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चुनी राह सफलता की

by
Dec 25, 2017, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 25 Dec 2017 11:11:10

इरादा पक्काहो तो राहें खुलती हैं। ऐसे युवाओं की कमी नहीं है जो कुछ नया सोचकर उसमें प्राणपण से जुटे हैं। भारत में उद्योग और उत्पादकता की अलख जगाते हुए वे अपने लिए तो राह गढ़ ही रहें हैं, अन्य युवाओं के लिए भी रोजगार के अवसर तैयार कर रहे हैं। ऐसे ही कुछ संकल्पवान युवाओं और उनके स्टार्ट अप के बारे में बता रहे हैं आदित्य भारद्वाज

 

राह में मुिश्कलें आएंगी, पर क्या सफलता मिलेगी? जो सोचा है उसमें कामयाबी मिलेगी क्या? ऐसे तमाम प्रश्न लोगों के मन में होते हैं जब वह कुछ नया शुरू करना चाहते हैं। लेकिन संघर्ष से ही सफलता मिलती है। एक छोटा सा विचार ही बड़ा बनता है। देश के समग्र विकास के लिए नई सोच का होना बहुत जरूरी है। सोच को वास्तविकता में बदलने की राह पर चलकर कुछ युवाओं ने व्यवसाय के क्षेत्र में अच्छा काम करने की कोशिश की है। वे चाहते तो अपनी शिक्षा के दम पर किसी अच्छी कंपनी में काम कर सकते थे और एक सुखद जीवन जी सकते थे लेकिन उन्होंने बिना किसी उद्यमी पृष्ठभूमि के अपना व्यवसाय खड़ा करने की कोशिश की और काफी हद तक सफलता भी पाई।

सेहत और स्वाद को ध्यान में रख खड़ा किया करोड़ों का व्यवसाय
उत्तरप्रदेश के मऊ जिले के रहने वाले मृत्युंजय यादव 28 साल के हैं। वह सोया चिप्स और सोया स्टिक्स का कारोबार करते हैं। उनके माता-पिता शिक्षक हैं। अपने परिवार में वह अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने अपना व्यवसाय करने की राह चुनी है। महज दो लाख रुपए से शुरू हुआ उनका व्यवसाय आज राजस्थान, महाराष्ट्र और मुंबई तक फैल गया है। महज तीन वर्षों में उनका टर्नओवर तीन करोड़ रुपए को पार कर गया है। आज उन्होंने प्रत्यक्ष तौर पर दो दर्जन लोगों को रोजगार दिया हुआ है।
मृत्युंजय ने एक नामी इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रानिक एंड कम्युनिकेशन में बीटेक की डिग्री ली। इसके बाद दो साल तक उन्होंने एक कंपनी में काम किया। वहां उन्हें लाखों का पैकेज मिलता था, लेकिन उनके मन में कुछ अपना करने की थी। दो साल की नौकरी के बाद उन्होंने एमबीए करने की ठानी। मेहनत की, ‘कैट’ की परीक्षा पास की और रैकिंग के हिसाब से उनका 2012 में उदयपुर आईआईएम (इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ मैनेजमेंट) में दाखिला हो गया। वहां दो साल पढ़ने के बाद उन्होंने इंटर्नशिप शुरू की। इस दौरान वह विभिन्न कंपनियों में जाते और लोगों से मिलते। मृत्युंजय बताते हैं, ‘मैं जब भी किसी कंपनी में लोगों से मिलने जाता तो वहां चाय के साथ खाने के लिए स्नेक्स मिलते, जो स्वाद में तो ठीक होते लेकिन सेहत के लिहाज से अच्छे नहीं होते थे। यह देखकर मेरे मन में बिजनेस का विचार आया कि क्यों न कुछ ऐसा बनाया जाए जो स्वादिष्ट भी हो और सेहतमंद भी। इसके बाद मैंने इस विचार को लेकर मैंने अपने शिक्षकों से बात की। शिक्षकों ने मुझे व्यवयास करने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद मैंने बाजार में रिसर्च की कि लोग किस तरह की चीजों को चाय के साथ खाते हैं। तब विचार आया कि ऐसा सेहतमंद स्नेक्स बनाया जाए तो स्वादिष्ट हो और सेहत के लिए फायदेमंद भी हो। इसी विचार को लेकर सोयाबीन चिप्स और सोयाबीन स्टिक बनाने का ख्याल मन में आया। कॉलेज से निकलने के बाद महज दो लाख रुपए की लागत से छोटा सा काम शुरू किया। हमने अपने प्रोडक्ट को प्रिपटोस नाम दिया। इसी नाम से हमारा ब्रांड बाजार में है। शुरुआती दौर में कई बार दिक्कत
हुई लेकिन अब काम धीरे-धीरे चल निकला है।’ वह बताते हैं कि जब उनका काम थोड़ा चल निकला तो उन्होेंने अपने कॉलेज के अपने एक कनिष्ठ अश्विनी कुमार को अपने साथ जोड़ा। आज वे दोनों साथ मिलकर व्यवसाय करते हैं। वह प्रोडक्शन और क्वालिटी का काम देखते हैं जबकि अश्विनी सेल्स और मार्केटिंग का काम देखते हैं।’ अश्विनी बताते हैं कि आईआईएम में आने से पहले उनके पास करीब 8 साल का विभिन्न कंपनियों में काम करने का अनुभव था। इसी अनुभव को उन्होंने अपने यहां प्रयोग किया। आज व्यवसाय ठीक चल निकला है। धीरे-धीरे काम बढ़ रहा है। राजस्थान के बड़े शहरों में उनका उत्पाद पहुंच रहा है। इसके अलावा महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में भी उनके चिप्स की मांग बढ़ रही है।’ वह बताते हैं, ‘हम पूरी रणनीति बनाकर काम करते हैं। प्रोडक्शन  के दौरान गुणवत्ता को लेकर हम कोई समझौता नहीं करते।’  

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