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लास वेगास घटना पहली घटना नहीं है। अंधाधुंध गोलियां दागकर पलक झपकते ही 60 लोगों को मार डालने और 500 से ज्यादा को घायल करने वाले पैडॉक पर संदेह है कि वह इस्लामी जिहाद से जुड़ा था। हाल ही में उसके इस्लाम कबूलने की बात सामने आई है
प्रो. सतीश कुमार
ऊमेरिका में 2 अक्तूबर, 2017 की भोर में लास वेगास में हुई भीषण गोलीबारी की घटना 9/11 के बाद संभवत: वहां की सबसे बड़ी घटना है। आइएसआइएस ने इसकी जिम्मेदारी तो ली है पर इसमें उसके हाथ की इन पंक्तियों के लिखे जाने तक पुष्टि नहीं हो पाई है। अमेरिकी सुरक्षाबलों ने हत्यारे की शिनाख्त 64 साल के स्टीफन पैडॉक के रूप में की है, लेकिन उसके रिकॉर्ड से इस बात का पता नहीं चल पाया है कि वह किस इस्लामिक गुट से जुड़ा हुआ था। ऐसे में, शक की सुई अमेरिकी बंदूक संस्कृति पर भी जाती है। एक बार फिर यह मुद्दा अमेरिकी राजनीति का अहम मुद्दा बन गया है। पैडॉक 28 सितंबर से ही मेंडले बे रिसॉर्ट में भारी मात्रा में हथियार व गोलियों के साथ ठहरा हुआ था। उसने 29 व 30 सितंबर को वहां म्यूजिक कंसर्ट व कैसीनो का मजा लिया और 1 अक्तूबर की आधी रात के बाद तीसरे दिन नरसंहार को अंजाम दिया। घटना में 60 लोगों के मारे जाने और 500 से अधिक के घायल होने की खबर है। हत्यारा लाइसेंसी पायलट था। उसके दो विमान भी हैं। शुरुआती जांच से पता चला है कि पैडॉक का पिछला इतिहास कभी अपराधों या हिंसा से जुड़ा नहीं रहा।
उभर रहा है खतरे का संकेत
जे. के. त्रिपाठी
अमेरिका के शहर लास वेगास में हुए घातक नरसंहार ने एक बार फिर दुनिया को दहला दिया है और अमेरिका ही नहीं वरन् सारे संसार को यह सोचने पर विवश कर दिया है कि हिंसा को बढ़ावा देने वाली और उपभोक्तावाद के नाम पर हथियारों की खरीद-फरोख्त को निर्बाध स्वीकार करने वाली नीतियों का पुनरीक्षण किया जाए।
विश्व के सबसे बड़े जुआघरों के लिए प्रसिद्ध लास वेगास शहर में स्टीफन पैडॉक नामक धनी व्यवसायी के द्वारा अकारण की गई अंधाधुंध गोलीबारी से करीब 60 लोगों के मारे जाने और 500 से अधिक के घायल होने की खबर है। बाद में पैडॉक भी होटल के अपने कमरे में मृत पाया गया जहां से 18 बंदूकें, भारी मात्रा में कारतूस और अन्य सामग्री बरामद की गई। पैडॉक के अपने घर से भी 13 बंदूकें और कारतूस आदि बरामद हुए। हालांकि अपुष्ट स्रोतों के अनुसार उसके घर से आईएसआईएस का एक झंडा बरामद होना यह साबित करता है कि उसके संबंध संभवत: इस्लामिक आतंकी समूह से रहे हों, पर अभी उसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हो सकी है।
जो भी हो, यह तथ्य कि अपराधी ने सारे हथियार कानूनी ढंग से खरीदे थे, इस बात की ओर इशारा करता है कि अमेरिका में हथियारों की खुली बिक्री और इस्तेमाल एक गंभीर समस्या है। इस घटना से पहले भी कई घटनाओं में स्कूलों और बाजारों में ताबड़तोड़ गोलीबारी से सैकड़ों मौत होे चुकी हैं। हथियार बिक्री पर कड़े प्रतिबंध लगाने की अमेरिकी सरकार की कोशिशें हथियार निर्माता लॉबी के दबाव के कारण विफल हो चुकी हैं। यह खतरा भी लगातार बढ़ रहा है कि हथियारों की खुली बिक्री के चलते कई हिंसक गुट अथवा आतंकवादी समूह कानूनी तरीके से हथियारों का जखीरा खड़ा कर सकते हैं। इसलिए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि न सिर्फ अमेरिका, बल्कि दुनिया के हर देश में हथियारों की बिक्री पर अंकुश लगे।
