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राजामौलि की ‘बाहुबली’ ने दुनियाभर में न केवल भाषायी सीमाएं तोड़ी हैं, बल्कि स्टार सिस्टम को भी चुनौती दी है। इस फिल्म ने रिलीज के तौर-तरीके ही बदल दिए हैं। इसके दूसरे भाग ने तो हिन्दी फिल्मों की आर्थिक सफलता के रिकॉर्ड को भी ध्वस्त कर दिया है। दो महीने से ज्यादा समय होने को आया, यह फिल्म दुनियाभर से 1700 करोड़ रुपये से अधिक बटोर चुकी है। फिल्म अब भी देशभर के बहुत सारे सिनेमाघरों पर काबिज है। कई मायनों में यह फिल्म माहौल बदलने वाली साबित हुई है, जिसका अंदाजा फिल्म दिग्गजों ने काफी पहले लगा लिया था।
पंजाबी गायक एवं अभिनेता गिप्पी ग्रेवाल कहते हैं, ‘‘कोई सोच भी नहीं सकता था कि पंजाब में कोई दक्षिण भारतीय फिल्म इतना जबरदस्त बिजनेस करेगी। मैंने इससे पहले प्रभास (‘बाहुबली’ के मुख्य नायक) का नाम तक नहीं सुना था। लेकिन सिनेमाघर में देखा कि लोग एक्शन दृश्यों पर उछल रहे थे। संवादों पर ताली बजा रहे थे। आश्चर्यचकित कर देने वाली फोटोग्राफी के सामने उनके मुंह बंद थे। इस दक्षिण भारतीय फिल्म के सामने पंजाबियों की सहनशीलता देखने वाली थी।’’
याद रहे कि अमरेन्द्र ‘बाहुबली’ (प्रभास) की भूमिका के लिए पहले हिृतिक रोशन को चुना गया था। इसी फिल्म के एक अन्य अहम पात्र भल्लालदेव (राणा दग्गुबती) की भूमिका पहले अभिनेता जान अब्राहम को तथा सिवगामी (रमैय्या) की भूमिका श्रीदेवी से कराने की बात थी। हिृतिक ने पहले तो राजामौलि के इस प्रोजेक्ट में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। बाद में उन्होंने आशुतोष गोवारिकर की फिल्म ‘मोहनजोदड़ो’ की व्यस्तता का हवाला देकर फिल्म करने से मना कर दिया। बताया जाता है कि श्रीदेवी ने सिवगामी की भूमिका के लिए 6 करोड़ रुपये मांगे थे, जबकि रमैय्या ने 2.5 करोड़ रु. में यह भूमिका निभाई। वहीं जॉन अब्राहम ने, न तो भल्लादेव की भूमिका में दिलचस्पी दिखाई और न ही कहानी को लेकर कोई उत्साह। उन्होंने भी व्यस्तता का हवाला देकर राजामौलि की पेशकश से किनारा कर लिया था। जबकि सच यह है कि 2015 में उनकी कोई फिल्म नहीं आयी थी।
नतीजा यह हुआ कि हिृतिक रोशन की ‘मोहनजोदड़ो’ 58 करोड़ रुपये बटोरकर ‘सुपरफ्लॉप’ साबित हुई और श्रीदेवी ने इस पेशकश को ठुकरा कर दक्षिण की ही एक फिल्म ‘पुली’ में काम किया जो कि फ्लॉप रही। बताया जाता है कि अवंतिका (तमन्ना भाटिया) की भूमिका पहले सोनम कपूर को दी गई थी।
