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सलमान खान की ट्यूबलाइट की नाकामी से जहां कुछ सवाल खड़े हुए हैं, वहीं यह उन सितारों और फिल्मकारों के लिए एक सबक भी है जो ये सोचते हैं कि फिल्म कैसी भी हो,‘खान भाइयों’ की है तो चलेगी ही
प्रदीप सरदाना
भारताीय रजतपट के सितारे सलमान खान के लिए ईद का मौका पिछले कुछ बरसों से ढेरों सौगात लेकर आ रहा था लेकिन इस बार ईद पर उनकी मुराद पूरी नहीं हुई। उम्मीद की जा रही थी कि उनकी नई फिल्म ‘ट्यूबलाइट’ जब 23 जून को प्रदर्शित होगी तो उसे शुक्रवार के साथ शनिवार, रविवार के अवकाश के बाद सोमवार को ईद का अवकाश भी मिलने से बॉक्स आफिस पर खूब चमक दिखेगी। लेकिन चमक तो दूर ‘ट्यूबलाइट’ सलमान की ईद पर आर्इं पिछली 5 फिल्मों से भी कम दर्शक मिले। जबकि इसे देश में अब तक प्रदर्शित सभी हिंदी फिल्मों से अधिक 4,350 स्क्रीन्स पर प्रदर्शित किया गया था। लेकिन कमाई सबसे कम हुई। इससे साफ है कि इस फिल्म को दर्शकों ने बुरी तरह नकार दिया, जो निश्चय ही सलमान खान की घटती लोकप्रियता का परिचायक है।
असल में अप्रैल में आई फिल्म ‘बाहुबली-2’के हिंदी,तमिल और तेलुगु संस्करणों ने पहले ही दिन 128 करोड़ रुपए कमाकर ऐसा इतिहास रच दिया जहां निकट भविष्य में किसी और के पहुंचने की कल्पना भी नहीं था। यहां तक कि ‘बाहुबली-2’ के अकेले हिंदी संस्करण ने भी पहले ही दिन 41 करोड़ रुपए कमाए। इसलिए सलमान के लिए यह बड़ी चुनौती थी कि वे खुद को बॉलीवुड का सुलतान साबित करने के लिए पहले दिन ‘ट्यूबलाइट’ ‘बाहुबली’ के हिंदी संस्करण के बराबर या उससे अधिक कमाई करे। लेकिन बाहुबली तो बहुत दूर, बॉलीवुड का यह सुलतान अपने ही पुराने रिकॉर्ड से मात खा गया। ‘ट्यूबलाइट’ ने पहले दिन देश भर से मात्र 21 करोड़ 15 लाख का ही विशुद्ध व्यापार किया, जबकि सलमान की 2012 की ईद पर आई ‘एक था टाइगर’ ने 32 करोड़ 93 लाख, 2014 की ईद पर आई ‘किक’ ने 26 करोड़ 40 लाख, 2015 में आई ‘बजरंगी भाईजान’ ने 27 करोड़ 25 लाख और पिछले बरस ईद पर प्रदर्शित ‘सुलतान’ ने पहले दिन 36 करोड़ 54 लाख का व्यापार किया। जबकि पहले तीन दिन अर्थात् सप्ताहांत में भी ‘ट्यूबलाइट’ ने कुल सिर्फ 64 करोड़ 77 लाख ही कमाए।
उम्मीद की जा रही थी कि सलमान की ‘ट्यूबलाइट’ को ईद के दिन 21 करोड़ से कहीं ज्यादा कमाई होगी। लेकिन ईद के दिन कमाई बढ़ने की जगह कम होकर करीब 19 करोड़ रुपए पर पहुंच गई, यह तथ्य बताता है कि इस बार सलमान के उन परंपरागत मुस्लिम प्रेमियों ने भी उन्हें नापसंद कर दिया, जो बड़ी संख्या में ईद पर उनकी फिल्में देखकर उनकी शान बढ़ाते रहे हैं। इससे जाहिर है कि सलमान को अपनी खराब ‘ट्यूबलाइट’ के करंट का झटका जोरों से लगा है।
