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सोशल मीडिया – वामपंथ दुनिया का सबसे गैर-जिम्मेदार विचार

by
Nov 6, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Nov 2017 10:11:56

जो लोग मुख्यधारा और वामपंथ को समझना चाहते हैं, यह पोस्ट मैं उनके लिए लिख रहा हूं। वामपंथ क्या है? वामपंथ हमेशा हमलावर होता है। इसे कुछ बचाना नहीं होता। इसकी कोई जिम्मेवारी भी नहीं होती। यह दुनिया का सबसे गैर-जिम्मेवार विचार है। वामपंथ सिर्फ सवाल उठाता है और समाधान में ऐसी ​आदर्श स्थिति पेश करता है, जिसे देश में आज तक किसी भी कम्युनिस्ट सरकार ने नहीं साधा। वामपंथ जाति-धर्म के नाम पर, परंपराओं के सवाल पर समाज को भड़काने व उकसाने का काम करता है। इससे वामपंथ को कोई नुकसान नहीं होता, क्योंकि उसकी परवरिश ही समाज को तोड़ने के लिए हुई है। सवर्ण व दलितों में मेल हो, इसे लेकर वामपंथियों की ओर से कोई प्रयास नहीं मिलेगा। उनकी कोशिश यही होगी कि दलितों में किस तरकीब से असंतोष बढ़े और वे मुसलमान, ईसाई या सनातन के ही एक पंथ बौद्ध को अपनाएं। जनजातीय समाज को किस तरह सनातन धर्म के खिलाफ खड़ा किया जाए, जिससे वे चर्च की तरफ आकर्षित हों। वामपंथियों के किसी आंदोलन में यह सवाल नहीं मिलेगा कि प्रकृति की पूजा करने वाले जनजातीय समाज को चर्च अपने जाल में क्यों फांस रहा है? गैर वामपंथ जो समाज की मुख्यधारा भी है, पर वामपंथी उसे जान-बूझकर दक्षिणपंथ कहते हैं। वास्तव में दक्षिणपंथ कोई विचार नहीं है। इसे वामपंथ का षड्यंत्र ही समझिए। उनकी सारी ताकत कुतर्कों का जवाब तलाशने में खत्म हो जाती है। दरअसल, आक्रामक होना, हमेशा रक्षात्मक होने से आसान है। जो बचाव में होता है, उसे हमलावर लोगों से अधिक सतर्क रहना पड़ता है, क्योंकि हमलावर कभी भी हमला कर सकता है।
वामपंथी किसी बात के लिए जवाबदेह नहीं हैं। वे सिर्फ सवाल पूछने के लिए पैदा हुए हैं। जो कभी सवालों के जवाब न दे, वह वामपंथी है। जो सिर्फ सवाल पूछने को अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझे, वह वामपंथी है। जिसका समाज, देश के प्रति कोई दायित्व न हो, वह वामपंथी है।
    (आशीष कुमार अंशु की फेसबुक वॉल से)

वामपंथ एक अभिशाप
कार्ल मार्क्स, जो कम्युनिज्म के पिता हैं और जिन्होंने कभी भारत में पैर तक नहीं रखा, भारत संबंधित काल्पनिक ग्रंथ लिख दिया। केवल उनके कुछ दोस्त भारत घूमने आए थे और मार्क्स ने उन्हीं से सुनी-सुनाई       बातें लिख दीं।
वामपंथ के पितामह काल्पनिक जीवनशैली जीते थे। वे जो सुनते थे, उसी को महसूस कर लिखते थे। ईसाइयत का त्याग कर मार्क्स ने जिस वामपंथ को गढ़ा, जानते हैं उसका उद्देश्य क्या है? पहला उद्देश्य है- पूंजीवाद और जमींदारों को मिटाना। पूंजीवाद और जमींदारों के मातहत जो भी श्रमिक और किसान काम करते हैं, उनमें और उस पूंजीवादी या जमींदार में कोई भेदभाव नहीं रहना चाहिए। यानी पूंजीवादी या जमींदार अपना सारा धन श्रमिकों व किसानों में बांट दे। ऐसे कई मूर्खतापूर्ण विश्लेषण दास कैपिटल (जर्मन : दास कैपिटल; अर्थ-पूंजी) में मिल जाएंगे। दूसरा उद्देश्य है- भेदभाव मिटाना। हालांकि सबसे बड़ा भेदभाव इनके बीच ही था। मार्क्स के उद्देश्यों को उनके अपने लोगों ने ही गलत साबित कर उन्हें बदलने का प्रस्ताव रखा, इसलिए मार्क्सवादियों द्वारा मार्क्स पर 10,589 किताबें, एक लाख से अधिक सिद्धांत लिखे गए। सवाल है कि जिनके अपने विचारों में ही मतभेद हो, वे समाज से भेदभाव क्या मिटाएंगे? इनका लक्ष्य समाज में अराजकता, आतंकवाद, भुखमरी फैलाना और उन्नत देश को सौ साल पीछे धकेलना है। वामपंथी महिलाओं की आजादी की बात करते हैं। लेकिन कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो के दूसरे और पांचवें अध्याय में महिलाओं को समाजवाद का अभिशाप माना गया है। मार्क्स ने ह्यऋीे्रल्ल्र२े उ४'३ ङ्मा रङ्मू्रं'्र२ेह्णऔर पांचवें अध्याय में महिलाओं को दल या संगठन में किसी भी तरह का अधिकार नहीं देने की बात कही है। उन्होंने कहा है कि महिलाएं केवल घर निर्माण योग्य हैं। उन्हें किसी उच्च पद पर नहीं बैठाया सकता। यह है वामपंथी मानसिकता! मार्क्स पुत्र मनुस्मृति जलाते हैं, पर कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो का नाम आने पर बात बदल देते हैं। मनुस्मृति नारी विरोधी नहीं है, लेकिन कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो नारी विरोधी है। इस बात के मेरे पास 1200 प्रमाण हैं कि वामपंथ नारी विरोधी है।      (राम गोपाल की फेसबुक वॉल से)

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