भले ही लास वेगास की घटना आतंकवाद से संबंधित न हो, पर वर्तमान नीतियों के चलते आतंकवादी घटनाओं की बढ़ोतरी में देर नहीं लगेगी। यदि यह घटना आतंकवाद से संबंधित निकली तो यह और भी गंभीर चिंता का विषय होगा। तब यह घटना दर्शाएगी कि आतंकवादी न सिर्फ निम्न या निम्न मध्यम वर्गीय समाज में सक्रिय हैं बल्कि उन्होंने पैडॉक जैसे करोड़पतियों में भी अपनी हिंसक विचारधारा की पैठ बना ली है। यदि इस पर अभी लगाम न कसी गई तो विचारधारा, पैसा और फंडिंग का यह त्रिभुज इतना बड़ा हो सकता है कि सरकारों के काबू में ही नहीं आएगा और त्यौहार के पटाखों की तरह आतंकवादी गोलीबारी गली-गली में फैल जाएगी।
इस बात पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि हिंसा की मनोवृत्ति में वृद्धि क्यों हो रही है। सिर्फ सामाजिक असुरक्षा ही नहीं, तनाव, हताशा तथा अपने को ताकतवर सिद्ध करने की इच्छा भी ऐसी घटनाओं को जन्म देती है। सामाजिक ढांचे में बदलाव और लोगों की मानसिकता का शुद्धिकरण इस समस्या को समाप्त करने के दूरगामी उपाय हैं।
(लेखक ब्राजील में भारत के महावाणिज्यदूत और जिम्बाब्वे में राजदूत रहे हैं)
हालांकि अमेरिका में हथियारों की खुली उपलब्धता और उन्हें निजी तौर पर खरीदने को लेकर कई दशकों से गंभीर बहस चली आ रही है, लेकिन कोई बुनियादी बदलाव नहीं हो पाया है। इसके पहले 2015 में एक बड़ी घटना हुई थी, 2012 में भी तकरीबन 12 लोग एक सिरफिरे की चलाई गोलियों का निशाना बने थे। आखिरकार ऐसा क्यों होता है? कौन इस बंदूक की संस्कृति का संरक्षक है? किसकी झोली इस बंदूक संस्कृति से भरती है? क्या लास वेगास जैसी दर्दनाक घटना के बाद भी अमेरिका अपनी बंदूक की संस्कृति को काबू कर पाएगा? यह प्रश्न अहम है। हर दिन अमेरिका में बंदूक और हिंसक हथियारों पर खुली छूट की वजह से पिछले 70 साल के आंकड़े इतने खतरनाक हैं कि जानकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
अमेरिकी संविधान के दूसरे संशोधन में व्यक्तिगत रूप से बंदूक रखने को बुनियादी अधिकार माना गया था। दुनिया की आबादी में अमेरिका की 4.4 फीसदी हिस्सेदारी है, लेकिन करीब 42 प्रतिशत अमेरिकी लाइसेंसी हथियार रखते हैं। 88.8 फीसदी अमेरिकियों के पास बंदूकें हैं, जो दुनिया में प्रति व्यक्ति बंदूकों की संख्या के लिहाज से सबसे बड़ा आंकड़ा है।
यही वजह है कि प्रति 10 लाख आबादी पर सरेआम गोली चलाने की घटनाएं अमेरिका में सबसे ज्यादा देखने में आती हैं। 2012 में इसकी दर 29.7 रही। दिसंबर 2012 में सैंडी हुक स्कूल में अंधाधुंध गोलीबारी के बाद अमेरिका में ऐसी 1500 घटनाएं हो चुकी हैं। इनमें 1,715 लोग मारे गए हैं और 6,089 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं।
अमेरिका में सरेआम गोली चलाने की औसतन रोज एक घटना होती है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को अमेरिका में हथियार कानूनों को सख्त बनाने का मुखर समर्थक माना जाता था, लेकिन दुर्भाग्य से उनकी भी एक नहीं चली। नियम बदलने में सबसे बड़ी अड़चन शक्तिशाली हथियार लॉबी है। इसमें नेशनल राइफल एसोसिएशन (एनआरए) का नाम सबसे ऊपर है। इसका नारा ही है कि ‘बंदूकें किसी को नहीं मारतीं, लोग एक-दूसरे को मारते हैं।’
एक आकलन के अनुसार, अमेरिका में बंदूक और हथियारों की छूट के कारण जितने लोग मारे गए हैं उतने तो दूसरे विश्व युद्ध में भी नहीं मरे गए थे। अमेरिका में तकरीबन हर घर में और हर किसी के पास हथियारों का ऐसा जखीरा है जिसके द्वारा किसी भी जगह बड़े पैमाने पर हत्या की जा सकती हैं। अमेरिका में बंदूक संस्कृति की शुरुआत अमेरिकी आजादी के समय से हुई। दूसरे, संविधान संशोधन कर वहां बंदूक संस्कृति को अमली जामा पहना दिया गया। इसके बाद कोई भी व्यक्ति अपने घर में या बाजार में खतरनाक हथियारों को लेकर घूम सकता है। यही कारण है कि अमेरिका में आएदिन ऐसी घटनाएं देखने में आती हंै।
