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कामकाज के लिहाज से संसद का शीतकालीन सत्र अधिक उत्पादकता वाला रहा। सरकार ने इस छोटे से सत्र में दोनों सदनों में 22 विधेयक पारित करवा बड़ा काम कर लिया। लोकसभा में 13 विधेयक पारित हुए, जबकि राज्यसभा ने 9 विधेयकों को मंजूरी दी
मनोज वर्मा
संसद के शीतकालीन सत्र की समाप्ति कुछ झटपटे माहौल में हुई। तीन तलाक की कुप्रथा रोकने के लिए लाए गए विधेयक पर राज्यसभा में विपक्ष के व्यवहार ने गैरजरूरी कड़वाहट पैदा की। यह समझना मुश्किल है कि लोकसभा में इस विधेयक का समर्थन करने में कांग्रेस को एतराज नहीं था, तो फिर अचानक राज्यसभा में उसने विरोधी रुख क्यों अख्तियार कर लिया? स्पष्टत: ऊपरी सदन में उसने विपक्ष की मजबूत उपस्थिति का बेजा फायदा उठाने की कोशिश की। इसके पहले गुजरात विधानसभा चुनाव प्रचार अभियान के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए एक भाषण को लेकर उसने राज्यसभा में कई दिनों तक व्यवधान खड़ा किया। राज्यसभा में कांग्रेस और विपक्षी दलों के सांसदों की संख्या अधिक है। लिहाजा यह विपक्ष के व्यवहार का ही नतीजा था कि राज्यसभा की तुलना में लोकसभा में कामकाज की उत्पादकता अधिक रही। वैसे तो पिछले वर्ष हिमाचल प्रदेश और गुजरात के विधानसभा चुनाव के दौरान संसद के शीतकालीन सत्र को लेकर कांग्रेस पार्टी ने कई सवाल उठाए थे। ये कयास भी लगाए जा रहे थे कि संसद का शीतकालीन सत्र चल भी पाएगा या नहीं। इसी माहौल में शीतकालीन सत्र 15 दिसंबर, 2017 को शुरू हुआ और समापन 5 जनवरी, 2018 को हुआ। कामकाज के लिहाज से संसद का यह सत्र काफी सफल रहा।
लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा भी, ‘‘लोकसभा में सदस्यों ने प्रश्नकाल के बाद और शाम को देर तक बैठकर लगभग 198 बेहद जरूरी लोक महत्व के मामले उठाए। सदस्यों ने नियम 377 के अधीन 226 मामले भी उठाए। स्थायी समितियों ने सभा में 53 रपटें प्रस्तुत कीं तो सभा में दक्षिण भारत में ओखी चक्रवात और देश की कुछ अन्य प्राकृतिक आपदाओं के बारे में नियम 193 के अधीन एक अल्पकालिक चर्चा भी हुई। अहम विषयों पर मंत्रियों ने 55 बयान दिए और संसदीय कार्य मंत्री ने सरकारी काम के बारे में 2 वक्तव्य दिए। सत्र के दौरान 2,255 पत्र सदन में रखे गए और गैर सरकारी सदस्यों के कामों के अंतर्गत विभिन्न विषयों पर सदस्यों ने 98 निजी विधेयक प्रस्तुत किए। विधेयक पारित करने के मामले में भी लोकसभा की उत्पाकदता अधिक रही।’’
सत्र के दौरान 2,255 पत्र सदन में रखे गए और गैर सरकारी सदस्यों के कामों के अंतर्गत विभिन्न विषयों पर सदस्यों ने 98 निजी विधेयक प्रस्तुत किए। विधेयक पारित करने के मामले में भी लोकसभा की उत्पाकदता अधिक रही।
—सुमित्रा महाजन, अध्यक्ष, लोकसभा
जो विधेयक पारित नहीं हो पाए हैं, सरकार उन्हें बजट सत्र के दौरान पारित करवाने की कोशिश करेगी।
—अनंत कुमार, संसदीय कार्यमंत्री
हालांकि कांग्रेस और अन्य विपक्ष दलों ने कई मौकों पर जमकर हंगामा किया, इसके बावजूद सरकार ने इस छोटे से सत्र में 22 विधेयक पारित करवाकर बड़ा काम कर ?लिया। इस सत्र के कामकाज पर एक नजर डालें तो 13 कार्य दिवस वाले इस सत्र के दौरान लोकसभा में 91.58 प्रतिशत और राज्यसभा में 56.29 प्रतिशत कार्य हुआ। संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार कहते हैं, ‘‘शीतकालीन सत्र में लोकसभा में कामकाज का 30 साल का रिकार्ड टूटा।’’ जिन विधेयकों को दोनों सदनों ने मंजूरी दी उनमें कंपनी संशोधन विधेयक, पुराने कानूनों को खत्म करने से जुड़े दो विधेयक, भारतीय प्रबंधन संस्थान विधेयक, भारतीय वन संशोधन विधेयक, भारतीय पेट्रोलियम और ऊर्जा संस्थान विधेयक, राष्ट्रीय राजधानी राज्य क्षेत्र कानून से जुड़ा विधेयक, इनसालवेंसी और बैंकरप्टसी कोड विधेयक, माल एवं सेवाकर राज्यों को प्रतिकर संशोधन विधेयक, उच्च एवं उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश वेतन एवं सेवा शर्त संशोधन विधेयक और कृषि और ग्रामीण विकास राष्ट्रीय बैंक संशोधन विधेयक शामिल हैं। अगर हम ऐसे विधेयकों की बात करें जो केवल लोकसभा से पारित हुए हैं तो उनमें केंद्रीय सड़क निधि संशोधन विधेयक, स्थावर संपत्ति अधिग्रहण और अर्जन संशोधन विधेयक और मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक शामिल हैं।
सत्र के शुरू में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी दलों से सहयोग के साथ ही जनता के हित में काम करने की उम्मीद जताई थी और सरकार इसमें सफल रही। हालांकि तीन तलाक और ओबीसी आयोग से जुड़ा विधेयक लटक गया जो सरकार के लिए चिंता का विषय कहा जा सकता है। सत्ता पक्ष को उम्मीद है कि संसद के बजट सत्र में बाकी विधेयक भी पारित हो जाएंगे। वैसे संसद में सरकार की ओर से कामकाज करने की इच्छा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक ओर शीतकालीन सत्र समाप्त हुआ तो दूसरी ओर सरकार ने बजट सत्र की तारीखों की भी सिफारिश कर दी है। संसद के बजट सत्र का पहला चरण 29 जनवरी से शुरू होकर 9 फरवरी तक चलेगा। एक फरवरी को बजट प्रस्तुत होगा। बजट सत्र का दूसरा चरण 5 मार्च से 6 अप्रैल तक होगा। कुल मिलाकर बजट सत्र में 31 बैठकें होंगी।
गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टिप्पणी को लेकर दोनों सदनों में विपक्ष आक्रामक रहा। इस हंगामे के कारण कई बार कार्यवाही में व्यवधान पड़ा। कौशल विकास राज्यमंत्री अनंत कुमार हेगड़े की संविधान के संबंध में की गई टिप्पणी को लेकर दोनों सदनों में हंगामा हुआ। बाद में लोकसभा में उनके स्पष्टीकरण और माफी मांगने के बाद मामला शांत हुआ। विपक्ष ने पुणे हिंसा को भी दोनों सदन में जोर-शोर से उठाया। राज्यसभा में जनता दल यू के बागी नेता शरद यादव और अली अनवर की सदस्यता समाप्त किए जाने का मुद्दा भी उठा। शीतकालीन सत्र में विभिन्न मुद्दों को लेकर हुए हंगामे के कारण लोकसभा में करीब 15 घंटे बर्बाद हुए, जबकि आठ घंटे 10 मिनट अतिरिक्त समय बैठकर उसने महत्वपूर्ण कामकाज निपटाया। राज्यसभा में लगभग 34 घंटे हंगामे की भेंट चढ़ गए। जाहिर है कि यदि यह हंगामा नहीं हुआ होता तो यह सत्र और अधिक उत्पादकता वाला सत्र रहता। हालांकि वैकेंया नायडू के राज्यसभा का सभापति बनने के बाद शीतकालीन सत्र में राज्यसभा में भी कामकाज को लेकर सकारात्मकता का संकेत उभरकर सामने आया। दोनों सदनों की कार्यवाही पर संख्या बल का असर साफ देखने को मिला। राज्यसभा में भाजपा नेतृत्व वाले राजग का बहुमत न होने के कारण कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने जो रणनीति अपनाई, उसके चलते लोकसभा से पारित कई विधेयक अटक गए। बहुमत के अभाव में सरकार को उच्च सदन में कई महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित करवाने में कठिनाई आ रही है। राज्यों में भाजपा और उसके सहयोगी दलों को मिल रही जीत से उम्मीद है कि आगामी अप्रैल तक राज्यसभा में सरकार के पक्ष में संख्याबल ज्यादा होगा।
