डॉ. प्रणव पंड्या सनातन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का मणिकांचन योग
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डॉ. प्रणव पंड्या सनातन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का मणिकांचन योग

by
Mar 3, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 03 Mar 2017 10:11:56

संचालक    :    गायत्री परिवार, शांति कुंज, हरिद्वार
मुख्यालय    :    हरिद्वार
मूलमंत्र    :    गायत्री मंत्र
उद्देश्य    :     युग निर्माण

डॉ. प्रणव पंड्या ज्ञान-विज्ञान और  अध्यात्म का अनूठा संगम हैं। मेडिसिन में स्वर्ण पदक लेकर एमडी करने के बाद अध्यात्म के मार्ग पर चलने का निर्णय कोई विरला ही ले पाता है। डॉ. पंड्या अपने जीवन के इस परिवर्तन को अपने गुरु स्वर्गीय श्री राम शर्मा आचार्य की कृपा मानते हैं। वे अपने को सौभाग्यशाली मानते हैं कि उन्हें सद्गुरु मिले, जिन्होंने ज्ञान की राह दिखायी। उन्हें यह बताने में भी कतई संकोच नहीं है कि गुरु की शरण में आने से पहले वे केवल शिक्षित थे, ज्ञान तो गुरु ने दिया। वे बताते हैं, ‘‘जब मैं हरिद्वार आया तो अपने एमडी होने का गुमान और अंहकार साथ ले कर आया था। मेरे गुरु ने मुझे बताया, तुम्हारे पास केवल शिक्षा है, ज्ञान नहीं। ज्ञान पाना है तो वेद पढ़ो, उपनिषद् पढ़ो, जीवन का तत्व वहीं मिलेगा। मेरे गुरु ने मेरे अहंकार को कुचलकर ज्ञान की ज्योति जलायी। मुझे तब समझ आया कि किताबी जानकारी और ज्ञान में कितना अंतर है।’’
प्रणव पंड्या गायत्री परिवार, शांतिकुंज के संचालक हैं। आज से 39 साल पहले वे शांतिकुंज के युग निर्माण मिशन में ब्रह्मवर्चस  अनुसंधान  केंद्र के निदेशक बन कर आए थे। उन्हें भी यह आभास नहीं था कि यह नौकरी उनके जीवन को नयी दिशा दे देगी, ज्ञान, भक्ति और युगनिर्माण की राह पर ले जाएगी। उन्होंने आयुर्वेद, मनोविज्ञान, योग के लाभ पर शोध किया। प्राणायाम और ध्यान के मन, मस्तिष्क और शरीर पर प्रभाव पर भी अनुसंधान किया। उन्होंने अपने गुरुदेव के सानिध्य में 1978 से 1990 तक विज्ञान, योग, मन, आध्यात्म पर गहन शोध किया। अनेक किताबें लिखीं। गुरु की परीक्षा में जब वे पूरी तरह उत्तीर्ण हो गए तो गुरुदेव ने उन्हें गायत्री परिवार का वैश्विक प्रमुख नियुक्त किया। यह भी एक संयोग ही रहा कि आचार्य श्री राम शर्मा की पुत्री उनकी जीवनसंगिनी बनीं।
गुरु के ध्येय को निरंतर आगे बढ़ाते हुए उन्होंने दुनिया के 80 देशों में गायत्री परिवार की शाखाएं स्थापित कीं। डॉ. पंड्या ने भारतीयों द्वारा विस्मृत कर दिए गए विज्ञान और अध्यात्म के आपसी संबंध को एक बार फिर अपने शोध से प्रमाणित किया। 1993 में उन्होंने विश्व धर्म संसद में भारतीय संस्कृति के वैज्ञानिक पक्ष को प्रस्तुत किया। इससे पहले 1992 में उन्होंने यू.के. में हाऊस आॅफ लाडर््स और हाऊस आॅफ कॉमन के संयुक्त सत्र को संबोधित किया। उन्होंने वहां लाखों युवाओं को साधना और उपासना के पथ पर चलने को प्रेरित किया।
शांति कुंज का मूल मंत्र है प्राचीन वैदिक गायत्री मंत्र। आज पूरी दुनिया में गायत्री परिवार के 100 करोड़ से ज्यादा सदस्य हैं। परिवार की पत्रिका ‘अखंड ज्योति’ के 20 लाख से ज्यादा ग्राहक हैं। डॉ. पंड्या ने भारत की प्राचीन संस्कृति के अध्ययन और प्रचार-प्रसार के लिए 2008 में देव संस्कृति विश्वविद्यालय की स्थापना की। उत्तराखंड सरकार के विशेष अध्यादेश के तहत यह एक स्वायत्त विश्वविद्यालय है। किताबी शिक्षा के साथ जीवनोपयोगी ज्ञान और मूल्यों पर आधारित शिक्षा देने के लिए स्थापित किया गया यह विश्वविद्यालय एक सफल प्रयोग साबित हो रहा है।
डॉ. प्रणव पंड्या से देश का युवा जुड़ रहा है और यही युग परिवर्तन का प्रतीक है। उनका मानना है भारत विश्वगुरु था और फिर से एक बार जगद्गुरु बनने की ओर अग्रसर हैं। उनके गंगा प्रज्ञा मंडल से हजारों युवा जुड़े हैं। उनका गंगोत्री से गंगा सागर तक गंगा और गंगा के आसपास के 200 मीटर इलाके को साफ रखने का अभियान चार वर्ष से चल रहा है जिसे 2026 तक पूरा करने का लक्ष्य है।
पूरी दुनिया में करोड़ों लोगों को सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने वाले डॉ. पंड्या अपने गुरु की महिमा का बखान करते हैं, उनके प्रति कृतज्ञ हैं, उनके ऋणी हैं, लेकिन स्वयं को गुरु नहीं मानते। वे कहते हैं-गुरु को ईश्वर सीधे नियुक्त करता है। सद्गुरु पाना ईश्वर को पाने से भी कहीं बढ़ कर है। जिस पर गुरु की कृपा है वही छत्रपति शिवाजी, स्वामी विवेकानंद बन सकता है। अच्छा गुरु अपने शिष्य को कुम्हार की तरह बाहर से ठोकता-पीटता है, लेकिन मिट्टी का बर्तन ना टूट जाए और आकार ना बिगड़ जाए, इसलिए एक हाथ से अंदर से सहारा भी देता है, व्यक्तित्व निखार देता है, आदर्श मानव बना देता है। भारत की महान गुरु-शिष्य परंपरा का महत्व कभी कम नहीं होगा। केवल भारत ही ऐसा देश है जिसमें यह परंपरा है। डॉ. पण्ड्या के नेतृत्व और गुरु श्री राम शर्मा आचार्य के आशीर्वाद से शांति कुंज आध्यात्मिकता के मार्ग का प्रचार-प्रसार कर रहा है।      ल्ल

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