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‘‘कर्नाटक में बंटवारे की राजनीति कर रही कांग्रेस’’

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Mar 26, 2018, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 26 Mar 2018 00:12:12

कर्नाटक में कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार द्वारा लिंगायत समुदाय को ‘अलग धर्म’ का दर्जा देने के कदम को भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुरुगानंदम ए.पी. समाज को बांटने वाली राजनीति मानते हैं। उनका कहना है कि कांग्रेस झूठ-फरेब और बंटवारे की राजनीति करके किसी भी तरह सत्ता में आना चाहती है। मुरुगानंदम केरल के प्रभारी हैं, पर समूचे दक्षिण भारत की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। कर्नाटक सहित दक्षिण भारत में बदल रही राजनीति पर पाञ्चजन्य संवाददाता नागार्जुन ने उनसे बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश-

 कर्नाटक की कांग्रेस सरकार लिंगायत समुदाय को ‘अलग धर्म’ का दर्जा दिलाने की कोशिश में है। इसे आप कैसे देखते हैं?
सिद्धारमैया सरकार ने कर्नाटक में कोई काम नहीं किया है, जिसके आधार पर वोट मांग सके। अब चुनाव सिर पर है तो वोटबैंक की राजनीति कर रहे हैं। इसलिए वे कभी अलग झंडा तो कभी लिंगायत का मुद्दा लेकर आ रहे हैं। वे झंडे का मुद्दा लेकर आए, पर लोगों ने इस पर ध्यान नहीं दिया, क्योंकि जनता के लिए असली मुद्दा रोटी, कपड़ा और मकान ही है। लिंगायत को हिंदू धर्म से अलग मानना साफ तौर पर समाज को तोड़ने की साजिश है। इसलिए जनता इसे भी खारिज कर देगी। ये मुद्दे केवल लोगों का ध्यान भटकाने के लिए हैं। दरअसल, कांग्रेस यह सोचकर चल रही है कि समाज को बांटकर और फिजूल के मुद्दे उठाकर वह वोट हासिल कर लेगी, लेकिन जनता सब समझ रही है। देश से कांग्रेस का वजूद खत्म होता जा रहा है, जिससे वह तिलमिला गई है, इसलिए वह अब विभाजनकारी राजनीति पर उतर आई है, लेकिन चुनाव में जनता उसे सबक सिखा देगी। '

 आप मानते हैं कि कांग्रेस खतरनाक राजनीति कर रही है?
बिल्कुल, कांग्रेस कर्नाटक में पॉपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया (पीएफआई) और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी आॅफ इंडिया (एसडीपीआई) जैसे आतंकी संगठनों के साथ चुनाव लड़ रही है। झारखंड में पीएफआई को पहले ही प्रतिबंधित किया जा चुका है, पर कर्नाटक में पीएफआई और एसजीपीआई मुस्लिम वोट के धु्रवीकरण में जुटी हैं। कांग्रेस बहुत ही खतरनाक राजनीति कर रही है। अगर कांग्रेस दोबारा सत्ता में आई तो जम्मू-कश्मीर की जो स्थिति है, वही स्थिति देश की हो जाएगी। हाल ही में कर्नाटक में कांग्रेस के एक कद्दावर विधायक के बेटे ने बार में एक व्यक्ति को बुरी तरह पीटा, जिससे वह कोमा में चला गया। इसके अलावा, राज्य सरकार राज्य की जेल में बंद तमिलनाडु की शशिकला को तमाम सुविधाएं दे रही है, इसे भी लोग देख रहे हैं।

 दक्षिण भारत में नफरत की राजनीति बहुत होती है और चुनाव भी भावनात्मक मुद्दे पर लड़े जाते हैं? इसके पीछे क्या कारण हैं?
क्षेत्रीय दलों ने ही दक्षिण के लोगों को ऐसा बना दिया। संस्कृति समूचे भारत को एक सूत्र में पिरोती है। दक्षिण के लोग तीर्थाटन के लिए काशी जाते हैं, तो उत्तर के लोग रामेश्वरम आते हैं। यह एक तरह का सांस्कृतिक बंधन ही तो है। लेकिन क्षेत्रीय दलों ने उन्हें बांट दिया। यह कह कर लोगों को बरगलाया कि भाजपा हिंदीभाषी पार्टी है, इसलिए उनकी भावनाओं का ख्याल नहीं रख सकती। ये दल सभाओं में साफ कहते हैं कि भाजपा उत्तर की पार्टी है और उसे यहां नहीं आने देना है। अब धीरे-धीरे लोग जान गए हैं कि सभी क्षेत्रीय दलों ने उन्हें धोखा दिया है। दरअसल, क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय विचारधारा वाली पार्टी के खिलाफ लोगों के मन में जहर घोल रहे थे, वह दौर खत्म हो गया है। लोगों को क्षेत्रीय दलों से कोई खास उम्मीद नहीं रह गई है, क्योंकि वे जान चुके हैं कि उन्हें लंबे समय तक ठगा गया। मैं डीएमके, एआईएडीएमके और दूसरी पार्टियों के कम से कम 200 बडेÞ नेताओं को जानता हूं जिनके बच्चे हिंदी स्कूल में पढ़ रहे हैं। ये वही लोग हैं जो हिंदी के नाम पर जहर उगलते रहे हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि तमिलनाडु में राष्ट्रवादी विचारधारा तेजी से पनप रही है। यह बदलाव बहुत अच्छा है। चूंकि मैं कर्नाटक और केरल का भी प्रभारी हूं, इसलिए यह बदलाव इन दोनों राज्यों में भी महसूस किया है।

