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हम हिंदू हैं और हम निष्ठा से मानते हैं कि हमारा धर्म सबसे अच्छा एवं विचार स्वातंत्र्य का महानतम वाहक है
तरुण विजय
स्वभाव और व्यवहार उस तरफ का हो जिधर देवता बैठते हैं, तभी तो आप दानवी प्रवृत्ति वालों से लड़ पायेंगे, अमृत निकाल पाएंगे और हलाहल को कंठ में धारण करने वाले शिव को अपने मध्य प्रतिष्ठित कर पाएंगे। यह कोई बहाना नहीं हो सकता कि सामने वाले जो कर रहे हैं, वह भले ही कितना खराब, त्याज्य, अस्वीकार्य और अभद्र क्यों न हो, चूंकि मुझे उसका सामना करना है, परास्त करना है और धूल-धूसरित करना है इसलिए मैं भी उतना ही अभद्र हो जाऊंगा और उस अस्वीकार्य अभद्रता को ओढ़ने में गर्व महसूस करूंगा।
महाराष्टÑ के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस तथा उनकी सहधर्मिणी अमृता विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता एवं भारत भारती की सांस्कृतिक चादर के धागों और रंगों को समझते हैं। आप मानते हैं तो मानिए, यदि नहीं मानते तो वह आपकी समस्या है। उन्होंने क्रिसमस के अवसर पर ईसाई समुदाय के एक कार्यक्रम में हिस्सेदारी की और क्रिसमस की बधाई दी। एक मुख्यमंत्री होने के नाते और संस्कृतिनिष्ठ, धार्मिक हिन्दू होने के नाते उन्हें ऐसा करना ही चाहिए था। लेकिन अनेक सोशल मीडिया वीरों को यह बात पसंद नहीं आई और उन्होंने दोनों को तीखी आलोचना का शिकार बनाया। इसका मुझे इसलिए दुख हुआ, क्योंकि क्या हमारा धर्म इतना कमजोर और तालिबानी किस्म का बंद बक्सा है कि एक भिन्न मतावलंबी सहयात्री भारतीय को उसके उत्सव की बधाई देने में भी मुझे आपत्ति हो? हम अभिमान और गौरव के साथ अपने धर्म को मानते हैं। धर्म की रक्षा के लिए जो भी संभव होगा, करने का प्रयास करते हैं। ‘रग-रग हिन्दू मेरा परिचय’ कहकर पूरे दम के साथ अपनी बात रखते हैं। हिंदू समाज के अनेक वर्गों को ईसाई तथा मुस्लिम कन्वर्जन के आक्रमणों से बचाने के लिए वातावरण भी बनाते हैं तथा अपना घर-बार, कैरियर छोड़ कर पूर्वांचल से लेकर देश की अनेक गिरिकंदराओं, वनों से भरे इलाके में जिंदगी भर काम करने का भी साहस दिखाते हैं। ऐसा करना उचित ही नहीं मानते बल्कि ऐसा सब लोग अधिक से अधिक संख्या में करें, इसका भी प्रयास करते हैं। लेकिन यह संभव नहीं हो सकता कि मैं डिब्बा बंद खुराक की तरह अपने आपमें सिमट जाऊं और वैसा हो जाऊं, जैसा होना मैं दूसरों के लिए भी खराब मानता हूं। यानी नफरत में भरकर मैं अच्छा हिंदू नहीं हो सकता। इसलिए देवेन्द्र फडणवीस और अमृता के ‘मैरी क्रिसमस’ कहने में मुझे अच्छा ही लगेगा, खुशी ही होगी।
