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में शैव महोत्सव उज्जैन में देश के बारह ज्योतिर्लिंगों के प्रतिनिधियों ने एक साथ, एक स्थान पर उपस्थित होकर शिव पूजा पद्धति और उपासना पर चर्चा की
महेश शर्मा
महाकाल की नगरी उज्जैन में 5, 6 और 7 जनवरी को आयोजित शैव महोत्सव में बारह ज्योतिर्लिंगों के प्रतिनिधि शामिल हुए। महोत्सव का शुभारंभ भानपुरा पीठाधीश्वर स्वामी दिव्यानन्द तीर्थ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत और प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने किया। श्री भागवत ने कहा कि शिव का पहला नाम रुद्र है, जिसका अर्थ है शक्ति। शक्ति बिना शिव बनने की कोशिश की तो शव बन जाएंगे। समाज और राष्टÑ के लिए भी यही बात लागू होती है। शिव बनने के लिए शक्ति जरूरी है। गलत को भस्म करने की सामर्थ्य शिव में ही है। श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि शैव महोत्सव से सामाजिक समरसता का संदेश जाएगा। जिसे सृष्टि त्याग देती है, उसे शिव अपनाते हैं। शिव सभी को साथ लेकर चलते हैं।
महोत्सव में शैव कला प्रदर्शनी भी आयोजित की गई। इसका अवलोकन करने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी पहुंचे। प्रदर्शनी में द्वादश ज्योतिर्लिंगों की प्रतिकृतियां, भगवान शिव के विभिन्न स्वरूपों के चित्र, विभिन्न शैव संप्रदायों, पाशुपथ, नाथ एवं लिंगायत, प्रकृति के विभिन्न अवयवों, गुफाओं, पहाड़ों, नदियों, पशु-पक्षियों, फूल-पत्तियों से लेकर श्मशान तक शिव स्वरूप के प्रदर्शन, शैव दर्शन एवं प्राचीन मान्यताओं पर आधारित चित्रों को शामिल किया गया।
महोत्सव के शुभारंभ पर सभी 12 ज्योतिर्लिंगों की झांकी महाकाल की शाही सवारी की तरह निकाली गई, जिसमें दो किमी लंबी शोभायात्रा ने सात किमी की यात्रा करते हुए उज्जैनवासियों को अभिभूत कर दिया। महोत्सव में विचार-विमर्श के लिए चार पीठ बनाई गई थीं जिनमें एक साथ, एक समय पूजा पद्धति पर विद्वानों द्वारा मंथन किया गया।
महोत्सव में महामण्डलेश्वर विशोकानन्दजी, महामण्डलेश्वर शान्ति स्वरूपानन्दजी, महामण्डलेश्वर विश्वात्मानन्दजी, केन्द्रीय सिंहस्थ समिति के अध्यक्ष माखनसिंह, संस्कृति विभाग के मुख्य सचिव श्री मनोज श्रीवास्तव तथा भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री श्री मुकुल कानिटकर सहित अनेक विशिष्टजन उपस्थित रहे। इस विचार संगोष्ठी में शिव के स्वरूप, उनके पूजन और अन्य धार्मिक तथा आध्यात्मिक अनुष्ठानों पर विचार व्यक्त किए गए।
इस अवसर पर ‘शैव दर्शन एवं धर्म’ पुस्तक का लोकार्पण भी किया गया। श्री मुकुल कानिटकर ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज विश्व के सामने जितनी भी चुनौतियां खड़ी हैं, उसका उत्तर देने की क्षमता मात्र भारतीय धर्म एवं संस्कृति में है। विश्व इसी अपेक्षा से भारत को देख रहा है। भारतीय संस्कृति कई आक्रमणों को सहते हुए भी अपने अस्तित्व को बचाकर रखे हुए है। इतिहास साक्षी है कि 1,500 वर्ष तक भारत विश्व का सर्वाधिक संपन्न देश रहा। हमारे यहां के मंदिर आर्थिक समृद्धि के केंद्र रहे हैं। भारतीय संस्कृति मानव सभ्यता का मार्गदर्शन करती है। श्री कानिटकर ने कहा कि आज के युग में प्राचीन गुरुकुल परंपरा की बहुत आवश्यकता है और यह प्रासंगिक भी है। भारतीय शिक्षण मंडल का यह प्रयास है कि गुरुकुल परंपरा को पूरे विश्व के समक्ष श्रेष्ठ परंपरा के रूप में पुन: पहचान दिलाई जाए।
महामण्डलेश्वर श्री विश्वात्मानन्दजी ने अपने आशीर्वचन में कहा कि शैव महोत्सव का यह आयोजन हम सभी के लिए गौरव की बात है। मध्य प्रदेश सरकार ने एक अच्छी पहल की है। भारतीय सनातन परंपरा एवं संस्कृृति के पुनरुत्थान के लिए ऐसे आयोजन किए जाने चाहिए। भगवान शिव का वर्णन विभिन्न नामों के द्वारा किया गया है। एकमात्र शिव की कृपा से ही जीव को मोक्ष प्राप्त होता है। बहुत से लोग शिव को देवता या अवतार मानते हैं। शिव मात्र देवता या अवतार नहीं हैं, बल्कि निराकार परब्रह्म हैं। यही कारण है कि शिव की पूजा शिवलिंग के रूप में की जाती है। देवताओं