विविध - 'भारत में राष्ट्र की अवधारणा विशिष्ट व अद्भुत है'
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विविध – 'भारत में राष्ट्र की अवधारणा विशिष्ट व अद्भुत है'

by
Nov 13, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 13 Nov 2017 10:11:56

''भारत के पूरे साहित्य में भारत का वर्णन है। इसमें वैश्विक भावना तो है, लेकिन यह विचार जहां से आया है उसके प्रति भक्ति भी है। वैश्विक होते हुए भी हम भारतीय हैं।'' उक्त बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह ड़ॉ कृष्ण गोपाल ने कहीं। वे गत दिनों पुणे के सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय में प्रज्ञा प्रवाह तथा प्रबोधन मंच की ओर से आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी 'ज्ञानसंगम' के उद्घाटन अवसर पर बोल रहे थे। इस अवसर पर प्रमुख रूप से उपस्थित गुजरात के राज्यपाल श्री ओमप्रकाश कोहली ने कहा कि 'पश्चिमी राष्ट्रवाद और भारतीय विचार में काफी अंतर है, जिसे समझने की आवश्यकता है। पिछले एक हजार वषोंर् में भारतीय ज्ञान का प्रवाह अवरुद्ध हुआ था। हम कौन हैं? भारत की दिशा क्या होनी चाहिए? इसका हमें विचार करना होगा। हमें पाश्चात्य 'नेशन' की अवधारणा को समझना होगा और छात्रों को ठीक से समझाना होगा। प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक श्री जे़ नंदकुमार ने कहा कि हमारा देश ज्ञानभूमि है। आनंद देते हुए और आनंद लेते हुए जहां ज्ञान दिया जाता है, उस देश का नाम है भारत। देश पर कई आक्रमण हुए। कुछ वर्ष गुलामी में बीते, शायद इसलिए ज्ञान का आदान-प्रदान कम हुआ। स्वतंत्रता के बाद भी इसमें गति नहीं आई। वैचारिक क्षेत्र में उपनिवेशवाद आज भी चल रहा है। आज भी सांस्कृतिक गुलामी जारी है। भारत केंद्रित अध्ययन को बढ़ावा देने के लिए जो सांस्कृतिक प्रयास शुरू हुआ, उसका नाम है प्रज्ञा प्रवाह।         -(विसंकें, पुणे)

खुद को भुलाकर
समाज को दी प्राथमिकता
''संसार ने अभी तक लोक कल्याण के लिए अस्थियों का दान करने वाले महर्षि दधीचि के बारे में केवल शास्त्रों में पढ़ा, परंतु हमने अपने वरिष्ठतम साथी महावीर जी के रूप में उस प्रात: स्मरणीय महान आत्मा के साक्षात् दर्शन भी किए हैं।'' उक्त बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह ड़ॉ. कृष्ण गोपाल ने कही। वे पिछले दिनों पंजाब के मानसा के सर्वहितकारी विद्या मंदिर में स्व़ महावीर की आत्मिक शांति के लिए आयोजित श्रद्धाञ्जलि समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि महावीर जी गंभीर बीमारी से पीडि़त थे, लेकिन उन्होंने इसका किसी से जिक्र तक नहीं किया। वे शायद नहीं चाहते थे कि संघ की श्रमशक्ति या संसाधन उनके निजी जीवन पर लगे। अपनी बीमारी को भुला कर समाज का उपचार करते रहे और एक दिन हमसे विदा ले गए। उन्होंने कहा कि महावीर जी चाहे आज हमारे बीच नहीं रहे, परंतु सेवा व कर्तव्यपालन के रूप में उन्होंने जो प्रतिमान स्थापित किए हैं, वे सदैव जनकल्याण के पथिकों का मार्ग प्रशस्त करते रहेंगे। इस मौके पर विश्व हिन्दू परिषद् के अंतरराष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री दिनेश ने भी स्व. महावीर जी को श्रद्धांजलि अर्पित की।     -(विसंकें, मानसा)

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