हमलोग अनेक वर्षों से, जब मैं 1979 में पाञ्चजन्य में आया ही था, गोल मार्किट, नई दिल्ली के चर्च में क्रिसमस के समय यूं ही चले जाते हैं-परिवार के साथ। वहां सब भारतीय ही होते हैं। उनको खुश देखकर हमें भी अच्छा लगता है। उनको त्योहार मानते समय हमारे मन में पीड़ा नहीं होती। कन्वर्जन की भावना से लड़ना है तो उसके लिए जो करना है, वह करो। नफरत और अतिरेकी व्यवहार से हम अपना मन ही खराब करेंगे और अपने धर्म को ख्याति नहीं देंगे। मतभिन्नता का हम सम्मान करते हैं और इसके लिए हर व्याख्यान और लेख में हम चार्वाक को उद्धृत करते हैं, ‘ऋणं कृत्वा घृतं पीवेत्’ कहते हैं लेकिन क्या व्यवहार में मतभिन्नता एवं अपनी बात को ना मानने वाले के प्रति शालीन स्वीकार्यता दिखाते हैं? शायद बिल्कुल भी नहीं। हर कोई हमारे जैसा हो जाये, यह संभव भी नहीं एवं वांछनीय भी नहीं। केवल एक ही बिंदु है जहां इसका अपवाद हमें मान्य है और वह है राष्टÑ एवं राष्टÑीयता के प्रश्न। उस सीमा का उल्लंघन करने पर कोई क्षमा नहीं। या तो हम अपने महापुरुषों को पढ़ते नहीं, या उन्हें सुनते नहीं। स्वामी विवेकानंद से बढ़ कर हिंदू धर्म का व्याख्याता हम किसे कहेंगे? अमेरिका जाकर उन्होंने पाखंडी ईसाई पादरियों की धज्जियां उड़ा दी थीं। लेकिन उन्होंने रामकृष्ण मिशन में क्रिसमस मनाया जाना शामिल किया और दुनिया भर के रामकृष्ण मिशन आज भी क्रिसमस मानते हैं। इसका उत्तर यह नहीं हो सकता कि चूंकि चर्च में दीवाली नहीं मनाई जाती इसलिए हम उनका क्रिसमस क्यूं मनाएं। हम हिंदू हैं और हम निष्ठा से मानते हैं कि हमारा धर्म सबसे अच्छा एवं विचार स्वातंत्र्य का महानतम वाहक है। बस यहां से बात शुरू होती है।
अगर अपनी धर्म रक्षा और संस्कृतिनिष्ठा का उद्दाम प्रवाह हमारे भीतर बह रहा है तो मंदिरों में स्वच्छता, तीर्थ स्थानों में पण्डों का सद्व्यवहार, अनुसूचित जातियों और जनजातियों के साथ समरसता और समानता का व्यवहार सुनिश्चित करिये। जब मैं इन पंक्तियों को लिख रहा हूं तो तमिलनाडु की एक अदालत ने कौशल्या-शंकर हत्याकांड में 6 आरोपियों को मृत्युदंड सुनाया है। कौशल्या तथाकथित उच्च जाति की 20 वर्षीय लड़की ने अनुसूचित जाति के 21 वर्षीय युवक शंकर से विवाह किया। कौशल्या के माता-पिता और रिश्तेदारों ने बस से उतर रहे शंकर को चौराहे पर पीट-पीट कर मार दिया। दोनों हिंदू थे लेकिन समानता स्वीकार्य नहीं थी। आज भी श्मशान घाट अलग, अनेक मंदिरों में प्रवेश के लिए दिक्कतें विद्यमान हैं। केवल राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ शांति, सद्भाव एवं आत्मीयता से हिंदू समाज की रक्षा के लिए जाति-विद्वेष के विष को खत्म करने का प्रयास कर रहा है। वर्तमान सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने सभी स्वयंसेवकों को यह सुनिश्चित करने का आह्वान किया है कि हिंदू समाज के सभी वर्गों के लिए एक श्मशान घाट, निर्बाध मंदिर प्रवेश एवं समत्व भरे सम्मान के साथ-साथ भोजन सुनिश्चित करना चाहिए। यह है वर्तमान और भविष्य का धर्म पथ जिस पर चलकर ही राष्टÑ रक्षा हो सकती है। छोटी-छोटी कलहों में बड़े उद्देश्य नहीं भूलने चाहिए। ल्ल
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