संसद में यूं तो कई अहम विधेयकों पर जोरदार चर्चा हुई पर लोकसभा ने सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन में बढ़ोतरी से संबंधित विधेयक को पारित कर एक महत्वपूर्ण काम किया। इसके कानून बन जाने के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश का वेतन 1,00000 रु. से बढ़कर 2,80,000 रु. प्रतिमाह हो जाएगा। वहीं, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों का वेतन 90,000 रु. की जगह 2,50,000 रु. प्रति महीने हो जाएगा। द हाई कोर्ट एंड सुप्रीम कोर्ट जजेज (सैलरीज एंड कंडीशंस आॅफ सर्विस) अमेंडमेंट बिल-2017 में घर के किराया भत्ता में भी संशोधन की बात कही गई है। गौरतलब है कि 2016 में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने न्यायाधीशों के वेतन में बढ़ोतरी के लिए केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखी थी। फिलहाल सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या 31 की जगह 25 है। वहीं, 24 उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या 1,079 है, लेकिन फिलहाल 682 ही नियुक्त हैं। इस विधेयक के पारित होने से 2,500 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को भी फायदा होगा।
लोकसभा में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण संविधान (123वां) संशोधन विधेयक 2017 प्रस्तुत किया गया, जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आयोग को संवैधानिक दर्जा देने संबंधी विधेयक में राज्यसभा द्वारा किए गए संशोधनों के स्थान पर वैकल्पिक संशोधनों का प्रस्ताव किया गया। निचले सदन में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने संविधान (123वां) संशोधन विधेयक प्रस्तुत करते हुए कहा कि इस विधेयक में राज्यसभा में पारित संशोधनों के स्थान पर वैकल्पिक संशोधन लाए गए हैं। उन्होंने खंड एक में वर्ष 2017 के स्थान पर 2018 किए जाने का भी प्रस्ताव किया। गहलोत ने कहा कि आयोग में एक महिला सदस्य संबंधी प्रावधान को संशोधन में शामिल नहीं किया गया है लेकिन नियमों में इसे शामिल किया जाएगा। अल्पसंख्यक सदस्य संबंधी राज्यसभा के संशोधन के बारे में उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यक, अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए अलग-अलग आयोग हैं और पिछड़े वर्गों में समाज के सभी वर्गों के लोग आते हैं। विधेयक में आयोग के कर्तव्यों में कहा गया है कि वह संविधान के अधीन या किसी अन्य विधि के अधीन या सरकार के किसी आदेश के अधीन सामाजिक व शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के हितों की रक्षा से संबंधित सभी मामलों की जांच व निगरानी करेगा। वह सामाजिक व शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के अधिकारों से वंचित किए जाने और उनके हितों की रक्षा के उपायों के संबंध में शिकायतों की जांच करेगा। यह विधेयक 10 अप्रैल, 2017 को लोकसभा में पारित किया गया था। इसे बाद में राज्यसभा में भेजा गया था। राज्यसभा ने 31 जुलाई, 2017 को हुई बैठक में विधेयक को संशोधनों के साथ पारित किया और इसे 1 अगस्त, 2017 को लोकसभा को लौटा दिया गया था। बहरहाल, संसद के शीतकालीन सत्र में भी यह विधेयक अधर में लटका रह गया।
संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार कहते हैं, ‘‘जो विधेयक पारित नहीं हो पाए हैं, सरकार उन्हें बजट सत्र के दौरान पारित करवाने की कोशिश करेगी।’’ सुकून की बात यह है कि सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच तमाम वैचारिक विरोधों के बावजूद संसद के दोनों सदनों के कामकाज की उत्पादकता में दिनोंदिन बढ़ोतरी हो रही है, जो संसदीय प्रणाली और लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है। ल्ल
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