के अंदर जीवत्व है, परंतु शिव इन सबसे ऊपर हैं। उनके ऊपर किसी भी तरह के कर्मों का कोई प्रभाव नहीं रहता। इस महोत्सव में 12 ज्योतिर्लिंगों से ब्राह्मण, आचार्य और वेदपाठियों को निमंत्रित किया गया। धर्म के बारे में सभी तरह के संशयों का समाधान करने के लिए इस तरह के आयोजन किए जाने चाहिए। कर्म क्या है, धर्म क्या है और मोक्ष क्या है, इसके बारे में पूरे विश्व में लोगों की जिज्ञासा बढ़ी है। भगवान् शिव पंचमहाभूतों में भी विद्यमान रहते हैं। यदि हम भगवान शिव के इस रूप को जान जाएं, तो मोक्ष की कामना सफल हो जाएगी। महामण्डलेश्वर शान्तिस्वरूपानन्दजी महाराज ने कहा कि शिव व्यापक हैं, विभु हैं, सर्वत्र हैं, इसलिए उन्हें जानना इतना सरल नहीं है। जब तक हम अन्तर्मन के ज्ञान चक्षुओं को न खोल लें, तब तक शिव को नहीं जान सकते। जो हमारी सामान्य बुद्धि और मन से परे है, वही शिव है।
महामण्डलेश्वर स्वामी विशोकानन्दजी महाराज ने कहा कि हमें शिव और शैव की गंभीरता को समझना होगा। समरसता को अपनाना होगा, उसे स्थापित करना होगा और सांप्रदायिकता को समाज से दूर करना होगा। भगवान् शिव को कोई एक बंधन में नहीं बांध सकता। स्वयं कृष्ण ने माना है कि भगवान् शिव नटराज हैं। उनके नृत्य से ही पुण्य सलीला गंगा प्रकट हुई है। यदि सर्वव्यापक परमात्मा को प्राप्त करना है या उनका साक्षात्कार करना है, तो 12 ज्योतिर्लिंगों की इसमें विशेष भूमिका होती है। इनके माध्यम से हम परमेश्वर को प्राप्त कर सकते हैं।
महोत्सव में नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर से आए दल ने ऐसा ही महोत्सव नेपाल में किए जाने की सूचना दी। महोत्सव में संकल्प लिया गया कि ऐसा शैव महोत्सव नियमित रूप से किया जाए और समापन अवसर पर गुजरात के सोमनाथ ज्योतिर्लिंग से आए पुजारियों ने अगला महोत्सव सोमनाथ में किए जाने की घोषणा की। मध्य प्रदेश शासन के संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित इस महोत्सव में महाराष्ट्र के विद्वान दुर्गादास मूले को वैदिक अलंकरण से सम्मानित करते हुए 1,00,000 रु. की सम्मान राशि और प्रशस्ति पत्र भेंट किया गया।
उज्जैन में भी भारत माता मंदिर
महाकाल की नगरी उज्जैन को ‘भारत माता मंदिर’ के रूप में एक नई पहचान मिली है। माधव सेवा न्यास द्वारा निर्मित इस मंदिर का लोकार्पण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत और वात्सल्य ग्राम, वृंदावन की संस्थापक साध्वी ऋतम्भरा ने किया। लोकार्पण के पूर्व मंदिर स्थापना यज्ञ हुआ, जिसमें श्री भागवत ने भी आहुति दी। इस अवसर पर श्री भागवत ने कहा कि हमारे अवचेतन में अखंड भारत हमेशा बसा रहना चाहिए। भारत की धरती हमारी माता है, हालांकि कुछ लोग इसे धरती का टुकड़ा समझते हैं। हमें जो मिला है इसी से मिला है, यह भूमि सर्वदा देने वाली है। सारी दुनिया भारत से कुछ चाहती है, दुनिया जब त्रस्त होती है तो शांति के लिए भारत की ओर ही देखती है। इस अवसर पर साध्वी ऋतम्भरा ने मां भारती की भव्य प्रतिमा की अत्यधिक प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि भारत मां का शृंगार कर दिया तो भारत के हर मंदिर का शृंगार कर दिया। राजा और भिखारी की रोचक कहानी के माध्यम से उन्होंने संदेश दिया कि राष्ट्र के लिए अर्पित की गई वस्तु ही सोना है, बाकी सब मिट्टी। हमारे जीवन की सार्थकता इसी में है कि जहां हैं, जैसे हैं, वहीं से राष्ट्र की सेवा करें। जो हम देते हैं, वही हम पाते हैं।
स्वागत भाषण न्यास के अध्यक्ष गिरीश भालेराव ने दिया और आभार न्यास के सचिव प्रदीप अग्रवाल ने प्रकट किया, जबकि कार्यक्रम का संचालन श्री विजय केवलिया ने किया।
मंदिर में स्थापित भारत माता की संगमरमर से बनी 11 फुट ऊंची प्रतिमा को देश के विख्यात मूर्तिकार अर्जुन प्रजापति ने छह माह के कठिन परिश्रम से तैयार किया है। मंदिर के लिए भूमि पूजन 2008 में ही भारत माता मंदिर, हरिद्वार के संस्थापक स्वामी सत्यमित्रानन्दजी के हाथों हुआ था, लेकिन निर्माण कार्य 2012 में शुरू हो सका। ल्ल
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