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चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे ने भले कुछ न किया हो, बलूचिस्तान के प्रति पाकिस्तान के व्यवहार में एक बड़ा बदलाव ला दिया है। बलूचिस्तान के गवर्नर रहे नवाब अकबर खान बुगती की पाकिस्तानी फौज के हाथों हत्या के बाद समय-समय पर बलूचिस्तान में सैन्य कार्रवाई होती रही है। लेकिन जब से चीन- पाकिस्तान आर्थिक गलियारे पर काम शुरू हुआ है, फौजी अत्याचार में निरंतरता आ गई है। अब वहां जमीनी और हवाई कार्रवाई भी शुरू हो गई है। इसका नतीजा यह हुआ कि अब तक विभिन्न कारणों से एक मंच पर नहीं आ सके बलूच नेता और गुटों के एकजुट होने की जमीन तैयार हो गई। कई दौर की बैठकों के बाद इन नेताओं के बीच बलूचिस्तान की आजादी के लिए साथ मिलकर लड़ने को लेकर मोटे तौर पर सहमति बन चुकी है और संयुक्त मोर्चे को अंतिम रूप देने की तैयारी के सिलसिले में जल्द ही इनकी बैठक होने वाली है। इस संयुक्त मोर्चे की रूपरेखा तय करने में जुटे नेताओं में प्रमुख हैं— नवाब अकबर खान बुगती के पोते व बलूचिस्तान रिपब्लिकन पार्टी के नेता बरहमदाग बुगती, आजाद बलूचिस्तान आंदोलन के नेता हरबियार मर्री, वर्ल्ड बलोच ऑर्गनाइजेशन के प्रमुख जावेद मेंगल, डोमकी कबीले के नेता बख्तियार खान डोमकी और बलूच राष्ट्रीय आंदोलन के विदेश प्रवक्ता हम्माल हैदर बलूच व संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में बलूच प्रतिनिधि मेहरान मर्री।
पाकिस्तान से आजादी के लिए लंबे समय से संघर्षरत गुटों का महागठबंधन बनाने का यह प्रयास एक अहम घटनाक्रम है जो आनेवाले समय में कई नए समीकरण गढ़ सकता है। पाकिस्तान के जुल्मों से आजाद होने की छटपटाहट के साथ बलूचिस्तान में विभिन्न गुटों को एकजुट करने की कोशिशें पहले भी हुईं। बरहमदाग बुगती के नेतृत्व वाली रिपब्लिकन पार्टी ने भी कई प्रयास किए। पर हर बार प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से नेतृत्व का मुद्दा अहम रहा, जिसके कारण बात बन नहीं पाई। इस बार इन नेताओं ने अलग रणनीति अपनाई है, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। जेनेवा में इन नेताओं की जल्द ही एक बैठक होने वाली है। खास बात यह कि इसमें बलूचिस्तान में रह रहे नेता भी शामिल होंगे। पूर्व में जितनी भी बैठकें हुईं, उसमें बलूचिस्तान से बाहर रहकर आजादी के लिए काम कर रहे नेता ही शामिल होते रहे हैं। लेकिन पहली बार बलूचिस्तान में रह रहे नेता दूतों की जगह खुद बातचीत में शामिल होंगे। इस कारण आगामी बैठक को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
माना जाता है कि महागठबंधन पर बातचीत में शामिल होने के लिए इन नेताओं को ऐसे चरण में बुलाया जा रहा है, जब पूरा खाका तैयार हो चुका है और बस इसे अंतिम रूप देना बाकी है। ताजा प्रयास में अहम भूमिका निभाने वाले बरहमदाग बुगती कहते हैं, ''हम इस बात से वाकिफ थे कि जब तक मिलकर पाकिस्तान और उसकी फौज के जुल्म के खिलाफ आवाज नहीं उठाएंगे, कामयाब होना मुश्किल होगा। अच्छी बात यह है कि समान विचारधारा के लोगों ने कोशिशें कायम रखीं और उसी का नतीजा है कि आज हम सब महागठबंधन बनाने के इतने करीब आ सके। अगर सबकुछ ठीक रहा तो जल्द ही बड़ा ऐलान होगा। मुझे नहीं लगता कि अभी नेतृत्व का कोई मुद्दा है। पहले हमारा गठबंधन बन जाए, कुछ समय काम करे और परिपक्व हो जाए। तब एक पार्टी बने और नेतृत्व की बात की जाए। इसमें थोड़ा वक्त तो लगेगा, लेकिन यही वाजिब होगा।''
