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गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनावी माहौल गर्म है। ऐसे में आतंकवाद और अलगावाद के मामले में कांग्रेसी नेता अहमद पटेल और पी.चिदंबरम की बोली-शैली ने कांग्रेस को सवालों के कठघरे में खड़ा कर दिया है। भाजपा कांग्रेस को घेरने में जुट गई है। कांग्रेस जातिवाद के सहारे गुजरात में खड़ा होने की कोशिश कर रही है, लेकिन उत्तर प्रदेश सहित देश के कई चुनाव इस बात का प्रमाण हैं कि जातिवाद को परे रख मतदाताओं ने राज्य के विकास के लिए वोट किया और आतंकवाद एवं अलगावाद जैसे मुद्दों के सहारे मजहबी राजनीति करने वालों को सबक सिखाया
कहने को तो अहमद पटेल की हैसियत सिर्फ सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव की है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में हर कोई जानता है कि 2004 से 2014 तक पटेल की मर्जी के बिना कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में एक पत्ता तक नहीं हिलता था। कहा तो यहां तक जाता है कि वे उस वक्त के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी ज्यादा ताकतवर थे। ऐसे ताकतवर कांग्रेसी नेता को नाम का किसी भी तरह किसी आतंकवादी से जुड़ाव के संबंध में सामने आना गंभीर सवाल खडेÞ करता है। कारण, मामला आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है। जिस तरह से यह मामला सामने आया है, उससे सुरक्षा एजेंसियों के कान खड़े हो गए हैं। पिछले दिनों सूरत में अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी गिरोह आईएसआईएस के दो आतंकवादी मोहम्मद कासिम और ओबैद पकड़े गए थे। इनमें से कासिम अंकलेश्वर के सरदार पटेल अस्पताल में काम करता था। गौरतलब है कि अहमद पटेल इस अस्पताल के अनेक वर्ष तक न्यासी रहे हैं। इसलिए इस संदर्भ में उनसे जवाब मांगा जा रहा है। बताया जाता है कि अंकलेश्वर में बने इस अस्पताल, जिसका उद्घाटन तत्कालीन राष्टÑपति के हाथों हुआ था, में कार्यरत आतंकी कासिम ने गिरफ्तारी से केवल दो रोज पहले इस्तीफा दिया था। कासिम सरदार पटेल अस्पताल के ईको-कॉर्डियोग्राम विभाग में तकनीकी काम देखता था जबकि दूसरा आरोपी सूरत जिला न्यायालय में वकील था।
लोग तब और हैरान हो रह जब गुजरात के राजकोट में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘कश्मीर घाटी में अनुच्छेद 370 का अक्षरश: सम्मान करने की मांग की जाती है, जिसका मतलब है कि वे अधिक स्वायत्तता चाहते हैं। अधिक स्वायत्तता के सवाल पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और इस पर गौर करना चाहिए कि किन क्षेत्रों में स्वायत्तता दी जा सकती है।’’ चिदंबरम ने जुलाई, 2016 में भी जम्मू-कश्मीर को अधिक स्वायत्तता देने की हिमायत की थी। आतंकवाद और अलगाववाद के मुद्दे पर इन नेताओं के रवैयै पर अनेक सवाल खड़े हो रहे हैं। जैसा कि राजकोट के व्यवसायी आनंद पटेल कहते हैं, ‘‘आतंकवादियों से अहमद पटेल का नाता और कश्मीर पर चिदंबरम का बयान हैरान कर देने वाला है। देश की सबसे पुरानी पार्टी कही जाने वाली कांग्रेस के नेताओं से इस प्रकार की कार्यशैली की उम्मीद नहीं की जा सकती। आखिर इतना गिरकर कांग्रेस कैसे उठेगी।’’ वहीं अमदाबाद के वेदान्त रावल कहते हैं, ‘‘पिछले कुछ अरसे से आतंकवाद और कश्मीर जैसे मुद्दों पर कांग्रेसी नेताओं का रवैया बहुत ही खराब रहा है। उनका यह दृष्टिकोण देश के लिए घातक साबित हो रहा है।’’ रावल पूछते हैं- आखिर क्यों अलगाव या आतंकवाद पर कांग्रेस नेता विवादित बयानबाजी करते हैं?
