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भारत कृषि प्रधान देश है लेकिन आज किसान इस हालत में हैं कि पैदावार को तरस गए हैं। दुर्भाग्य से हमारे यहां राजनीतिक दांवपेच भी कृषि की बदहाली की बड़ी वजह रहे हैं
गत 15 सितंबर की शाम नई दिल्ली में भारतीय विज्ञान अकादमी के सभागार में इंद्रप्रस्थ विज्ञान भारती ने रा. स्व. संघ के पांचवें सरसंघचालक स्व. कुप्. सी. सुदर्शन की स्मृति में व्याख्यान का आयोजन किया। उल्लेखनीय है कि विज्ञान भारती की नींव श्री सुदर्शन की प्रेरणा से ही रखी गई थी। प्रतिवर्ष आयोजित होने वाली इस व्याख्यानमाला में इस बार नीति आयोग के सदस्य, देश के सुप्रसिद्ध कृषि अर्थशास्त्री प्रो. रमेश चंद का व्याख्यान हुआ, विषय था— ‘खेती की स्थिति:अवसर और चुनौतियां।’
आज भारत में खेती बदहाल क्यों है, इसका उत्तर खोजा जाना चाहिए। ठोस नीतियां बननी चाहिए जो धरातल पर कार्यान्वित हों।
-डॉ. जयकुमार, महामंत्री, विज्ञान भारती
व्याख्यान के आरम्भ में प्रो. चंद ने स्व. सुदर्शन की स्मृति को नमन करते हुए कहा कि देश के उत्थान हेतु उनका सतत चिंतन चलना उनके राष्टÑभक्त व्यक्तित्व की दिव्यता दर्शाता है। कृषि की वर्तमान स्थिति की आंकड़ों के साथ समीक्षा करते हुए प्रो. चंद ने बताया कि आज खेती देश के सकल घरेलू उत्पाद में 17 प्रतिशत का योगदान देती है। इसके माध्यम से 46 प्रतिशत आबादी को रोजगार प्राप्त है और 2015-16 में खेती-किसानी से कुल 75,000 करोड़ रुपए की विदेश विनिमय राजस्व प्राप्त हुआ था। कृषि क्षेत्र की चुनौतियों की चर्चा करते हुए वरिष्ठ कृषि अर्थशास्त्री प्रो. चंद ने बताया कि खेती में उत्पादन हमारी अपेक्षाओं से कम ही रहा है। उन्होंने संकेत किया कि अगर वर्तमान सरकार के 2022 तक अपेक्षित खेती के लक्ष्यों को पाना है तो हमें कृषि उत्पादन को तेजी से बढ़ाना होगा। दूसरी बड़ी चुनौती यह बनी हुई है कि किसानों को अपेक्षित आय नहीं हो पा रही है। प्रो. चंद ने बताया कि संप्रग सरकार ने सत्ता संभालने के बाद 2005 में पूर्व की वाजपेयी सरकार की कृषि नीतियों को पलट दिया जिसके बुरे नतीजे सामने आए। उस वक्त सुधार के अनेक प्रयास अपने अंतिम चरण में थे और काफी काम किया जा चुका था, वह सब रोक देना पड़ा।
प्रो. चंद का कहना था कि बड़ी तादाद में खेती में कम आमदनी से त्रस्त किसान खेती की बजाय किसी अन्य रोजगार में जाना चाहते हैं लेकिन जानकारी के अभाव में ऐसा कर नहीं पाते। सरकार का प्रयास है कि ऐसे किसान अपनी छोटी काश्त में ही नवाचार अपनाकर, नई पद्धतियां अपनाकर और कम लागत में ज्यादा पैदावार पाकर ख्ोती के क्षेत्र में ही टिके रहें। इस दृष्टि से नीतियां बनाई जा रही हैं। कृषि विभाग सुधार के अनेक उपायों पर काम कर रहा है। लेकिन राजनीतिक अड़चनें अवरोध पैदा करने में कसर नहीं छोड़तीं। प्रो. चंद के इस व्याख्यान के बाद विज्ञान भारती के अखिल भारतीय महामंत्री डॉ. जयकुमार ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि कृषि विशेषज्ञ बजाय चुनौतियां गिनाने के सुधार के कुछ प्रयास करें और किसानों से सीधा संवाद करके उन्हें बेहतर खेती के तरीके सुझाएं तो वह ज्यादा हितकर होगा।
आज भारत में खेती बदहाल क्यों है, इसका उत्तर खोजा जाना चाहिए। ठोस नीतियां बननी चाहिए जो धरातल पर कार्यान्वित हों। उन्होंने कहा कि अगले कुछ वर्षों तक विज्ञान भारती खेती के क्षेत्र में जागरूकता लाने के लिए गंभीर प्रयास करती रहेगी। इससे पहले कार्यक्रम के मुख्य अतिथि संघ के वरिष्ठ प्रचारक डॉ. शंकरराव तत्ववादी ने स्व. सुदर्शन के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि असाधारण मेधा के धनी श्री सुदर्शन शिक्षा से इंजीनियर थे इसलिए विज्ञान के क्षेत्र में गहन रुचि रखते थे। वे देश से जुड़े सभी विषयों पर चिंतन करते हुए समस्याओं के समाधान की बात करते थे। कार्यक्रम के अंत में विज्ञान भारती, दिल्ली इकाई के डॉ. सुमित मिश्र ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर राजधानी के अनेक कृषि विशेषज्ञ, कृषि विद्यार्थी, पत्रकार और विज्ञान भारती के वरिष्ठ कार्यकर्ता उपस्थित थे।
ल्ल आलोक गोस्वामी
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