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‘‘समाज परिवर्तन के लिए सबको एक साथ होना चाहिए। सभी भेद-अभेदों से ऊपर उठकर संत, महंत, धर्माचार्य अगर समाज को साथ लाने का कार्य करें तो यह परिवर्तन संभव है। गोसेवा, जैविक खेती, सामाजिक समरसता, परिवार प्रबोधन, पर्यावरण, स्वास्थ्य आदि माध्यमों से गतिविधियां बढ़ाने की आवश्यकता है।’’ उक्त उद्बोधन राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने दिया।
वे गत दिनों पश्चिम महाराष्टÑ प्रांत की ओर से पुणे के सिंहगढ़ संस्थान में आयोजित ‘संत संगम’ को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर श्री भागवत ने कहा कि अध्यात्म ही विज्ञान का आधार है। समाज जीवन में परिवर्तन अनिवार्य है। इसके लिए समाज के सभी घटकों, खासकर संत, महंत, धर्माचार्यों को अपने-अपने स्तर पर कार्य करते रहना चाहिए। तब ही समाज सही दिशा में जाएगा, यह उसका तंत्र है। सरकार सेवक है और उसे अपने तंत्र से चलना चाहिए। देशभर में अवांछित गतिविधियों पर अंकुश तभी लगेगा जब समाज जागृत होगा। समाज जागृत रहे तो सबकुछ अच्छा होगा। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति, परंपरा के विषय में चिंता करने की आवश्यकता है। लेकिन इससे चिंतित न हों। लोगों के आचरण में हिन्दू संस्कृति समाई हुई है। उसे दिशा दें, संरक्षण दें तो निश्चित ही उन्नति और प्रगति होगी। संत, धर्माचार्यों का इसमें योगदान आवश्यक होगा और यह भी निश्चित है कि यह काम पूरा होने तक संघकार्य बंद नहीं होगा। संघकार्य इसलिए शुरू हुआ ताकि देश का भाग्यचक्र बदला जाए। राम मंदिर के विषय पर उन्होंने कहा कि श्री राम मंदिर, समाज जागरण से ही बनेगा। अयोध्या में राम मंदिर बनेगा, यह तो हमारी प्रतिज्ञा है ही। उल्लेखनीय है कि कार्यक्रम में नासिक, पुणे, अहमदनगर, सोलापुर, सांगली, सतारा, कोल्हापुर जिलों से विभिन्न पंथों एवं सम्प्रदायों के धर्माचार्य, संत, महंत, महामंडलेश्वर सहभागी हुए। विसंकें, पुणे
चिर-पुरातन संस्कृति है भारत की पहचान
‘भारत का चेहरा कोई पंथ या संप्रदाय नहीं हो सकता, बल्कि हमारी चिर पुरातन संस्कृति ही हमारी पहचान है। उपरोक्त विचारों को हम आत्मसात करेंगे तो दुनिया की कोई ताकत हमें अलग नहीं कर सकती, हरा नहीं सकती। वर्तमान में दुनिया की निगाहें भारत की ओर हैं।’ उक्त उद्गार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने व्यक्त किए। वे पिछले दिनों रायपुर के विज्ञान महाविद्यालय के प्रांगण में आयोजित मकर संक्रांति उत्सव में स्वयंसेवकों तथा आम नागरिकों को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि अपना स्वभाव सृष्टि के हित में बदलता है, हमें भी अपना स्वभाव गरीबों के हित में बदलना चाहिए। जैसे जरूरतमंदों की दान देकर मदद करना, बच्चों में दान देने की आदत डालना। उन्होंने कहा कि दुनिया इन दिनों अपने-अपने पंथ और संप्रदाय को ही सर्वोपरि बताने की प्रवृति बढ़ी है जो गलत और अस्वीकार्य है। भारत में भी अनेक जातियां, बोलियां और देवी-देवता हैं, लेकिन वह हमारी पहचान नहीं हैं। भारत की पहचान सिर्फ और सिर्फ उसकी संस्कृति, उसके पूर्वज हैं। विसंकें,रायपुर
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