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अक्सर सनने में आता है कि फसल कटाई के बाद बची पुआल या कृषि अवशेष को किसान खेतों में जला देते हैं। पिछले कुछ साल से यह चलन प्रदूषण के लिए सबसे ज्यादा दोषी पाया जा रहा है। हरियाणा सरकार की पहल पर प्रदेश के किसान अब कृषि अवशेष से बिजली और एथनॉल बनाकर अपने और राज्य के आर्थिक मुनाफे की राह आसान कर रहे हैं
डॉ. गणेश दत्त वत्स
हरियाणा में काफी समय से एक समस्या देखने में आती रही है। प्रदेश में कृषि अवशेष जलाकर किसान तात्कालिक खेती के लिए बिजाई तो कर लेते हैं, लेकिन अवशेषों के जलने से जो दुष्प्रभाव होता है, उसे नजरअंदाज कर देते हैं। इसका भूमि की उपजाऊ शक्ति पर कुप्रभाव पड़ता है। हरियाली खत्म हो जाती है। खेतों के किनारे खड़े पेड़ भी खत्म हो जाते हैं, पर्यावरण प्रदूषण एकदम से बढ़ जाता है। कई किसान अवशेष जलाने को अनुचित करार देते हैं और इसके लिए जागरूकता भी पैदा करते रहे हैं।
कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में करीब 90 लाख टन कृषि अवशेष को जला दिया जाता हैं। इनमें 25 लाख टन गेंहू के फाने और 65 लाख टन धान की पराली होती है। लेकिन आज ऐसे तरीके उपलब्ध हैं कि इस अवशेष से बिजली उत्पादन किया जा सकता है। ग्रीन ट्रिब्यूनल और पर्यावरण विभाग ने भी इस बारे में जानकारी प्रसारित की है और कई किसान जागरूक हुए हैं। उधर प्रदेश सरकार खेतों में अवशेष जलाने की समस्या का स्थायी समाधान चाहती है ताकि भूमि की उपजाऊ शक्ति बरकरार रहे और जिन अवशेषों को जलाकर अज्ञानता में किसान अपना नुकसान कर रहे हैं, उस संदर्भ में ऐसी योजना बने कि उन्हीं अवशेषों को बेचकर वे आर्थिक लाभ पा सकें।
लाभ की योजना
राज्य सरकार की योजना है कि कृषि अवशेषों से बिजली व एथनॉल बनाया जाए। इसकी जिम्मेदारी सरकार ने कृषि विभाग और पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को सौंपी है। पहले यह जांच करने का आदेश दिया गया है कि प्रदेश में बिजली बनाने के लिए बायोमास पावर प्लांट लगाने की कितनी संभावनाएं हैं, ये कहां-कहां लगाए जा सकते हैं, इन पर कितना पैसा खर्च होगा, कितना मानव संसाधन लगेगा, प्लांट से बिजली की आपूर्ति कहां होगी। कृषि विभाग के अनुसार प्रदेश में जलाए जा रहे करीब 90 लाख टन कृषि अवशेषों का यदि उपयोग किया जाए तो इनसे 40,000 मेगावाट बिजली बनाई जा सकती है, जिससे गांव जगमग हो सकते हैं और किसान भी समृद्ध हो सकते हैं। इस बारे में और जानकारी दी बायोमास विशेषज्ञ डॉ. लक्ष्मीकांत दाधीच ने। वे कहते हैं कि 9 लाख टन कृषि अवशेष से 4,000 मेगावाट बिजली और 10 टन कृषि अवशेष से 3,000 लीटर एथनॉल बनाया जा सकता है। यही नहीं, इससे निकलने वाली राख भी उपयोगी होती है, जिससे र्इंटें और सीमेंट बनाया जा सकता है। सरकार किसानों से बिजली और एथनॉल बनाने के लिए फाने और पराली खरीदेगी। उत्पादन के हिसाब से मूल्य तय कर किसानों को भुगतान किया जाएगा। उधर कृषि विभाग व पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी, बिजली विभाग के अधिकारियों के साथ इस संदर्भ में चर्चा करेंगे ताकि योजना को आगे बढ़ाया जा सके। सरकार किसानों को गेंहू के फाने से भूसा बनाने वाली मशीन पर और ज्यादा अनुदान पर उपलब्ध कराएगी ताकि किसान अवशेषों को न जलाकर फानों से तूड़ी बना सकें।
प्रदेश सरकार ने तीन अधिकारियों की एक कमेटी भी गठित की है जो देश के उन राज्यों का दौरा करेगी जहां फाने व पराली से बिजली, खाद व सीएनजी गैस बनाई जा रही है। ये अधिकारी उन निजी कम्पनियों से भी संपर्क करेंगे, जो इस तरह के प्लांट लगाने के इच्छुक हैं। यही नहीं, इस बात का भी पूरा प्रारूप तैयार किया जाएगा कि फाने-पराली से किस तरह बिजली बनाई जा सकती है व गांव में ही बायोखाद बनाने के प्लांट कैसे लगाए जा सकते हैं। साथ ही एथनॉल का उत्पादन कर पेट्रोल पंपों के लिए एथनॉल की आपूर्ति करना व पराली से निकलने वाली मीथेन गैस को सीएनजी बनाने की प्रक्रिया क्रियान्वित होगी।
अवशेष जलने से नुकसान