 क्या क्षेत्रीय दलों के प्रति लोगों का मोह भंग हो रहा है? दक्षिण भारत में भाजपा की स्थिति कैसी है?
हां, दक्षिण भारत में क्षेत्रीय दलों के प्रति लोगों का रुझान घट रहा है, जिससे वे सिकुड़ते जा रहे हैं। लोग अब राष्ट्रीय पार्टी यानी भाजपा को चुनना चाहते हैं। तमिलनाडु में ही देखें तो द्रविड़ियन पार्टी खत्म होती जा रही है। अब तक यहां जो भी नई पार्टी बनती थी, उसमें द्रविड़ नाम जरूर जुड़ा होता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। कमल हासन ने भी अपनी पार्टी से द्रविड़ नाम नहीं जोड़ा है। इसी तरह केरल में भी अपने कारणों से क्षेत्रीय दल सिकुड़ रहे हैं। वहां बड़े पैमाने पर रा.स्व.संघ के स्वयंसेवकों और भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्याएं हुई हैं। इन हत्याओं में कम्युनिस्टों और मार्क्सवादियों की भूमिका रही है। क्षेत्रीय दलों ने भाषा के आधार पर तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश को अलग-थलग रखा। तमिलनाडु में लोगों को यह कह कर बरगलाया गया कि हिंदी उनकी भाषा नहीं है। सच यह है कि तमिलनाडु में अब हर परिवार में एक सदस्य हिंदी पढ़ता है और लोग राज्य बोर्ड के बजाय अपने बच्चों को सीबीएसई बोर्ड में पढ़ाना पसंद कर रहे हैं। राज्य के युवा मानने लगे हैं कि केवल राष्ट्रीय पार्टी ही स्थायी सरकार दे सकती है और उनके हितों का ख्याल रख सकती है। यहां राष्ट्रीय पार्टी का मतलब केवल भाजपा है, क्योंकि कांग्रेस शून्य है। कर्नाटक और केरल में भी क्षेत्रीय दलों ने लोगों को अंधेरे में रखा, जिससे उनका मोह भंग हो गया। लिहाजा अब वे राज्य के दायरे से बाहर निकल कर देशहित के बारे में सोचने लगे हैं। पूर्वोत्तर के राज्यों की स्थिति भी यही रही। खासकर जनजातीय लोगों ने भाजपा को चुना, जिसका परिणाम सामने है। भाजपा देश की सबसे बड़ी पार्टी है और लगभग पूरे देश में इसकी सरकार है। फिलहाल हमारा ध्यान कर्नाटक विजय पर है। मुझे पूरा विश्वास है कि कर्नाटक में भाजपा बड़ी जीत दर्ज करेगी। इसके बाद केरल विजय हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण है।

 क्षेत्रीय और देश की राजनीति में युवाओं की भागीदारी कितनी संतोजषजनक है? देशभर में हो रहे राजनीतिक बदलावों के पीछे युवाओं की कितनी भूमिका है?
चुनावों में भाजपा की लगातार जीत से पार्टी का हौसला तो बढ़ा ही है, युवा वर्ग भी प्रभावित होकर भाजपा की ओर आकर्षित हो रहा है। यह बहुत बड़ा परिवर्तन है। अभी तक केरल में भाजपा का वोटबैंक 2.5 प्रतिशत था, जो 17 प्रतिशत हो गया है। केरल में 284 भाजपा कार्यकर्ताओं और रा.स्व.संघ के स्वयंसेवकों की हत्याएं की जा चुकी हैं। कन्नूर, जो मुख्यमंत्री पिनराई विजयन का विधानसभा चुनाव क्षेत्र है, वहीं 15 महीने में 18 स्वयंसेवकों और कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है। कम्युनिस्ट हमें राजनीतिक दल के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। वे हमें हथियारों से डराना चाहते हैं। केरल की समूची ईसाई आबादी को रिझाने के लिए कम्युनिस्ट पार्टी, कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टी सांप्रदायिक कार्ड खेलती आ रही थीं ताकि अल्पसंख्यक भाजपा के साथ नहीं जुड़ सकें। 70 वर्षों तक ये लोग इन दलों से जुड़े रहे। आखिर में इन तीनों पार्टियों का झूठ उजागर हो गया और तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक की ईसाई आबादी अब भाजपा की ओर देख रही है। इस समुदाय के युवा बड़ी संख्या में भाजपा से जुड़ रहे हैं तथा उन्हें ज्यादा पद भी दिए जा रहे हैं। यह भी बहुत अच्छा संकेत है। तमिलनाडु के युवाओं का रुझान भी भाजपा की ओर हो रहा है। पूर्वोत्तर को ही देखें तो युवाओं ने भाजपा को वोट दिया। युवाओं का मानना है कि हर राज्य में भाजपा का शासन होना चाहिए। वे भाजपा को अगली पीढ़ी की पार्टी मान रहे हैं, क्योंकि भारत में भाजपा ही एकमात्र पार्टी है जो अगली पीढ़ी के विषय में सोचती है। देश में आ रहे बदलावों से युवा बहुत उत्साहित हैं और उन्हें पूरा भरोसा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगली पीढ़ी के लिए जरूर कुछ करेंगे।   

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