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सुखोई-30 एमकेआई से ब्रह्मोस का सफल परीक्षण कर भारत ने दुनिया को चौंका दिया है। इस प्रयोग के लिए सुखोई में खासतौर से बदलाव किए गए। सुखोई और ब्रह्मोस की जुगलबंदी अब घातक हो गई है। वैसे इस मिसाइल की मारक क्षमता 300 किमी है, पर सुखोई से दागने पर यह क्षमता 400 किमी तक बढ़ जाती है
शशांक द्विवेदी
भारत ने सुखोई लड़ाकू विमान से सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ‘ब्रह्मोस’ का सफल परीक्षण कर बड़ी सामरिक कामयाबी हासिल की है। ब्रह्मोस को दुनिया की सबसे तेज सुपरसोनिक मिसाइल माना जा रहा है, जिसकी रफ्तार 2.8 मैक यानी ध्वनि की रफ्तार से करीब तीन गुना अधिक (3,400 किमी/घंटा) है। भारत और रूस के संयुक्त उपक्रम से तैयार इस मिसाइल का जल और थल से पहले ही सफल परीक्षण हो चुका था। अब वायु में भी सफलतापूर्वक परीक्षण कर लिया गया है। यानी ब्रह्मोस को जल, थल और वायु से छोड़ा जा सकता है। इस क्षमता को ‘ट्रायड’ कहा जाता है। ‘ट्रायड’ की विश्वसनीय क्षमता केवल अमेरिका, रूस व सीमित रूप से फ्रांस के पास है। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार ब्रह्मोस जैसी क्षमता वाली मिसाइल पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान के पास नहीं है।
दुनिया की सबसे तेज गति वाली मिसाइलों में शामिल ब्रह्मोस सर्वाधिक खतरनाक एवं प्रभावी शस्त्र प्रणाली है। यह न तो राडार की पकड़ में आती है और न ही दुश्मन इसे बीच में भेद सकता है। एक बार दागने के बाद लक्ष्य की तरफ बढ़ती इस मिसाइल को किसी भी अन्य मिसाइल या हथियार प्रणाली से रोक पाना असंभव है। क्रूज मिसाइल उसे कहते हैं जो कम ऊंचाई पर तेजी से उड़ान भरती है और राडार से बची रहती है। ब्रह्मोस की विशेषता है कि इसे पारंपरिक प्रक्षेपक के अलावा उर्ध्वगामी यानी ‘वर्टिकल’ प्रक्षेपक से भी दागा जा सकता है। ब्रह्मोस के ‘मेन्यूवरेबल’ संस्करण के सफल परीक्षण से इसकी मारक क्षमता और बढ़ी है।
ब्रह्मोस
रफ्तार में अमेरिकी टॉमहॉक मिसाइल से चार गुना तेज।
युद्धपोत व जमीन से दागने पर 200 किलो विस्फोटक ले जा सकती है।
विमान से दागे जाने पर 300 किलो विस्फोटक ले जाने में सक्षम।
लक्ष्य का रास्ता बदला तो ब्रह्मोस मिसाइल भी बदल लेगी रास्ता।
दुनिया हैरान क्यों ?