असल में इन दिनों बड़े सितारों की या बड़े बजट वाली फिल्में तभी सफल मानी जाती हैं जब वे तीन दिन में 100 करोड़ रुपए की कमाई कर लें, लेकिन सलमान की इस फिल्म ने इतनी ज्यादा स्क्रीन्स पर प्रदर्शित होने के बाद भी 100 करोड़ कमाने में पूरे 6 दिन लगा दिए। यहां तक कि अपनी रिलीज के पहले 10 दिन में भी यह फिल्म लगभग 117 करोड़ रुपए ही अपनी झोली में समेट सकी। उधर विदेशों में भी फिल्म की हालत इतनी खस्ता है कि वहां भी 10 दिन में ‘ट्यूबलाइट’ सिर्फ 44 करोड़ रुपए ही कमा पायी है, जो यह बताता है कि विदेशी दर्शकों को भी ‘फिल्म’ पसंद नहीं आई। यह सब देखते हुए लग रहा है कि ‘ट्यूबलाइट’ दो हफ़्तों में देश भर से 125 करोड़ रुपए भी नहीं कमा पाएगी। अब 100 करोड़ की रु. लागत से बनी फिल्म यदि कुल 125 करोड़ रुपए भी नहीं कमा पाती तो सीधे शब्दों में यह एक असफल फिल्म ही कही जायेगी। हालांकि ‘ट्यूबलाइट’ के नायक सलमान के साथ फिल्म के सह निर्माता और निर्देशक कबीर खान का इस फिल्म से 400 करोड़ रुपए कमाने का सपना था, जो अब चूर-चूर हो गया है। जबकि फिल्म को पहले दिन प्रदर्शित करते हुए दिल्ली में फिल्म के एक वितरक तो यहां तक दावा कर रहे थे कि ‘ट्यूबलाइट’ 500 करोड़ की कमाई करेगी। वहीं सलमान खान तो इतने उत्साहित थे कि वे और कबीर फिल्म के खुद सह निर्माता तो बने ही सलमान ने अपनी अम्मी सलमा खान को भी फिल्म का मुख्य निर्माता बना दिया। लेकिन एलईडी के युग में ‘ट्यूबलाइट’ ‘फ्यूज’ हो गयी।
निर्माता तो फिल्म की रिलीज से पहले ही अपनी फिल्म के विभिन्न प्रदर्शन और प्रसारण अधिकार अच्छी-खासी कीमत में बेचकर खुद तो अच्छी कमाई कर लेता है, लेकिन जो फिल्म पर अपनी पूंजी लगा देते हैं, वे वितरक और प्रदर्शक फिल्म के असफल होने पर बुरी तरह मारे जाते हैं। यहां भी सलमान और कबीर खान को ‘ट्यूबलाइट’ की कम कमाई से कोई आर्थिक हानि नहीं होने वाली, गाज तो उन पर गिरी है जिन्हें ‘भाईजान’ की ‘ट्यूबलाइट’ पर भरोसा था कि यह फिल्म उनकी जिंदगी में उजाला कर देगी लेकिन अब उनकी जिंदगी अंधेरों से भर गयी है। फिल्म के प्रमुख वितरक को तो इस ‘ट्यूबलाइट’ के ‘फ्यूज’ हो जाने से 75 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है।
क्या है ‘ट्यूबलाइट’ में
निर्देशक कबीर खान के साथ सलमान खान की इससे पहले दो और फिल्में ‘एक था टाइगर’ और ‘बजरंगी भाईजान’ आ चुकी हैं। लेकिन इस जोड़ी की यह तीसरी फिल्म कई कारणों से बॉक्स आॅफिस पर ही नहीं, अपने कथानक में भी बुरी तरह डगमगा गयी। असल में ‘ट्यूबलाइट’ 2015 में आई हॉलीवुड की एक फिल्म ‘लिटिल बॉय’ से प्रेरित है। यहां यह जानना दिलचस्प होगा कि ‘लिटिल बॉय’ को भी न समीक्षकों की सराहना मिली और न ही बॉक्स आॅफिस पर सफलता। वहां 20 मिलियन डॉलर में बनी ‘लिटिल बॉय’ 18 मिलियन डॉलर भी नहीं कमा सकने के कारण असफल हो गयी थी। फिर भी कबीर को इस फिल्म के कथानक पर इतना भरोसा था कि उन्होंने एक असफल फिल्म पर बड़े बजट की हिंदी फिल्म बनाने का साहस किया। हालांकि कबीर ने कथानक में इतना परिवर्तन किया कि ‘लिटिल बॉय’ जहां एक पिता-पुत्र की कहानी थी, वहां अपनी