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आतंक के कोढ़ को समाप्त करने का समय

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Aug 28, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 28 Aug 2017 12:16:08

आवरण कथा ‘श्रमेव जयते’ से यह बात पुष्ट हुई कि कुछ लोगों ने अपने परिश्रम और लगन से अभी भी देश के कई नगरों में पारंपरिक उद्योगों को जिंदा रखा है। देश ही नहीं, विदेशों तक में इन उत्पादों की पहचान है। देखा जाए तो देश की औद्योगिक तरक्की में इन उद्योगों के योगदान को किसी भी मायने में कमतर नहीं आंका जा सकता।
—नीलेश रंजन, धनबाद(झारखंड)

भारत कर्मवीरों की भूमि है। तभी तो यहां के कई शहरों में स्थापित पारंपरिक उद्योगों को देश ही नहीं दुनिया में ख्याति प्राप्त है। हालांकि इनकी असंगठित रोजगार में गिनती होती है लेकिन इनसे लाखों-करोड़ों रु. का व्यापार होता है और एक बड़े श्रमिक समूह को इस क्षेत्र में रोजगार मिला हुआ है। परंपरागत रूप में चला आ रहा यह काम किसी साधना से कम नहीं है। क्योंकि अनेक अभावों के बावजूद ये मेहनतकश लोग अपनी थाती को संभाले हुए हैं।
—कृष्ण वोहरा, सिरसा(हरियाणा)
बढ़ता देश का मान
इस बात से आज अधिकतर लोग सहमत हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व में भारत का मान बढ़ाया है। तभी अधिकतर देश भारत की ओर खिंचे चले आ रहे हैं और उसके साथ मित्रता के इच्छुक हैं। इस सबका श्रेय सिर्फ नरेन्द्र मोदी को ही जाता है क्योंकि उन्होंने देश की वास्तविक छवि से दुनिया को परिचित कराया है। व्यापार की दृष्टि से भी उन्होंने अन्य देशों को आभास कराया कि भारत एक बड़ा बाजार है, जिसके कारण बहुत से देशों की रुचि बढ़ी है। अब लोगों को लगता है कि न केवल जनता का बल्कि भारत का भविष्य उज्ज्वल है।
—इन्द्र कुमार नागपाल, झज्जर (हरियाणा)

हमला बर्दाश्त नहीं!
अमरनाथ यात्रा पर इस्लामी आतंकियों के हमले को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने इस दौरान कई आतंकियों को मार गिराया जिनकी संलिप्तता इस हमले में थी। लेकिन आक्रोशपूर्ण बात यह थी कि हर छोटी बात पर ट्विटर पर फड़फड़ाने वाले सेकुलर हमले पर खामोश हो गए। उनके मुंह से एक शब्द तक नहीं निकला।
—राम प्रकाश शर्मा, भिंड(म.प्र.)

  कश्मीर में बढ़ते आतंक का सफाया करना अब समय की मांग है, जिसका बिगुल घाटी से ही फूंका जाना चाहिए। आज बात-बात पर जो लोग कश्मीरियत को बचाने की बात करते हैं, वे हिन्दुओं के निर्वासन, उत्पीड़न और उनकी हत्याओं पर अपने होंठ क्यों सिल लेते हैं। क्या हिन्दुओं के उत्पीड़न के समय कश्मीरियत की हत्या नहीं हो रही थी? इन सवालों पर घाटी के मुल्ला-मौलवी बेचैन होने लगते हैं। लेकिन ये ऐसे सवाल हैं जो उनसे हर दम पूंूछे जाएंगे क्योंकि हिन्दुओं को कश्मीर से बेदखल करने में उनकी मिलीभगत रही है।
—अनुराग सक्सेना, मेल से

 अमरनाथ यात्रा पर हमला न केवल निंदनीय है बल्कि आक्रोशित करने वाला है। एक तरीके से यह हमला हिन्दुत्व पर है। कई बार सवाल उठता है कि इतनी सुरक्षा-व्यवस्था के बाद भी ऐसे हमले कैसे हो जाते हैं? सुरक्षा एजेंसियों और सेना को इस विषय पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
—रमेश प्रजापति, मेरठ(उ.प्र.)

