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‘‘एक अच्छा इंसान बनाने के लिए मूल्य आधारित शिक्षा जरूरी है’’

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Mar 19, 2018, 12:00 am IST
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दिंनाक: 19 Mar 2018 11:11:11


देश में नर्सरी से परास्नातक तक करीब 30 करोड़ विद्यार्थी और एक करोड़ शिक्षक मानव संसाधन विकास मंत्रालय से सीधे जुड़े हुए हैं। मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर कहते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में लोगों के जुड़ाव से हमारी जिम्मेदारी और चुनौतियां भी बढ़ी हैं। मंत्रालय शिक्षा के बुनियादी ढांचे में सुधार से लेकर प्राथमिक व उच्च शिक्षा में व्यापक सुधार के लिए प्रतिबद्ध है। शिक्षा से जुड़े विभिन्न विषयों पर पाञ्चजन्य संवाददाता अश्वनी मिश्र एवं नागार्जुन ने उनसे विस्तृत बात की। प्रस्तुत हैं बातचीत के  प्रमुख अंश:-

सरकार के 4 वर्ष पूरे होने को हैं। ऐसे में आप मंत्रालय की तीन बड़ी उपलब्धियां किन्हें मानते हैं?
मुझे लगता है कि इन 4 वर्षों में शिक्षा क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं। ‘सबको शिक्षा, अच्छी शिक्षा’ मिले इसके लिए उपलब्धता और गुणवत्ता दोनों का समावेश हुआ है। स्कूली और उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, अच्छे शिक्षा संस्थानों को स्वायत्तता देना तथा डिजिटल माध्यम से सब तक शिक्षा पहुंचाने का प्रयास, ये तीन मुख्य बातें हैं। गुणवत्ता में सुधार के लिए ‘लर्निंग आउटकम्स’ तैयार किए गए हैं, यानी हर कक्षा में छात्र को हर विषय का कितना ज्ञान होना चाहिए, अब यह लिखित है। यह एक शुरुआत है। साथ ही, हमने पांचवीं और आठवीं की परीक्षा लेने का फैसला किया है, 25 राज्य भी ऐसा चाहते हैं। इसके अलावा, सीबीएसई में 10वीं का बोर्ड ऐच्छिक था, जिसे अनिवार्य किया गया है। छात्र, शिक्षक और अभिभावक, सभी ने इसका स्वागत किया है। साथ ही, 13 लाख शिक्षक केवल 12वीं पास थे और उनके पास डिप्लोमा इन एजुकेशन नहीं था। इनका प्रशिक्षण एक साथ ‘स्वयं’ (आॅनलाइन पाठ्यक्रम) पर किया।
इन सब से आने वाले दिनों में गुणवत्ता में बड़ा बदलाव आएगा। दूसरा बड़ा बदलाव, हमने आईआईएम को स्वायत्तता दी है, जिसका बिल पास हो गया है। अच्छे संस्थानों पर विश्वास रखना चाहिए। सरकार पैसा देगी मतलब सरकार ही चलाएगी, यह प्रवृत्ति ठीक नहीं है। इसलिए हम उनको स्वायत्तता देंगे और पूरी तरह सरकार के प्रतिनिधि वापस होंगे। मैं भी अब आईआईएम की कोआॅर्डिनेशन काउंसिल का अध्यक्ष नहीं रहूंगा। इसके अलावा शीर्ष (ए+ रैंक वाले) संस्थानों को भी स्वायत्तता दे रहे हैं। डिजिटल विज्ञान का उपयोग करते हुए भारत का पहला आॅनलाइन एजुकेशन पोर्टल ‘मूक्स’ (मैसिव ओपन आॅनलाइन कोर्सेज) तैयार किया गया है। इसी तरह एटील है, यानी ‘एनी टाइम लर्निंग’, ‘एनी ह्वेयर लर्निंग’, ‘लाइफ लांग लर्निंग’। इस पर छह माह से लेकर एक वर्ष तक के 700 पाठ्यक्रम हैं, जिससे 20 लाख से ज्यादा छात्र, अध्यापक और पेशेवर लाभान्वित हो रहे हैं।

