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उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा की ऐतिहासिक जीत का सबसे बड़ा आधार रहा लोगों का भरोसा। तो मणिपुर और गोवा में भी सरकार बना भाजपा ने भारतीय राजनीति में एक और इतिहास रचा। चुनाव के नतीजों से जाति और मजहब की राजनीति करने वाले दलों को जहां तगड़ा झटका लगा, वहीं क्षेत्रीय दलों के बजाए मतदाताओं ने राष्टÑीय दलों पर भरोसा जताया
मनोज वर्मा
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर की आंबेडकर भीम कॉलोनी में शिव प्रकाश का परिवार रहता है। शिव प्रकाश दिहाड़ी मजदूर हैं। वे आर्थिक कारणों से चाह कर भी गैस नहीं खरीद पा रहे थे, लिहाजा खाना चूल्हे या स्टोव पर ही बनता था। लेकिन अक्तूबर 2016 में जब उन्हें यह पता चला कि मोदी सरकार की उज्जवला योजना के तहत उन्हें गैस कनेक्शन मिला है तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। पहली बार दीपावली पर घर धुएं से मुक्त हुआ, क्योंकि खाना गैस पर बना था। उस दीपावली पर ही उनकी पत्नी सविता ने तय कर लिया था कि इस बार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में वे मोदी को ही वोट देंगी और उन्होंने भाजपा को वोट दिया भी। और जब 11 मार्च, 2017 को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव परिणाम सामने आए तो सविता ने अपने पति को बताया कि ‘‘मैंने कहा था ना कि यूपी में मोदी की सरकार बनेगी।’’ सविता की तरह आंबेडकर भीम कॉलोनी के कई और घरों में भी भाजपा की जीत का जश्न मना तो उसका सबसे बड़ा आधार था भरोसा। भरोसा इस बात का कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गरीब के साथ हैं। भरोसा इस बात का कि मोदी गांव-किसान-गरीब के लिए कुछ करना चाहते हैं। भरोसा इस बात का कि प्रधानमंत्री ईमानदार इसलिए बेईमानों को पकड़ रहे हैं। और सबसे बड़ा भरोसा इस बात का कि प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार ‘सबका साथ सबका विकास’ चाहते हैं। लिहाजा उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भारी बहुमत से चुनाव जीतने वाली भाजपा ने मणिपुर और गोवा में भी सरकार बनाकर भारतीय राजनीति में एक और इतिहास रच दिया। इसलिए उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड जीत से शेयर बाजार भी झूम उठा। केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा और उसके सहयोगी दलों की उत्तर प्रदेश में 325 सीटों पर शानदार जीत से निवशकों का भरोसा भी बढ़ा और 50 शेयरों के निफ्टी सूचकांक ने अब तक के सारे रिकार्ड तोड़ते हुए 9100 का आंकड़ा पार कर डाला। चुनाव नतीजों और होली के बाद बाजार खुला तो सेंसेक्स और निफ्टी 500 और 150 अंकों की उछाल के साथ खुले। भाजपा की जीत से रुपया भी जबरदस्त मजबूती हासिल करते हुए डॉलर के मुकाबले अपने एक साल के उच्चतम स्तर पर आ गया। दरअसल बाजार को भी विधानसभा चुनाव के नतीजों का बेसब्री से इंतजार था। भाजपा की उत्तर प्रदेश में बड़ी जीत के बाद यह तय था कि इक्विटी, करेंसी और शेयर बाजारों में हलचल बढ़ने वाली है। निवेशकों का मानना है कि राजनीतिक स्थिरता के चलते आर्थिक सुधार तेजी से होंगे जिससे देश में विदेशी निवेश बढ़ेगा। तो ऐडलवेसिस सिक्योरिटीज ने कहा, ‘‘बाजार के लिए मोदी की जीत यह संकेत देती है कि मोदी 2019 में फिर से बहुमत के साथ सत्ता में आ सकते हैं। इसके अलावा भाजपा की उत्तर प्रदेश में जीत से प्रभावित होकर वे अपने सुधारवादी एजेंडे पर टिके रहेंगे और राज्यसभा में भी भाजपा की स्थिति सुधरेगी जिससे बिल पास कराने में आसानी होगी।’’
भरोसे का प्रकटीकरण