सुखोई 2,100 किमी/घंटा की गति से उड़ान भरने में सक्षम।
दोहरे इंजन वाला सबसे तेज गति से उड़ने वाला लड़ाकू विमान।
दुश्मन के इलाके में घुसने व उसके हवाई क्षेत्र पर कब्जा करने में सेना का मददगार।
यह करीब चार घंटे में 3,000 किमी तक की दूरी तय कर सकता है।
उड़ान के दौरान ही इसमें ईंधन भरा जा सकता है।
ये भी कम घातक नहीं
ब्रह्मोस के अलावा भी भारत की कई अन्य घातक मिसाइलें हैं, जिनका लोहा पूरी दुनिया मानती है।
अग्नि-क
पहला परीक्षण 1989
वजन 12 टन
लंबाई 15 मीटर
क्षमता 700-1,200 किमी
विशेषता- नौवहन प्रणाली के कारण निशाना अत्यंत सटीक।
अग्नि-कक
पहला परीक्षण 11 अप्रैल, 1999
वजन 16 टन
लंबाई 20 मीटर
क्षमता 2,000-3,500 किमी
अग्नि-ककक
पहला परीक्षण 9 जुलाई, 2006
वजन 22 टन
लंबाई 17 मीटर
क्षमता 3,500 किमी
विशेषता- अपनी तरह के विश्व के सबसे घातक हथियारों में से एक। परमाणु क्षमता से संपन्न।अग्
ि
न-कश्
पहला परीक्षण 15 नवंबर, 2011
वजन 17 टन
लंबाई 20 मीटर
क्षमता 4,000 किमी
अग्नि-श्
पहला परीक्षण 19 अप्रैल, 2012
वजन 50 टन
लंबाई 17.5 मीटर
क्षमता 5,000 किमी
विशेषता- भारत की पहली इंटर-कॉन्टिनेन्टल बैलेस्टिक मिसाइल
कई गुना बढ़ी वायु सेना की ताकत
इस सफल परीक्षण से वायु सेना की ताकत भी कई गुना बढ़ गई है। वैसे इस मिसाइल की मारक क्षमता करीब 300 किमी है, लेकिन सुखोई से दागते ही इसकी क्षमता 400 किमी तक बढ़ जाती है। साथ ही, यह 300 किलोग्राम युद्धक सामग्री ले जा सकती है। दुनिया में कहीं भी इस वजन और रेंज की मिसाइल को लड़ाकू विमान से नहीं छोड़ा गया है। यह तकनीकी रूप से काफी जटिल प्रकिया है, जिसे सुखोई ने कर दिखाया है। ढाई टन भार वाली यह मिसाइल अब तक का सबसे वजनी हथियार है, जिसे ले जाने के लिए सुखोई में खासतौर से बदलाव किया गया। इस लड़ाकू विमान से ब्रह्मोस के परीक्षण को ‘घातक संयोजन’ कहा जा सकता है। हवा से जमीन पर मार करने वाली ब्रह्मोस मिसाइल का दुश्मन देश की सीमा में स्थित आतंकी ठिकानों पर हमला बोलने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। यह भूमिगत परमाणु बंकरों, कमान एवं नियंत्रण केंद्रों तथा समुद्र के ऊपर उड़ रहे विमानों को दूर से ही निशाना बनाने में सक्षम है। बीते एक दशक में सेना ने जमीन पर 290 किमी तक मार करने वाली ब्रह्मोस मिसाइल को पहले ही अपने बेड़े में शामिल कर लिया है।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की हाई एनर्जी मैटीरियल्स रिसर्च लैबोरेटरी यूनिट ने ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का देसी बूस्टर विकसित किया है। डीआरडीओ के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने इस बूस्टर की महत्ता का जिक्र करते हुए बताया कि ब्रह्मोस मिसाइल को दो चरणों में छोड़ा जाता है। पहले चरण में ‘सॉडिल प्रोपेलेंट बूस्टर’ मिसाइल को सुपरसोनिक गति से धक्का देता है और फिर अलग हो जाता है। दूसरे चरण में द्रव र्इंधन इंजन इसे ध्वनि की गति की 3 गुना गति देता है। भारत अभी तक रूस से ही बूस्टर आयात करता था। इस देसी तकनीक से देश के धन की भी बचत होगी।
