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भारत में उपभोक्ता सामग्री बाजार में पतंजलि के कारोबारी आंकड़ों ने बड़ी-बड़ी बहुराष्टÑीय कंपनियों को बेचैन कर दिया है। इन कंपनियों के खिलाफ लड़ाई लड़ते-लड़ते यह स्वदेशी ब्रांड अब दूसरे देशों में भी कारोबार कर रहा है और उसने आगे विस्तार का इरादा जताया है। पतंजलि खुद को दूसरों से अलग दिखाने का दावा भी कर रही है। योग, आयुर्वेद और रोजमर्रा इस्तेमाल के उत्पादों के बाद अब यह परिधानों के क्षेत्र में भी हाथ आजमाने की तैयारी में है। इसमें पतंजलि के लिए क्या संभावनाएं हो सकती हैं और उनके दावों में कितना दम है, इस पर बिजनेस स्टैंडर्ड के संपादकीय निदेशक ए.के. भट्टाचार्य से अजय विद्युत की बातचीत के कुछ अंश-
बहुराष्टÑीय कंपनियों को देश में चुनौती कैसे दे पा रहा है पतंजलि?
पहली बात यह है कि बहुराष्टÑीय कंपनियों का बाजार या लक्षित क्षेत्र भारत नहीं है। वह उनका मुख्य लक्ष्य नहीं है। हालांकि वे वहां जाने की कोशिश जरूर कर रहे हैं और जा भी रहे हैं। लेकिन अभी भी उनकी सारी रणनीति और योजनाएं बड़े और छोटे शहरों को ही ध्यान में रखकर ही बनाई जा रही हैं। मैं समझता हूं कि पतंजलि की पहुंच ग्रामीण भारत में तो विस्तृत रूप से है ही, शहरी भारत में भी मजबूती से अपनी पकड़ बना चुकी है। योग और आयुर्वेद के प्रति आमजन और शहरों के लोगों में जो आग्रह है, उसका पतंजलि ने बहुत अच्छा इस्तेमाल किया है। बाबा रामदेव भारतीयता, अच्छी सेहत और जीवनशैली की बात करते हैं। उनके उत्पाद भी इसी आधार पर बाजार में अपनी मौजूदगी बनाए हुए हैं। अब शहरों के लोग भी स्वास्थ्य चाहते हैं और चाहते हैं, वे कुछ ऐसी चीज पिएं या लगाएं जो प्रकृति और आयुर्वेद से जुड़ी हो। इसे देखते हुए लगता है कि पतंजलि उत्पादों की मांग और बिक्री बढ़ने की पूरी संभावनाएं हैं और वह बढ़ेगी।
एक तो उनका बाजार बहुत बड़ा है और दूसरे आयुर्वेद, प्रकृति से जुड़े और भारतीय उत्पाद की अपील भारतीय जनमानस में काफी काम कर रही है और आगे कुछ समय तक कारगर रणनीति बनी रह सकती है। पतंजलि ने बड़े शहरों और मॉल्स तक पहुंच बना ली है और वह भारत के शहरी बाजार पर पकड़ बनाने की दिशा में काफी निर्णायक चरण में है। इसके साथ ग्रामीण भारत उनका किला पहले से ही बना हुआ है। तो उनकी संभावनाएं अच्छी हैं बहुराष्टÑीय कंपनियों को टक्कर देने के मामले में। बहुराष्टÑीय कंपनियों के पास शहरी भारत तो है, लेकिन ग्रामीण भारत में पहुंचने की उनकी उतनी अच्छी तैयारी नहीं है।
दूसरी बात, जो हम देख रहे हैं कि इस वित्तीय वर्ष में पतंजलि उत्पाद के राजस्व या कारोबार में जो सौ प्रतिशत की वृद्धि हो रही है और आगे भी होने वाली है, वह तब तक ही चलेगी जब तक हमारे देश में नियम-कायदे अच्छे नहीं हो जाते। देश में रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजों जिसे हम एफएमएनसी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) भी कहते हैं, को लेकर नियम-कानून काफी शिथिल हैं। मेरे ख्याल से इस शिथिलता को बहुराष्टÑीय कंपनियां और पतंजलि उत्पाद भी एक अवसर के रूप में लेते हैं। इसलिए ज्यों-ज्यों पतंजलि के उत्पाद बढ़ते जाएंगे, उनका राजस्व भी बढ़ेगा, बाजार भी बढेÞगा। जो भी नियम-कानून हैं वे उनके दायरे में आएंगे। उस दायरे में आने के बाद पतंजलि उत्पादों को भी उन्हीं नियमों, कानूनी प्रावधानों और प्रतिस्पर्धा से गुजरना पड़ेगा, जिनसे बहुराष्टÑीय कंपनियों के उत्पाद गुजरते हैं। दो साल तक तो आसानी से पतंजलि उत्पादों की मांग और बिक्री बढ़ेगी। पर ज्यों ही वे बड़े आकार में आएंगे, उनकी पूरी प्रक्रिया, जिस तरह से वे चीजें बनाते हैं, वह सब सूक्ष्मता से जांच में आ जाएगा। तब देखते हैं कि क्या होता है? हालांकि संभावना यही है कि वे कामयाब हो सकेंगे।
ल्ल पतंजलि बने-बनाए वस्त्र उद्योग के क्षेत्र में भी आ रही है। स्वामी रामदेव ने कहा कि हम केवल जीन्स ही नहीं ला रहे बल्कि पुरुषों और महिलाओं के लिए तमाम चीजें ला रहे हैं, जिसमें जंप सूट, अंत:वस्त्र और जो भी चीजें वे आज की आधुनिक जीवनशैली में पहन रहे हैं, वो सब शामिल हैं। वे इसे दूसरे परिधानों से अलग ब्रांड बनाने, उसे प्रकृति के रंगों से जोड़ने और कृत्रिम की बजाय प्राकृतिक रंग इस्तेमाल करने की बात कहते हैं। इस नए कार्य में वे कितना कामयाब हो सकते हैं? उनके अब तक किए काम से यह बिल्कुल अलग-सा है?