यह तो बात रही बाजार के भरोसे की। बेशक किसी देश की अर्थव्यवस्था के लिए बाजार का यह भरोसा बेहद जरूरी होता है लेकिन बाजार से भी ज्यादा भरोसा आम जनमानस का उस तंत्र में होना महत्वपूर्ण होता है जिसे हम लोकतंत्र कहते हैं। इसलिए जब बात लोकतंत्र की होती है तो उस तंत्र में भरोसे का मापदंड मतदान होता है जो लोगों के लोकतंत्र में और किसी दल के प्रति भरोसे का प्रकटीकरण करता है। इस लिहाज से 2014 में केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाने वाली भाजपा ने उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में आम जनमानस के भरोसे की एक ऐतिहासिक पटकथा लिख डाली। कारण, इन चुनावों में उत्तर प्रदेश में भाजपा को मिले कुल वोटों से लेकर उम्मीदवारों की उम्र और जीत के अंतराल तक कई दिलचस्प आंकड़े सामने आए हैं। इन आंकड़ों पर नजर डालें तो नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने उत्तर प्रदेश में भाजपा का वोट प्रतिशत लगभग ढाई गुना बढ़ा दिया। तो कांग्रेस के मत रिकार्ड पचास फीसदी घट गए। कारण, 2012 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा का वोट प्रतिशत 15 फीसदी और कांग्रेस का 12 फीसदी था। वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़कर 40 फीसदी से अधिक रहा और कांग्रेस का घटकर 6 फीसदी रह गया। सपा और बसपा भी वोट प्रतिशत के मामले में भाजपा से काफी पीछे छूट गर्इं। जाहिर है, मतों के बीच का अंतराल यह प्रकट करता है कि भाजपा और विरोधी दलों के बीच लोगों के भरोसे का कितना बड़ा अंतर था।
असल में यह अंतर केवल ‘काम बोलता है’ का नारा लगाने से नहीं बनता बल्कि काम करने से कायम होता है। और इस अंतर को उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने करीब से देखा भी और उसका एहसास भी किया। एक तरफ परिवारवाद की लड़ाई में उलझी समाजवादी पार्टी थी, जिसके मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के साथ गठबंधन कर चुनाव प्रचार के दौरान ‘काम बोलता है’ नारा दोहराते रहे तो दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं और विकास को जमीन पर उतरकर असल में ‘काम कैसे होता है’ का उदाहरण प्रस्तुत कर उसे उत्तर प्रदेश में जीत को आधार बना लिया।
गरीबों को बड़ी राहत
उदाहरण के लिए, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना। प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के तहत बांटे गए गैस सिलेंडरों ने गरीब परिवारों की जिंदगी में बदलाव ला दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश में जहां कहीं भी चुनाव प्रचार में गए, वहां उन्होंने उज्ज्वला योजना का न सिर्फ उल्लेख किया बल्कि उसे पूरे उत्तर प्रदेश में जारी रखने का भी भरोसा दिया। लिहाजा प्रधानमंत्री के इस दावे का असर प्रदेश के चुनाव परिणाम में देखने को मिला। जैसे कि इलाहाबाद में गरीबों में 1,66,230 गैस सिलेंडर बांटे गए। इलाहाबाद में भाजपा को 12 में से 9 सीटों पर जीत मिली। तो बहराइच में 1,35,357 गैस कनेक्शन बांटे गए जहां 7 में से 6 सीटें भाजपा के खाते में गर्इं। गोंडा के 1,24,000 गरीब परिवारों को एलपीजी सिलेंडर मिले तो यहां से भाजपा को 7 में से 7 सीटें मिलीं। सीतापुर में कुल 2,09,731 731 कनेक्शन दिये गए और यहां भाजपा को मिली 9 में 7 सीटों पर जीत मिली। कुशीनगर में 1,76,033 गैस कनेक्शन दिए गए और भाजपा को 7 में से 6 सीटों पर जीत मिली। लखीमपुर खीरी में 8 में से 8 सीटें मिलीं जहां 1,50,084 गैस सिलेंडर बांटे गए। गोरखपुर में 1,22,818 गैस कनेक्शन दिए गए और यहां भाजपा ने 9 में 8 सीटों पर अपना परचम लहराया। अयोध्या-फैजाबाद में 83,327 गैस कनेक्शन बंटे और यहां से भाजपा ने 5 की 5 विधानसभा सीटें जीत ली। असल मेंं उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से करीब एक साल पहले प्रधानमंत्री ने उत्तर प्रदेश के बलिया में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना शुरू की थी। इसके तहत गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले पांच करोड़ परिवारों को तीन साल के भीतर मुफ्त एलपीजी सिलेंडर देने की शुरुआत हुई। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत यूं तो गैस सिलेंडर पूरे देश के गरीबों के बीच बांटे जा रहे थे लेकिन सबसे ज्यादा जोर उत्तर प्रदेश पर था। पूरे देश में बांटे गए कुल 1 करोड़ 80 लाख गैस कनेक्शनों में अकेले उत्तर प्रदेश में 55 लाख कनेक्शन बांटे गए। वहीं उत्तराखंड में चार लाख कनेक्शन दिए गए। इस योजना से गांव के सबसे गरीब परिवारों की रसोई में गैस पहुंची। इससे इन इलाकों में केंद्रीय योजनाओं के प्रति नया भरोसा पैदा हुआ। इसने महिला मतदाताओं को भाजपा के करीब लाने में
मदद की।
इसी प्रकार 2014 में केंद्र में भाजपानीत सरकार बनने से पांच वर्ष पहले तक उत्तर प्रदेश के सिर्फ 26 गांवों में बिजली पहुंचाई गई थी। इसके मुकाबले पिछले ढाई वर्ष में 1,364 गांवों में बिजली पहुंचाई गई। केंद्र की दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के तहत गांवों में बिजली पहुंचाने के लिए जो कदम उठाए गए, उनसे 20 फीसद बिजली बढ़ाने में मदद मिली। दो वर्षों में केंद्र ने राज्य में 10 बिजली परियोजनाओं को चालू कर एक रिकार्ड बनाया। वहीं उत्तर प्रदेश में केंद्र की मुद्रा योजना के तहत तकरीबन 20,000 करोड़ रुपये के कर्ज बांटे गए। इससे लगभग एक करोड़ लोगों को रोजगार देने में मदद मिली। 1़11 करोड़ लोगों ने 12 रुपये में दो लाख रुपये का बीमा करवाया। चार लाख लोगों को अटल पेंशन योजना का लाभ मिला। तो इन कल्याणकरी योजनाओं ने भाजपा के लिए जीत का आधार तैयार करने का काम किया। लिहाजा, साफ है कि उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात और काम पर लोगों ने भरोसा जताया। केंद्रीय मंत्री और लोक समता पार्टी के प्रमुख उपेन्द्र कुशवाह कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह से गांव-गरीब-किसान को विकास योजनाओं में प्राथमिकता दी है, उसके चलते उत्तर प्रदेश में भाजपा को चुनाव में बड़ी कामयाबी मिली है। चुनाव परिणामों से साबित होता है कि दलितों और पिछडेÞ वर्ग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की नीतियों में भरोसा जताया है। वहीं भाजपा के राष्टÑीय अध्यक्ष अमित शाह कहते हैं,‘‘उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में भाजपा की शानदार जीत का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गरीबोन्मुख नीतियों को जाता है। जनता ने जाति, पंथ के बंधन से ऊपर उठकर विकास और विकासवादी सरकार के लिए वोट दिया। नतीजों के बाद मोदी देश के ऐसे सबसे कद्दावर नेता के रूप में सामने आये हैं जिसे समाज के सभी वर्गो का समर्थन मिल रहा है।’’
उत्तर प्रदेश और उत्तरांखड में जहां भाजपा ने खुद के दम पर बहुमत हासिल किया वहीं गोवा और मणिपुर में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी कांग्रेस को सत्ता से दूर रखने में कामयाबी हासिल कर उसने इस बात का भी संकेत दे दिया कि कांग्रेस के मौजूदा नेतृत्व में न तो चुनाव जिताने की क्षमता है और न ही गठबंधन बनाने का सलीका। मीडिया एसोसिएशन फॉर सोशल सर्विस के संरक्षक और अधिवक्ता श्याम मनोहर वर्मा कहते हैं, ‘‘कांग्रेस सहित गैर भाजपा दलों के पास न तो प्रधानमंत्री मोदी जैसा नेता है और न ही नीति। इसलिए लोगों का भरोसा कांग्रेस से उठ चुका है और कांग्रेस को पंजाब में कामयाबी मिली भी है तो उसका श्रेय कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बजाए कैप्टन अमरिंदर सिंह को जाता है।’’ असल में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया और परिणाम कई दृष्टि से अभूतपूर्व हैं।
परिपक्व होते मतदाता