अमेरिकी टॉमहॉक मिसाइल से बेहतर
फिलहाल ब्रह्मोस की क्षमता करीब 300 किमी है, जिससे युद्ध के समय पड़ोसी देश में हर जगह हमला संभव नहीं है। भारत के पास नई पीढ़ी की ब्रह्मोस से ज्यादा मारक क्षमता वाली बैलेस्टिक मिसाइल है, पर ब्रह्मोस की खूबी यह है कि यह खास लक्ष्य को तबाह कर सकती है। पाकिस्तान के साथ टकराव की सूरत में यह निर्णायक साबित हो सकती है। बैलेस्टिक मिसाइल को आधी दूरी तक ही नियंत्रित किया जा सकता है। इसके बाद की दूरी वह गुरुत्वाकर्षण की मदद से तय करती है। वहीं, क्रूज मिसाइल की पूरी रेंज नियंत्रित होती है। ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल है। यह बिना पायलट वाले लड़ाकू विमान की तरह होगी, जिसे बीच रास्ते में भी नियंत्रित किया जा सकता है। इसे किसी भी कोण से हमले के लिए प्रोग्राम किया जा सकता है। यह दुश्मन की मिसाइल रक्षा प्रणाली से बचते हुए उसकी सीमा में घुसकर ठिकानों को तबाह करने का दमखम रखती है। ब्रह्मोस से पहाड़ी इलाकों में बने आतंकी शिविरों को निशाना बनाया जा सकता है, जहां पारंपरिक तरीकों से असरदार हमले नहीं किए जा सकते। इसकी एक और खासियत है कि यह आम मिसाइलों के विपरीत हवा को खींच कर रेमजेट तकनीक से ऊर्जा प्राप्त करती है।
दुनिया की कोई भी मिसाइल तेज गति से आक्रमण के मामले में ब्रह्मोस की बराबरी नहीं कर सकती। इसकी खूबियां इसे दुनिया की सबसे तेज मारक मिसाइल बनाती है। यहां तक कि अमेरिका की टॉमहॉक मिसाइल भी इसके आगे फेल साबित होती है। भारत-रूस संयुक्त उपक्रम के तहत 1998 में इस पर काम शुरू हुआ था। यह भारत-रूस द्वारा विकसित अब तक की सबसे आधुनिक मिसाइल प्रणाली है। इसने भारत को मिसाइल तकनीक में अग्रणी देश बना दिया है। ब्रह्मोस का नाम भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मस्कवा नदी पर रखा गया है। रूस इस परियोजना में मिसाइल तकनीक उपलब्ध करवा रहा है और उड़ान के दौरान मार्गदर्शन करने की क्षमता भारत द्वारा विकसित की गई है। यह मिसाइल रूस की पी-800 ओंकिस क्रूज मिसाइल की प्रौद्योगिकी पर आधारित है।
अनदेखे लक्ष्य को भेदने में कारगर
ब्रह्मोस खास तरह की अत्याधुनिक क्रूज मिसाइल है जिसके जरिये वायुसेना अब दृश्यता सीमा से बाहर के लक्ष्यों पर भी हमला कर सकेगी। करीब 40 विमानों में इस प्रणाली को लगाने की योजना है। इस कामयाबी के बाद भारत दुनिया में स्वयं को एक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने में भी सफल हुआ है। साथ ही, भारत इस मिसाइल के निर्यात की दिशा में आगे बढ़ने की तैयारी में लग गया है। इसे बनाने वाली ब्रह्मोस एयर प्रोग्राम कंपनी को करीब सात अरब डॉलर के घरेलू आॅर्डर मिल चुके हैं। एमटीसीआर (मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिलीज) का सदस्य बनने के बाद यह और आसान हो गया है। बता दें कि अंतरराष्ट्रीय समझौतों के चलते 2016 से पहले इनका निर्यात नहीं किया जा सकता था, लेकिन एमटीसीआर में शामिल होने के बाद भारत को इनकी खरीद-फरोख्त का अधिकार मिल चुका है। चीन से बचाव के लिए वियतनाम 2011 से इसे खरीदने की कोशिश में है। इस