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डॉ. मुरली मनोहर जोशी
जुगल जी से म्ेरा संबंध लगभग छह दशक पुराना है, तब वे संघ का काम करते थे और विद्यार्थी परिषद् की अखिल भारतीय टोली में उनका प्रमुख स्थान हुआ करता था। मैं भी विद्यार्थी परिषद् में उनके साथ काम करता था। जुगल जी से संबंध निरंतर बना रहा। यह संबंध और अधिक घनिष्ठ हुआ जब मुझे श्री अटल जी ने जिन प्रदेशों का संगठन प्रभार दिया, उनमें पश्चिम बंगाल भी शामिल था। स्व़ विष्णुकांत शास्त्री जी के जीवन और विचारों ने जुगल जी को बहुत प्रभावित किया। जुगल जी का साहित्यानुराग शास्त्री जी से उनकी निकटता एवं आत्मीयता का प्रमुख कारण रहा। राजनीति और साहित्य उन दोनों के ही जीवन के महत्वपूर्ण आयाम रहे।
मेरी दृष्टि में जुगल जी राजनीति के क्षेत्र में आज की पीढ़ी के लिए एक आदर्श चरित्र हैं। इस क्षेत्र में बहुत फिसलन है। रपटने की बहुत गुुंजाइशें रहती हैं। पर जुगल जी इन रपटीली राहों पर चलते रहे और संतुलित बने रहे। जुगल जी अद्भुत संयम के धनी थे। उन्होंने अपने जीवन से सिद्ध कर दिखाया कि सिद्धांत और अनुशासन के सहारे बड़ी से बड़ी फिसलन को पार किया जा सकता है। सार्वजनिक जीवन में आर्थिक शुचिता और चारित्रिक दृढ़ता के प्रतीक जुगल जी हम सबके प्रेरणा के स्रोत रहे हैं। सार्वजनिक धन का व्यवहार कैसे होना चाहिए, वह भी जुगल जी से सीखने को मिला।
जुगल जी न केवल राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय रहे, अपितु वे साहित्य एवं जनसेवा के कार्यों से भी घनिष्ठ रूप से संबंधित रहे। उन्होंने छात्र जीवन में ही अपने जन्म स्थान में एक पुस्तकालय की स्थापना की थी जिसने देशव्यापी ख्याति अर्जित की है। इस गांव में ही नहीं, वरन् संपूर्ण अंचल में अध्ययन एवं पुस्तकालय के सदुपयोग करने का मानस बना देना जुगल जी की रचनात्मकता का सुंदर उदाहरण है। उस प्रारंभिक सोच का प्रस्फुटन श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय की गतिविधियों में उनके अत्यंत सक्रिय एवं दीर्घकालीन योगदान में दृष्टिगोचर होता है। आज यह पुस्तकालय नई पीढ़ी के लिए वरदान सिद्ध हो रहा है।
यदि किसी अत्यंत संवेदनशील, दृढ़व्रती एवं देशहित को समर्पित व्यक्ति को देखना हो तो जुगल जी अनायास ही सामने आ खड़े होते हैं। उन्हें दोहरी मानसिकता बिल्कुल पसंद नहीं थी। मन, वचन और कर्म में एकता रखना ही उनका स्वभाव था। अन्याय और असत्य उन्हें स्वीकार्य नहीं। सिद्धांतों से समझौता पूर्णत: अस्वीकार।
जुगल जी बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। संघर्षप्रवण भी थे। आपातकाल में उनकी भूमिका इसका प्रमाण है। पश्चिम बंग की मार्क्सवादी सरकार से लोहा लेने में भी वे कभी नहीं चूके। भाजपा के अनेक आंदोलनों के संचालन एवं मार्गदर्शन में वे सदा अग्रणी रहे। यदि कभी कहा गया, इस काम के लिए साधन का अभाव है तो जुगल जी का उत्तर होता था, आप काम कीजिए, साधन की चिंता मत कीजिए। बड़े-बड़े प्रदर्शन, बहुत बड़ी सभाएं-सम्मेलन पार्टी ने आयोजित किए और जुगल जी ने कभी साधन का अभाव नहीं होने दिया। उनकी साख इस विषय में अद्भुत थी। सब जानते हैं कि उनके द्वारा संग्रहीत एक-एक पाई जिस काम के लिए आई है उसमें ही लगेगी। उसका दुरुपयोग होने का सोचा भी नहीं जा सकता। जुगल जी पूर्णत: लोक-कल्याण के लिए ही समर्पित थे और वे सारा जीवन उसी दृष्टि से काम करते रहे। हम यह कह सकते हैं कि यह चदरिया जितनी निर्मल बुनी गई थी, उसकी निर्मलता और बढ़ी ही है। यह सिर्फ जस की तस नहीं धरी गई, बल्कि और उजली और साफ-सुथरी रखी गई।