शक्षा क्षेत्र की बड़ी चुनौतियां क्या हैं? 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा करने तक आगे मंत्रालय क्या-क्या करना चाहता है?
हम 5 वर्ष में बहुत कुछ करेंगे। इस बार शिक्षा का बजट डेढ़ गुना बढ़ा है। शिक्षा के बुनियादी ढांचे में सुधार हमारे लिए बड़ी चुनौती है। इसके लिए मंत्रालय ने हायर एजुकेशन फाइनेंशियल एजेंसी बनाई है। हम बाजार से पैसा जुटाकर उससे शिक्षा के बुनियादी ढांचे को ठीक करेंगे। दूसरी बात, अच्छे छात्र विदेश क्यों जाते हैं और क्यों अपने शोध वहीं करते हैं। क्योंकि उन्हें वहां अच्छी छात्रवृत्ति, अच्छी सुविधाएं और अच्छे गाइड मिलते हैं। लेकिन अब माहौल बदला है। अब अच्छे प्राध्यापक विदेशों से भारत लौट रहे हैं। कुल मिलाकर 2-3 वर्षों में व्यवस्था चुस्त हो जाएगी। इस तरह हमारी कल्पना ‘ब्रेन ड्रेन’ की नहीं, ‘बे्रन गेन’ की है।

लोगों में एक धारणा बनी हुई है कि अंग्रेजी शिक्षा, निजी शिक्षा और महंगी शिक्षा ही अच्छी शिक्षा है। इस मानसिकता को बदलने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं?
एकदम सही कहा। मैं हमेशा कहता हूं कि यह मत मानो कि अंग्रेजी शिक्षा ही अच्छी है, निजी शिक्षा ही अच्छी है। अनेक प्राथमिक विद्यालय ऐसे हैं, जहां शिक्षक बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। हर सरकारी चीज गलत है, ऐसा नहीं है। दूसरी बात, हम अभिभावकों को भी प्रशिक्षित करना चाहते हैं। इस वर्ष पेरेन्ट्स एसोसिएशन की बैठक कर सुनिश्चित करेंगे कि वे बच्चों से क्या अपेक्षा रखें। प्रधानमंत्री ने ‘एक्जाम वॉरियर’ के जरिए 10 करोड़ अभिभावकों और इतने ही बच्चों से एक दिन में संपर्क किया। उन्होंने दो घंटे देश से बात की और सभी ने उसे सराहा। मुझे लगता है कि यह एक तरीके से अभिभावकों का प्रशिक्षण ही था।

पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालयों में 45 प्रतिशत, केंद्रीय विवि. में 30 और ओडिशा जैसे राज्य में 92 प्रतिशत पद खाली थे। इस स्थिति में कब सुधार होगा?
यह सच है कि अनेक केंद्रीय विश्वविद्यालयों, यहां तक आई.आई.टी. में भी ढेरों पद रिक्त थे। हमने आते ही इस पर काम किया। दिल्ली विश्वविद्यालय में 9 हजार तदर्थ नियुक्तियां हुई हंै। स्थायी पदों के लिए भी प्रक्रिया शुरू की, लेकिन इसमें भी ‘निहित स्वार्थ’ होते हैं। दूसरी ओर, न्यायालय के फैसले से भी प्रभाव पड़ता है। वैसे, एक साल में दिल्ली के अलावा देश के विश्वविद्यालयों में भी भर्तियां होंगी। इसके अलावा, प्राध्यापक की सेवानिवृत्ति की उम्र 60 से बढ़ाकर 65 हुई। जहां 65 थी वहां 70 करो। तो वह प्राध्यापक क्यों न 75 तक पढ़ाएं। उ.प्र., राजस्थान जैसे राज्यों के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज, जहां प्राध्यापकों के 60 प्रतिशत पद खाली थे, ऐसे 136 कॉलेजों में आईआईटी पीएच.डी और एम.टेक छात्रों को 70 हजार रुपये वेतन पर नियुक्ति दी गई। यानी 1300 छात्र तीन साल के लिए प्राध्यापक बनकर कॉलेजों में गए। यह नई पहल है। मैं मानता हूं कि रिक्तियों की समस्या है। पर यह भी सच है कि बहुत सारे विद्वान भारत आकर काम करना चाहते हैं।