सबसे बड़ा सवाल यह कि इन चुनावों के संदेश और निष्कर्ष क्या हैं? जवाब यही है कि भारतीय लोकतंत्र और मतदाता निरंतर परिपक्व होता जा रहा है। वह जाति-मजहब की राजनीति से हट कर विकास को प्राथमिकता दे रहा है, साथ ही क्षेत्रीय दलों के मुकाबले राष्टÑीय दलों में भरोसा जता रहा है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा ने जीत हासिल की तो पंजाब में कांग्रेस ने शिरोमणि अकाली दल-भाजपा गठबंधन को इसलिए हराया क्योंकि पंजाब की जनता ने आम आदमी पार्टी के बजाए कांग्रेस को ही विकल्प के रूप में चुना। पंजाब में कांग्रेस को एक आसान जीत मिली। यह जीत पूरी तौर पर अमरिंदर सिंह की है। हो सकता है कि पंजाब की जीत को कांग्रेस आलाकमान बढ़ा-चढ़ाकर प्रचारित करे, लेकिन सभी जानते हैं कि इस जीत में सोनिया-राहुल की कोई खास भूमिका नहीं है। जनता ने अमरिंदर सिंह को भावी मुख्यमंत्री मानकर कांग्रेस को वोट दिया। यहां दस वर्ष से सत्तारूढ़ अकाली दल-भाजपा को पता था कि इस बार जनता परिवर्तन के मूड में है। यह भी लगता है कि आम आदमी पार्टी के रंग-ढंग से इस सीमावर्ती राज्य के लोगों के मन में सुरक्षा संबंधी चिंताएं भी खड़ी हो गर्इं। दिल्ली की तरह पंजाब के मतदाताओं ने आम आदमी पार्टी पर भरोसा नहीं जताया। और तो और, गोवा में आम आदमी पार्टी का खाता तक नहीं खुला। गोवा में आम आदमी पार्टी के 40 में से 38 उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई। मणिपुर जैसे राज्य में भी, जहां कांग्रेस के मुकाबले क्षेत्रीय दलों की ही मौजूदगी थी, भाजपा का अभूतपूर्व रूप से उदय हुआ। मणिपुर की 60 विधानसभा सीटों में कांग्रेस को 28 तो भाजपा को 21 सीटें मिलीं। यह परिणाम इस बात का संकेत है कि पूर्वोत्तर जैसे राज्य राष्टÑीय एकता-अखंडता को लेकर संवेदनशील हैं इसलिए स्थानीय संगठनों से मिलने वाली चुनौतियों और खतरों को देखते हुए मणिपुर में राष्टÑीय दलों की विधानसभा चुनाव में अधिकांश सीटों पर जीत को कहीं न कहीं राष्टÑीय एकता और अखंडता को मजबूती प्रदान करने वाला जनादेश कहा जा सकता है।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव, खासकर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव को लेकर जिस तरह से जाति और मजहबी राजनीति का समीकरण बनाकर चुनाव जीतने की कवायद होती रही है, वह इस बार गलत साबित हुई। टीवी स्टुडियो में बैठकर जाति और मजहब के आधार पर जीत-हार की भविष्यवाणी करने वाले बुद्धिजीवी गलत साबित हुए हैं और मतदाता अधिक परिपक्व।
ध्वस्त हुए सीमकरण
इसी का ही परिणाम है कि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों से लेकर यादव बहुल इलाकों में भी भाजपा को भारी सफलता मिली। वहीं जाट बहुल इलाकों में अजित सिंह का राष्टÑीय लोकदल एक सीट पर सिमट गया। बसपा ने दलित और मुस्लिम का जो गठजोड़ बनाने की कोशिश की, वह विफल रही। बसपा ने मुस्लिम वोट बैंक को ध्यान में रख 99 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे तो समाजवादी पार्टी ने 80 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किए, लेकिन मुस्लिम बहुल सीटों पर भी भाजपा को अधिक सफलता मिली। उत्तर प्रदेश में 70 सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 20 से 25 प्रतिशत और 73 सीटों पर 30 से 49 प्रतिशत तक है। इन 143 सीटों में से 115 सीटों पर भाजपा को कामयाबी मिली। मुस्लिम बहुल देवबंद में भाजपा की जीत पर खुद बसपा प्रमुख मायावती हैरान हो उठीं।
इन चुनावों को नोटबंदी पर जनमत संग्रह के रूप में देखा जा रहा था। मोदी और अमित शाह इसके प्रति पूरी तरह आश्वस्त थे कि जनता ने इस फैसले को कुछ कठिनाइयों के बावजूद मन से स्वीकार किया है। विपक्ष जनता के मन को क्यों नहीं समझ सका? भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 300 से अधिक और उत्तराखंड में 55 से ज्यादा सीटें हासिल कर यह जता दिया कि विपक्ष ने नोटबंदी को मुद्दा बनाकर गलत किया। नोटबंदी के फैसले के जरिये भाजपा ने उस गरीब तबके तक भी अपनी पहुंच बनाई जो उसका प्रतिबद्ध समर्थक नहीं था। नोटबंदी ने गरीबों को यह एहसास कराया कि यह सरकार दो नंबर का कारोबार करने वालों पर अंकुश लगाने और निर्धन-वंचित आबादी का हित करने के लिए प्रतिबद्ध है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लोगों ने पूरा भरोसा किया। इसकी भी कई वजहें हैं।