सवाल यह है कि दो साल पहले उत्तर भारत में प्रभास को कोई ढंग से जानता तक नहीं था। और राणा दग्गूबती को अंतिम बार अक्षय कुमार के साथ फिल्म ‘बेबी’ में सह-कलाकार के रूप में देखा गया था। आज ये दोनों कलाकार दुनियाभर में परिचय के मुताज नहीं है। और ऐसे कितने लोग होंगे, जिन्होंने यह फिल्म देखने से पहले इसका स्टार मूल्यांकन किया होगा? शायद न के बराबर या बहुत कम, क्योंकि अगर ऐसा होता तो यह फिल्म दो हफ्ते भी नहीं टिकती। इसलिए यह पुख्ता तौर पर कहा जा सकता है कि इस फिल्म की कामयाबी से स्टार सिस्टम में सेंध लगी है, क्योंकि अब प्रभास की अगली फिल्म ‘साहू’ तमिल और हिन्दी में साथ-साथ बन रही है और हिन्दी पट्टी में बड़Þे पैमाने पर रिलीज की तैयारी की जा रही है।
आज हर बॉलीवुड सितारा अपनी फिल्म के प्रचार के लिए मीडिया चैनलों पर जरूर आता है। लेकिन ‘बाहुबली’ की टीम प्रचार के लिए दिल्ली नहीं आयी, बल्कि फिल्म प्रदर्शन से महज पांच दिन पहले प्रभास और राणा ने चंडीगढ़ जाना जरूरी समझा। हिंदी पट्टी को ये सितारे बस हल्का-सा छू कर निकले और पूरे देश में न के बराबर प्रचार किया। यह बात दर्शाती है कि केवल प्रचार से ही सब कुछ नहीं होता। यही नहीं, इस फिल्म का प्रचार बजट किसी भी हिंदी फिल्म के मुकाबले काफी कम था। सोशल मीडिया पर भी इस फिल्म की टीम न के बराबर सक्रिय दिखी। यहां तक कि वह टीवी पर किसी रियेलिटी या कॉमेडी शो में भी प्रचार के लिए नहीं गयी। इतना ही नहीं, फिल्म की रिलीज से एक दिन पहले अभिनेता विनोद खन्ना की मृत्यु की वजह से मुंबई में इसका भव्य प्रीमियर रद्द कर दिया गया था।
दरअसल यह फिल्म पूरी तरह अपनी गुणवत्ता और सही ढंग से रिलीज पर टिकी थी, जिसमें इसके निर्माता को सफलता भी मिली। गुणवत्ता के मामले में फिल्म अव्वल नंबर पर रही और इसे अब तक की सबसे बड़ी रिलीज का श्रेय हासिल हुआ। इसे पूरी दुनिया में एक साथ 9,000 से ज्यादा परदों पर रिलीज किया गया, जिसमें से 6,500 परदे भारत में मिले।
जानकारों के अनुसार, ‘बाहुबली’ दिखाती है कि इतने बड़े बजट की फिल्म का पूरा पैसा अगर निर्माण पर ही लगता है तो इसके सकारात्मक परिणाम भी मिलते हैं। दूसरा यह कि ऐसी फिल्म बनाने के लिए अनुशासन बहुत जरूरी है, जो फिल्म निर्माण के हर क्षेत्र में लागू होता है। दक्षिण के मुकाबले यह अनुशासन वाली बात बॉलीवुड को हमेशा से ही परेशान करती रही है। अगर 250 करोड़ रुपये की कोई फिल्म बॉलीवुड में बनती है तो उसमें से 100 करोड़ से अधिक तो कलाकारों की फीस और अन्य टीमटाम पर ही खर्च हो जाते हैं। बाकी बचे 150 करोड़ में आप 250 करोड़ रुपये की भव्यता और गुणवत्ता नहीं ला सकते। बॉलीवुड में इतने बड़े बजट की फिल्म को लेकर पहले से ही सोच लिया जाता है कि अगर फलां बड़ा या नामी स्टार नहीं मिला तो फिल्म बन ही नहीं पाएगी। सुखद बात है कि हिंदी सिनेमा अब इस दुष्प्रवृत्ति से मुक्त हो रहा है। ल्ल
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