देखने में आता है कि शिक्षकों की भर्ती के बाद उनका कभी विधिवत् प्रशिक्षण नहीं होता। ऐसे में उनका कौशल विकास नहीं हो पाता। जबकि विदेशों में भर्ती के बाद समय-समय पर शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। इस दिशा में मंत्रालय का क्या सोचना है?
बिल्कुल सही कह रहे हैं आप। देखिए, मेरा भी मानना है कि समय-समय पर शिक्षकों का प्रशिक्षण होना ही चाहिए। इस स्थिति को ठीक करने के लिए हमने कुछ उपाय किए हैं। पहला, सर्व शिक्षा अभियान को हम बदल रहे हैं। अब उसको ‘सार्थक शिक्षा अभियान’ करेंगे। यह नाम कैबिनेट में तय होगा। दूसरा, शिक्षक बनने से पहले प्री-सर्विस ट्रेनिंग भी जरूरी है।
इसीलिए हम  ‘इंटिग्रेटेड’ बीएड ला रहे हैं। और पोस्ट सर्विस ट्रेनिंग में भी कॉलेज के अध्यापकों के लिए एक छह महीने का पहले कोर्स होगा, जिसमें सिखाया जाएगा कि कैसें पढ़ाएं। उनको पहले छह महीने अध्यापन का प्रशिक्षण मिलेगा। इस तरह की व्यवस्था विद्यालयों में भी ‘इन सर्विस ट्रेनिंग’ हर साल हो इसकी व्यवस्था भी हम सार्थक कर रहे हैं।

नई शिक्षा नीति को लेकर तीन समितियां गठित हो चुकी हैं, पर कुछ ठोस सामने नहीं आया। नई शिक्षा नीति कब तक तैयार होगी?
देखिए, हमने बदलाव शुरू किया है, बदलाव हो भी रहे हैं। सभी पार्टियों ने इसका स्वागत किया है। गुणवत्ता बढ़ाने का प्रयास, समाज के साथ जुड़ने का प्रयास, स्वायत्तता देने का प्रयास और तकनीक के प्रयोग का प्रयास, ये चार प्रयास हमारी चार साल की विशेषताएं हैं। शिक्षा में ये बड़े सुधार हैं। आने वाले 20-25 साल के लिए कस्तूरीरंगन जी के नेतृत्व में जो शिक्षा नीति बन रही है, उसका ढांचा लगभग तैयार है। इस पर एक बार प्रमुख लोगों से चर्चा भी होगी। मुझे लगता हैं अप्रैल-मई तक उनकी रिपोर्ट आ जाएगी, फिर हम तुरंत उसे कैबिनेट में ले जाएंगे और संसद के सामने भी रखेंगे।

शिक्षा का उद्देश्य महज रोजगार पाने तक सीमित रह गया है। जबकि शिक्षा का उद्देश्य राष्ट्र के लिए एक जिम्मेदार नागरिक तैयार करना है। मौजूदा पीढ़ी ऐसी शिक्षा से लाभान्वित हो, इसके लिए क्या किया जा रहा है?
देखिए, उसके लिए हम तीन बातें कर रहे हैं। एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम को आधा करने पर चर्चा चल रही है। पाठ्यक्रम आधा करने का मतलब भार कम करना नहीं है। एक अच्छा इंसान तैयार करने के लिए मूल्य आधारित, अनुभवनिष्ठ और जीवन कौशल की शिक्षा चाहिए। इसके लिए समय चाहिए, लेकिन पाठ्यक्रम बड़ा है और समय बहुत कम है। इसके लिए हमने सुझाव मांगे हैं। सुझाव मिलने के बाद उनका परीक्षण करेंगे, तभी कोई बदलाव ला सकते हैं। मेरा मानना है कि शिक्षा में यह सब होना चाहिए, ताकि व्यक्तित्व का विकास हो। केवल रोजगारपरक हो, यह शिक्षा का उद्देश्य नहीं है।

विकसित देशों ने तकनीकी शिक्षा को अपनी मातृभाषा से जोड़ा और विकास किया। भारत में ऐसी व्यवस्था लागू करने में क्या समस्याएं हैं?
हां, कुछ समस्याएं हैं। मेरा मानना है कि सभी भारतीय भाषाएं अच्छी हैं और इनका विकास होना चाहिए। इसके लिए हम योजना बनाकर भाषा संस्थान को ज्यादा सक्रिय बनाएंगे तथा उन्हें ज्यादा धन भी देंगे तभी यह काम होगा।
हिंदी के साथ अन्य प्रादेशिक भाषाओं के विद्वान इंजीनियरिंग, मेडिकल, कॉमर्स और अन्य सभी पाठ्यक्रम अपनी भाषा में क्यों नहीं तैयार करते? हम इसमें मदद करने को तैयार हैं। इस्रायल की आबादी 80 लाख है। लेकिन वहां हिब्रू भाषा में मेडिकल साइंस, एटॉमिक साइंस, इंजीनियरिंग की पढ़ाई होती है। ऐसा यहां क्यों नहीं हो सकता? मुख्य मुद्दा है अपनी भाषा में सामग्री तैयार करना।