बलूचिस्तान में आजादी की लड़ाई कैसे लड़ी जाए? वहां की नागरिक-सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था कैसी हो, इस पर हर पार्टी की राय जुदा रही है। हरबियार मर्री ने कुछ साल पूर्व बलूचिस्तान के संविधान का एक मसौदा तैयार किया था। लेकिन इस पर बलूच नेताओं और पार्टियों की आम राय नहीं बन पाई। इस बार इन नेताओं ने सभी पार्टियों के सुझावों पर एक सर्वमान्य संविधान का प्रारूप तैयार करने का फैसला लिया है। बुगती कहते हैं, ''संविधान सहित तमाम मुद्दों पर पार्टियों की अलग-अलग राय हो सकती है, पर जब हम एक साथ चलने का फैसला करते हैं तो उन मसलों को छोड़ देते हैं जिनपर एक राय नहीं होती। हम जो भी करेंगे, आम सहमति से करेंगे। इसकी काफी हद तक तैयारी हो चुकी है।'' बुगती जिस आम सहमति की बात कर रहे हैं, वह बलूचिस्तान की आजादी के लिए संघर्षरत लोगों और पार्टियों की एकजुटता के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। कारण साफ है, पाकिस्तान सरकार और फौज यही कोशिश करेगी कि यह महागठबंधन किसी भी तरह अस्तित्व में न आए और अगर आ भी गया तो जितनी जल्दी हो सके, टूट जाए। इस काम के लिए पाकिस्तान इन पार्टियों के बीच के अंतर्विरोधों को औजार के तौर पर इस्तेमाल करने की फिराक में होगा। इस पर बुगती कहते हैं, ''हमारी पूरी कोशिश होगी कि पाकिस्तान सरकार को ऐसा कोई मौका न दें कि वह हमारी किसी कमजोरी का फायदा उठाकर इस महागठबंधन को तोड़ सके। इसलिए हम आपसी गलतफहमी की गुंजाइश ही नहीं रहने देना चाहते।''
बलूच नेताओं के बीच बैठकों के दौर की भनक लगने पर पाकिस्तान सरकार ने बलूचिस्तान रिपब्लिकन पार्टी के प्रवक्ता शेर मोहम्मद बुगती के हवाले से अंग्रेजी अखबार 'डेली टाइम्स' में खबर छपवाई कि पार्टी बलूचिस्तान के भीतर अलग राज्य की मांग कर रही है। जाहिर है, सरकार का मकसद था कि बलूचिस्तान की आजादी के लिए एकजुट हो रही पार्टियों में संशय का माहौल बने। खबर छपने के बाद बरहमदाग बुगती ने इसका पुरजोर खंडन किया। उन्होंने कहा, ''हमारा संघर्ष बलूचिस्तान की आजादी के लिए है। हमने इस पर न तो समझौता किया और न करेंगे। पाकिस्तान सरकार जान-बूझकर ऐसी खबरें छपवा रही है ताकि हमारे बीच मतभेद पैदा हो।''
हरबियार मर्री कहते हैं, ''आजादी हमारा पैदाइशी हक है। बलूचिस्तान के लोगों की हालत आजाद हुए बिना नहीं सुधर सकती। अमेरिका और यूरोपीय संघ को अपनी भूमिका निभानी चाहिए। बलूचिस्तान में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियां जो कर रही हैं, वह निहायत गैर-इस्लामी है। सरकार और सेना अपने हित साधने के लिए इस्लाम का इस्तेमाल कर रही है। वे हाफिज सईद जैसे आतंकी को राजनीति में दाखिल कराना चाहते हैं ताकि पाकिस्तान के संविधान में इस्लामी उपबंध बनाए रखा जा चके।'' चीन की नीतियों के विरोधाभासों पर वे कहते हैं कि माओ के नेतृत्व में समाजवादी चीन का जन्म हुआ था, लेकिन अब वह पूंजीवाद और विस्तारवाद के रास्ते पर चल रहा है। पाकिस्तान से आजादी चाहने वाली सभी पार्टियों को एकजुट करने में खुद पाकिस्तान का सबसे बड़ा हाथ है। उसने ऐसे हालात पैदा कर दिए कि अब तक छोटे-छोटे मतभेदों के कारण साझी रणनीति बना सकने में असफल रहने वाली पार्टियों और नेताओं के सामने साथ आने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था। बलूचिस्तान रिपब्लिकन पार्टी के मीडिया प्रमुख शाहनवाज बुगती कहते हैं, ''यहां के हालात तो सीरिया से भी बुरे हैं। कोई सुनने वाला नहीं है। लोगों पर खुलेआम जुल्म हो रहा है। भला अपने लोगों पर कोई मुल्क हवाई हमला करता है?''
बीते एक-दो साल के दौरान बलूचिस्तान में लोगों के 'गायब' होने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। इनमें कुछ लोगों की लाशें तो मिल गईं, लेकिन बाकी कहां गए या उनके साथ क्या हुआ, यह कोई नहीं जानता। अब तो लोग भी मान बैठे हैं कि फौज जिसे उठाकर ले गई, वह तो लौटने से रहा। इसके अलावा, कुछ समय पहले तक सामान्यत: फौज महिलाओं व बच्चों को नहीं छूती थी, लेकिन उसने अब यह परहेज भी छोड़ दिया है और उन्हें भी अगवा कर लिया जाता है। यह सब देखते हुए अब आम बलूच को लगने लगा है कि फौज उनका जातीय सफाया करना चाहती है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि पाकिस्तान के सत्ता और सैन्य प्रतिष्ठानों ने ऐसे हालात बना दिए कि बलूचिस्तान की आजादी की आवाज उठाने वाले ये अलग-अलग गुट एक मोर्चे के तहत आने को मजबूर हो गए हैं। – अरविंद शरण
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