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शिक्षक की एक परिभाषा अक्सर सुनने को मिलती है कि-शिक्षक वह है जो अगली पीढ़ी को गढ़ता है। बात सही है। विद्या के आलयों में ये शिक्षक ही तो हैं जो अपने विषय में अपनी महारत बच्चों के मन-मस्तिष्क में संजोते हुए उन्हें उस विषय में पारंगत बनाते हैं।
हमने देखे-सुने होंगे ऐसे शिक्षक जो घड़ी की सुई के हिसाब से कक्षा में आकर विषय पढ़ाना शुरू कर देते हैं, तो दूसरी तरफ ऐसे कई व्यक्तित्वों के बारे में भी हमने सुना होगा जो अपना विषय ऐसी रोचकता से, हंसी-खेल में, पहेली-सवालों में, गुदगुदाते ख्यालों में पिरोकर समझाते हैं कि वह चीज जिंदगी भर के लिए अंकित हो जाती है दिलो-दिमाग पर। वे कुछ हटकर करते हैं, पढ़ने वाले बच्चों को अपने छात्रों से कहीं बढ़कर मानते हैं और जब उनके छात्र कामयाबी का शिखर छूते हैं तो गर्व से सीना उनका भी फूलता है।
कुछ साल पहले तक झंडेवाला मंदिर (दिल्ली) की गली में अक्सर शाम को दीवार पर बने श्याम पट के सामने कई बार नाटे कद के एक शिक्षक गली के गरीब-गुरबों के बच्चों को जमीन पर लाइन से बिठाए पढ़ाते दिख जाया करते थे। पता लगा, वे थे धर्मपाल जी, शिक्षक के नाते सेवानिवृत्ति के बाद इस तरह उन बच्चों को पढ़ा रहे थे जो स्कूल जाने में किसी वजह से असमर्थ थे। आज मास्टर धर्मपाल तो नहीं रहे, पर गली से गुजरते हुए आज भी लगता है जैसे वे वहां बच्चों को पढ़ा रहे हों। सच, कुछ शिक्षक भुलाए नहीं भूलते।
तो, इस बार हमारे देश के पूर्व राष्टÑपति, परम विद्वान शिक्षक डॉ. राधाकृष्णन के जन्मदिवस यानी शिक्षक दिवस पर हम ऐसे ही कुछ खास व्यक्तित्वों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो ऐसे शिक्षक हैं या रहे हैं जिन्होंने शिक्षक की परिभाषा को अनूठे आयाम दिए हैं।
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