(लेखक पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं वरिष्ठ भाजपा नेता हैं)
इनकी दृष्टि में जुगल जी
श्री जुगल किशोर जैथलिया मेरे परामर्शदाता तथा प्रेरणापुरुष थे। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। कार्य के प्रति उनका समर्पण देखकर मैं दंग रह जाता था।
-तथागत राय
राज्यपाल, त्रिपुरा
जुगल जी एक महान सामाजिक कार्यकर्ता और सच्चे हिंदी प्रेमी थे। उनकी सामाजिक स्वीकृति और उनकी विश्वसनीयता के कारण मैं उनका प्रशंसक रहा हूं। वे विभिन्न संस्थाओं के प्रेरक थे, कुमारसभा पुस्तकालय में तो उनके प्राण बसते थे।
-केशरीनाथ त्रिपाठी
राज्यपाल, प़ बंगाल
जुगल जी की कर्मठता एवं सामाजिक-साहित्यिक सक्रियता सबके लिए प्रेरक थी, वे अविस्मरणीय हैं। देश और समाज के प्रति उनकी निष्ठा अनुकरणीय रही है। उनके गांव छोटीखाटू में जाकर मुझे आंतरिक आनंद हुआ।
-मृदुला सिन्हा
राज्यपाल, गोवा
अपनी अद्भुत संगठन क्षमता का परिचय देते हुए जुगल जी ने एक देव-दुर्लभ टीम तैयार की थी। वे अपने आपमें एक तीर्थ थे, उनका स्मरण करना तीर्थ यात्रा के समान है। वे स्वयं को पीछे रखकर दूसरों को आगे बढ़ाते रहे। उनकी बनाई टीम बंगाल की विरासत है।
-तरुण विजय,
पूर्व सांसद,राज्यसभा
संस्कारी परिवार की रचना की
डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र, वरिष्ठ साहित्यकार
समाजसेवा के प्रति पुष्ट निष्ठा ने जुगल जी के चरित्र के प्रति मेरे मन में आकर्षण पैदा किया था। श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय कोलकाता की एक पुरानी संस्था है, जिसे जैथलिया जी ने अपने सांस्कृतिक विवेक से साहित्य-संस्कृति के विशिष्ट मंच के रूप में प्रख्यात कर दिया, जिसे पंडित विष्णुकांत शास्त्री जैसे विद्ग्ध आचार्य का समर्थन-संरक्षण सहज ही उपलब्ध था। यह एक महत् विद्या प्रयोजन था, जिसके मूल उद्योक्ता जैथलिया जी ही थे। अपने व्यावहारिक विवेक से जैथलिया जी ने उक्त संस्था के सम्यक् संचालन के लिए समशील लोगों की एक गोष्ठी तैयार की। इस प्रकार विशेष प्रयोजन के निमित्त जैथलिया जी ने एक संस्कारी परिवार की रचना की। अपने शहर के विद्याकर्म को नानाविध प्रोत्साहित करना जैथलिया जी का प्रिय व्यसन था।
अनुकरणीय जीवन
पं़ नरेंद्र मिश्र, वरिष्ठ कवि
जुगल जी अनेक संकल्पित आलोक-पुरुषों के प्रेरणास्रोत थे। उनका संपूर्ण जीवन अनुकरणीय था। वे परोपकार के पुरोधा, पुरुषार्थ के प्रवक्ता और प्रज्ञा के पर्याय थे। वे अपने जीवन से इस बात का संदेश देते हैं कि नैतिक बल से परिपूर्ण व्यक्तित्व के सामने दंभी और दुष्ट व्यक्ति उसी प्रकार निस्तेज हो जाता है जैसे सूर्य के समक्ष अंधकार। जैथलिया जी सदैव परमार्थ की पगडंडी के पथिक रहे हैं, जो पथ पर परोपकार के पद चिन्ह छोड़ जाता है। वे अहंकार-मुक्त व्यक्तित्व और संस्कार-युक्त कृतित्व के प्रतीक थे।
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