|
केरल में राष्ट्रवादी संगठनों से जुड़े लोगों की हत्या और कम्युनिस्ट अत्याचार के विरुद्ध मार्च के पहले सप्ताह में देशभर में आम लोगों ने बुलंद की आवाज। लोगों ने कहा कि दिल्ली में असिहष्णुता की बात करने वालों को केरल में लाल आतंक का खूनी खेल क्यों नहीं दिख रहा?
लोकेन्द्र सिंह
केरल में पिछले 50 वर्ष से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्र सेविका समिति जैसे संगठनों के कार्यकर्ताओं और स्वयंसेवकों की हत्या की जा रही है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता और कार्यकर्ता नृशंसता से अमानवीय घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। दस माह पहले केरल में माकपा की सत्ता आने के बाद से लाल आतंक में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। मई, 2016 से अब तक 20 से अधिक स्वयंसेवकों की हत्या माकपा के गुण्डों ने की है। राज्य के कन्नूर जिले में स्थितियां और भी भयावह हैं। राज्य के मुख्यमंत्री पी़ विजयन सहित माकपा पोलित ब्यूरो के अधिकतम सदस्य कन्नूर जिले से ही आते हैं। लेकिन, हैरानी की बात है कि देश का तथाकथित बौद्धिक जगत और मीडिया का बहुसंख्यक वर्ग इस आतंक पर खामोश है। दिल्ली से उठते अभिव्यक्ति की आजादी और असहिष्णुता के नारे केरल क्यों नहीं पहुंचते? राष्ट्रभक्त लोगों के लहू से लाल हो रही देवभूमि क्यों किसी को दिखाई नहीं दे रही है?
तथाकथित प्रबुद्ध वर्ग और मीडिया की चुप्पी के बीच केरल में भयंकर रूप धारण कर चुके लाल आतंक के खिलाफ अब देश खड़ा हो रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आह्वान पर देशभर में नागरिक अधिकार, जनाधिकार और मानव अधिकार मंचों के तहत आम समाज एकजुट होकर लाल आतंक के खिलाफ जनाक्रोश व्यक्त कर रहा है। मार्च के पहले सप्ताह में एक, दो और तीन तारीख को देश के प्रमुख स्थानों पर समाज के संवेदनशील नागरिक बंधुओं ने 'संवेदना मार्च' निकाले और धरने आयोजित किए।
केरल प्रांत से आने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख श्री जे़ नंदकुमार ने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में आयोजित धरने में मीडिया से आह्वान किया कि वह केरल आए और कम्युनिस्टों के वास्तविक चरित्र से देश-दुनिया को अवगत कराए। केरल में लोकतंत्र की हत्या हो रही है। कम्युनिस्ट विचारकों और उनके समर्थकों ने देश में एक झूठ फैलाया है कि केरल में जो हिंसा है वह माकपा विरुद्ध संघ है, लेकिन यह सच नहीं है। माकपा के कार्यकर्ता सिर्फ संघ और उसके आनुषांगिक संगठनों के स्वयंसेवकों की ही हत्या नहीं कर रहे, बल्कि वे उस प्रत्येक आवाज को कुचलना चाहते हैं, जो उनसे थोड़ी भी असहमति रखती है। केरल में जो हिंसा है, वह माकपा विरुद्ध गैर-माकपा है। माकपा के गुण्डे भाकपा के कार्यकर्ताओं को भी नहीं छोड़ते हैं। उन्होंने बताया कि केरल में माकपा ने 'पार्टी ग्राम' घोषित किए हैं। इन गांवों में एक भी व्यक्ति मार्क्सवादी विचारधारा का विरोधी नहीं हो सकता। यदि किसी ने मार्क्सवादी विचारधारा से इतर जाने की कोशिश भी की, तो उसकी हत्या कर दी जाती है। माकपा के गुण्डे महिलाओं, बुजुर्गों और मासूम बच्चों पर भी दया नहीं दिखाते हैं। उन्होंने बताया कि कोझीकोड के पलक्कम में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता के समूचे परिवार को 28 दिसंबर को बंधक बनाकर जला दिया गया। मल्लपुरम जिले में एक स्वयंसेवक के बच्चे को उसकी मां की गोद से छीनकर सड़क पर फेंक दिया। कन्नूर में एक नौजवान को उसी के मां के सामने चाकुओं से गोद कर मार दिया गया। ऐसी अनेक क्रूरतम घटनाओं को पिछले दस माह में माकपा के गुण्डों ने अंजाम दिया है।
