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इतिहास के पन्नों से पाञ्चजन्य
वर्ष: 1४ अंक: 10
12 सितम्बर ,1960
आक्रमणग्रस्त अवस्था का दुरुपयोग कर किसी भी कीमत पर पाकिस्तान को तुष्ट करने के प्रयत्न का विरोध होगा
पश्चिमी साम्राज्यवाद तो अंतिम सांस ले रहा है पर हमारे पड़ोस में स्वतंत्रता के आवरण में एक नया घातक साम्राज्यवाद सर उठा रहा है
लोकसभा में विदेश नीति पर श्री अटल बिहारी वाजपेयी की चेतावनी
सभापति जी! कम्युनिस्ट पार्टी के डिप्टी लीडर, प्रोफेसर श्री हीरेन मुकर्जर्ी ने, अपने भाषण में हमारे प्रधानमंत्री को एक चुनौती दी है। मुझे विश्वास है कि उसका उत्तर दिया जाएगा। केंद्रीय सरकार के पास राज्य की सरकारों से और पहाड़ी जिलों से जरूर ऐसी खबरें आयी होंगी। जिनसे यह साबित किया जा सके कि कम्युनिस्ट पार्टी उन जिलों में चीन के आक्रमण के सवाल पर गलत ढंग से प्रचार कर रही है। मैं अपने कम्युनिस्ट दोस्तों का ध्यान इस सप्ताह के बम्बई के ब्लिट्ज की ओर दिलाना चाहता हूं। बिल्ट्ज पर कोई यह आरोप नहीं लगा सकता है कि वह कम्युनिस्ट विरोधी है। अगर उस पर आरोप लगता है, तो वह यही है कि यह कम्युनिस्टों की तरह काफी झुका हुआ है। लेकिन इस सप्ताह के ब्लिट्ज ने
लिखा है-
''उत्तरी गढ़वाल में चानई और थानई-नानई नाम के गांव हैं। कम्युनिस्टों ने लोगों से कहा है कि ये गांव चीन के हैं, क्योंकि इनके नाम चीनी जैसे मालूम पड़ते हैं।'' अन्य पहाड़ी जिलों में स्थानीय कम्युनिस्ट भारत सरकार पर यह आरोप लगा रहे हैं कि उसने बेकारी तथा महंगाई की ओर से जनता का ध्यान बंटाने के लिए चीनी आक्रमण का हौवा खड़ा कर रखा है। मेरा निवेदन है कि अगर यह खबर गलत है, तो कम्युनिस्ट पार्टी के हमारे माननीय सदस्यों को इस अखबार पर मुकदमा चलाना चाहिए और उसे माफी मांगने पर मजबूर करना चाहिए। लेकिन इस तरह की खबरें और भी मिली हैं। मैं पिछले साल जब अलमोड़ा गया था, तो वहां के लोगों ने मुझे बताया कि कम्युनिस्ट पार्टी से संबंधित एक सांस्कृतिक संगठन है, तो सीमावर्ती क्षेत्रों में नाटक पर अभिनय के द्वारा लोगों को आकृष्ट करता है और उस मंडली ने वहां एक ऐसा नाटक किया, जिसमें चीनी सेना को 'लिबरेशन' आर्मर्ी (मुक्ति सेना) के रूप में भारत में आए हुए दिखाया गया था। मैं चाहूंगा कि कम्युनिस्ट पार्टी के प्रवक्ता इन आरोपों का ठीक तरह से उत्तर दें। सवाल यहां केवल 'न्यू एज' का नहीं है, जिनका उल्लेख प्रधानमंत्री जी ने किया है। लखनऊ से न्यू एज का हिन्दी संस्करण निकलता है, जिसका नाम अनयुग है। उस पत्र ने उत्तर प्रदेश के एक विज्ञापन को छापा था। उत्तर प्रदेश की सरकार ने, जब चीन की आक्रमक गतिविधियां बढ़ने लगीं तो प्रदेश के सभी हिंदी अखबारों को एक विज्ञापन दिया। मैं उस विज्ञापन को आपको पढ़कर सुनाता हूं:- उत्तर प्रदेश के निवासियो! देश की उत्तरी सीमा की रक्षा का भार विशेष रूप से आप पर है। चीन का सामना और आक्रमक कार्रवाइयों का हम पारस्परिक सहयोग और संगठित प्रयत्न से ही कर सकते हैं। प्रदेश की सरकार पूरे राज्य और विशेषतया सीमावर्तर्ी क्षेत्रों के विकास के लिए योजनाएं चला रही है। इन योजनाओं को सफल बनाकर आप स्वदेश प्रेम का परिचय देने और राष्ट्र की हानि बढ़ाने में सहायक बनेंगे।''
तीसरी योजना की रूपरेखा :
कुछ आशंकाएं
पं. दीनदयाल उपाध्याय
