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विश्व संवाद केन्द्र, मेरठ द्वारा पिछले दिनों दो दिवसीय पत्रकारिता प्रशिक्षण वर्ग का आयोजन किया गया। जिसमें चौ़ चरण सिंह विश्वविद्यालय, आईआईएमटी विश्वविद्यालय, सुभारती विश्वविद्यालय एवं रुद्रा कॉलेज के जनसंचार एवं पत्रकारिता के छात्रों ने भाग लिया। वर्ग के उद्घाटन सत्र पर मुख्य वक्ता लोकसभा टीवी के सम्पादक श्री श्याम किशोर सहाय ने कहा कि सत्य का अन्वेषण ही पत्रकार का काम है।
लोक मंगल की भावना से समाज के सामने सत्य रखना ही सच्ची पत्रकारिता है। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता का लक्ष्य लोगों का विवेक जाग्रत करना हो तो वह सर्वश्रेष्ठ बात होगी। लेकिन केवल जानकारियों के ज्ञान से विवेक नहीं मिलता। सर्वोत्तम ज्ञान वही है जो जीवन को पवित्र बनाए। इसके लिये पत्रकार को तत्वचिन्तन करते रहना चाहिये और अपनी विवेक शक्ति जगानी चाहिये।
वर्ग के अन्य सत्रों में समाचार संग्रह, लेखन तथा सम्पादन विषय पर दैनिक जागरण के वरिष्ठ उपसम्पादक श्री रामानुज, टेलीविजन पत्रकारिता विषय पर लोकसभा टीवी के प्रस्तुतकर्ता रामवीर श्रेष्ठ, सांस्कृतिक राष्टÑवाद विषय पर राष्टÑदेव के सम्पादक अजय मित्तल, ग्रामीण पत्रकारिता विषय पर प्रो़ नरेन्द्र मिश्र, खोजी पत्रकारिता विषय पर ड़ॉ अम्बरीश पाठक एवं विज्ञप्ति लेखन विषय पर डॉ़ मनोज श्रीवास्तव ने जानकारी दी। (विसंकें, मेरठ)
घुमंतु लोगों के साहित्य में भारतीय मिट्टी की सुगंध
गत दिनों पुणे के स्व़ भीमराव गस्ती साहित्यनगरी (राणीवकर पाठशाला) में सामाजिक समरसता मंच की ओर से साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया गया। यह 18वां आयोजन ‘घुमंतु लोगों का साहित्य और समरसता’ विषय पर केंन्द्रित रहा। घुमंतु जनजातियों के बीच लंबे समय से कार्य कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता श्री गिरीश प्रभुणे ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की।
इस अवसर पर श्री प्रभुणे ने कहा कि घुमंतु लोगों के बीच जब मैंने काम करना शुरू किया, तब मुझे कुछ भी पता नहीं था। धीरे-धीरे सीखता गया और एक-एक प्रसंग से उनका जीवन समझता गया। तब ध्यान में आया कि इन लोगों का अपना कोई स्थान नहीं है। कभी-कभी लगता था कि क्या यही जीवन है? लेकिन फिर पता चला कि घुमंतु लोगों के जीवन में ही भारत का इतिहास है। घुमंतु लोगों के पास आज भी अपार मौखिक साहित्य है, लेकिन जहां एक तरफ प्रत्येक जाति-जनजाति का इतिहास दम तोड़ रहा है वहीं दूसरी तरफ भारत के घुमंतु लोगों के जीवन से समृद्धता का दर्शन होता है। इसी समृद्धता से अजंता और एलोरा जैसी कलाकृतियां बनीं। साहित्य एवं कला यही लोग जीते हैं। उनको देखने के बाद प्रश्न उठता है कि क्या उन्हें वंचित कहा जाए? उन्होंने कहा कि ये समाज के वंचित घटक नहीं, बल्कि भारतीय ज्ञान व कला पूरे विश्व में फैलाने वाले साधन हैं। उनके पास अपार कौशल है, जिनका उपयोग करने हेतु उन्हें शिक्षा दी जानी चाहिए। इस अवसर पर सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं को पुरस्कार भी प्रदान किया गया। (विसंकें, पुणे)
‘वनवासी समाज के लिए कार्य करने की जरूरत’
छत्तीसगढ़ का बस्तर क्षेत्र नक्सली गतिविधियों के लिए ही जाना जाता है। इसी क्षेत्र के वनवासी समुदाय के लिए पिछले 30 वर्षों से वनवासी कल्याण आश्रम के साथ पूर्णकालिक के तौर पर कार्य करने वाली सुनीता गोडबोले को सामाजिक सेवा में उल्लेखनीय कार्य हेतु पिछले दिनों पुणे स्थित महर्षि कर्वे संस्था की ओर से ‘बाया कर्वे पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। सुनीता गोडबोले मूलत: पुणे की हैं। युवावस्था में स्रातक की शिक्षा के दौरान ही वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के काम से परिचित हुईं और बाद में अभाविप के कार्य में सक्रिय हुईं। सामाजिक कार्य करते हुए ही उन्होंने स्रेहदीप फाउंडेशन में नौकरी की।
सामाजिक कार्य करना है तो ग्रामीण क्षेत्रों में ही, यह निश्चय कर उन्होंने वन क्षेत्र में काम करने का निर्णय लिया। आरंभ में रायगढ़ जिले के जांभिवली केंद्र पर वनवासी कल्याण आश्रम में पूर्णकालिक रहकर काम किया। इसके बाद उन्होंने बस्तर क्षेत्र में भी वनवासी समाज के मध्य कार्य करना शुरू किया और वनवासी महिलाओं से संवाद कर उन्हें कल्याण आश्रम से जोड़ने का काम किया। पुरस्कार प्राप्ति के बाद सुनीता गोडबोले ने कहा कि हम जहां काम करते हैं, उस इलाके में वनवासियों के लिए बड़े पैमाने पर काम करने की जरूरत है। जो समाज अभी भी सारी बातों से वंचित है, उस समुदाय को विकास की मुख्यधारा में लाना चाहिए। (विसंकें,पुणे)
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