अवशेष जलने से खेतों की उपजाऊ शक्ति तो कमजोर होती ही है, पर्यावरण पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। विशेषज्ञों की मानें तो इससे 2 लाख पेड़ जलते हैं तो 10,000 पेड़ पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं। 8 लाख लोगों के लिए आक्सीजन का स्रोत खत्म होता है, क्योंकि एक पेड़ 800 लोगों को आक्सीजन देता है। जिन पेड़ों की केवल छाल जलती है वे बच जाते हैं, यदि पेड़ों को पानी पहुंचाने वाला जाईलम जल जाए तो पेड़ नहीं बच पाता। इससे जो धुआं निकलता है, वह दमा जैसे घातक रोगों को बढ़ा देता है। अंतरराष्टÑीय गेंहू एवं मक्का अनुसंधान संस्थान, मैक्सिको के वरिष्ठ वैज्ञानिक, डॉ़ एम.एल. जाट कहते हैं कि एक टन कचरा जलने से 2 किलोग्राम मीथेन गैस निकलती है, 80 फीसदी नाइट्रोजन व सल्फर नष्ट होती है। मिट्टी की जलधारण क्षमता कम होती है, फसल जल्दी सूखती है और सिंचाई ज्यादा करनी पड़ती है। जमीन में यूरिया सहित अन्य खादें भी ज्यादा डालनी पड़ती हैं, जिससे किसान को दोहरा नुकसान होता है। 15 लाख हेक्टेयर में करीब 22 लाख टन फाने जला दिए जाते हैं। इससे 22 लाख टन तूड़ा बनाया जा सकता है, जो 26 करोड़ पशुओं के लिए एक दिन का चारा हो सकता है। यदि किसान यह 22 लाख टन तूड़ा बना लें तो देश को करीब 700 करोड़ रुपए का लाभ होगा।
प्रशासन हुआ सख्त
प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहरलाल ने अधिकारियों को आदेश दिए हैं ंिक वे कृषि अवशेषों को जलाने के मामले में कोई कोताही न बरतें बल्कि सख्ती से काम लें। उन्होंने कहा कि ख्ोतों में कृषि अवशेष जलाने का जो भी मामला प्रमाणित हो, उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए। मुख्यमंत्री ने किसानों से भी आग्रह करते हुए कहा कि वे भी जागरूक बनें और समझें कि अवशेषों को जलाने से उन्हें कोई लाभ नहीं हो रहा है। किसान यदि सावधानी से काम लें तो वे इन अवशेषों से लाभ भी कमा सकते हैं और भूमि की उपजाऊ शक्ति को भी बचा सकते हैं। सरकार ने पटवारी व ग्राम सचिव की जिम्मेदारी निर्धारित की है कि वे खेतों में अवशेषों के जलने की जानकारी अपने आला अधिकारियों को देंगे।
यमुनानगर का इकलौता प्लांट
यमुनानगर के मुलाना में उत्तरी भारत का पहला और इकलौता प्लांट चंद्रपुर रिन्युअल पॉवर लिमिटेड प्लांट सितम्बर 2014 से चल रहा है। प्लांट के प्रबंध निदेशक सुधीर चंद्र के अनुसार, उन्होंने साढ़े 6 करोड़ रुपए की लागत से इसे लगाया है। इस प्लांट की क्षमता 3 लाख यूनिट बिजली उत्पादन की है। लेकिन अभी यहां सवा लाख यूनिट बिजली का उत्पादन कर रहा है और इनसे रादौर, जोड़ियां, मुलाना स्थित अपने तीन प्लांटों के लिए बिजली उपयोग में ले रहे हैं। वे पापुलर की टहनियों से बिजली बनाते हैं। उनका कहना है कि इसके लिए गेंंहू और धान के अवशेष भी विभिन्न तरह से बिजली उत्पादन व एथनॉल के लिए काफी कारगर हैं। चंद्रा का कहना है कि डेढ़ किलो कृषि अवशेष से एक यूनिट बिजली पैदा की जा सकती है। यदि सरकार इस ओर पूरा ध्यान दे तो ऐसे प्लांट लगने से जहां बिजली की कमी नहीं रहेगी, वहीं हजारों लोगों को रोजगार भी मिलेगा।
भविष्य के दो समझदार विकल्प
गोबर गैस प्लांट:- गोबर गैस प्लांट में गोबर व पानी के मिश्रण से गैस उत्पन्न की जाती है। ऐसे प्लांट गुरुकुल, कुरुक्षेत्र एवं गीताधाम सहित कई स्थानों पर लगे हुए हैं। गुरुकुल में बायोगैस से 65 केवी का जनरेटर चलता है, जिसमें 60 प्रतिशत गैस व 40 प्रतिशत डीजल का प्रयोग होता है।
इसी में दूसरा प्लांट भी लगाया गया है, जिससे प्रतिदिन 3 से 4 गैस सिलेंडर भरे जाते हैं। इसके साथ ही कई गोशालाओं व ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे गोबर गैस प्लांट लगे हैं।
बायोगैस :- इसमें धान की पराली, गन्ने की खोई व गेंहू की फसल अवशेष प्रयोग में लाए जाते हैं। 30 करोड़ की लागत से सैनी सन्स पेपर मिल बाखली, पेहवा में एक बड़ा प्लांट लगा हुआ है। पेपर मिल के मालिक प्रदीप सैनी ने बताया कि इस यूनिट में 5 मेगावाट बिजली तैयार की जाती है। दूसरा प्लांट चीनी मिल, शाहबाद में लगा है। यदि इस पद्धति को बढ़ावा दिया जाए तो पर्यावरण को काफी राहत मिलेगी। किसान गेंहू, धान व गन्ने के अवशेष नहीं जलाएंगे तो उनकी आमदनी भी बढेÞगी।
सरकार सोलर प्लांट को भी बढ़ावा दे रही है, जिससे विभिन्न संस्थान, अस्पताल व अन्य स्थानों पर ऊर्जा उपलब्ध हो रही है। यदि बिजली का उत्पादन ज्यादा होता है तो उसे बिजली विभाग ले लेता है। इस योजना से उपभोक्ता को कम दर पर बिजली मिलती है।
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