मई 2016 में केरल में माकपा की सरकार आने के बाद 8 माह में माकपा के विरोधी संगठनों के कुल 18 कार्यकर्ताओं की हत्या हुई। इनमें संघ के 12 स्वयंसेवक हैं। मुख्यमंत्री के संरक्षण में माकपा के गुंडे हिंसा कर रहे हैं। हिंसा के कारण भय का वातावरण निर्माण हुआ है। कम्युनिस्ट जनतांत्रिक मोर्चा जब भी सत्ता में आया है, तब माकपा ने गृह मंत्रालय अपने पास ही रखा है। इसने अपने कार्यकर्ताओं को संघ की शाखाओं एवं स्वयंसेवकों पर आक्रमण करने की खुली छूट दी है।
– जे़ नंदकुमार, अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
वर्ष 1970 में पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं ने वर्धमान जिले में दो नौजवानों की हत्या कर उनके रक्त में चावल पकाकर उनकी मां को खिलाए, जिससे वह मां पागल होकर बिलखते-बिलखते मर गई। इससे बड़ी अमानवीय हरकत और क्या हो सकती है? इनका मुकाबला युक्ति और बुद्धि से करना होगा। – रामेश्वर मिश्र 'पंकज', वरिष्ठ साहित्यकार
संघ के आह्वान पर आयोजित धरना-प्रदर्शनों से देशभर में कम्युनिस्टों का दोगला चरित्र उजागर हुआ है। आम समाज तक यह बात पहुंची है कि दिल्ली में सहिष्णुता-असहिष्णुता पर विमर्श करने वाले लोग केरल की हिंसा पर बोलने की हिम्मत क्यों नहीं करते हैं? जनाक्रोश सभाओं से यह भी संदेश गया है कि कैसे कम्युनिस्ट विचारधारा की सरकारें अपने वैचारिक विरोधियों की हत्या करती हैं। भारत का संविधान हमें अपनी रुचि के अनुसार विचारधारा का चयन करने एवं उसमें सक्रिय सहभाग करने का मूलभूत अधिकार प्रदान करता है, लेकिन कम्युनिस्ट गुण्डे केरल में इस अधिकार का न केवल हनन कर रहे हैं, बल्कि देशभक्त नागरिकों की हत्या कर रहे हैं। कम्युनिस्ट सरकार के संरक्षण में केरल में लगी लाल आग से सबसे अधिक वंचित और पिछड़े वर्ग के लोग हताहत हुए हैं, लेकिन हैरानी की बात है कि देश के वंचित विमर्श के ठेकेदार खामोश हैं। मानवाधिकार के झंडाबरदार भी कहीं गुम हो गए हैं। माकपा से असहमत विचारधारा को कुचला जा रहा है लेकिन असहिष्णुता का राग अलापने वाले समूह अजीब किस्म की चुप्पी साधकर बैठे हुए हैं। केरल में वैचारिक असहमतियों के स्वर को जिस तरह कुचला जा रहा है, वह एक बार फिर प्रमाणित करता है कि कम्युनिस्टों का इतिहास रक्तरंजित रहा है। कम्युनिस्ट जहां-जहां शक्तिशाली हुए, उन्होंने लोगों का खून बहाया है। केरल में भी कत्लेआम कर रहे हैं। केरल में माकपा से असहमति रखने वाले निदार्ेष लोगों की हत्या का दौर 1969 से प्रारंभ हुआ है। तब से लेकर अब तक माकपा के गुण्डे राष्ट्रीय विचारधारा से संबद्ध 300 से अधिक स्वयंसेवकों की हत्या कर चुके हैं। श्री नंदकुमार ने बताया कि 1948 और 1952 में केरल में माकपा के कार्यकर्ता संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी पर भी जानलेवा हमला कर चुके हैं।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय विचारधारा के कार्यकर्ता शांति और सद्भाव में विश्वास रखते हैं, इसीलिए इतना जुल्म सह रहे हैं। यदि ये लोग पलटवार करना प्रारंभ कर दें, तब देश में कम्युनिस्टों को छिपने के लिए भी स्थान नहीं मिलेगा। उन्होंने बताया कि लाल हिंसा को रोकने के लिए संघ, भाजपा और नागरिक मंडल केरल के मुख्यमंत्री पी़ विजयन से निवेदन कर चुका है, लेकिन मुख्यमंत्री कठोर कदम उठाने की जगह अराजक तत्वों का संरक्षण करते ही प्रतीत हो रहे हैं। अब तक शांति व्यवस्था बनाने के लिए उनकी ओर से कोई सकारात्मक पहल नहीं की गई है। संघ के प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भी इस संबंध में ज्ञापन सौंपा है। देश के गृह मंत्रालय को भी केरल की वस्तुस्थिति से अवगत कराया जा चुका है।
टिप्पणियाँ