भारतीयता का एक स्वत:स्फूर्त आग्रह देश के लोगों में इस समय जोरों पर है। वे उसी को इस्तेमाल कर रहे हैं। उसी को ध्यान में रखकर उन्होंने पूरी योजना बनाई है। लेकिन इस सबको करने के लिए उनका जो अब तक का नेटवर्क है, उसे उन्हें बहुत व्यापक बनाना पड़ेगा, काफी नया सोचना करना पड़ेगा। हां, इसमें कोई संदेह नहीं है कि वे ऐसा नहीं कर सकेंगे। क्यों नहीं कर सकेंगे? आज बाजार में उनकी प्रभावी उपस्थिति है। वे इतने आयुर्वेद और प्रकृति आधारित उत्पाद बना चुके हैं। कल को अगर वे तैयार वस्त्रों के क्षेत्र में आते हैं तो मुझे तो ऐसा नहीं लगता कि वे नहीं आ सकेंगे। हमारे देश में लोगों की कमी नहीं है, कल्पनाशीलता और अनुसंधानों की कमी नहीं है, कुशलता की कमी नहीं है। इसमें दो राय नहीं है कि वे उसी भारतीयता का उपयोग कर अपनी नई योजनाओं, व्यापार, कारोबार को और बढ़ाएंगे। हालांकि यह नया क्षेत्र है लेकिन मैं यह नहीं कहूंगा कि इसे वे अच्छे से नहीं कर सकेंगे, बिल्कुल कर सकेंगे।
पतंजलि भी बहुराष्टÑीय कंपनी बन रही है। नेपाल में कारोबार शुरू हो चुका है। बाबा रामदेव का कहना है कि हम कहीं केवल लाभ कमाने नहीं जा रहे। वहां से तीन-चार फीसदी लाभ ही भारत लाएंगे। बाकी पैसा वहीं विकास और लोगों का जीवनस्तर बेहतर बनाने पर खर्च करेंगे। इससे उन देशों की अर्थव्यवस्था में बेहतरी आएगी। क्या ऐसा मुमकिन है?
कोई भी बहुराष्टÑीय कंपनी दान-पुण्य के लिए कारोबार नहीं करती। अगर हमारे यहां बहुराष्टÑीय कंपनियां कारोबार कर रही हैं और ज्यादा लाभ कमा रही हैं या मुनाफाखोरी कर रही हैं तो मैं मानूंगा कि इसमें उनकी गलती तो है, लेकिन हमारे देश के नियामकों की भी गलती है कि वे उनको मुनाफाखोरी करने की अनुमति दे रहे हैं। दूसरी बात, अगर पतंजलि उत्पाद बहुराष्टÑीय कंपनी के तौर पर बाहर देश जाएं और यह सोचें कि वे अपने लाभ को वहीं इस्तेमाल करेंगे तो यह कारोबार का उनका अलग तरीका है। यह भी व्यवहार्य हो सकता है। उनकी लागत और बिक्री का अंतर अगर कम है तो वह अपने पूरे लाभ को हरिद्वार न लाकर नेपाल में ही अपनी मौजूदगी बढ़ाने में और वहां के लोगों के लिए उसका इस्तेमाल करें तो इसमें कोई कठिनाई नहीं है।
क्या इससे उस देश की अर्थव्यवस्था पर कुछ सकारात्मक असर पड़ेगा?
हां, थोड़ा बहुत असर पड़ेगा। उनके यहां कुशलता बढ़ेगी, नौकरियां बढ़ेंगी, उत्पादों की उपलब्धता बढ़ जाएगी तो इस सबसे उस देश की अर्थव्यवस्था पर एक सकारात्मक प्रभाव तो जरूर होगा। आर्थिक गतिविधियों में बढ़ोतरी होगी तो यह उस देश के लिए भी बहुत अच्छा होगा।
इसका पतंजलि की सेहत पर भी कोई अच्छा असर पड़ सकता है?
पतंजलि यह सोच रही है कि विकासशील देशों का एशियाई बाजार पतंजलि के योग का बड़ा बाजार भी है। ऐसी जगहों पर बाजार बनाना मेरी समझ से एक व्यापारिक रणनीति है। बाबा रामदेव इस पर वहां काम कर सकते हैं। अगर वे केवल चार-पांच फीसदी लाभ ही भारत लाते हैं तो वहां उनकी कंपनी की लाभप्रदता और बढ़ जाएगी। फिर वे उस देश में और भी तरक्की करेंगे। कुल मिलाकर पतंजलि के लाभ और राजस्व का आकार काफी बढ़ जाएगा। ल्ल
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