स्वाभाविक है कि इस मुद्दे पर भाजपा कांग्रेस को घेरने में जुट गई है। वरिष्ठ भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी कहते हैं, ‘‘चिदंबरम ने स्वायत्तता पर जो बयान दिया है उस बारे में संविधान के अंदर कोई प्रावधान नहीं है। ऐसा बोलकर उन्होंने देशद्रोही तत्वों का सा भाव जताया है।’’ वहीं सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी ने ट्वीट कर कहा, ‘‘चिदंबरम का अलगाववादियों और ‘आजादी’ का समर्थन करना हैरान करने वाला है। हालांकि मैं आश्चर्यचकित नहीं हूं क्योंकि उनके नेता ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ नारे का समर्थन करते हैं।’’ उन्होंने कहा,‘‘यह शर्मनाक है कि चिदंबरम ने सरदार पटेल के जन्म-स्थल गुजरात में यह बोला, जिन्होंने भारत की एकता एवं खुशहाली के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।’’ वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कांग्रेस पर जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाया और कहा कि चिदंबरम का बयान भारत के राष्ट्रीय हित को नुकसान पहुंचाता है जो एक गंभीर मुद्दा है।
गौरतलब है कि ताजा प्रकरण से पूर्व भी अहमद पटेल पर गंभीर आरोप लगते रहे हैं। रॉ के पूर्व अधिकारी आरके यादव ने पटेल पर कई सनसनीखेज आरोप लगाए हैं। 2014 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘मिशन आर. एंड ए. डब्ल्यू’ में यादव इन आरोपों को लेकर मुखर रहे हैं। उनके अनुसार यूपीए सरकार के दौरान अहमद पटेल ने रॉ को अपनी निजी कंपनी की तरह चलाया। उन्होंने किताब में रॉ में चल रही गड़बड़ियों के बारे में भी बताया है। उनके मुताबिक ‘‘यूपीए के समय में राष्ट्रीय सुरक्षा को ताक पर रख दिया गया और अयोग्य किस्म के लोगों को इसका प्रमुख बनाया गया।’’ यादव ने अगस्त में गुजरात में राज्यसभा के लिए हुए चुनाव के वक्त ट्विटर पर लिखा था, ‘‘मुझे इससे मतलब नहीं कि गुजरात में राज्यसभा चुनाव में कौन-सी पार्टी जीतती है, लेकिन अहमद पटेल का हारना जरूरी है। उन्होंने यूपीए सरकार के दस साल में रॉ को कलंकित कर दिया।’’ रॉ के एक पूर्व अधिकारी के ये आरोप बेहद गंभीर हैं। हालांकि इनमें कितनी सचाई है, यह जांच का विषय है। लेकिन यह बात भी है कि उनके आरोपों को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। इसलिए अहमद पटेल से जुड़ा यह प्रकरण चुनावी माहौल को गरमा रहा है। भाजपा इस मुद्दे को जोर-शोर से उठा रही है, वहीं कांगे्रेस इन मुद्दों को भाजपा का चुनावी शिगूफा बता रही है। इस प्रकरण में अहमद पटेल ने केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह को चिट्ठी लिखते हुए मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है। साथ ही उन्होंने आग्रह किया है कि जांच में अकारण उनका नाम न घसीटा जाए।
दरअसल, मामले ने तब तूल पकड़ा जब राज्य के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि जो आतंकी पकड़े गए हैं उनमें से एक आतंकी उस अस्पताल में काम करता था जिससे अहमद पटेल जुड़े रहे। जवाब में कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने दिल्ली में कहा कि अहमद पटेल ने अस्पताल से 2014 में इस्तीफा दे दिया था, इसके बाद वे अस्पताल से किसी भी तरह जुड़े नहीं थे। ऐसे में अगर कोई शख्स किसी आरोप में पकड़ा जाता है तो साल 2014 के ट्रस्टी को जिम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता है?
