उद्योग नगरी - मुरादाबाद परंपरा और आधुनिकता का मेल
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उद्योग नगरी – मुरादाबाद परंपरा और आधुनिकता का मेल

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Jul 17, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 17 Jul 2017 11:13:16


मुरादाबाद का पीतल उद्योग आज भारत की हस्तकला को दुनिया में चमका रहा है। अनुभवी कारीगरों की नक्काशी पीतल की कलाकृतियों को नायाब रूप देती है

   डॉ. विशेष कुमार गुप्ता

पीतल नगरी नाम से दुनिया में विख्यात मुरादाबाद अपने गौरवमय अतीत, उच्च परंपराओं एवं सांस्कृतिक धरोहर के कारण भारतीय इतिहास एवं संस्कृति में अनूठा स्थान रखता है। छठी सदी में यह उत्तर पांचाल का अंग था, जिसका केंद्र अहिच्छत्र था। मध्यकाल में उत्तर प्रदेश की यह नगरी चौपाल नाम से जानी जाती थी। इसकी स्थापना 1632 में हुई थी। इसी वर्ष यहां के राजा रामसुख ने कुमायूं को जीता। संभल के सूबेदार रुस्तम खां दक्खिनी ने चौपाल पर कब्जा कर इसका नाम रुस्तमाबाद रख दिया। बाद में शाहजहां के बेटे मुराद के नाम पर इसका नाम मुरादाबाद पड़ा। इसके अलावा, रामगंगा नदी के किनारे स्थित इस नगरी पर गुप्त वंश के पतन के बाद हर्षवर्धन का आधिपत्य रहा। उस समय इसकी राजधानी कन्नौज थी। हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद कुछ समय तक कन्नौज के राजपूतों का इस पर अधिकार रहा, फिर यह इंद्रप्रस्थ का हिस्सा बन गया। यहां का कांच एवं पीतल व्यवसाय सदियों पुराना है।

पीतल उद्योग
7,000
सालाना निर्यात करोड़ रु.

अर्थव्यवस्था में पीतल शिल्पकला
पीतल उद्योग से जुड़ी लगभग 2,000 इकाइयां पंजीकृत हैं
हस्तशिल्प से जुड़ी पंजीकृत 4,000 इकाइयां हैं
लघु औद्योगिक इकाइयों की संख्या 4,500 है       
निर्यात की कुल पंजीकृत इकाइयां 1,500 हैं

कहा जाता है कि शाहजहां के शासन काल में कुछ शिल्पी परिवार दिल्ली से मुरादाबाद आकर बस गए और रामगंगा नदी की रेतीली मिट्टी से सांचे बनाकर पीतल का शिल्प विकसित किया और धीरे-धीरे यह पीतल व्यवसाय के लिए प्रसिद्ध हो गया। मुगलकाल में पीतल के बर्तनों पर नक्काशी की जाती थी और यहां के आफताबा और फूलदान की बहुत मांग थी। ब्रिटिश काल में इस कला को बहुत बढ़ावा मिला, जिसके कारण पीतल का व्यवसाय काफी बढ़ा। कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश स्थित मुरादाबाद का पीतल उद्योग करीब 350 साल पुराना है।