अत्याधुनिक मिसाइल को बेचने के लिए भारत की नजर में वियतनाम के अतिरिक्त 15 अन्य देश भी हैं। वियतनाम के बाद फिलहाल जिन चार देशों से बिक्री की बातचीत चल रही है वे हैं इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, चिली व ब्राजील। शेष 11 देशों की सूची में फिलिपींस, मलेशिया, थाईलैंड व संयुक्त अरब अमीरात आदि शामिल हैं। इन सभी देशों की दक्षिण चीन सागर मसले पर चीन के साथ तनातनी चल रही है।
रास्ता बदलने में माहिर
सुखोई से ब्रह्मोस को दागने के बाद दुनियाभर में, खासकर पड़ोसी देशों उथल-पुथल मच गई है। ‘मेन्युवरेबल’ तकनीक पर आधारित यह मिसाइल दागे जाने के बाद भी लक्ष्य तक पहुंचने के लिए मार्ग बदल सकती है। साधारण टैंक से छोड़े जाने वाले गोलों तथा अन्य मिसाइलों का लक्ष्य पहले से तय होता है और वे वहीं जाकर गिरते हैं। वहीं, लेजर गाइडेड बम या मिसाइल वे होते हैं जो लेजर किरणों के आधार पर लक्ष्य भेदते हैं, पर कोई लक्ष्य इन सब से दूर हो और लगातार गतिशील हो तो उसे निशाना बनाना कठिन हो सकता है। यहीं यह तकनीक काम आती है जिसमें ब्रह्मोस माहिर है।
दागे जाने के बाद लक्ष्य तक पहुंचने पर यदि उसका लक्ष्य मार्ग बदल ले तो उसे भेदने के लिए मिसाइल भी मार्ग बदल लेती है। भारत ने सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस का सुखोई लड़ाकू विमान से सफल परीक्षण कर बड़ी कामयाबी हासिल की है। इस कामयाबी से भारत की सामरिक क्षमता में बड़े पैमाने पर वृद्धि होगी।
(लेखक मेवाड़ विवि, राजस्थान के उप निदेशक हैं)
शौर्य
पहला परीक्षण 2008
वजन 42 किलो
लंबाई 1.90 मीटर
क्षमता 750-1900 किमी
विशेषता- यह सतह से सतह पर मार करने वाली भारत की पहली सामरिक हाइपर सुपरसोनिक मिसाइल है।
पृथ्वी
भारत के मिसाइल कार्यक्रम के तहत निर्मित पहली मिसाइल। परमाणु संपन्न तथा 150-350 किमी तक सतह से सतह पर मार करने वाली यह मिसाइल सेना के तीनों अंगों का अभिन्न हिस्सा है।
नाग
इस टैंक भेदी मिसाइल का 1990 में सफल परीक्षण हुआ। 42 किलो वजनी व 1.90 मीटर लंबी यह मिसाइल पृथ्वी एवं अग्नि जैसी स्वदेशी मिसाइलों की शृंखला में पांचवीं मिसाइल है। ‘दागो और भूल जाओ’ तथा सभी मौसम में मारक क्षमता इसकी खासियत है।
धनुष
यह स्वदेशी तकनीक से निर्मित पृथ्वी मिसाइल का नौसैनिक संस्करण है। परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम इस मिसाइल के प्रक्षेपण के समय वजन 4600 किलो होता है।
ब्रह्मोस
भारत-रूस के साझा कार्यक्रम के तहत निर्मित यह मिसाइल रूसी पी-800 ओंकिस क्रूज मिसाइल तकनीक पर आधारित है। 2001 में इसका सफल परीक्षण हुआ। 3 टन वजनी व 8.4 मीटर लंबी ब्रह्मोस की मारक क्षमता 290 किमी है। इसकी रफ्तार अमेरिका की सबसोनिक टॉमहॉक क्रूज मिसाइल से तीन गुना अधिक है।
आकाश
इसका परीक्षण 1990 में हुआ। यह 720 किलो वजनी व 5.78 मीटर लंबी है। जमीन से हवा में मार करने वाली इस मिसाइल की तुलना अमेरिका की पेट्रियाट मिसाइल प्रणाली से की जाती है। एक समय में यह 8 भिन्न लक्ष्यों पर निशाना साध सकती है।
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