मोदी सरकार के तकरीबन तीन साल के कार्यकाल में भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा है। प्रधानमंत्री होते हुए भी मोदी ने अपने स्वयं के परिवार को सत्ता के गलियारे से दूर रखा तब जब कि देश में परिवारवाद राजनीति और लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा बनकर खड़ा है। नोटबंदी पर भी गरीबों ने माना कि यह कदम ठीक है और यह भी कि अकूत धन जमा करने वालों की खबर लेने वाला कोई तो है। कूटनीतिक मोर्चे पर भारत का दुनिया में बढ़ता दबदबा और आतंकवाद के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक ने भी प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के प्रति लोगों में भरोसा कायम करने का काम किया और यही भरोसा लोकतंत्र की असली ताकत है। पर इस जीत में एक बड़ी चुनौती है भाजपा के लिए भी और वह है लोगों के भरोसे को बनाए रखना।
गोवा में केजरीवाल के उम्मीदवारों की जमानत जब्त
पंजाब में आम आदमी पार्टी की बहुमत की सरकार बनाने के अरविंद केजरीवाल के दावे नतीजों के साथ ही धराशायी हो गए। इतना ही नहीं, गोवा में पार्टी का खाता तक नहीं खुला, केजरीवाल के दावे और नारे धरे रह गए। पंजाब और गोवा के नतीजों से अरविंद केजरीवाल के राष्टÑीय स्तर पर उभरने के मंसूबों को तगड़ा झटका लगा है। गोवा चुनाव से पहले राज्य में आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन को लेकर बड़ी-बड़ी अटकलें लगाई गई थीं। खुद आआपा का दावा था कि वह गोवा और पंजाब में दिल्ली-2015 को दोहराएगी। वहीं कई राजनीतिक जानकार भी मान रहे थे कि पार्टी गोवा में प्रमुख दावेदार होगी। लेकिन जब नतीजे आए तो आआपा नेताओं और समर्थकों के पैरों तले से जमीन खिसक गई। पार्टी को राज्य में एक भी सीट नहीं मिली। राज्य में पहली बार चुनाव लड़ रही आआपा के लिए ये नतीजे ऊपर से जितने बुरे दिख रहे हैं, असलियत में उससे कहीं ज्यादा कड़वे हैं। राज्य की कुल 40 सीटों में से आप ने 39 पर उम्मीदवार खड़े किए थे। पूर्व नौकरशाह एल्विस गोम्स को पार्टी ने अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित कर दिया था। इन 39 में से 38 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गयी। पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार रहे गोम्स भी अपनी सीट चौथे नंबर पर रहे। पार्टी की इज्जत केवल बेनोलिम सीट पर बची जहां आआपा उम्मीदवार को 4000 से कुछ अधिक वोट मिले और उसकी जमानत बच गई। आआपा ने गोवा चुनाव में सबसे पहले उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी थी। पार्टी को ईसाई बहुल दक्षिणी गोवा में अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद थी। गोम्स खुद भी ईसाई हैं और चुनाव प्रचार के दौरान भी वे लगातार चर्च जाते रहे। ऐसे में उम्मीद की जा रही थी कि पार्टी मतदाताओं को सत्ताधारी भाजपा के खिलाफ अपने पक्ष में भुनाने में कामयाब रहेगी, लेकिन ऐसा हो न हो सका। राज्य की 40 सीटों में से 17 सीटें कांग्रेस को, 13 भाजपा को, महाराष्टÑ गोमांतक पार्टी और गोवा फारवर्ड पार्टी को 3-3 सीटें मिलीं। 4 सीटें अन्य को मिलीं।
कसौटी पर किरदार
नरेंद्र मोदी