प्रधानमंत्री ने देशभर में 20 विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय खोलने का इरादा जाहिर किया था। इसकी प्रगति क्या है?
उसके लिए 116 आवेदन आए हैं। उसकी समीक्षा भी शुरू हो गई है। अगले महीने तक उनका चयन होगा।

विदेश के विश्वविद्यालयों के मुकाबले देश के विश्वविद्यालयों में शोध बहुत कम होते हैं। इसके पीछे क्या कारण है?
देखिए, इस स्थिति को सुधारने के लिए हम प्रयास कर रहे हैं। क्योंकि यह सच है कि शोध के बिना किसी भी देश का स्थायी विकास संभव नहीं है। शोध को बढ़ावा देने के लिए हमने तीन उपाय किए हैं- प्रधानमंत्री अनुसंधान छात्रवृत्ति बढ़ाई, शोध के लिए बेहतर बुनियादी ढांचे पर एक लाख करोड़ की व्यवस्था तथा अनुसंधान अतीत तैयार किया है। साथ ही, ‘इम्प्रिंट’ योजना शुरू की, जिसका दूसरा चरण भी शुरू होगा। यहां पेशेवर, शोध छात्र और फैकल्टी के स्वीकृत शोध प्रस्ताव पर सरकार पैसा देती है। एक हजार प्रतिभाशाली छात्रों को प्रतिमाह एक लाख रुपये छात्रवृत्ति भी दे रहे हैं।

विज्ञान और गणित के प्रति छात्रों का रुझान कम हो रहा है। इसके लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
छत्तीसगढ़ में रमन सिंह सरकार ने अद्भुत पहल की है। नक्सल क्षेत्र में जहां शिक्षक जाने को तैयार नहीं थे, वहां 40,000 रुपये वेतन देकर युवा स्नातकों को गणित और विज्ञान पढ़ाने के लिए भेजा। यह प्रयोग अच्छा रहा और इसका परिणाम भी अच्छा आया है। कुछ राज्यों में शिक्षा का स्तर नीचे है। इसके लिए हमने ‘नेशनल असेस्मेंट सर्वे’ किया, जिसमें तीसरी, पांचवीं, आठवीं और दसवीं कक्षाओं के 30 लाख छात्र शामिल किए गए। इसके बाद जिलेवार प्रोफाइल बनाया, जिसमें अति उत्तम से अति खराब तक की श्रेणी बनाई।
अब हर सांसद के जिले की तस्वीर क्या है, इस आशय का पत्र इसी सप्ताह से भेजा जा रहा है। इसमें कहा जाएगा कि आपके जिले का प्रोफाइल इस तरह का है, आप ध्यान दें और उसमें सुधार करें, बाकी मदद हम करेंगे। साथ ही, 1,000 स्कूलों में ‘अटल टिंकरिंग लैब’ शुरू की गई है और इस साल 1400 और स्कूलों में शुरू होगी। इसके तहत कृत्रिम ज्ञान, रोबोटिक्स, थ्री-डी प्रिंटिंग आदि बता रहे हैं, जिससे छठी-सातवीं के छात्र लाभान्वित हो रहे हैं और नौवीं-दसवीं के छात्र नई कल्पनाएं भी ला रहे हैं।

बीते साल अराजक तत्वों ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का माहौल बिगाड़ने की कोशिश की। पूर्व न्यायमूर्ति वी.के.दीक्षित समिति ने भी जांच रिपोर्ट में इसकी पुष्टि की है। इस पर क्या कहेंगे?
मैंने समिति की रिपोर्ट देखी नहीं है। इसलिए इस विषय में कुछ नहीं कह सकता। लेकिन आप एक बात देखिए, दो सालों में मैंने जो संवाद बनाया है, उससे एक-दो विश्वविद्यालय को छोड़कर बाकी सभी में शांति और अध्ययन का माहौल है। 864 विश्वविद्यालयों में से केवल दो ही विश्वविद्यालयों की खबरें देश का पूरा चित्र नहीं दिखातीं।

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