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अराष्ट्रीय गतिविधियों में लिप्त लोगों का कथित सहारा बन चुकीं ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस केन्द्र सरकार के हर जनहितकारी फैसले के खिलाफ खड़ी होकर पश्चिम बंगाल के समाज को भ्रमित कर रही हैं
जिष्णु बसु
राज्य की सत्ता मिलने के तुरंत बाद तृणमूल कांग्रेस ने दो घातक ताकतों का इस्तेमाल करना शुरू किया था जिसमें मुख्य रूप से बांग्लादेश स्थित जिहादी संगठन व चिट फंड एजेंसियां थीं। वैसे राज्य में इनकी घुसपैठ में बढ़ोतरी वाम मोर्चे की सरकार के आखिरी दिनों में ही हो चुकी थी। लेकिन सत्ता में आने के बाद तृणमूल ने राज्य में बांग्लादेशी घुसपैठियों, जिहादी तत्वों और सीमा पार से हो रही तस्करी को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से संरक्षण देकर इनके हौसलों को राज्य में मजबूती दी। ममता ने तुष्टीकरण की विषबेल को बोते हुए अराष्ट्रीय गतिविधियों में लिप्त उन्मादियों को तब और कथित बल दिया जब राज्य में सिमी के संस्थापक अध्यक्ष रहे व्यक्ति को तृणमूल के कोटे से राज्यसभा भेजा गया तो जमात के नेता को मंत्री पद का दर्जा दिया गया, जिस पर दंगे भड़काने सहित कई संगीन आरोप हैं।
तृणमूल नेतृत्व की ये तमाम गतिविधियां उसके स्पष्ट इरादों का संकेत देती हैं। इस सबका असर यह हुआ कि उसके सत्ता संभालने के बाद से बंगाल में दंगे भड़कने शुरू हो गए और उन्मादी गतिविधियों में बढ़ोतरी हुई। कलियाचक, धूलागढ़, बर्धमान, बशीरहाट में हुए दंगे इस बात के गवाह हैं। मीडिया रपटों की मानें तो जिहादी घुसपैठियों ने कलियाचक इलाके में अफीम की खेती सहित विभिन्न प्रतिबंधित चीजों की तस्करी शुरू की थी। जब कुछ स्थानीय लोगों ने इसका विरोध दर्ज कराया तो 4 जनवरी, 2016 को उन्मादियों ने कलियाचक में दंगा शुरू कर दिया। पहले पुलिस स्टेशन पर कब्जा किया फिर वहां रखे सभी आपराधिक दस्तावेज जला दिए। हिन्दुओं की दुकान-मकान और प्रतिष्ठानों को आग के हवाले कर दिया गया। दरअसल, कलियाचक और बांग्लादेश सीमा के बीच की दूरी लगभग 10 किलोमीटर ही है। उन्मादियों ने पुलिस स्टेशन पर जान-बूझकर इसलिए हमला किया ताकि प्रशासन में एक खौफ बैठ जाए और वह फिर से उनकी किसी भी अनैतिक गतिविधि को रोकने की हिम्मत न जुटा सके।
इस तरह की उन्मादी गतिविधियों में लिप्त लोगों का चिट फंड एजेंसियों से सीधा संबंध है जहां से उन्हें गैर कानूनी काम करने के लिए धन मिलता है। लेकिन इस सबमें सबसे बड़ी धोखाधड़ी शारदा ग्रुप ने की। उसने अपनी निधि का प्रयोग जिहादी गतिविधियों के समर्थन में दैनिक समाचार पत्र प्रकाशित करने के लिए किया था। साथ ही जिहादियों को सांप्रदायिक गतिविधियों को अंजाम देने में किसी भी चीज की किल्लत न होने देने की खातिर बाहरी देशों से धन प्राप्त करने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन नोटबंदी के बाद से अचानक इनकी कमर टूटी। तो दूसरी तरफ राष्ट्रीय जांच एजेंसी के छापों से इसकी हकीकत देश के सामने आई।
जनहितकारी फैसला नहीं मंजूर
पश्चिम बंगाल के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में क्लब, युवा समूह, आम लोग राजनीतिक नेताओं से पैसे लेने के आदी हो गए हैं। गरीब लोगों के पास जो पैसा था, वह तो उन्होंने शारदा या उस जैसी अन्य चिटफंड एजेंसियों में लगा दिया, जो उन्हें धोखा देकर चलती बनीं। दूसरी ओर पार्टी ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में गुंडों को जोड़े रखने के लिए नकद पैसा बांटा जा रहा है। यहां तक कि स्थानीय नेता मतों की खरीद के लिए स्थानीय क्लब या युवाओं के समूह को 50 से 60,00 रुपए तक का भुगतान करते रहे हैं। लेकिन नोटबंदी ने इन काले कारनामों में खलल डाल दी। बौखलाई ममता ने अपने उन्हीं क्लब वाले कार्यकर्ताओं के साथ सड़क पर उतरकर नोटबंदी के प्रति विरोध जताया।
समाज को भ्रमित करने के लिए कुतर्क से भरे भाषण दिए। राज्य सरकार की चाटुकारिता करने वाले मीडिया संस्थानों ने झूठी, भय से युक्त खबरें चलाईं। इस सबसे इतर यह दिखाने के लिए कि नोटबंदी से कितना नुकसान हुआ है, सरकार ने देहात के इलाकों में आलू और चावल की फसल के दौरान विभिन्न मदों में जाने वाली निधि को रोका। लेकिन इन बाधाओं के बावजूद पिछले साल फसल अच्छी रही।
तस्करों में खलबली
राज्य में नोटबंदी के बाद जिहादी तत्वों के बीच खलीबली देखी गई थी तो वहीं कट्टरवादियों ने विद्यालयों में सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने की कोशिश की। कई स्कूलों पर जमात के गुंडों ने कब्जा कर लिया था और अनिश्चित काल के लिए कक्षाएं रोक दी गई थीं।
ये तमाम हालात यही दर्शा रहे थे कि नोटबंदी ने इनको इतना परेशान किया है कि वे बौखलाए हुए हैं। दरअसल बशीरहाट इलाका तस्करी के लिए ही जाना जाता है। इसे गो-तस्करी का प्रवेश द्वार कहते हैं। यह पूरा कारोबार काले धन पर आधारित है और नकदी में है।
भ्रमित करने का नाटक
राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 25 अक्तूबर को कोर कमेटी की बैठक के दौरान अपने पार्टी नेताओं से कहा था कि वे 8 नवंबर से हर ब्लॉक और जिले में 'ब्लैक डे' अभियान शुरू करें, क्योंकि शायद किसी भी अन्य संकट के कारण पार्टी को इतना नुकसान नहीं हुआ है।
बहरहाल, एक तरफ जब संयुक्त राष्ट्र के नेताओं से लेकर विश्व व्यापार संगठन ने नोटबंदी की तारीफ करके उसकेफायदे गिनाए हैं, वहीं ममता बनर्जी इसके उलट जनहितकारी फैसले के खिलाफ समाज को भ्रमित करने का काम कर रही हैं। यह उनकी ओछी राजनीति नहीं तो फिर क्या है? ल्ल
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