प्रचार- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 4 फरवरी को मेरठ से उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार शुरू किया। उनका प्रचार विकास पर ही केंद्रित रहा और उनके बयानों के कुछ अंश सोशल मीडिया पर सुर्खियों में भी रहे। चुनाव प्रचार में उन्होंने घोटाले की जगह एस.सी.ए.एम. का प्रयोग किया, जिसका मतलब समाजवादी, कांग्रेस, अखिलेश और मायावती से था। लेकिन ट्विटर पर सभी ने अपने हिसाब से इसका मतलब निकाला। इसी तरह खुद को बाहरी बताए जाने पर हरदोई में उन्होंने कहा, ‘यूपी ने मुझे गोद लिया है।’ उनका यह बयान भी ट्विटर और फेसबुक पर ट्रेंड करने लगा। कहा गया कि प्रधानमंत्री जहां भी जाते हैं, वहीं से अपना नाता जोड़ लेते हैं। लेकिन फतेहपुर रैली में कब्रिस्तान और श्मशान वाला बयान सबसे ज्यादा चर्चा में रहा। मोदी ने कहा था, ‘किसी के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए। जब रमजान में बिजली आती है तो दीवाली में भी आनी चाहिए। अगर कब्रिस्तान है तो श्मशान भी होना चाहिए।’ इसी तरह मऊ रैली में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले विधायक मुख्तार अंसारी की ओर इशारा करते हुए उन्होंने फिल्म ‘बाहुबली’ के किरदार कटप्पा का जिक्र किया। उनका कहना था कि अपराधियों को टिकट दिया जाता है और जेल जाते समय मुस्कुराता है, क्योंकि उसे जेल में सारे सुख, वैभव और गिरोह चलाने के बावजूद सुरक्षा मिल जाती है। भाजपा की सरकार बनने पर बाहुबलियों को जेल भेजा जाएगा। इसके अलावा, वाराणसी में ‘कुछ का साथ, कुछ का विकास’ वाला बयान भी सोशल मीडिया पर ट्रेंड करता रहा। उनका कहना था कि सपा, बसपा और कांग्रेस का एकमात्र उद्देश्य ‘कुछ का साथ, कुछ का विकास’ है, जबकि लोकतंत्र में ‘सबका विकास, सबका साथ’ जरूरी है।
प्रबंधन- नरेंद्र मोदी ने यूपी में 23 रैलियों को संबोधित किया। इनमें 11 जिलों में एक-एक, जबकि छह जिलों में दो-दो चुनावी सभाएं शामिल हैं। इसके अलावा, भाजपा ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल के साथ गठबंधन भी किया।
परिणाम- भाजपा गठबंधन की 403 में से 325 सीटों पर जीत।
कल्याणकारी योजनाओं ने जीता दिल
उत्तर प्रदेश में भाजपा की ऐतिहासिक जीत में केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं ने मतदाताओं का दिल जीतने में अहम भूमिका निभाई। खासतौर से प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना। कारण प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के तहत बांटे गए गई मुफ्त गैस सिलेंडरों से गरीब परिवारों खासकर महिलाओं की जिंदगी में बड़ा बदलाव आया है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उज्ज्वला योजना के बारे में खासतौर पर जिक्र किया। प्रधानमंत्री की इस खास योजना का चुनाव परिणामों पर असर देखने को मिला। इलाहाबाद, गोंडा, सीतापुर, कुशीनगर, लखीमपुर, खीरी, गोरखपुर, बलिया आदि जिलों में उज्जवला योजना का साफ असर दिखा। असल में उत्तर प्रदेश में करीब एक साल पहले प्रधानमंत्री मोदी ने बलिया में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना का आगाज किया था। इसके तहत गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले पांच करोड़ परिवारों को तीन साल के भीतर मुफ्त एलपीजी सिलेंडर देने की शुरुआत हुई। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत यूं तो गैस सिलेंडर पूरे देश के गरीबों के बीच बांटे जा रहे थे लेकिन सबसे ज्यादा जोर उत्तर प्रदेश में था। पूरे देश में बांटे गए कुल 1 करोड़ 80 लाख गैस कनेक्शन में अकेले उत्तर प्रदेश में 55 लाख बांटे गए। इसी तरह से उत्तराखंड में चार लाख कनेक्शन दिए गए।
देश के चुनावी परिदृश्य को देखकर आम तौर पर यह मान लिया गया था कि विकास का नारा देकर चुनाव नहीं जीते जा सकते। लेकिन उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड सहित पांच राज्यों के चुनाव परिणामों ने इस धारणा को गलत साबित कर दिया है। केंद्रीय योजनाओं को जमीनी तौर पर उतारने की जो कोशिश केंद्र की तरफ से पिछले दो वर्षों में की गई है उसका असर साफ तौर पर परिणामों में दिखता है। इस योजना से गांव के सबसे गरीब परिवारों की रसोई में गैस पहुंची। इससे इन इलाकों में केंद्रीय योजनाओं के प्रति नया भरोसा पैदा हुआ। इसने महिला मतदाताओं को भाजपा के करीब लाने में मदद की।
