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‘रसूूल’ के पैरोकार और सरकार

by
Dec 4, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 Dec 2017 11:11:11


पाकिस्तान में वहां के चुनावी नामांकन पत्र में किए गए बदलावों ने जनता में बवाल खड़ा कर दिया। हालात यहां तक  पहुंचे कि कानून मंत्री जाहिद हामिद को इस्तीफा देना पड़ा और सरकार ‘कसूरवारों’ की खोज में लग गई

जिहाद के नारे, जलते टायर, उन्मादियों का उमड़ता हुआ सैलाब।  आग उगलते भाषणों में पाकिस्तान की इस्लामी जड़ों और इकबाल के सपनों की दुहाई, इस्रायल, अमेरिका और भारत द्वारा मुसलमानों के खिलाफ ‘षड्यंत्रों’ के दावे और हमेशा की तरह-‘काफिरों की साजिश’ के जुमले। पिछले दिनों महज 2,000 लोगों ने पाकिस्तान सरकार को थर्रा दिया। इन लोगों के हाथ में कलाश्निकोव या स्टिंगर मिसाइल नहीं थी, बल्कि इनके हाथ में था एक ज्वलनशील मुद्दा।  फर्क बस इतना था…‘मैं कसम खाता हूं’ को बदलकर ‘मैं विश्वास करता हूं’ कर दिया गया था। पाकिस्तान में चुनाव का पर्चा भरते समय, उम्मीदवार घोषणा करता है कि वह ‘मुहम्मद को अंतिम पैगम्बर’ मानता है। सरकार ने कहा कि यह गलती से छप गया है। लेकिन ‘रिसालत-ए-रसूल’ की चिनगारी आग में तब्दील हो चुकी थी। धरने-प्रदर्शन पाकिस्तान के दूसरे हिस्सों में फैल चुके थे। उस पेशावर में भी, जहां पाक फौज द्वारा बसाया गया तालिबानियों का अभयारण्य है।
मान-मनौअल के नाकाम दौर के बाद, हलकान सरकार कार्रवाही करने को आगे आई तो, पहले उसने सारे मीडिया और सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर ताला डाला। 6 जानें गर्इं, 200 घायल हुए। आखिरकार इस्लामाबाद में हफ्तों से चल रहे उत्पात का पटाक्षेप हुआ तो कानून मंत्री जाहिद हामिद की कुर्सी की बलि लेकर। कल की उगी पार्टी तहरीक-ए-लबाइक सरकार को घुटनों पर ले आई। बरेलवी तबके के मौलाना अड़े हुए हैं कि उन अफसरों और मंत्रियों के ‘सिर’ चाहिए जो इस गलती के लिए जिम्मेदार हैं। मुद्दा बड़ा मुफीद है और ‘रिसालत-ए-रसूल’ (पैगम्बर की तौहीन) के उन्माद की अपनी उपयोगिता भी है। इसकी आड़ में पड़ोसियों के झगड़े, रिश्तेदारों के संपत्ति विवाद, अल्पसंख्यकों की जमीन पर कब्जे से लेकर राजनीतिक दुश्मनियों तक, सब सुलटा लिया जाता है।
पाकिस्तान की राजनीति में, विशेषकर पंजाब में इस्लामी राजनैतिक धड़ेबाजी उफान पर है। पाकिस्तान मुस्लिम लीग खुद इस खेल की बड़ी खिलाड़ी रही है, जो जैशे मुहम्मद, लश्करे तैयबा और दूसरी जमातों के साथ स्थानीय स्तर पर गलबहियां करते कभी नहीं हिचकी। जमाते-इस्लामी की राजनीति में पुरानी पहचान है। अब मुस्लिम फिरके अपनी-अपनी सियासी पार्टियां बनाकर आगे आ रहे हैं।
जिस शपथ को लेकर सारा बखेड़ा खड़ा हुआ, वह स्कूलों में बच्चों को रटाई जाती है। इस शपथ को दे-दिलाकर या इसकी याद दिलाकर, अहमदी मुसलमानों, शिया, हिन्दुओं और ईसाइयों पर हमले किये जाते हैं। यह वह आग है जिसके अंगारों से पाकिस्तान बना था। जिस आग में जिया उल हक और पाक फौज ने बेतहाशा पेट्रोल उडेÞला। और जिस आग में पाकिस्तान की राजनीति ने अपनी-अपनी रोटियां सेंकीं। इस मामले में हाथ डालने का हश्र क्या हो सकता है, इसकी कुछ ही साल पहले कायम की गई मिसाल हैं पंजाब के पूर्व गवर्नर मरहूम सलमान तासीर। सलमान तासीर ने ‘इस्लाम की तौहीन’ के आरोप में मौत की सजा पाई। उनके हत्यारे अंगरक्षक मुमताज कादरी की फांसी के बाद उसके जनाजे में एक लाख लोग शामिल हुए।
हाल ही के शपथ विवाद में पाक सेना की भूमिका कैसी रही, इसकी मिसाल है सेना के आधिकारिक ट्विटर खाते से किया गया ट्वीट, जिसमें फौज के मुखिया कमर बाजवा के हवाले से कहा गया ‘दोनों पक्ष’ संयम से काम लें। इस तरह फौज ने मुट्ठीभर जिहादी उपद्रवियों को सरकार के बराबर ला खड़ा किया और उनके हौसले को भी बुलंद किया। जाहिर है, तूफान अभी थमा है, शांत नहीं हुआ है।       ल्ल विशेष प्रतिनिधि

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