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बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति।।
‘रामचरितमानस’ के सुंदरकांड की इस विख्यात चौपाई का संदेश त्रेतायुग से लेकर आजतक एक जैसा ही है। इसके भाव में रत्तीभर भी परिवर्तन नहीं हुआ। प्रसंग है कि जब श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण के साथ विनयपूर्वक समुद्र तट पर बैठ गए थे, इस आशा में कि रत्नाकर उनकी सेना को पार जाने में सहायता करेगा, किंतु जब उस विनय का कोई प्रभाव नहीं हुआ, तब वे समझ गए कि अब अपनी शक्ति से उसमें भय उत्पन्न करना अनिवार्य है।
आज की केंद्र सरकार आतंकवादियों और नक्सलियों से निबटने के लिए कुछ इसी तरह की नीति पर चलती दिखाई पड़ रही है। सरकार का संकल्प आईने की तरह स्पष्ट है कि आने वाले समय में इन आततायियों को जड़मूल से खत्म करना ही है। और इस नीति का परिणाम सामने है।
सुरक्षाबलों द्वारा कश्मीर में चलाया जा रहा ‘आॅपरेशन आॅल आउट’ और छत्तीसगढ़ में चलाए जा रहे ‘आॅपरेशन प्रहार’, ‘समाधान’ जैसे अभियानों का असर दिखाई ही नहीं पड़ रहा, बल्कि बोल रहा है। इन अभियानों ने आतंकवादियों और नक्सलियों की कमर तोड़कर रख दी है। सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस का दावा है कि पिछले 10 महीने के अंदर जम्मू-कश्मीर में 195 आतंकी मारे गए हैं और लश्कर के नेतृत्व का तो सफाया ही हो गया है। मारे गए आतंकवादियों में 110 विदेशी हैं। इनमें 67 आतंकवादी नियंत्रण रेखा पार करते वक्त मारे गए। सुरक्षा बलों के आक्रामक रवैए और अपने परिजनों की आर्त-पुकार सुनकर कई आतंकवादी आत्मसमर्पण करने पर मजबूर हुए हैं। अमन-पसंद लोगों की राय है कि आतंकवादियों के इतनी बड़ी संख्या में मारे जाने से कश्मीर घाटी में धीरे-धीरे ही सही, शांति की वापसी होने लगी है। यह देख आतंकवादियों के आका हैरान तो हैं, लेकिन हरदम घाटी को रक्तरंजित करने के प्रयास करते ही रहते हैं। हालांकि हमारे वीर सैनिक अपनी जान गंवा कर भी उनके मंसूबों को सफल नहीं होने दे रहे। सेना की यह कार्रवाई तब और रंग ला सकती है, जब स्वायत्तता के नाम पर पाकिस्तान की ‘दलाली’ करने वालों पर लगाम लगाई जाए। ऐसे लोग अपने बयानों से सेना के मनोबल को तो गिराते ही हैं, साथ ही वहां के युवाओं को भड़काते हैं। इन लोगों के विरुद्ध भी कार्रवाई होनी चाहिए।
इधर कई राज्यों के लिए नासूर बन चुके नक्सली खुद ही स्वीकार कर चुके हैं कि सुरक्षाकर्मियों ने 10 महीने में उनके 140 लोगों को मार गिराया है। इनमें 30 महिला नक्सली थीं। नक्सलियों से जुड़ी ‘जन मुक्ति छापामार सेना’ के स्थापना दिवस से पहले इसके केंद्रीय सैन्य आयोग द्वारा मीडिया को भेजी गई रपट में कहा गया है कि सुरक्षा बलों ने उन्हें बहुत नुकसान पहुंचाया है। यह भी कहा गया है कि 2017 में सुरक्षा बलों ने जबरदस्त आक्रामक रवैया अपनाया और मारने के साथ-साथ हथियार और कारतूस जब्त किए। पुलिस ने दावा किया है कि नक्सलियों के आत्मसमर्पण से भी नक्सली संगठन कमजोर हो रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि देश के 10 राज्यों में 100 से अधिक जिलों में नक्सली गतिविधियां अधिक हैं। झारखंड सरकार ने घोषणा की है कि इस साल 31 दिसंबर तक राज्य से नक्सलियों का पूरा सफाया कर दिया जाएगा। वहीं छत्तीसगढ़ में भी नक्सलियों को खत्म करने की मुहिम जोर-शोर से चल रही है। आतंकवाद और नक्सलवाद को कमजोर करने में नोटबंदी की भी अहम भूमिका रही। पैसे के अभाव में नक्सली हथियार नहीं खरीद पा रहे हैं। इस सबके लिए सरकार की मुक्त कंठ से सराहना करनी ही चाहिए।
सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति और देशविरोधी शक्तियों के विरुद्ध आक्रामक रवैए को देखते हुए कह सकते हैं कि निकट भविष्य में देश से आतंकवाद और नक्सलवाद जैसी समस्याएं जड़मूल से खत्म हो जाएगी।
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