|
धार्मिक नगरी हरिद्वार के पास कटारपुर एक तीर्थ के रूप में उभर रहा है। 100 वर्ष पहले गाय की रक्षा के लिए जिन गोभक्तों ने यहां अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था, उनकी स्मृति में प्रतिवर्ष 8 फरवरी को अनेक कार्यक्रम होते हैं। अब कुछ संस्थाओं ने इसे तीर्थ के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया है
अरुण कुमार सिंह, कटारपुर से लौटकर
कटारपुर एक गांव है, जो हरिद्वार-लक्सर मार्ग पर हरिद्वार से लगभग 10 किलोमीटर दूर है। 1959 से ही यह गांव जनवरी और फरवरी महीने में चर्चा का केंद्र बन जाता है। हर कोई कटारपुर के हुतात्माओं को याद करता है और अनेक तरह के कार्यक्रम होते हैं। इतना ही नहीं, गांव से बाहर रहने वाले ग्रामीण और गांव की बहू-बेटियां भी इस दिन यहां सपरिवार पहुंचती हैं। ऐसी ही एक बहू हैं रानी चौहान। यह शहीद राम सिंह के परिवार की बहू हैं। वे कहती हैं, ‘‘इस कार्यक्रम का इंतजार तो पूरे साल रहता है। दस काम छोड़कर भी यहां आने का मन करता है। सौभाग्य है कि मेरा विवाह एक बलिदानी परिवार में हुआ है।’’
केवल कटारपुर ही नहीं, कनखल, ज्वालापुर, राणीमाजरा, फेरुपुर, चांदपुर, जियपोता, धनुपरा, बहादुरपुर, रामकुंडी, खेलड़ी, मिश्रपुर, अजीतपुर, रोहालकी, भोगपुर, घीसूपुरा, जगजीतपुर, शाहपुर, मीरपुर, सराय, बिशनुपर, पंजनहेड़ी आदि गांवों और हरिद्वार के लोग भी 8 फरवरी को एक महोत्सव के रूप में मनाते हैं। इस दिन सभी लोग कटारपुर गांव के शहीद स्मारक पर अपने पुरखों की याद में शीश नवाते हैं और वहीं बगल में स्थित इमली के पेड़ की पूजा करते हैं। इस वर्ष भी कुछ ऐसा ही हुआ।
गो उत्पादों के व्यवसाय से अनेक लोगों को रोजगार मिल सकता है और देश की अर्थव्यवस्था भी ठीक हो सकती है। ब्राजील तो गो उत्पादों के बल पर ही आगे बढ़ रहा है।
-स्वामी अवधेशानंदगिरि जी पीठाधीश्वर, जूना अखाड़ा
हर परिवार देसी गाय पाले। इससे उसकी समृद्धि तो बढ़ेगी ही, गाय की भी रक्षा होगी। स्वदेशी गायों की उपेक्षा कर विदेशी गाएं लाना ठीक नहीं है।
-डॉ. कृष्णगोपाल
सह सरकार्यवाह, रा.स्व.संघ
परीक्षणों ने सिद्ध किया है कि देसी गाय हर मौसम में स्वस्थ रहती है, जबकि विदेशी गाय तथा जरसी आदि बहुत जल्दी बीमार पड़ जाती हैं।
-त्रिवेंद्र सिंह रावत, मुख्यमंत्री, उत्तराखंड
उल्लेखनीय है कि आज ही के दिन 1920 में इस इलाके के चार गोभक्तों को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया था। आगे बढ़ने से पहले उस मामले को जान लेना होगा। कटारपुर गोतीर्थ विकास समिति के अध्यक्ष डॉ. श्याम सिंह आर्य ने बताया, ‘‘17 सितंबर, 1918 को गांव के मुसलमानों ने ईदुल जुहा पर सार्वजनिक गोहत्या की घोषणा की। उस क्षेत्र में कभी ऐसा हुआ नहीं था। अत: हिंदुओं ने ज्वालापुर थाने में शिकायत की, पर उनकी सुनी नहीं गई। दरअसल, वहां के थानेदार मसीउल्लाह तथा अंग्रेज प्रशासन की शह पर ही यह हो रहा था। लेकिन हरिद्वार के थानेदार शिवदयाल सिंह ने हिंदुओं को पूरा सहयोग देने का वचन दिया। इसके बाद हिंदुओं ने कहा कि किसी भी सूरत में गोहत्या नहीं होने देंगे। इस विरोध के कारण तो उस दिन कुछ नहीं हुआ, लेकिन अगले दिन मुसलमानों ने पांच गायों का जुलूस निकालकर उन्हें इमली के पेड़ से बांध दिया। वे भड़कीले नारे भी लगा रहे थे। महंत रामपुरी जी के नेतृत्व में आसपास के अनेक गांवों के हिंदू युवकों ने धावा बोलकर सभी गायें छुड़ा लीं। इस संघर्ष में लगभग 30 मुसलमान मारे गए। कई हिंदू भी बुरी तरह घायल हुए। महंत रामपुरी जी का भी बलिदान हुआ। इसके बाद पुलिस ने 176 हिंदुओं को पकड़ लिया।’’ उन्होंने बताया, ‘‘पुलिस के आतंक से डरकर हिंदुओं ने गांव छोड़ दिया। अगले आठ वर्ष तक कटारपुर के खेतों में बुवाई नहीं हुई। भाई कहीं, बहन कहीं। इसलिए रक्षाबंधन पर्व मनाना छोड़ दिया। अब कुछ परिवार रक्षाबंधन मनाने लगे हैं, लेकिन ज्यादातर परिवार अभी भी यह पर्व नहीं मनाते हैं।’’
डॉ. आर्य के अनुसार, ‘‘लगभग एक साल तक मुकदमा चला और 8 अगस्त, 1919 को 135 लोगों को कालेपानी की सजा देकर अंदमान भेज दिया। आठ लोगों को फांसी की सजा सुनाई, लेकिन इनमें से चार को माफी देकर 10 वर्ष की सजा दी गई और दो लोगों को सात वर्ष की सजा सुनाई गई। शेष को बरी कर दिया गया।’’
जिन लोगों को फांसी की सजा दी गई, वे थे- 45 वर्षीय महंत ब्रह्मदास जी महाराज, 60 वर्षीय चौधरी जानकी दास, 32 वर्षीय डॉ. पूर्ण प्रसाद और 22 वर्षीय मुक्खा सिंह चौहान। इन चारों को 8 फरवरी, 1920 को फांसी पर लटका दिया गया। महंत ब्रह्मदास जी महाराज और चौधरी जानकी दास को प्रयाग, डॉ. पूर्ण प्रसाद को लखनऊ और मुक्खा सिंह चौहान को बनारस में फांसी दी गई। चारों वीर ‘गोमाता की जय’ कहकर फांसी पर झूल गए। इस घटना से गोरक्षा के प्रति हिंदुओं में भारी जागृति आई। महान गोभक्त लाला हरदेव सहाय ने प्रतिवर्ष आठ फरवरी को कटारपुर में ‘गोभक्त बलिदान दिवस’ मनाने की प्रथा शुरू की। शहीद मुक्खा सिंह के पड़पोते सचिन चौहान ने बताया, ‘‘आजादी के बाद लाहौर से मीठाराम बाली इस गांव में आए। उन्होंने मुकदमे से जुड़े कागजातों को गांव तक लाया और ग्रामीणों को शहीद समारक बनाने के लिए प्रेरित किया। 1959 में उन्होंने ही स्मारक की नींव रखी और तभी से हर वर्ष यहां कार्यक्रम होते हैं।’’
इस वर्ष 5 से 7 फरवरी तक गो-कथा हुई। 7 फरवरी को ही विशाल दंगल हुआ, जिसमें अनेक पहलवानों ने अपना दम-खम दिखाया। स्वस्थ गो प्रतियोगिता तथा गो उत्पादों की प्रदर्शनी भी लगाई गई। इनमें आसपास के हजारों ग्रामीणों ने उत्साह से भाग लिया। बाहर से आए हजारों लोगों के भोजन का प्रबंध गांव वालों ने ही किया। इस प्रकार पूरा गांव इस बलिदान पर्व में शामिल हुआ। पूरे क्षेत्र में बलिदानियों की याद में द्वार बनाए गए थे। 8 फरवरी को श्रद्धांजलि सभा का आयोजन हुआ। जूना अखाड़े के पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद जी, राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्टÑीय संगठन महामंत्री श्री दिनेश चंद्र सहित अनेक संतों ने भी बलिदानियों को श्रद्धासुमन अर्पित किए।
