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इस्लामिस्तान यानी पाकिस्तान में हिन्दुओं का लगातार दमन हो रहा है। यह बात पांथिक स्वतंत्रता से जुड़ी एक अमेरिकी समिति ने कही है। यही वजह है कि वहां अब एक प्रतिशत भी हिन्दू नहीं बचे हैं
राजेश गोगना
पांथिक स्वतंत्रता वैश्विक स्तर पर एक अधिकार के तौर पर स्थापित हो गई है। सभी अंतरराष्टÑीय संस्थान तथा राष्टÑ कमोबेश इस स्वतंत्रता को स्वीकार करते हैं और दावा करते हैं कि उनके देश में पांथिक स्वतंत्रता पर्याप्त रूप में उपलब्ध है तथा इसको संवैधानिक संरक्षण भी उपलब्ध है। यह बात सच भी है कि मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा पांथिक स्वतंत्रता के अधिकार को परिभाषित तथा संरक्षित करती है। लेकिन अंतरराष्टÑीय स्तर पर पांथिक स्वतंत्रता की स्थिति लगातार खराब होती जा रही है। जबरन कन्वर्जन, उपासना स्थलों पर हमले, निर्दोष लोगों पर अत्याचार लगातार बढ़ रहे हैं, पर अंतरराष्टÑीय समुदाय इस पर लगातार चुपी साधे हुए है। हाल ही में अमेरिका की अंतरराष्टÑीय पांथिक स्वतंत्रता समिति ने मजहबी स्वतंत्रता पर मंडराते खतरों को चिह्नित किया है। थॉमस जे. रेसी की अध्यक्षता में लिखी 221 पन्नों की यह रपट दुनिया के देशों को तीन श्रेणी में विभाजित करती है।
पहली श्रेणी में उन देशों को रखा गया है, जहां स्थितियां ज्यादा संवेदनशील हैं। इसे सीपीसी यानी ‘कंट्रीज आॅफ पर्टिकुलर कंसर्न’ कहा जाता है। इसमें पाकिस्तान के साथ म्यांमार, चीन, ईरान, सूडान तथा सीरिया सहित 16 देश शामिल हैं। दूसरी श्रेणी में भारत सहित अफगानिस्तान, मलेशिया, तुर्की सहित 11 देश शामिल हैं। तीसरी श्रेणी में बांग्लादेश, इथियोपिया, सोमालिया सहित नौ देश शामिल हैं। इस रपट में हिन्दू शब्द 147 बार, मुस्लिम 585 बार, ईसाई 324 बार, यहूदी 76 बार और बौद्ध 75 बार आया है। रपट में पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दू समाज पर हो रहे अत्याचारों पर एक अध्याय है। रपट के अनुसार पांथिक अधिकारों पर लगातार हो रहे हमलों को पाकिस्तान सरकार रोकने के बजाए बढ़ावा दे रही है। मजहब के आधार पर भेदभाव, ईशनिंदा तथा अहमदिया विरोधी कानून मजहबी अल्पसंख्यकों की स्थिति को दयनीय बना रहा है। रपट के अनुसार पाकिस्तान में हिन्दू लगातार मजहबी हिंसा का शिकार हो रहे हैं। आतंकवादी संगठन और अन्य शरारती तत्व हिन्दुओं पर निरंतर अत्याचार कर रहे हैं। रपट में यह भी कहा गया है कि पाकिस्तान की पाठ्य पुस्तकें लगातार गैर-मुस्लिमों के प्रति दुर्भावना और अन्य समुदायों के प्रति शक को बढ़ावा देती हैं तथा अन्य मत-पंथों को गलत रूप में प्रस्तुत करती हैं। इन पुस्तकों में पाकिस्तानी हिन्दुओं को भारत-परस्त और ईसाइयों को अमेरिका-परस्त बताया गया है। भारत को तो दुश्मन देश की श्रेणी में रखा गया है। इन बातों से उन्मादियों का हौसला बढ़ता है। रपट में हिन्दू तथा ईसाई लड़कियों का जबरन कन्वर्जन कराने और उनका निकाह किसी मुसलमान के साथ करा देने पर भी चिंता व्यक्त की गई है। रपट में यह भी बताया गया है कि हर वर्ष लगभग 1,000 हिन्दू और ईसाई लड़कियों का जबरन कन्वर्जन कराकर निकाह कराया जाता है। रपट यह भी कहती है कि जबरन मुसलमान बनाई गई लड़कियों को कोई भी कानूनी सुरक्षा उपलब्ध नहीं करवाई जाती है। विदित हो कि अमेरिका की यह समिति 2002 से पाकिस्तान को लगातार सीपीसी की श्रेणी में रख रही है। लेकिन अमेरिकी सरकार ने अभी भी पाकिस्तान को सीपीसी घोषित नहीं किया है। इसे उसकी दोहरी नीति कह सकते हैं। समिति ने अमेरिकी सरकार से निवेदन किया है कि पाकिस्तान को सीपीसी श्रेणी में रखा जाए और इस संबंध में पुख्ता कदम उठाने के लिए बाध्य किया जाए। रपट में यह भी लिखा गया है कि पाकिस्तान के मजहबी अल्पसंख्यकों को सुरक्षा दी जाए, ईशनिंदा कानून को समाप्त किया जाए तथा मजहबी सहिष्णुता के लिए एक अभियान चलाया जाए। रपट के अनुसार पाकिस्तान में मजहबी अल्पसंख्यकों को सामाजिक तथा राजनीतिक हाशिए का सामना करना पड़ता है। 342 सीटों वाली नेशनल एसेम्बली में केवल 10 सीटें मजहबी अल्पसंख्यकों के लिए उपलब्ध हैं। वहीं एसेम्बली के ऊपरी सदन
में अल्पसंख्यकों के लिए एक भी सीट आरक्षित नहीं है। इस रपट में सऊदी अरब, अफगानिस्तान और कुछ अन्य देशों में भी हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों को शामिल किया गया है। आशा है, भारत सरकार तथा अन्य संगठन इस रपट पर अपना विरोध दर्ज करवाएंगे।
(लेखक ह्यूमन राइट्स डिफेंस इंटरनेशनल के महासचिव हैं)
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