आतंकवाद पर हमलावर होकर भाजपा पहले से ही राष्ट्रवाद की अपनी सियासी जमीन मजबूत करती रही है। अहमद पटेल गुजरात से ही कांग्रेस के राज्यसभा सांसद हैं और हाल ही में हुए राज्यसभा चुनाव में बड़े सियासी नाटक के बाद उन्हें जीत मिली थी। कांग्रेस की तरफ से भले ही किसी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनाया गया हो, लेकिन इस वक्त गुजरात में कांग्रेस का चेहरा अहमद पटेल ही माने जा रहे हैं। ऐसे में आईएसआईएस के गिरफ्तार आतंकवादी के मुद्दे पर उन्हें कठघरे में खड़ा कर भाजपा कांग्रेस से सवाल पूछ रही है। इसके पहले के गुजरात विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद से लेकर कई दूसरे अपराधियों के सफाए के मुद्दे पर भी कांग्रेस को पछाड़ दिया था।
सोहराबुद्दीन से लेकर इशरत जहां के मसले पर भी विरोधियों ने भाजपा को जितना घेरने की कोशिश की थी, उतना ही पार्टी को फायदा मिला। शायद इसी छटपटाहट ने अब अहमद पटेल को सफाई देने पर मजबूर कर दिया है। हालांकि अहमद पटेल और चिंदबरम भाजपा पर आतंकवाद पर राजनीति करने का आरोप लगा रहे हैं। लेकिन सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर कांग्रेस की अलगाववाद और आतंकवाद को लेकर नकारात्मक छवि क्यों बन रही है! क्या इसके लिए खुद कांग्रेस के नेता जिम्मेदार नहीं हैं? केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी के अनुसार, ‘‘अभी तक लोग कहते थे कांग्रेस का हाथ, भ्रष्टाचार के साथ, लेकिन अब कहेंगे, ‘कांग्रेस का हाथ, आतंकवाद के साथ।’’ नकवी द्वारा कही गई इस बात ने कांग्रेस की राजनीति पर सीधी चोट कर उसे चर्चा के लिए चौराहे पर ला खड़ा किया है।
दरअसल, बीते कुछ सालों में कांग्रेस और उसके नेताओं ने कई ऐसी भंगिमाएं दिखाई अथवा वक्तव्य दिए हैं जिनसे देश में आतंकवाद और अलगाववाद समर्थकों का हौसला बढ़ा। सूरत के किशोर सवानी सवालिया लहजे में कहते हैं, ‘‘यह बात समझ में नहीं आती कि कांगे्रस के नेता बार-बार आतंकवादियों और अलगाववादियों के साथ क्यों खड़े हो जाते हैं?’’ ताजा प्रकरण को यदि एक ओर रख भी दें तो जनता की यह प्रश्नवाचक मुद्रा संभवत: कुछ पिछले मामलों को उघाड़ती लगती है। चुनावी माहौल में ये सवाल पर्याप्त तीखे हैं।
जाहिर है, सवानी जैसे लोगों का इशारा कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह आदि की ओर था। उल्लेखनीय है कि दिग्विजय सिंह ने ओसामा बिन लादेन जैसा आतंकी सरगना को सम्मान देते हुए उसके नाम के साथ ‘जी’ लगाया था। उन्हीं दिग्विजय ने अभी फरार चल रहे मुंबई के जाकिर नाईक को कभी ‘शांति का दूत’ बताया था। यहीं नहीं, उन्होंने दिल्ली के बाटला हाउस में मारे गए आतंकियों के लिए न्यायिक जांच की मांग की थी। वहीं सलमान खुर्शीद ने कहा था, ‘‘बाटला हाउस में मुसलमान युवकों के मारे जाने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी रात भर सो नहीं पाई थीं।’’ जाकिर नाइक की संस्था इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन और राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट के बीच चंदे का कथित रिश्ता भी कांग्रेस की घेराबंदी का कारण बन रहा है। बहरहाल, जो कांग्रेस जातिवादी कार्ड के जरिए गुजरात में कल तक कसकर ताल ठोक रही थी वहीं ताजा घटनाक्रम के छींटों ने पार्टी के दिग्गजों के दम को फुला दिया है।
पर्दे के पीछे रहकर राजनीति करने वाले अहमद पटेल जानते हैं कि इस तरह की एक छोटी चिनगारी भी उनके सियासी सपनों का महल जला सकती है। उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों के चुनाव नतीजे इस बात का प्रमाण हैं कि जातिवाद को परे रखकर मतदाताओं ने पारदर्शिता और विकास के लिए मतदान किया और तुष्टीकरण, अलगाववाद या आतंकवाद पर विवादित रुख रखने वालों की जमकर खबर ली। कांग्रेस गुजरात में दौड़ने के लिए खड़ी तो हुई किन्तु विवादों के छींटों ने उसे लड़खड़ाकर गिरा दिया…जनता पूछ रही है -इस कदर गिरकर कांग्रेस उठेगी कैसे?
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