इसी प्रकार 2014 में केंद्र में सरकार बनने से पांच वर्ष पहले तक उत्तर प्रदेश के सिर्फ 26 गांवों में बिजली पहुंचाई गई थी। इसके मुकाबले पिछले ढाई वर्षों में 1364 गांवों में बिजली पहुंचाई गई। केंद्र की दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के तहत गांवों में बिजली पहुंचाने के लिए जो कदम उठाए गए, उससे 20 फीसद बिजली बढ़ाने में मदद मिली। दो वर्षों में केंद्र ने राज्य में 10 बिजली परियोजनाओं को चालू कर एक रिकार्ड बनाया है।
उत्तर प्रदेश में केंद्र की मुद्रा योजना के तहत तकरीबन 20,000 करोड़ रुपये के कर्ज बांटे गए। इससे लगभग एक करोड़ लोगों को रोजगार देने में मदद मिली। 1़11 करोड़ लोगों ने 12 रुपये में दो लाख रुपये के बीमा का लाभ करवाया। चार लाख लोगों को अटल पेंशन योजना का लाभ मिला।
अखिलेश यादव
प्रचार-अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी का चुनावी नारा था ‘काम बोलता है।’ लेकिन अपने चुनाव प्रचार को वे अपनी सरकार की उपलब्धियों और विकास के मुद्दे पर केंद्रित नहीं रख सके। उनके प्रचार के केंद्र में मुख्यत: नरेंद्र मोदी ही रहे। राहुल गांधी के साथ पहले रोड शो के दौरान बिजली के तारों वाली तस्वीरों का सोशल मीडिया पर मजाक उड़ाया गया। इसके अलावा, लखनऊ मेट्रो को लेकर उनके बयान पर भी ट्विटर और फेसबुक पर लोगों ने चुटकी ली। गुजरात के गधों पर दिया गया उनका बयान सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहा। प्रदेश में बिजली संकट, कानून व्यवस्था और अपराध जैसे मुद्दों पर वे सफाई ही देते रहे। यहां तक कि काशी मंदिर में बिजली जाने पर भी।
प्रबंधन-अखिलेश के परिवार और पार्टी में जो घमासान मचा, उसे चुनावी प्रबंधन के तौर पर ही देखा गया। इसके अलावा, उनकी पार्टी ने पहली बार कांग्रेस के साथ समझौता किया। उन्होंने 36 दिनों में 221 रैलियां कीं। राहुल गांधी के साथ रोड शो भी किए।
परिणाम-मात्र 47 सीटों पर जीत हासिल हुई।
राहुल गांधी
प्रचार-सपा के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरी कांग्रेस पार्टी का चुनावी नारा था- ‘यूपी को ये साथ पसंद है।’ लेकिन इस साथ का विपक्षी दलों के साथ सोशल मीडिया पर भी जमकर मजाक उड़ाया गया। हालांकि पिछले चुनाव के मुकाबले राहुल गांधी की सक्रियता इस बार काफी कम रही। उन्होंने तीस से भी कम चुनावी रैलियों को संबोधित किया।
प्रबंधन-सपा से गठबंधन के बाद कांग्रेस को 105 सीटें मिलीं। हालांकि पार्टी ने 129 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। इसके अलावा, पांच चरणों तक अखिलेश यादव के साथ मात्र चार संयुक्त सभाएं और तीन रोड शो ही किए थे। पार्टी के 40 स्टार प्रचारकों ने भी रैलियां कीं।
परिणाम-उत्तर प्रदेश विधानसभा की 403 में से मात्र सात सीटों पर जीत।
मायावती
प्रचार-बसपा प्रमुख मायावती के चुनाव प्रचार में वैसे तो नोटबंदी, प्रदेश में कानून-व्यवस्था आदि मुद्दे थे। लेकिन उनका निशाना भाजपा, सपा और कांग्रेस पर ही केंद्रित रहा। पार्टी की ओर से कुछ नारे भी उछाले गए, जिनमें ‘बेटियों को मुस्कुराने दो, बहनजी को आने दो’, ‘डर से नहीं, हक से वोट दो, बेईमानों को चोट दो’ और ‘कमल, साइकिल, पंजा होगा किनारे, यूपी चलेगा हाथी के सहारे’ आदि प्रमुख थे।
प्रबंधन-चुनाव से ठीक पहले दलित-मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने के लिए बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी, उनके भाइयों और बेटे को पार्टी में शामिल किया। सभी को टिकट भी दिया। इसके अलावा, एक फरवरी से लेकर आखिर तक 52 सभाएं कीं।