पीतल पर नक्काशी
18वीं सदी के अंत में कश्मीर, जयपुर और दूसरी जगहों से भी कारीगर यहां आकर बस गए। उन्होंने मुड़ी हुई धातु पर नक्काशी वाले पीतल के उत्पाद बाजार में उतारे। यहां के बिदरी, हुक्का, मुरादाबादी लोटा, गिलास और थाली जैसे परंपरागत बर्तनों में आधुनिक कला का प्रयोग भी दिखता है। खासकर देवी-देवताओं, पशु-पक्षियों की मूर्तियां, प्लांटर तथा वॉल प्लेट के साथ विभिन्न धार्मिक कथानक संबंधी दृश्यों की भी झलक मिलती है। यहां से पीतल के अलावा एल्युमिनियम और शीशे के उत्पादों का भी निर्यात किया जाता है। इस क्षेत्र के विशेषज्ञों की मानें तो पीतल उद्योग के फलने-फूलने में रामगंगा में पाई जाने वाली रेतीली मिट्टी की बहुत बड़ी भूमिका है। इसी मिट्टी से सांचे बनाकर उसमें पीतल की वस्तुओं को ढाला जाता है।
मकबूल हुसैन मुरादाबाद में पहली पीढ़ी के शिल्पकार हैं। उन्हें नक्काशी के लिए 26 जनवरी 1966 को राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने भी उनके शिल्प की प्रशंसा की थी। उनके अलावा, 100 से अधिक पीतल शिल्प कला से जुड़े शिल्पियों को राज्य एवं राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। यहां की 90 फीसदी मुस्लिम आबादी पीतल उद्योग पर निर्भर है। पीतल के उत्पादों के निर्यात पर 50 फीसदी मुस्लिम समुदाय और शेष 50 फीसदी पर पंजाबी एवं वैश्य कारोबारियों का कब्जा है। राज्य की अर्थव्यवस्था में पीतल शिल्प उद्योग का बहुत बड़ा योगदान है। पीतल उद्योग से सालाना करीब 7,000 करोड़ रुपये का निर्यात होता है, जबकि घरेलू कारोबार 3,000 करोड़ रुपये का है। शहर में पीतल की करीब 2,000 इकाइयां पंजीकृत हैं। इसके अलावा, हस्तशिल्प से जुड़ी पंजीकृत इकाइयां 4,000 और लघु औद्योगिक इकाइयों की संख्या करीब 4,500 है। यहां 1,500 निर्यातक इकाइयां पंजीकृत हंै और करीब पांच लाख लोग इस उद्योग से जुड़े हुए हैं।

विदेशों में मांग
मुरादाबाद के नक्काशीदार पीतल उत्पादों का निर्यात खासतौर से अमेरिका, इंग्लैंड, ताइवान, कोरिया, संयुक्त अरब अमीरात, फ्रांस और आॅस्ट्रेलिया आदि में किया जाता है। वहीं, घरेलू बाजार दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नै, बेंगलुरु और चंडीगढ़ तक फैला हुआ है। निर्यात किए जाने वाले उत्पादों में ब्रास एल्युमीनियम, आयरन, जर्मन सिल्वर ग्लास, लकड़ी, सींग एवं हड्डी से निर्मित कलात्मक वस्तुएं प्रमुख हैं। हालांकि भारतीय हस्तशिल्प उत्पादों का निर्यात बढ़ रहा है, लेकिन वैश्विक बाजार में इसकी हिस्सेदारी अभी 5-6 फीसदी से भी कम है। हालांकि मुरादाबाद में छोटे-बड़े 1,500 निर्यातक हैं, लेकिन ग्लोब एक्सपोर्ट कारपोरेशन, ग्लोबल मेटल हैंडीक्राफ्ट, नोदी एक्सपोर्ट, सीएल गुप्ता ब्रास एक्सपोर्ट, पैरामाउंट ट्रेडिंग कारपोरेशन, स्टॉलवाटर्स एक्सपोर्ट, अली ब्रदर्स, दीवान संस, लोहिया ब्रास एक्सपोर्ट, डिजायनको, आरआर इंटरनेशनल जैसे कुछ निर्यातकों ने विश्व में अपनी पहचान बनाई है।
यहां निर्यातकों से जुड़ी दो एसोसिएशन हैं। इनमें एक मुरादाबाद हैंडीक्राफ्ट एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन है। इसी से जुड़ी युवा निर्यातकों की एक संस्था ‘यश’ 2010 में गठित हुई।  मुरादाबाद के बड़े निर्यातक नवेदुर्रहमान हैंडीक्राफ्ट के अध्यक्ष हैं। हालांकि इन संगठनों की स्थापना निर्यातकों की समस्याओं को सरकार के समक्ष रखने और उनकी समस्याओं का समाधान करने के लिए की गई है। लेकिन इसके इतर शहर के विकास में भी ये अपना योगदान दे रही हैं। जैसे- पौधारोपण, प्राकृतिक आपदाओं और स्वच्छता अभियान चलाकर शहर एवं इसके आसपास की मलिन बस्तियों में जागरूकता के साथ शौचालय निर्माण में भी सरकार का सहयोग कर रही हैं। इसके अलावा, दो अन्य संस्थाएं पीतल उद्योग से जुड़े कारीगरों के कल्याण के लिए कार्य कर रही हैं।

