जनजाति के 24 प्रतिशत लोग हैं। दोनों की संख्या लिंगायतों से कहीं ज्यादा है। लगभग हर विधानसभा सीट पर अनुसूचित जाति के लोग निर्णायक स्थिति में हैं। कांग्रेस का यह कदम अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के खिलाफ है। कांग्रेस के खिलाफ गोलबंदी होना तय है। समाजसेवक व कनार्टक के बीदर जिले के ही रहने वाले शिवाय स्वामी वीरशैव लिंगायत समुदाय से आते हैं। उनका कहना कि सरकार किसी पंथ विशेष को अल्पसंख्यक का दर्जा दे सकती है, लेकिन उसका काम किसी नये पंथ की स्थापना करना नहीं है। कर्नाटक में कुल 4,000 मठ हैं जिनमें से 3,200 वीरशैवों के और 800 लिंगायतों के हैं। कांग्रेस पहले लिंगायत को अलग करने की बात कर रही थी लेकिन इसका विरोध हुआ तो अब वह वीरशैव और लिंगायत दोनों
को अलग पंथ का दर्जा देने की बात कर रही है।
शिवाय स्वामी के अनुसार, ‘‘कांग्रेस के इस कदम से कर्नाटक ही नहीं, उसके बाहर भी, राष्ट्रीय स्तर पर इसके खिलाफ धीरे-धीरे प्रतिक्रिया बढ़ेगी और कांग्रेस की साख को धक्का लगेगा। वे कहते हैं कि बिदर में लिंगायत बड़ी संख्या में हैं। बीदर जिला एक तरफ महाराष्ट्र तो दूसरी तरफ तेलंगाना से लगता है। वहां भी काफी संख्या में लिंगायत समुदाय के लोग रहते हैं। कांग्रेस के इस कदम से उसे नुकसान होना तय है। अभी कांगे्रस जो विभाजनकारी राजनीति कर रही है वह स्पष्ट रूप से हिंदू विरोधी है। कर्नाटक के आसन्न विधानसभा चुनाव ही नहीं बल्कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।’’
कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ऐसे मकड़जाल में फंसी है कि निकलने का रास्ता नहीं सूझ रहा। लिंगायतों को अलग पंथ बताने की शरारत कर जहां उसने कर्नाटक में प्रभावी भूमिका रखने वाले इस समुदाय के लोगों को नाराज किया है, वहीं अपनी पार्टी के भीतर भी कइयों की बेचैनी बढ़ा दी है। इसमें शक नहीं कि हिन्दुत्व का दिखावटी चोला ओढ़कर कर्नाटक में चुनावी सभाएं करने पर राहुल गांधी को भारी असंतोष का सामना करना पड़ेगा।
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