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जैथलिया जी ने यह लेख उस समय लिखा था जब केंद्र में डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में संप्रग सरकार थी
जुगलकिशोर जैथलिया चीन
के विस्तारवादी इरादों का ठीक-ठीक आकलन करने में स्वाधीन भारत का शीर्ष नेतृत्व सदा ही चूकता रहा है। परिणामस्वरूप केवल हिमालय क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि चीन भारत को आज सब तरफ से घेरता नजर आ रहा है। हिंद महासागर में भी उसकी सामरिक गतिविधियां काफी तेज हो गई हैं। म्यांमार (बर्मा) के कोको द्वीप पर तो उसने अपना राडार भी स्थापित कर लिया है, ताकि भारत के संपूर्ण पूर्वी तट पर निगरानी रखी जा सके और इधर हम भावुकता और सदाशयता की चादर ओढ़े इन चुनौतियों का मुकाबला करने की प्रभावी रणनीति बनाने में उदासीन ही नहीं, हतप्रभ नजर आ रहे हैं। चीन की चुनौतियां आर्थिक एवं सामरिक दोनों ही क्षेत्रों में गहरी हैं। भारत का पूरा बाजार सब प्रकार के सस्ते चीनी सामान से पटा पड़ा है। हमारे लोग उन्हें बेहिचक खरीद रहे हैं और उसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में देशी कारखाने क्रमश: बंद होते जा रहे हैं। यह केवल छोटे कारखानों या नित्य उपयोग में आने वाले सामान तक ही सीमित नहीं है। आज तो देश में चाहे रिलायंस का पावर प्लांट लग रहा हो या कलकत्ता इलेक्ट्रिक का, बी़ एस़ एऩ एल. का टेलीफोन एक्सचेंज लग रहा हो या एयरटेल जैसी गैर सरकारी कंपनी का, एक बड़े हिस्से की ठेकेदारी चीनी कंपनियां ही ले जा रही हैं। एक समाचार छपा था कि कलकत्ता इलेक्ट्रिक का 1,000 करोड़ के नए पावर प्लांट का ठेका चीनी कंपनी ले रही है। अनुमानत: लगभग 3,50,000 करोड़ रु. का चीनी सामान प्रतिवर्ष भारत में खप रहा है और हमारी अर्थव्यवस्था की नींव को हिला रहा है।
सामरिक दृष्टि से तो भारत के प्रति चीन का रवैया निरंतर अधिक से अधिक आक्रामक होता जा रहा है। चीन में माओ की सरकार अक्तूबर, 1949 में सत्ता में आई और आते ही उसने पहला काम ‘तिब्बत के लोगों की मुक्ति’ के नाम पर तिब्बत को पूरी तरह हड़पने का किया। सरदार पटेल, डॉ़ राम मनोहर लोहिया एवं श्री गुरुजी गोलवलकर की चेतावनियों के बावजूद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने ‘शांति दूत’ बनने के ख्वाब में तिब्बत में भारत के सारे प्रशासनिक अधिकार जो उसे 1907 में संधि के अंतर्गत प्राप्त थे, चीन को सौंप दिए और फिर 1954 में उसे और भी पुख्ता करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री चाऊ -एन-लाई के साथ ‘पंचशील’ के समझौते पर हस्ताक्षर कर चीन की मनचाही इच्छाओं पर मुहर लगाकर भारत के लोगों को भ्रमित कर दिया जिसका दु:खद परिणाम 1962 के बर्बर चीनी आक्रमण के रूप में देश ने झेला जिसमें चीन ने हमारी 38,000 वर्ग किलोमीटर भूमि हथिया ली। इसके पूर्व 5,200 वर्ग कि़ मी़ भूमि वह पाकिस्तान अधिक्रांत कश्मीर से भी सैन्य सहायता के बदले प्राप्त कर चुका था। आज भी सिक्किम एवं अरुणाचल प्रदेश पर उसकी चुनौती भरी धमकी निरंतर मिलती रहती है एवं उसका दावा है कि इन प्रदेशों की 90,000 वर्ग कि़ मी़ भूमि पर भारत ने कब्जा कर रखा है जिसे उसे मुक्त कराना है। इसी तर्क के आधार पर हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर भी उसने अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी।
