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नई दिल्ली में 17 और 18 फरवरी को प्रथम राष्ट्रीय आर्थिक सम्मेलन आयोजित हुआ। भारत नीति प्रतिष्ठान (आई.पी.एफ.) के तत्वावधान में आयोजित इस सम्मेलन का उद्घाटन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले ने किया। दो दिवसीय इस सम्मेलन में चार सत्र थे। इन सत्रों में देश के अनेक अर्थ विशेषज्ञों, शिक्षाविदों, नेताओं आदि ने अपने विचार रखे। उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए श्री दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि हम अपने विकास कार्यक्रमों को आगे बढ़ाएं, लेकिन इसके लिए अपने सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों को नहीं छोड़ना है। उन्होंने कहा कि कृषि, खपत और प्राकृतिक संसाधनों के साथ पारिस्थितिकीय संतुलन भी जुड़ा है। इसलिए हमें विकासशील देशों की आर्थिक नीतियों को आंख मंूद कर स्वीकार नहीं करना चाहिए। आईपीएफ के निदेशक प्रो. राकेश सिन्हा ने कहा कि जीवन और जीवन की सुरक्षा का मूल्य किसी नीति की तुलना में अधिक है। सम्मेलन के संयोजक गोपालकृष्ण अग्रवाल ने सम्मेलन की विषय-वस्तु की जानकारी दी।
सम्मेलन के प्रथम सत्र की अध्यक्षता ताजमुल हक ने की। वे नीति आयोग का भूमि पट्टे पर बने कार्यबल के अध्यक्ष हैं। इस सत्र के वक्ता थे विजयपाल शर्मा, प्रदीप मेहता और विलास सोनावाने। द्वितीय सत्र की अध्यक्षता प्रख्यात अर्थशास्त्री डॉ. भरत झुनझुनवाला ने की। इस सत्र को सामाजिक कार्यकर्ता अशोक भगत, ज्योति किरण शुक्ला और प्रो. राम सिंह ने संबोधित किया। वक्ताओं ने कहा कि अर्थ नीति ऐसी हो जिसमें नागरिक कल्याण सबसे ऊपर हो।
अंत में रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने कहा कि टिकाऊ विकास सामाजिक उद्देश्यों को पूरा किए बिना नहीं हो सकता। दूसरे दिन के प्रथम सत्र की अध्यक्षता प्रो. ईला पटनायक ने की। इसके वक्ता थे अजीत रानाडे, डॉ. राजकुमार अग्रवाल और प्रो. वरदराज बापट। इसमें वक्ताओं ने बैंकिग और वित्त विषय पर चर्चा की। द्वितीय सत्र का विषय था रोजगार। इसकी अध्यक्षता राष्ट्रीय कौशल विकास निगम के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी मनीष कुमार ने की। वक्ता थे प्रो. चंद्रभूषण शर्मा, एम.आर. माधवन और मिलिंद कांबले।
अंत में समापन सत्र हुआ, जिसकी
अध्यक्षता आई.पी.एफ. के अध्यक्ष प्रो. कपिल कुमार ने की। प्रतिनिधि
विविध – 'भारतीय भाषाओं को करना होगा समृद्ध'
नई दिल्ली के हिन्दी भवन में पिछले दिनों भारतीय भाषा मंच की ओर से आयोजित भारतीय भाषा शिक्षक सम्मेलन में शिक्षकों ने भाषाओं को बचाने का संकल्प लिया। कार्यक्रम में हिन्दी, संस्कृत, पंजाबी, उर्दू, बांग्ला, तमिल आदि भाषाओं को विद्यालय स्तर पर पढ़ाने वाले शिक्षक सम्मिलित हुए। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के अध्यक्ष श्री दीनानाथ बत्रा ने मुख्य वक्ता के रूप में शिक्षकों का आह्वान करते हुए कहा कि हमारे देश की भाषाएं साहित्यिक, सांस्कृतिक, वैचारिक, लिग्विंस्टिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से श्रेष्ठ हैं। इनके अंदर हर प्रकार के ज्ञान का अथाह भंडार है। शिक्षकों को आत्म सम्मान के साथ अपनी भाषाओं का शिक्षण करना चाहिए। हमें पुस्तकों में निहित तत्वों को परखते हुए भारतीय परिवेश के अनुसार छात्रों को विचारशीलता, सृजनात्मकता और राष्ट्रीयता की शिक्षा देनी होगी। भारतीय भाषा मंच के संयोजक एवं हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के प्रो़ वृषभ जैन ने भारतीय भाषाओं के अस्तित्व पर प्रहार करने वालों से सावधान करते हुए कहा कि हमें अपनी मातृभाषा की रक्षा प्राणों से भी ज्यादा मान कर करनी चाहिए। भारत एक उभरती आर्थिक शक्ति एवं विश्व का सबसे बड़ा बाजार है। ऐसे में विदेशी भाषाएं हमारी भाषाओं को मारकर, आगे बढ़कर आर्थिक एवं सांस्कृतिक लाभ उठाने का जीतोड़ प्रयास कर रही हैं। मुख्य अतिथि व एनआईओएस के चेयरमैन ड़ॉ सीबी शर्मा ने कहा कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषाएं होनी चाहिए। हर प्रकार की शिक्षा चाहे वह यांत्रिकी हो, प्रौद्योगिकी हो, प्रबन्धन की हो, भारतीय भाषाअें में होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि शिक्षा हर भारतीय का अधिकार है, इसे पाने में शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसे आगे बढ़कर चुनौती के रूप में स्वीकार करना समय की मांग है। शिक्षकों से आग्रह है कि वे भारतीय भाषाओं में श्रेष्ठ विदेशी पुस्तकों का अनुवाद करने के लिए आगे आएं।
ल्ल प्रतिनिधि
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