राज्य/उत्तराखंड - आधार ने खोला करोड़ों का घपला
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राज्य/उत्तराखंड – आधार ने खोला करोड़ों का घपला

by
Aug 28, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 28 Aug 2017 13:01:51

 

उत्तराखंड में कांग्रेस के कार्यकाल के दौरान गरीब छात्रों के लिए चलाई जा रही योजनाओं के तहत केंद्र सरकार से मिलने वाली राशि में बंदरबांट की खबरें सामने आ रही हैं। समाज कल्याण और अल्पसंख्यक कल्याण निदेशालय में यह फर्जीवाड़ा करीब 400 करोड़ रुपये का है। इसका खुलासा सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी से हुआ है।
दरअसल, केंद्र सरकार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक विद्यार्थियों की पहली से 10वीं कक्षा तक की पढ़ाई का खर्च उठाती है। इसके लिए दशमोत्तर वजीफा योजना और शुल्क प्रतिपूर्ति योजना के तहत वह समाज कल्याण विभाग को धनराशि देती है। इस राशि को राज्य का समाज कल्याण विभाग शिक्षण संस्थानों को जारी करता है। इसी तरह उच्च शिक्षा के लिए भी विद्यार्थियों को आर्थिक मदद दी जाती है। 
समाज कल्याण निदेशालय के अधिकारी निजी शिक्षण संस्थानों के साथ मिलकर गरीब विद्यार्थियों का शुल्क तय करते हैं। यह शुल्क एक समान नहीं होता, बल्कि हर शिक्षण संस्थान का शुल्क अलग-तय किया जाता है। इस तरह इस राशि को फर्जी तरीके से उनके खातों में डालकर निकाल लिया गया। इतना ही नहीं, जांच में पता चला कि निदेशालय के अधिकारियों ने एक-एक बच्चे को चार-चार शिक्षण संस्थानों में पढ़ता दिखाया और उनके वजीफे की राशि डकार गए। फर्जीवाड़ा सामने आने पर त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार ने समाज कल्याण के वजीफा खातों की जांच कराई तो चौंकाने वाली जानकारियां सामने आईं। माना जा रहा है कि निदेशालय के अधिकारी उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद से ही यह फर्जीवाड़ा करते चले आ रहे थे।
केंद्र में जब नरेंद्र मोदी की सरकार बनी तो केंद्र द्वारा वित्त पोषित जन कल्याण योजनाओं के लाभार्थियों के लिए बैंक खाता और आधार को अनिवार्य कर दिया गया। जब आधार नंबर के साथ लाभार्थियों के बैंक खातों को जोड़ा गया तब यह घोटाला पकड़ में आया। आधार से वजीफा पाने वाले अल्पसंख्यक छात्रों के खातों को जोड़ते ही आश्चर्यजनक रूप से 1,95,360 के छात्रों के नाम गायब हो गए। यानी वजीफा पाने वाले छात्रों की संख्या घट कर मात्र 26,440 रह गई। इस हिसाब से केंद्र सरकार द्वारा इस मद में दी जाने वाली राशि 15 करोड़ रुपये से घटकर ढाई करोड़ से भी कम हो गई। खास बात यह कि छात्रवृत्ति पाने वाले छात्रों की सूची में 83,000 से ज्यादा फर्जी छात्र हरिद्वार जिले में स्थित मदरसे के निकले, जहां से हरीश रावत लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ते रहे हैं।
पता चला कि एक छात्र चार-चार निजी शिक्षण संस्थानों वह भी अलग-अलग जिलों में पढ़ता पाया गया। इस मामले का खुलासा होने के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने एसआईटी गठित कर मामले की जांच का जिम्मा एक तेज-तर्रार और ईमानदार आईएफएस अधिकारी मनोज चंद्रन को सौंप दिया। जांच में घोटाले की कलई खुलती गई। समाज कल्याण के निदेशक बीएस धनिक को इन घपले का मास्टरमाइंड बताया जा रहा है।
बताया जाता है कि धनिक पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत खासे मेहरबान थे। आलम यह है कि धनिक दो साल पहले सेवानिवृत्त हो चुके थे, लेकिन हरीश रावत ने उन्हें पुनर्नियुक्ति सेवा विस्तार दिया और नियम विरुद्ध जाकर उन्हें वित्तीय अधिकार भी दे दिए। उस समय मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह ने इस पर आपत्ति भी जताई थी, लेकिन इसे अनदेखा किया गया। समाज कल्याण के तहत ही अल्पसंख्यक कल्याण निदेशालय काम करता है। पहले जिला समाज कल्याण अधिकारी इसके कर्ता-धर्ता होते थे। लेकिन हरीश रावत के कार्यकाल में अलग से अल्पसंख्यक अधिकारी की नियुक्ति की गई।
अल्पसंख्यक कल्याण के निदेशक कैप्टन आलोक तिवारी बताते हैं कि जिन मदरसों में महज पांच छात्र थे, उनमें छात्रों की संख्या 25 दर्शाकर वजीफे लिए जा रहे थे। हालांकि दलील दी जा रही है कि कई छात्रों के खाते अभी आधार से नहीं जुड़े हैं और कई छात्रों के बैंक खाते नहीं खुले हैं। इस पर आलोक तिवारी कहते हैं, ''किसी के साथ भेदभाव नहीं होगा- जो पात्र हैं, उन्हें सरकार जरूर वजीफा देगी। लेकिन उन्हें इसका प्रमाण देना होगा। समाज कल्याण में बरसों से जमे हुए अधिकारियों का एक गुट है, जो हरीश रावत के कार्यकाल में कथित रूप से भ्रष्टाचार में लिप्त रहा।'' इसके अलावा, निदेशालय के अधिकारियों ने दस्तावेजों में दिखाया कि मदरसों में अल्पसंख्यक छात्रों को गणित और विज्ञान पढ़ाने के लिए एक सॉफ्टवेयर दिल्ली की कंपनी से खरीदा गया। इसकी कीमत एक करोड़ रुपये बताई गई। लेकिन इस सॉफ्टवेयर को कहां लगाया गया, यह किसी को मालूम नहीं है। यहां तक कि मदरसों के लिए जो कंप्यूटर खरीदे गए, उनका भी कोई पता- ठिकाना नहीं है।
अपर निदेशक एनके शर्मा और सहायक निदेशक इस मामले की विभागीय जांच कर रहे हैं। बताया जाता है कि भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ काफी सबूत मिले हैं। दूसरी ओर, आरटीआई कार्यकर्ता चंद्रशेखर करगेती संतुष्ट नहीं हैं। उनका कहना है कि स्वयं उन्होंने 47,000 छात्रों के आंकड़ों की जांच की, जिसमें 3,000 लाभार्थी फर्जी निकले। पेशे से अधिवक्ता करगेती कहते हैं, ''मुझे इस बात का इंतजार है कि राज्य सरकार प्राप्त सूचनाओं के अधार पर भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज कराए।''     –दिनेश

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