चीन के इन विस्तारवादी इरादों एवं उन पर अमल करने की उसकी सक्रिय गतिविधियों को हमें राज्य के स्तर पर एवं जनता के स्तर पर भी गहराई से समझने की आवश्यकता है। भारत की सीमा से सटे प्रदेशों में तो चीन सड़कों एवं रेलों का निरंतर जाल बिछा ही रहा है, पूर्वोत्तर में उसने परमाणु मारवाली आधुनिक मिसाइलें भी तैनात कर रखी हैं। वह ब्रह्मपुत्र एवं अन्य नदियों के पानी को भी बड़े-बड़े बांध बनाकर अपने ही क्षेत्र में रोक लेने की योजनाओं पर आगे बढ़ रहा है। कूटनीति के स्तर पर भारत के सभी पड़ोसी देशों से भी अपने सैनिक संबंध सुदृढ़ कर रहा है यथा श्रीलंका एवं म्यांमार आदि। पाकिस्तान तो पहले दिन से ही हमारा घोषित शत्रु है। आज नेपाल में भी उसके हस्तक प्रभावी स्थिति में हैं। इस पर भी हमारी सरकार हतप्रभ होकर केवल वार्ताओं के दौर चला रही है और जवाबी ठोस रणनीति बनाने में सर्वथा विफल है।
प्रभावी रणनीति के लिए हमें अपने पड़ोसियों को विश्वास में लेना ही पड़ेगा। यह कार्य हम सांस्कृतिक आधार पर कर सकते हैं। श्रीलंका, म्यांमार एवं जापान आदि अनेक पूर्वी देश सांस्कृतिक आधार पर हमारे मित्र बन सकते हैं। डॉ़ लोहिया के अन्तरराष्ट्रीय रामायण मेले के आयोजन के पीछे यही मुख्य भाव था। ये सारे बौद्ध देश भारत के प्रति सम्मान रखते हैं एवं प्रयत्न करने पर हमारे भरोसे लायक मित्र साबित हो सकते हैं, पर हम तो ‘सेकुलरी शराब’ के नशे में मस्त हैं, फिर यह कैसे हो?
हमारे देश के भीतर भी गलत एवं ढुलमुल नीतियों के कारण लगभग 150 जिलों में माओवादी जाल बिछा चुके हैं, जिनके मन में कहीं न कहीं चीन के प्रति भावात्मक लगाव है। बंगाल में तो एक समय ‘चीन का चेयरमैन, हमारा चेयरमैन’ एवं ‘आक्रामक चीन नहीं, भारत है’ के नारे सरेआम लगे थे। अत: इसका विचार भी गहराई से करना पड़ेगा। स्थितियां कठिन होते हुए भी अभी काबू से बाहर नहीं हैं। आवश्यकता है सरकार के दृढ़ संकल्प की।
प्रतिकार बिना शांति नहीं
— जुगलकिशोर जैथलिया
लक्ष्मण रेखा को लांघ शत्रु घर में आया,
हिमगिरि की निर्मल शांति उड़ा ले भागा है।
समझौते शांति-पत्र की भाषा छोड़ आज,
दिखला दो धनुष राम का फिर से जागा है॥
प्रतिरक्षा की बातें तो पंचशील तक थीं,
प्रतिकार बिना नगराज शांति नहीं पाएगा।
प्रतिकार! आज प्रतिकार हमारा प्रथम लक्ष्य,
उस बिना न साधुवाद जग में जी पाएगा॥
झुक गया आज यदि देश क्रूरता के आगे,
अपराधी को यदि दंड नहीं दे पाएगा।
एकाध पीढ़ी की बात नहीं सोचो साथी,
आने वाला इतिहास सदा झुक जाएगा॥
इसलिए तुम्हें सजना होगा फिर से जग कर,
दिखाना होगा परंपरा क्या यहां रही।
होते हैं बुद्ध और गांधी यह ठीक यहां,
पर विक्रम और जोरावरसिंह की कमी नहीं॥
सदियों से मौका आया है बलिदानों का,
गत सारी भूलों को परिमार्जित करने का।
नेतृत्व! सीख दो, चौंक उठे चीनी पीढ़ी,
इतिहास पलट जो देखे इन परिणामों का॥
भारत से मोल शत्रुता लेना क्या होता
यह बिना दिखाए देश न अब बच पाएगा।
इस कारण अब प्रतिकार हमारा प्रथम लक्ष्य,
प्रतिकार बिना नगराज शांति नहीं पाएगा॥
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