100 साल पुराना औद्योगिक घराना
शहर के शीर्ष निर्यातक सीएल गुप्ता एक्सपोटर््स लि. के अजय गुप्ता का कारोबार करीब 100 पुराना है। उनके दादा सीएल गुप्ता ने बहुत छोटे स्तर पर यह काम शुरू किया था। उस समय उनकी फर्म पीतल और स्टील के बर्तन, आफताबा, फूलदान के साथ कुछ फैन्सी आइटम भी बनाती थी। उस समय कंपनी का सालाना कारोबार पांच लाख रुपये का था। 1970 में कंपनी ने निर्यात शुरू किया। अजय गुप्ता बताते हैं कि 1970 में दो-तीन अमेरिकी ग्राहक सैम्पल लेकर मुरादाबाद आए और आॅर्डर दे गए। कंपनी ने उनकी मांग के अनुसार पीतल के उत्पाद बनाए और उन्हें सौंप दिया। इसी के साथ हमने निर्यात के क्षेत्र में कदम रखा। इसके बाद से हम लगातार अमेरिका, यूरोप, इंग्लैंड, जर्मनी आदि देशों में ब्रास, मेटल, लकड़ी एवं कांच के उत्पादों का निर्यात कर रहे हैं। वे आगे बताते हैं कि कंपनी का सालाना कारोबार अब 400 करोड़ से अधिक हो गया है। पूरी दुनिया में सीएल गुप्ता एंड सन्स का निर्यात के क्षत्र में बहुत प्रतिष्ठित स्थान है। कंपनी को देश में सर्वोच्च गुणवत्ता से परिपूर्ण एवं मानक के अनुसार कई निर्यात पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।
इसी तरह, ग्लोब एक्सपोर्ट्स के मालिक सतपाल पुंगला भी प्रसिद्ध निर्यातक हैं। उनके पूर्वज पंजाब प्रांत के लायलपुर (अब पाकिस्तान में) से आकर मुरादाबाद में बसे। 1976 में उन्होंने तीस हजार रुपये से पीतल का कारोबार शुरू किया। शुरुआत में कंपनी का सालाना कारोबार पचास हजार रुपये था। लेकिन अथक मेहनत की बदौलत उन्होंने कंपनी को नए मुकाम पर पहुंचाया। दो दशकों में उन्होंने कंपनी के सालाना कारोबार को 50 करोड़ रुपये के पार पहुंचा दिया। 1998 में उन्हें निर्यात के क्षेत्र में राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। इसके अलावा, 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें निर्यात के क्षेत्र में उच्च कोटि का पुरस्कार दिया। सतपाल पुंगला शहर के ऐसे पहले निर्यातक हैं जिसने 1978 में पीतल के साथ-साथ कांच के उत्पादों का भी निर्यात शुरू किया। अभी उनकी कंपनी का सालाना कारोबार 100 करोड़ से अधिक है। इनकी कंपनी द्वारा निर्मित पीतल एवं कांच के उत्पादों की अमेरिका और यूरोप में बहुत मांग है। इसके अलावा 1993 से पुंगला लगातार जर्मनी में अपने उत्पादों की प्रदर्शनी भी लगाते आ रहे हैं।
शहर के युवा निर्यातक नीरज खन्ना जो ‘नोदी एक्सपोर्ट’ का संचालन करते हैं। इन्होंने भी निर्यात कारोबार का प्रशिक्षण अपने पिता विनोद खन्ना से लिया। आज इनका कुल कारोबार करीब 50 करोड़ रुपये का है। इनके फर्म द्वारा निर्मित उत्पादों का अमेरिका, इंग्लैंड, यूरोप, हॉलैंड और आॅस्ट्रेलिया आदि देशों में निर्यात होता है। इनकी फर्म मुख्य रूप से बाउल, लोशन बोतल, टिशू होल्डर, टेबल टॉप, आउटडोर एवं इनडोर फर्नीचर, गार्डन आउटडोर और इनडोर इत्यादि का उत्पादन करती है जिसकी दुनियाभर में मांग है। बदलते समय के साथ इन्होंने आधुनिक मशीनें लगाईं और उत्पादन को बढ़ाया। खास बात यह कि नीरज खन्ना की कंपनी अपने कर्मचारियों के हितों का पूरा ख्याल रखती है। इसके अलावा, लोहिया ब्रास, डिजाइनको, दीवान संस जैसी दर्जनों निर्यातक कंपनियां हैं, जो मुरादाबाद के साथ देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है।  

अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं उद्योग
मुरादाबाद को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने में पीतल उद्योग का महत्वपूर्ण भूमिका है। यह उद्योग शहर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, इसलिए इस उद्योग में आने वाला उतार-चढ़ाव शहर की समस्त गतिविधियों को प्रभावित करता है। अगर मुरादाबाद की अर्थव्यवस्था से पीतल उद्योग को निकाल दिया जाए तो इसका कोई वजूद ही नहीं रह जाएगा। 12 लाख की आबादी वाली इस उद्योग नगरी में करीब 60 फीसदी आबादी हिंदुओं की है, जबकि शेष 40 फीसदी आबादी मुसलमानों की है। लिहाजा, यहां का निर्यात कारोबार दोनों समुदायों के बीच आधा-आधा बंटा हुआ है। दूसरी ओर, पीतल उद्योग को गति देने वाले अधिकांश कारीगर मुसलमान हैं। निर्यातकों के अनुसार, पिछली सरकारों के मुकाबले केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद इस उद्योग के बेहतर होने की संभावनाएं बढ़ी हैं। उद्योगपतियों की सबसे बड़ी समस्या बिजली की किल्लत और भ्रष्टाचार को लेकर है। केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में लागू जीएसटी को लेकर भी कुछ निर्यातकों के सवाल हैं।

प्रशिक्षण के लिए तकनीकी संस्थान नहीं
मुरादाबाद और इसके आसपास तीन विश्वविद्यालय एवं दर्जनों तकनीकी संस्थान हैं। लेकिन इन संस्थानों में पीतल उद्योग से जुड़े किसी भी पाठ्यक्रम को शामिल नहीं किया गया है। यहां के उद्योगपतियों का कहना है कि कई बार इस मुद्दे पर केंद्र सरकार के अधिकारियों से बात की गई, लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकल सका है। कारोबारियों की सबसे बड़ी शिकायत यह है कि सरकार की ओर से उन्हें किसी भी प्रकार की सहायता नहीं मिल रही है। अभी भी अधिकांश कारोबारी परंपरागत तरीकों से ही उत्पादन करते हैं। यहां नवोन्मेष की बहुत कमी है। इसके अलावा, ब्रास डिजाइनिंग का प्रशिक्षण संस्थान नहीं होने के कारण प्रशिक्षित कारीगरों की भी समस्या होती है। साथ ही, उत्पाद की गुणवत्ता मानक तय करने के लिए भी कोई तकनीकी संस्थान नहीं है।

बुनियादी ढांचों की कमी
शहर में शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है। कारोबारियों का कहना है कि निर्यातकों और कारीगरों के कल्याण से जुड़ी संस्थाएं अस्तित्व में तो हैं, परन्तु वे उनका कुछ भी भला नहीं कर पा रही हैं। यहां तक कि देश की राजधानी दिल्ली में स्थित एक्सपोर्ट प्रमोशन काउसिंल जैसी संस्था भी अपना भला करने के अलावा निर्यातकों का खास भला नहीं कर पा रही हैं। सात हजार करोड़ रुपये विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाला यह औद्योगिक नगर इस बात को लेकर परेशान है कि इस उद्योग को बढ़ावा देने एवं रोजगार बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय स्तर का बड़ा तकनीकी संस्थान कैसे खोला जाए। इस संस्थान में शोध कार्य की व्यवस्था हो जो उत्पादों को नया रूप देने में सहायता प्रदान करे। इसके अलावा, भ्रष्टाचार पर भी रोक लगाने की जरूरत है। यहां के उद्योगों में काम करने वाले लोगों के लिए अस्पताल खोले जाएं ताकि उन्हें स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भटकना नहीं पड़े और इलाज भी उनकी पहुंच से बाहर न हो। यदि औद्योगिक इलाकों में आधारभूत सुविधाएं मुहैया कराई जाएं तो इससे उद्योगों में काम करने वाले कारीगरों को बहुत राहत मिलेगी। यदि वे शिक्षित और स्वस्थ होंगे तभी तो अर्थव्यवस्था में अपना पूरा योगदान देंगे। सरकार अगर इन समस्याओं का समाधान कर दे तो भविष्य में कारोबार अपेक्षा के अनुरूप बढ़ाने की भरपूर संभावनाएं हैं। 

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