तीसरी पंचवार्षिक योजना की रूपरेखा का प्रारूप दिनांक 6 जुलाई,1960 को प्रकाशित किया गया। जनमत जानने के जिस उद्देश्य से योजना आयोग ने प्रारूप का प्रकाशन किया उसकी दृष्टि से यह समय अत्यंत अनुपयुक्त था। कारण, केंद्रीय कर्मचारियों की आम हड़ताल का प्रश्न इतना अधिक राष्ट्रीय और सामयिक महत्व का था कि योजना के प्रारूप की ओर स्वभावत: अनेक लोगों का दुर्लक्ष्य हो गया। जो विशेषज्ञ हैं अथवा जिनको इस ओर विशेष रुचि है उनका ध्यान तो अवश्य गया किन्तु जन साधारण, जिससे अपेक्षा है कि वह योजना को पूरा करने के प्रयास में अपना योगदान करे, अछूता ही रह गया। आवश्यकता है कि इस महत्व के प्रश्न पर व्यापक रूप से विचार हो।
संख्या में यद्यपि यह तीसरी योजना है किन्तु योजानात्मक विकास की दृष्टि से इसे दूसरी ही कहना समीचीन होगा, क्योंकि प्रथम योजना तो अपनी अवधि के दो वर्ष बाद सामने आई और दूसरे उसमें विभिन्न राज्यों द्वारा हाथ में लिए गए कार्यकर्मों के संकलन के अतिरिक्त नियोजित विकास के सिद्धान्तों की कोई व्यवहार में लाने वाली रूपरेखा नहीं प्रस्तुत की गई थी। किन्तु दूसरी योजना में इस बात का सैद्धान्तिक विवेचन हुआ और उन सिद्धांतों के आधार पर आगे के कार्यक्रम भी प्रस्तुत कि ए गए। समाजवाद के जिस उद्देश्य को लेकर नियोजित विकास की नीति शासन ने अंगीकार की उसका भी स्पष्टतया उल्लेख किया गया। तृतीय योजना का विचार करने के पूर्व हमें दूसरी योजना की उपलब्धियों का और विशेषकर उन नीतियों का, जिन्हें नियोजन में आधारभूत स्थान दिया गया है विचार कर लेना चाहिए, क्योंकि उनके परिणामों पर ही तृतीय योजना का ढांचा खड़ा करता पड़ेगा। आंकड़ों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि दूसरी योजना के वित्तीय लक्ष्य विनियोजन की दृष्टि से निजी और सार्वजनिक क्षेत्र दोनों को मिलाकर पूरे ही नहीं हो जाएंगे। दूसरी योजना में सार्वजनिक क्षेत्र में 3800 करोड़ रु. निजी क्षेत्र में 2400 करोड़ रु. के विनियोजन का लक्ष्य रखा था। योजना आयोग द्वारा हाल में प्रकाशित अनुमान के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र में 3650 करोड़ रु. तथा निजी क्षेत्र में 3100 करोड़ की पूंजी निर्माण की आशा है। अर्थात् सार्वजनिक क्षेत्र की कमी को निजी क्षेत्र ने पूरा ही नहीं किया, कुछ आगे भी कदम बढ़ाया है।
हम पुजारी सनातन संस्कृति के
''हमें उन लोगों के प्रति सावधान रहना चाहिए, जो प्रत्येक जन-आंदोलन के पीछे कम्युनिस्टों का हाथ देखते हैं और उसे दबाने की सलाह देते हैं। जन-आंदोलन एक बदलती हुई व्यवस्था के युग में स्वाभाविक और आवश्यक है। .. हमें उनके साथ चलना होगा, उनका नेतृत्व करना होगा। जो राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक क्षेत्र में यथास्थिति बनाए रखना चाहते हैं, वे इस जागरण से घबराकर आतंक का वातावरण बना रहे हैं। हम अतीत के गौरव से अनुप्राणित हैं, परंतु उसको भारत के राष्ट्र जीवन का सर्वोच्च बिंदु नहीं मानते। हम वर्तमान के प्रति यथार्थवादी हैं, किंतु उससे बंधे नहीं। हमारी आंखों में भविष्य के स्वर्णिम सपने हैं, किंतु हम निद्रालु नहीं, बल्कि उन सपनों को साकार करने वाले कर्मयोगी हैं। अनादि-अतीत, अस्थिर-वर्तमान तथा चिरंतन भविष्य की, कालजयी सनातन संस्कृति के हम पुजारी हैं। विजय का विश्वास है, तपस्या का निश्चय लेकर चलें। ''
—पं. दीनदयाल उपाध्याय (पं. दीनदयाल उपाध्याय कतृर्त्व एवं विचार, पृ. 105)
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