इस अवसर पर स्वामी अवधेशानंद जी ने अपने आशीर्वचन में कहा कि गोसेवा का व्रत लेने से शारीरिक, मानसिक एवं पारिवारिक कष्ट दूर होते हैं। उन्होंने गोमूत्र को गंगाजल जैसा पवित्र तथा गोबर में लक्ष्मी का वास बताया। उन्होंने यह भी कहा कि सात देशों में गोहत्या के लिए मृत्युदंड का प्रावधान है। डॉ. कृष्णगोपाल ने कहा कि जब-जब गोवंश पर संकट आया है या विधर्मियों ने उसकी हत्या करने का प्रयास किया है तब-तब हिंदू समाज उठ खड़ा हुआ है। ऐसे प्रसंग पूरे देश में मिलते हैं। उसी कड़ी में कटारपुर भी है। यहां के सपूतों ने अपनी जान देकर गोवंश की रक्षा की। श्री दिनेशचंद्र ने कहा कि आईआईटी, दिल्ली के प्रोफेसर श्री राव का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने अनुसंधानों से सिद्ध किया है कि गाय के शरीर के जिस अंग में जिस देवता का वास कहा गया है, गुण विश्लेषण पर वह शत-प्रतिशत तार्किक है। श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने लोगों से आह्वान किया कि वे देसी गाय ही पालें। अब ऐसी तकनीक विकसित हो गई है, जिससे 90 प्रतिशत तक बछिया का ही जन्म होगा। इसका लाभ लेने के लिए उत्तराखंड में संस्थान बनाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय नस्ल की गायों से ब्राजील जैसे देश 40 लीटर दूध ले रहे हैं। यदि यहां वैज्ञानिक रीति से गर्भाधान हो, तो 20 साल में हम भी ऐसा कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि पतंजलि वाले हर दिन एक लाख लीटर गोमूत्र से अर्क बना रहे हैं। अत: गोमूत्र भी अब पांच रु़ लीटर बिकने लगा है।
सभा में बलिदानी परिवारों के वंशजों का सम्मान भी किया गया। अजीतपुर गांव के रहने वाले और शहीद मन्नी के पड़पोते डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान का भी सम्मान किया गया। वे कहते हैं, ‘‘इस कार्यक्रम से लोगों में गोरक्षा के प्रति जागृति आएगी। नई पीढ़ी को बताना होगा कि उनके पुरखे गोवंश और अपने धर्म के लिए कितने सजग थे।’’ उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू समाज में गाय को माता माना गया है। इस माता की रक्षा उनके पुत्र नहीं करेंगे तो कौन करेगा? पंजनहेड़ी गांव के रहने वाले विकास शर्मा के पूर्वज हरनाम शर्मा और उनके पुत्र रतनलाल शर्मा को कालेपानी की सजा हुई थी। विकास कहते हैं, ‘‘मुझे गर्व है कि मेरा जन्म एक गोभक्त परिवार में हुआ है। गोभक्ति की भावना आज भी हमारे परिवार में है।’’
कटारपुर गोतीर्थ विकास समिति के संयोजक श्री योगेश चौहान ने बताया कि मेला और श्रद्धांजलि सभा अब प्रतिवर्ष होगी। उन्होंने शासन, साधु-संतों, सामाजिक संस्थाओं आदि से इस गोतीर्थ के विकास में सहयोग देने की अपील भी की। उनका कहना है कि यदि उद्योगपति यहां गोमूत्र और गोमय से बनने वाली दवाओं तथा गोदुग्ध से बनने वाले पदार्थों के उद्योग लगाएं, तो गोतीर्थ का विकास तेजी से होगा। कटारपुर गोतीर्थ विकास समिति के मार्गदर्शक श्री विजय कुमार कहते हैं, ‘‘स्थानीय लोग चाहते हैं कि कटारपुर तथा इसके निकटवर्ती क्षेत्र का ‘गोतीर्थ’ के रूप में विकास हो और जो श्रद्धालु हरिद्वार आएं वे भी इस तीर्थ के दर्शन के लिए आएं। संपूर्ण विकास में भले ही 10-15 साल लगें, पर गोभक्तों के बलिदान की शताब्दी (8 फरवरी, 2020) तथा 2021 के महाकुंभ तक प्रकल्प कुछ ठोस रूप ले ले। इसके लिए अनेक प्रकार से काम किया जा रहा है।’’ उम्मीद की जानी चाहिए कि कटारपुर गोतीर्थ विकास समिति अपने उद्देश्यों में सफल होगी और आने वाले समय में कटारपुर क्षेत्र एक तीर्थ के रूप में विकसित हो जाएगा। ल्ल
टिप्पणियाँ