 जुनैद को लेकर छाती पीटने वाले अमरनाथ यात्रा के समय यूं खामोश हो गए जैसे सांप सूंघ गया हो। किसी ने भी इस्लामी आतंक की भर्त्सना नहीं की। लेकिन जब कोई अखलाक, जुनैद यहां तक कि आतंकी अफजल और याकूब को फांसी दी जाती है तो वामपंथी गैंग न केवल विरोध प्रदर्शन करते दिखाई देते हैं बल्कि रात में सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा तक खटखटाते हैं। देश के लोगों को अब  कट्टरवादियों का खुलकर विरोध करना होगा।
—बी.एल.सचदेवा, 263,आईएनए मार्केट(नई दिल्ली)

कब बंद होगा यह आतंक
‘हत्याओं पर टिकी सेकुलर कुंठा’ (9 जुलाई,2017)’ रपट केरल में चल रहे खूनी खेल से पर्दा उठाती है। क्या कोई राज्य सरकार इतनी निर्मम हो सकती है कि अपने तुच्छ स्वार्थों के लिए अपने ही राज्य के लोगों को इसलिए उत्पीड़ित करे क्योंकि उसके विचार उससे मिलते नहीं हैं। आज केरल में संघ और वामपंथियों के बीच हिंसा जारी है। वामपंथी नहीं चाहते कि केरल में उनके विचार के अलावा भी कोई विचार पनपे। इसलिए वे संघ के बढ़ते प्रभाव से इतने बौखलाए हुए हैं कि कार्यकर्ताओं की हत्या कर रहे हैं। लेकिन संघ के कार्यकर्ता इससे डरने वाले नहीं हैं। वे सतत काम में लगे हुए हैं और लगे रहेंगे।
—मुकुंद कुमार, जयपुर (राज.)

  वैचारिक मतभेद और विपक्ष को हिंसा के बल पर कुचलने का कू्रर कर्म केरल के कई हिस्सों में चल रहा है। आए दिन होती संघ कार्यकर्ताओं की हत्या न केवल दुर्भाग्यपूर्ण हैं बल्कि शर्मनाक हैं। पर हैरानी है कि इतनी हत्याएं और हिंसा होने के बाद भी राज्य सरकार खामोश है और अपराधियों को संरक्षण दे रही है। कथित बुद्धिजीवियों की टोली केरल में होती हिंसा पर खामोश है? इन हत्याओं पर वे पुरस्कार क्यों नहीं लौटा रहे?
—मनोहर मंजुल, प.निमाड़(म.प्र.)

महिमा गुरु की
आवरण कथा ‘ब्रह्म हैं गुरु (9 जुलाई, 2017)’ देश की गुरु परंपरा को सामने रखते हुए अतीत की ओर ले जाती है। भारत में गुरु-शिष्य परंपरा का एक लंबा इतिहास रहा है। यही एक ऐसी भूमि है जहां गुरु को भगवान से ऊपर का दर्जा प्रदान किया गया। गुरुओं ने ही देश-समाज को सही रास्ता दिखाया और ऐसे शिष्यों को तैयार किया जिन्होंने भारत का मान रखते हुए भारतीय संस्कृति और परंपरा को दुनिया में ख्याति दिलाई।
—परमानंद जोशी, चुरू(राज.)

