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देश में 2014 में भाजपा सरकार बनने के बाद वामपंथी मीडिया खुलकर झूठी खबरें रच और फैला रही है
फेसबुक इन दिनों अखबारों में विज्ञापन देकर लोगों को बता रहा है कि खबरों में झूठ-सच की पहचान कैसे करें? सोचिए कि फेसबुक को इसकी जरूरत क्यों आन पड़ी? इस स्थिति के लिए फेसबुक दोषी नहीं है। यह तो उपयोगकर्ता की इच्छा है कि वह फेसबुक पर क्या लिखता या क्या शेयर करता है। दरअसल, इस स्थिति के लिए मुख्यधारा मीडिया के संस्थान और पत्रकार ज्यादा दोषी हैं, क्योंकि वे एक रणनीति के तहत सोशल मीडिया पर झूठी खबरों का प्रसार करवा रहे हैं। पहले भी कुछ हद तक ऐसी समस्या थी, लेकिन 2014 में भाजपा सरकार बनने के बाद से स्थिति लगातार विकट होती जा रही है। मीडिया के भीतर यह चर्चा आम है कि कांग्रेस के टुकड़ों पर पलने वाली वामपंथी मीडिया खुलकर झूठी खबरें रच और फैला रही है। न तथ्यों की जरूरत, न विश्वसनीयता की परवाह। ऐसा लगता है कि उनके लिए ये लड़ाई जीवन और मरण की है। ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब मुख्यधारा मीडिया कोई झूठी खबर न फैलाए।
मुंबई में लोकल रेलवे के स्टेशन के पुल पर हुए दर्दनाक हादसे में भी ज्यादातर चैनलों और अखबारों ने अपने इस अभियान को जारी रखा। एक राजनीतिक पक्ष ने दावा किया कि उसने पुल चौड़ा करने के लिए रेल मंत्री को पत्र लिखा था। पर रेल मंत्री ने पैसे का बहाना बनाकर मना कर दिया। बिना इस तथ्य की छानबीन किए सभी चैनलों ने रेल मंत्रालय को कठघरे में खड़ा कर दिया। जब पता चला कि दावा झूठा था, पुल चौड़ा करने के लिए पैसा जारी हो चुका है तो इसे भी दिखाने में चैनलों ने घंटा भर से ज्यादा वक्त लगा दिया। तब तक लोगों के मन में यह बात बैठा दी गई कि रेल मंत्रालय लोगों की सुरक्षा को लेकर संवेदनशील नहीं है। हादसे के तमाम पहलुओं और कारणों पर बात हुई, लेकिन मीडिया ने बड़ी चालाकी से यह चर्चा नहीं होने दी कि देश में एक जनसंख्या नीति होनी चाहिए। किसी चैनल या अखबार ने नहीं कहा कि सामाजिक हनन बढ़ाने के लिए बेरोकटोक बच्चे पैदा करने वालों पर नियंत्रण होना चाहिए। किसी को नहीं लगा कि आज जब हमारे बड़े शहर आबादी के बोझ से दबे जा रहे हैं तो ऐसे में बांग्लादेशी और रोंहिग्या घुसपैठियों की वकालत कहां तक उचित है। मुंबई हादसे में वामपंथी झुकाव के अखबार द हिंदू ने जो किया वह पत्रकारिता ही नहीं, बल्कि मानवता के लिए शर्मनाक है। अखबार ने किसी वीडियो के आधार पर खबर छापी कि भगदड़ में घायल एक महिला के साथ छेड़खानी की गई। सोशल मीडिया के जरिए ये खबर खूब फैलाई गई, जिसे एक दर्जन से ज्यादा वामपंथी वेबसाइटों ने छापा। यहां तक कि ब्रिटिश अखबार द इंडिपेंडेंट में भी इसे जस का तस छाप दिया गया। इस खबर से लोगों के मन में भारत और भारतीय लोगों की क्या छवि बनी होगी, समझ सकते हैं। पुलिस ने जांच की तो पता चला कि जिस व्यक्ति को छेड़खानी करने वाला बताया गया था वह उस महिला की जान बचाने की कोशिश कर रहा था। अखबार ने छोटा सा खेद जताकर छुट्टी पा ली, लेकिन वह झूठी खबर अलग-अलग जरियों से अब भी फैल रही है। दरअसल, यह हरकत उन पत्रकारों की है जिनकी पत्रकारिता का एकमात्र लक्ष्य देश को गाली देना और देशवासियों को नीचा दिखाना है। नवरात्र पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने शहर गोरखपुर में महंत के तौर पर अपनी धार्मिक जिम्मेदारियां निभार्इं। इसे लेकर मीडिया में जमकर फब्तियां कसी गईं। लगभग सभी चैनलों और अखबारों ने इसे लेकर अपनी-अपनी तरह से सवाल उठाए। हैरानी होती है कि क्या किसी मुसलमान नेता के पांच वक्त नमाज पढ़ने में लगने वाले समय या हज यात्रा पर जाने को लेकर भी मीडिया ने कभी ऐसे सवाल उठाए हैं? सेकुलर मीडिया हिंदू त्योहारों और रीति-रिवाजों को लेकर लोगों के मन में एक हीनभावना पैदा करने की कोशिश करती रहती है। पूजा करते योगी आदित्यनाथ की तस्वीरों को लेकर कही गई बातों के पीछे भी यही मकसद दिखाई देता है।
उधर, बुलेट ट्रेन को लेकर झूठी खबरों का सिलसिला जारी है। बताया गया कि थाईलैंड में भारत से कई गुना कम कीमत पर बुलेट ट्रेन बन रही है। कई अखबारों और वेबसाइटों ने इसे छापा। बाद में पता चला कि खबर गलत है। भारत में बुलेट ट्रेन का ठेका चीन को न मिलने से तिलमिलाए लोग शायद इस तरह की अफवाहें फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।
झूठी राजनीतिक खबरों के अलावा मीडिया का एक वर्ग देश की अर्थव्यवस्था के बारे में भी सामूहिक तौर पर एक नकारात्मक छवि बनाने में जुटा हुआ है। इसके लिए चाहे उन्हें गलत तथ्यों का ही सहारा क्यों न लेना पड़े। साथ ही हर वह खबर दबा दी जाती है जिससे इस झूठ की पोल खुलती हो। तमाम अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं और जानकार मान रहे हैं कि भारत अर्थव्यवस्था में बड़े सुधार के दौर से गुजर रहा है। हर कोई जान रहा है कि इससे आम लोगों को तात्कालिक तौर पर थोड़ी असुविधा हो सकती है, लेकिन दीर्घकालिक असर सभी के लिए अच्छा होने वाला है। आम लोग तो इसके लिए आश्वस्त हैं लेकिन जब सिर्फ अपने देश का मीडिया इसे लेकर दुष्प्रचार अभियान चलाने लगता है तो उनकी नीयत पर शक होता है। ल्ल
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