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समाज के सभी वर्गों की चिंता करने वाला बजट समरसता लाने की ओर एक कदम है
रमेश पतंगे
हर साल केंद्र सरकार लोकसभा में बजट पेश करती है। आम आदमी के लिए बजट में पेश किए जाने वाले आंकड़े चौंकाने वाले होते हैं। वैसे हर परिवार अपना बजट बनाता ही है, लेकिन उसमें पैसे की लागत काफी सीमित रहती है। आमदनी कितनी है और कितना खर्चा करना है, इस पर विचार किया जाता है। शासन का बजट भी यही होता है कि करों के द्वारा होने वाली आमदनी को किन-किन चीजों पर खर्च करना है। शासन के पास घाटे की भरपाई के लिए मुद्रा छापे जाने का विकल्प रहता है। इसे मुद्रास्फीति कहते हैं।
स्वतंत्रता के बाद 1950 में जॉन मथाई ने पहला बजट पेश किया था। उसके बाद से हर साल बजट पेश होता आ रहा है। लेकिन बहुत कम बजट ऐसे हैं, जिन्होंने अर्थव्यवस्था को नया मोड़ देने का प्रयास किया। भारत कृषि प्रधान देश है। दुर्भाग्य से 1950 के बजट से अब तक अधिकांश समय इस क्षेत्र को उतनी प्राथमिकता नहीं दी गई।
डॉ. मनमोहन सिंह ने 1991 का बजट पेश किया था जिसके जरिए समाजवादी अर्थव्यवस्था की इतिश्री की गई। आयात और निर्यात से अनेक बंधन हटाए गए। लाइसेन्स, परमिट राज को समाप्त कर दिया गया। भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार पूंजीवाद बनाया गया। भारत का दरवाजा विदेशी निवेशों के लिए खोला गया। इसके बाद आर्थिक सुधार, आर्थिक वृद्धि दर, विदेशी मुद्रा भंडार आदि की चर्चा होने लगी। 1997 में पी. चिंदबरम ने जो बजट रखा उसे करों के लिहज से ‘ड्रीम बजट’ कहा गया। उसमें कर पद्धति में बुनियादी सुधार की कोशिश हुई थी।
हाल में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2018-19 का बजट रखा है। विपक्षी दल बजट पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते ही आ रहे हैं, सो इसे भी केवल भाषणबाजी, रोजगार के लिए बेकार, महंगाई बढ़ाने वाला आदि बताया गया। लेकिन राजनीतिक बयानबाजियों से परे बजट पर गंभीर दृष्टि डालने की जरूरत है।
क्या यह पथ-प्रदर्शक सिद्ध होगा? शायद हां। अगले साल आम चुनाव हैं, लेकिन यह चुनावी बजट नहीं, देश का बजट है। इस बजट में विशेष अल्पकालिक फायदा नहीं है। लेकिन दीर्घकालिक लाभ प्रचुर मात्रा में है। बजट में कौशल विकास, विमान क्षेत्र विकास, इलैक्ट्रॉनिक्स, चमड़ा, टैक्सटाइल, कपड़ा उद्योग आदि के विकास पर विशेष बल दिया गया है। सड़क, रेल, जहाजरानी, आवास परियोजना आदि में बुनियादी ढांचे के विकास की लाखों करोड़ की योजनाएं हैं। किसानों के लिए इस बजट में विशेष योजनाएं बनायी गयी हैं। 2022 तक कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों की आमदनी दुगुनी करने की योजना रखी गयी है। फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए कृषि लागत कम करने के उपाय प्रस्तुत किए गए हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि फसल लागत से डेढ़ गुना कीमत उपलब्ध कराने की योजना बनाई गई है। किसानों को आसानी से ऋण प्राप्त हो, इसके लिए 11 लाख करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। भारत के सभी अर्थशास्त्री एक बात बार-बार दोहराते हैं कि सबसे अधिक रोजगार उपलब्ध कराने की क्षमता कृषिक्षेत्र में है। पहली बार कृषि क्षेत्र में पूंजी निवेश की योजना बनी है। सरकार का लक्ष्य 70 लाख नयी नौकरियां पैदा करना है। कृषि उत्पादन बढ़ने से उसके यातायात में भी बढ़ोतरी होगी। अच्छे स्कूलों का मांग बढ़ेगी। बुनियादी क्षेत्र में निवेश करने के कारण आर्थिक बदलाव आएंगे ही। सामान्य व्यक्ति के स्वास्थ्य की इस बजट में काफी चिंता की गई है। राष्टÑीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना के तहत 10 करोड़ गरीब परिवारों को 5 लाख रुपए तक का स्वास्थ्य बीमा देने की बात है। शिक्षा, प्रशिक्षण, बुनियादी सुविधाएं, रोजगार आदि पर काफी फैसा लगाया जाना है। उज्जवला योजना का विस्तार 8 करोड़ गैस कनक्शन तक किया गया है। हर परिवार को घर देने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना में सब्सिडी बढ़ी है, भूसंपदा के क्षेत्र को भी प्रोत्साहन दिया गया है। डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने कहा था कि केवल राजनीतिक प्रजातंत्र से काम नहीं चलेगा, इसके साथ सामाजिक और आर्थिक प्रजातंत्र भी होना चाहिए। यह बजट इस दिशा में रखा एक महत्वपूर्ण कदम है। इसमें किसान, मजदूर, विद्यार्थी, वरिष्ठ नागरिक आदि का विचार किया गया है। समाज के सभी वर्ग आर्थिक दृष्टि से जब एक समान भूमिका पर आते हैं तब समरसता का माहौल बनता है। इसलिए इसे ‘समरसता बजट’ भी कह सकते हैं। आम जनता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर विश्वास करती है। लेकिन बजट योजनाओं का क्रियान्वयन अकेले मोदी तो नहीं कर सकते। जो यह करने वाले हैं, उनके अंदर मोदी जैसी लगन, समर्पण, कार्यनिष्ठा हो तो यह बजट निश्चित एक बड़ा बदलाव लाएगा।
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