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बच्चा पांच वर्ष की आयु के बाद अपने मूत्र को स्वेच्छापूर्वक रोकने में समर्थ हो जाता है
इस अंक से एक नया पाक्षिक स्तंभ ‘आरोग्य’ प्रारंभ हो रहा है। इसमें आयुर्वेद, एलोपैथी और होमियोपैथी के चिकित्सक और विशेषज्ञ विभिन्न रोगों की जानकारी और उनकी रोकथाम के उपाय भी बताएंगे। आप अपनी समस्या मेल या डाक से भेज सकते हैं। पता है- संपादक, पाञ्चजन्य, संस्कृति भवन, 2322, लक्ष्मी नारायण गली, पहाड़गंज, नई दिल्ली-110055
वैद्य योगेश कुमार पाण्डेय
अक्सरकुछ बच्चे बिस्तर पर सोते-सोते पेशाब कर देते हैं। यदि बच्चा पांच वर्ष से कम का है तो चिंता करने की कोई बात नहीं, पर यदि पांच वर्ष से बड़ा है तो थोड़ी चिंता करनी होगी। यदि सात वर्ष से अधिक का बच्चा सप्ताह में तीन बार से अधिक बिस्तर गीला करता हो तो यह किसी बीमारी का संकेत हो सकता है। ऐसे बच्चे हीन-भावना से ग्रसित होने लगते हैं, वे अपने साथियों से अलग-थलग पड़ जाते हैं। इन सबका उनके व्यक्तित्व एवं शैक्षणिक विकास पर गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसलिए उसकी समस्या का इलाज कराएं।
अमूमन कोई भी बच्चा दो वर्ष की आयु के पश्चात् दिन में तथा पांच वर्ष की आयु के बाद अपने मूत्र को स्वेच्छापूर्वक रोकने में समर्थ हो जाता है। अतएव बिस्तर पर पेशाब करना बंद कर देता है। यदि इस आयु के बाद भी कोई बच्चा अनजाने में बिस्तर पर पेशाब करता है तो इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे बच्चे का मूत्राशय अपेक्षाकृत कम विकसित हुआ हो अथवा आकार में छोटा हो या रात्रि में बनने वाले मूत्र की मात्रा स्वाभाविक रूप से ज्यादा हो। कुछ बच्चे गहरी नींद में सोते हैं। ऐसे बच्चों में मूत्र रोके रखने की क्षमता का विकास देर से होता है। यह बीमारी वंशानुगत भी होती है।
सामान्य उपाय
सोने से ठीक पहले बच्चे को किसी प्रकार का पेय पदार्थ देने से बचें। रात में अंतिम बार पेय पदार्थ रात के खाने के साथ दें। सोने से पहले बच्चे का मूत्र त्याग जरूर कराएं।
बच्चे को दंड कभी न दें। उसे समझाएं कि इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है। जब किसी दिन बच्चा बिस्तर गीला न करे तो उसकी सराहना करें। माता-पिता स्वयं आश्वस्त रहें कि यह समस्या स्वत: समाप्त हो जाएगी तथा समय-समय पर यही विश्वास बच्चे में भी पैदा करने की कोशिश करें।
सामान्य चिकित्सा
सर्वप्रथम कुछ दिनों तक ध्यान रखें कि बच्चा औसतन दिन में कितनी बार औैर कितने अंतराल पर पेशाब करता है। फिर असकी एक सारिणी बना लें। बच्चे को इस बात के लिए उत्साहित करें कि पेशाब की इच्छा होने पर वह उसे कम से कम 15 मिनट तक रोककर रखने का प्रयास करे और उसके बाद ही शौचालय का प्रयोग करे। धीरे-धीरे इस समय को बढ़ाते जाएं।
अलार्म का प्रयोग : यह विशेष प्रकार का यंत्र होता है, जो बच्चे के बिस्तर पर रख दिया जाता है। बिस्तर गीला शुरू होते ही अलार्म बज उठता है। फिर वह शौचालय में जाकर पेशाब कर सकता है। धीरे-धीरे बच्चा अभ्यस्त हो जाता है और कालांतर में अलार्म के प्रयोग की आवश्यकता नहीं रह जाती।
औषध चिकित्सा
आयुर्वेद में इस रोग का बहुत ही आसान इलाज है। वरुण तथा सहजन की छाल का काढ़ा तैयार कर उसमें समुचित मात्रा में शहद मिलाकर बच्चे को 5-10 मि़ ली. की मात्रा में दिन में दो-तीन बार दें।
अश्वगंधा तथा जटामांसी को कूट और उबाल कर काढ़ा तैयार करें और शहद के साथ बच्चे को दिन में दो-तीन बार दें।
50 ग्राम आंवले का चूर्ण 300 ग्राम शहद में मिलाकर रख लें। फिर आयु के अनुरूप 1-3 ग्रा. की मात्रा में बालक को दिन में दो बार चटाएं।
50 ग्रा. काले तिल, 25 ग्रा. अजवायन और 100 ग्रा़ पुराना गुड़ मिलाकर रख लें। आयु के अनुरूप 3-6 ग्रा. की मात्रा में दिन में 2-3 बार दूध के साथ 30-40 दिन तक देने से यह समस्या प्राय: ठीक हो जाती है।
(लेखक चौधरी ब्रह्मप्रकाश आयुर्वेद चरक संस्थान, खेड़ा डाबर, नजफगढ़, नई दिल्ली में कायचिकित्सा विभाग में सह आचार्य हैं)
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