घुड़की देना बंद करे चीन
रपट ‘पुरानी चाल, नई शरारत’ (16 जुलाई, 2017) अच्छी लगी। भारत और चीन के बीच दो महीने से डोकलाम में चल रही तकरार पर चीन जहां हर दिन अपनी विश्व स्तर पर फजीहत करा रहा है वहीं भारत की तटस्थता और कुशल नीति की कई देशों ने मुंक्त कंठ से प्रशंसा की है। चीन को 1962 को भूलकर 2017 को याद रखना होगा। क्योंकि वह इस बार दही के धोखे में कपास खाने को आतुर है, जो बाद में उसके गले की फांस बन जाएगी।
—राममोहन चन्द्रवंशी, हरदा(म.प्र.)
अशांति फैलाते सेकुलर
‘हिन्दू विरोध में अंधे’ (9 जुलाई, 2017) रपट सेकुलर तत्वों की झूठी कहानियों से रू-ब-रू कराती है। ऐसे तत्व यही चाहते हैं कि कैसे भी देश में अशांति बनी रहे और उन्हें हिन्दुत्व को कोसने का मौका मिलता रहे। यह क्रम दशकों से चला आ रहा है और आज भी जारी है। कांग्रेस के राज में ऐसे तत्वों को इतना खाद-पानी मिला कि इनकी संख्या को गिनना मुश्किल है। आज वही लोग देश में जातिवाद, तुष्टीकरण, मजहब के नाम पर लोगों को लड़ा रहे हैं और फायदा उठा रहे हैं। पर अब जनता ऐसे लोगों को पहचानने लगी है।
—गोविंद माहेश्वरी, मंदसौर(म.प्र.)
बंगाल में बढ़ती जिहादी गतिविधियां
रपट ‘शरिया की गिरफ्त में बंगाल’ ममता की तुष्टीकरण नीति को सामने रखती है। यह हकीकत है कि बंगाल कश्मीर के रास्ते पर है। वहां से आए दिन हिन्दुओं के साथ हिंसा की खबरें आती हैं। उनके घर, मकान, दुकानें, प्रतिष्ठान जलाए जाते हैं, हिन्दू मां-बहनों की इज्जत लूटी जाती है लेकिन राज्य की मुख्यमंत्री एक शब्द भी नहीं बोलती। उल्टे जिहादियों को संरक्षण देती हैं। इस कारण राज्य में जिहादियों का आतंक बढ़ता ही जा रहा है। लेकिन हिन्दुओं को अब जागरूक होकर इसका प्रतिकार करना ही होगा ।
           — सुहासिनी किरणी, गोलीगुड़ा(तेलंगाना)
जैसे को तैसा
गाली या गोली नहीं, गलें मिलें सब लोग
तब जाकर कश्मीर का, मिट पाएगा रोग।
मिट पाएगा रोग, नित्य जो आंख दिखाते
देकर गाली हाथों में हथियार उठाते।
कह ‘प्रशांत’ है व्यर्थ उन्हें ऐसी परिभाषा
वे समझेंगे जैसे को तैसे की भाषा॥
    — ‘प्रशांत’
 कब आएगी इन्हें समझ!
पिछले कुछ वर्षों में खासकर केन्द्र में नरेन्द्र मोदी सरकार आने के बाद से देश में जान-बूझकर अशांति का माहौल बनाया जा रहा है। वामपंथी और कट्टरपंथियों द्वारा यह दर्शाने का प्रयास किया जा रहा है कि पिछले तीन साल में देश में असहिष्णुता बढ़ी है। रपट ‘यह सेकुलर खामोशी क्यों?(23 जुलाई, 2017)’ उन तथ्यों को सामने रखती है जिन पर सेकुलर दल राजनीति करते हैं। अधिकतर दलों के सेकुलर नेता टीवी चैनलों पर बैठकर समाज में न केवल भ्रम की स्थिति उत्पन्न करते हैं बल्कि विश्व स्तर पर देश की छवि को धूमिल करते हैं। क्योंकि वह नहीं चाहते कि सब सच को जानें। यह हकीकत है कि मोदी सरकार पूरी ईमानदारी के साथ देश के विकास में लगी है और अनेक योजनाओं के माध्यम से हाशिये पर जी रहे लोगों को राहत पहुंचा रही है। कांग्रेस ने कभी भी समाज और देश के विकास की तरफ ध्यान नहीं दिया। उसने तो वोट के लिए जातिवाद, भ्रष्टाचार, संप्रदायवाद, वंशवाद को ही बढ़ावा दिया। भ्रष्टाचार के मामले में तो उसका कोई सानी नहीं है। संप्रग सरकार के समय आमजन का न केवल अत्यधिक शोषण हुआ बल्कि तुष्टीकरण की आड़ लेकर हिन्दू समाज पर जुल्म ढहाए गए। इससे देश का राजनीतिक एवं सामाजिक परिवेश प्रदूषित होता चला गया। लोग देश में सरकार के बदलाव को लेकर बेचैन हो उठे। परिणाम 2014 में भारतीय जनता पार्टी की ऐतिहासिक विजय के रूप में दिखाई दिया और नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने। अब जब वे इन सभी गलत चीजों को सही करने का काम काम कर रहे हैं तो उनके पेट में मरोड़ उठ रही है। पर मेरा मानना है कि अगर गलत चीजों को ठीक करने से ऐसे लोगों के पेट में मरोड़ उठ रही है, तो यह और तेज उठनी चाहिए।
—दिनेश भारद्वाज, एम.एस.रोड, जौरा, मुरैना(म.प्र.)

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