परिणाम-403 में से मात्र 19 सीटों पर जीत
प्रियंका गांधी
प्रियंका गांधी ने काफी बाद में प्रचार शुरू किया और सिर्फ दो रैलियों को संबोधित किया। पहली रायबरेली और दूसरी अमेठी में थी। रायबरेली में उनके निशाने पर प्रधानमंत्री ही रहे। वहीं, अमेठी में उन्होंने बलात्कार के आरोपी सपा उम्मीदवार गायत्री प्रजापति के पक्ष में प्रचार किया। कांग्रेस और सपा के बीच जब सीटों को लेकर गठबंधन के आसार धुंधले पड़ने लगे तब प्रियंका ने अहम भूमिका निभाई।
अमेरिका में जश्न, चीन में भय
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों की गूंज देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सुनी जा रही है। खासतौर पर उत्तर प्रदेश में भाजपा की भारी जीत का असर जश्न के रूप में जहां अमेरिका के विभिन्न शहरों में देखने को मिला वहीं चीन में भाजपा की जीत को लेकर अलग चर्चाओं का बाजार गर्म है। चीन भाजपा की जीत से इसलिए भयभीत हो रहा है क्योंकि उसे लग रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र की भाजपा सरकार अब कूटनीतिक और भारत के हितों से जुडेÞ मुद्दों पर सख्त रुख अपना सकती है।
विदेश नीति पर कम्युनिस्ट पार्टी के विचार रखने वाले अखबार ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस जीत के साथ ही 2019 के आम चुनाव में भी जीत के अपने रास्ते सुगम कर लिये हैं। कई लोगों का यह भी मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी का दूसरा कार्यकाल लगभग तय है। अखबार लिखता है, ‘‘चूंकि इस वक्त भारत-बीजिंग के रिश्ते काफी नाजुक दौर में हैं इसलिए राजनीति अब यह आकलन करने में लगे हैं कि सत्ता पर पकड़ मजबूत करने के बाद प्रधानमंत्री मोदी चीन के साथ भारत के रिश्तों को कैसे देखते हैं।’’
अखबार आगे लिखता है कि, ‘‘अगर पीएम अगला आम चुनाव जीत जाते हैं तो भारत का विदेश नीति पर वर्तमान सख्त और स्पष्ट रवैया निश्चित रूप से जारी रहेगा। हालांकि यह निश्चित रूप से भारत के विकास के लिए ठीक रहेगा, लेकिन इसका यह भी मतलब है कि दूसरे देशों के साथ विवाद के मुद्दों पर भारत समझौता करने को तैयार नहीं होगा।’’
अखबार के मुताबिक इसी परिप्रेक्ष्य में चीन-भारत सीमा विवाद को देखा जाना चाहिए, जिसमें अब तक सुलह की कोई किरण नजर नहीं आती और प्रधानमंत्री मोदी ने सीमा पर भारत के सबसे बड़े त्योहार दीवाली को सैनिकों के साथ मनाकर विश्व पटल पर अपना संदेश दे दिया है। अखबार के मुताबिक, ‘‘चीन के लिए यह वक्त दरअसल एक मौका है, यह देखने का कि विवादास्पद मुद्दों पर एक कठोर रुख रखने वाली दिल्ली की सरकार के साथ रिश्ते कैसे बेहतर किये जाएं।’’
इस बीच नरेंद्र मोदी के भारतीय-अमेरिकी समर्थकों ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा की जीत के बाद अमेरिका में सिलिकन वैली से न्यूयॉर्क तक और वाशिंगटन में जश्न मनाया। जीत का जश्न मनाने वाले अनेक लोगों ने कहा कि उत्तर प्रदेश में अभूतपूर्व जीत प्रधानमंत्री के विकासात्मक एजेंडे को आगे बढ़ाएगी। भाजपा ने अपने सहयोगियों के साथ उत्तर प्रदेश में 325 सीटें जीती हैं।
उत्तराखंड के नवीन बिष्ट सिलीकन वैली में सीरियल एटरप्रेन्योर हैं और टीआईई बोर्ड के पूर्व सदस्य हैं। उन्होंने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री मोदी परंपरागत नेता नहीं हैं क्योंकि उन्होंने जो वादे किए, उन्हें पूरा किया। उम्मीद है कि यह बदलाव उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में ज्यादा उद्यमियों को सामने लाएगा और व्यापार तथा आर्थिक विकास को तेज करेगा।’’ फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज (एफआईआईडीएस) के निदेशक खांडेराव खांड ने कहा कि यह चुनाव परिणाम भारत के विकास के रास्ते को खोलेगा।
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