इस फिल्म में उन्होंने इसे दो भाइयों की कहानी बना दिया लेकिन फिल्म में चीन मूल के एक परिवार के छोटे बच्चे गूवो (मातिन रे तांगू) और उसकी मां ली लिन (झू झू) की कहानी को डालकर बच्चे का आकर्षण यहां भी बनाने की कोशिश की गयी। यूं ‘ट्यूबलाइट’ 1962 के भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर है। फिल्म में दिखाया गया है कि दो अनाथ भाई लक्ष्मण सिंह बिष्ट और भरत सिंह बिष्ट (सलमान खान-सोहेल खान) कुमाऊं के जगतपुर में बन्ने चाचा (ओम पुरी) की छत्र-छाया में रहते हैं। लक्ष्मण बचपन से ही कुछ मंदबुद्धि है इसलिए उसे सब ‘ट्यूबलाइट’ कहकर मजाक उड़ाते हैं। लेकिन उसका भाई भरत और बन्ने चाचा हमेशा उसके समर्थन में रहते हुए उसका पूरा ख्याल रखते हैं। लक्ष्मण और भरत दोनों हंसते-खेलते बड़े हो गए हैं। तभी चीन और भारत के बीच युद्ध छिड़ जाता है। सीमा पर मुकाबला करने के लिए और सैनिकों की जरूरत को देखते हुए भारतीय सेना की कुमाऊं रेजिमेंट की एक टीम के अधिकारी (यशपाल शर्मा) जगतपुर आकर युवाओं को सेना में भर्ती होने के लिए आमंत्रित करते हंै, जिसमें भरत सहित वहां के कई युवाओं का सेना में चयन हो जाता है। लेकिन लक्ष्मण अपनी मानसिक कमजोरी के चलते सेना में भर्ती नहीं हो पाता। भरत उदास मन से अपने भाई को छोड़ युद्ध स्थल पर चला जाता है। लक्ष्मण पहली बार अकेला सा पड़ जाता है. लेकिन उसे यकीन है कि उसका भाई जल्द वापस आएगा। लेकिन जब यह खबर आती है कि भरत युद्ध में मारा गया तो पूरा गांव बिलख उठता है।
क्यों फ्यूज हुई ‘ट्यूबलाइट’
सबसे बड़ी बात तो यह है कि फिल्म ‘बाहुबली’ के बाद भारतीय सिनेमा की तस्वीर पूरी तरह बदल गयी है। ‘बाहुबली’ जैसी बड़ी और शानदार फिल्म देखने के बाद दर्शकों को समझ आ गया है कि पिछले कुछ समय से बहुत से निर्माता उन्हें बड़े लोकप्रिय सितारों के चेहरे दिखाकर ठग रहे थे। लेकिन अब फिल्मकारों और बड़े सितारों को यह यकीन कब्जा ही होगा कि यदि अब वे ‘एलईडी’ (बाहुबली) के युग में सिर्फ ‘ट्यूबलाइट’(चेहरा) दिखायेंगे तो उनकी दुनिया अब चमक नहीं सकेगी। कोई भी फिल्म अब फिल्मी सितारों के नाम पर नहीं, अच्छे कथानक और बेहतरीन निर्माण गुणवत्ता के सहारे ही चलेंगी। जहां तक अभिनय की बात है तो सलमान खान अपनी भूमिका में ठीक-ठाक रहे हैं। सोहेल खान के पास करने के लिए कुछ ज्यादा नहीं था, वह सामान्य रहे और झू झू तो कुछ प्रभाव नहीं छोड़ सकी।
बाल कलाकार मातिन फिर भी ठीक रहा, कुछ दृश्यों में तो अच्छा भी। लेकिन ‘बजरंगी भाईजान’ की मुन्नी (हर्षाली) से तुलना की जाए तो मातिन बहुत पीछे रह जाता है। हां, ओम पुरी और यशपाल शर्मा ने अपनी भूमिका में अच्छी छाप छोड़ी है। फिल्मों से दर्शक अब बहुत कुछ चाहते हैं। और वे ऐसा चाहे भी क्यों नहीं, आखिर इतनी महंगी टिकट किसी एक चेहरे को देखने के लिए तो खरीदी नहीं जा सकती। ल्ल
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