लोकतंत्र और व्यक्तिगत आजादी
आधुनिक कल में अमेरिका ही ऐसा एकमात्र देश है जहां पर खुलेआम बंदूक रखने की संस्कृति जिंदा है। पहले कई यूरोपीय देशों में इससे मिलती-जुलती व्यवस्था थी, लेकिन वहां कानून के द्वारा बदलाव लाया गया। अमेरिकी संस्कृति व्यक्तिगत आजादी की पक्षधर है। पूंजीवाद का जन्म ही इसी तर्क पर हुआ कि व्यक्ति ही सृष्टि का केंद्र है। सब कुछ उसके इर्द-गिर्द घूमता है। व्यक्ति को अहम बनाने के लिए उसके हाथों में बंदूक भी थमा दी गई। पूंजीवाद के समर्थकों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता यदि कोई स्वार्थ और लिप्सा में डूबकर हताशा का शिकार बन जाता है, दिमागी संतुलन खो देता है, सिरफिरा बन जाता है, इस हालत में लास वेगास जैसी दुर्घटनाओं का होना स्वाभाविक है। लेकिन धीरे-धीरे अमेरिकी लोकतंत्र में बंदूक की संस्कृति चुनावी एजेंडा बन गई। हथियार बेचने वाला एक व्यापारी वर्ग उभर आया जो राजनीतिक पार्टियों को समर्थन देने लगा। माना जाता है कि पिछले चुनाव में राष्टÑपति ट्रंप की पार्टी को एनआरए ने 3 करोड़ डॉलर की मदद की थी।
अमेरिकी राजनीति में डेमोक्रेटिक पार्टी को प्रगतिवादी और उदार माना जाता था। पूर्व राष्ट्रपति ओबामा ने व्हाइट हाउस से जाते वक्त एक बात पर गंभीर चिंता व्यक्त की थी कि वे अपने कार्यकाल में बंदूक की संस्कृति पर लगाम लगाने के लिए कोई कानून नहीं बना पाए। रिपब्लिकन पार्टी को बंदूक की संस्कृति का पोषक माना जाता है। अर्थात् लास वेगास की घटना के बाद भी बंदूक की संस्कृति के विरुद्ध कोई कानून बना पाना मुश्किल ही नहीं, असंभव है। अरबों की संपति से जुड़ा एक पूरा वर्ग है, जिसे काबू करना मुश्किल दिखता है। दुनिया के सबसे पुराने लोकतांत्रिक देश का सबसे निकृष्ट कानून अगर कोई है, तो वह है वहां बंदूक की संस्कृति को संरक्षण देने वाला कानून।
शीत युद्ध और बंदूक संस्कृति
अमेरिका में शीत युद्ध के दौर में कई बेहतरीन कंपनियां हथियार बनाती थीं, उनकी खरीद-फरोख्त दुनिया के अन्य देशों में की जाती थी, विशेषकर जो देश युद्ध की पीड़ा को झेल रहे थे। तीसरी दुनिया के देशों में इन कंपनियों की खूब बिक्री थी। दीवाली के पटाखों की तरह इनके हथियार बिकते थे। जब शीत युद्ध खत्म हो गया तो उन हथियारों का जखीरा भी बिकना बंद हो गया। बिक्री बंद हुई तो ये सारे हथियार अमेरिका में ही सस्ते दामों पर बिकने लगे। इतना ही नहीं, अन्य देशों, मसलन इटली, फ्रांस आदि में निर्मित हथियार भी अमेरिकी बाजार में आने लगे। यहां तक कि जिस तरह के हथियारों से पूर्व राष्टÑपति कैनेडी और मार्टिन लूथर किंग की हत्या की गयी थी, उस तरह के हथियार आम लोगों के पास पहुंचने लगे। चूंकि अमेरिका के पास आर्थिक संसाधन थे, कानूनी
मान्यता भी थी, इसलिए हथियार धड़ल्ले से बिकने लगे। प्रश्न उठता है कि लास वेगास जैसी घटना आगे न हो, इसके लिए क्या किया जाए। इस बात की गारंटी कौन दे सकता है कि और कोई सिरफिरा ऐसी वारदात नहीं कर सकता? अमेरिकी समाज आकंठ पूंजीवाद में डूबा हुआ है। समाज और कानून व्यक्ति के लिए हैं। व्यवस्था बाजार तय करती है। बाजार मुनाफे पर चलता है। हथियार बनाने वाली कंपनियां करोड़ों रुपए कांग्रेस के सदस्यों को देती हंै। उनकी अपनी एक अलग जमात है जो संसद में उनका बचाव करती है। इस तरह से चक्र घूमता रहता है। ऐसी हिंसक घटनाओं पर आंकड़े पेश किये जाते हैं, लोगों का ध्यान कुछ समय के लिए उस पर जाता है, फिर सब भूल जाते हैं। पिछले 7 दशकों से अमेरिका में यही हो रहा है। 1968 में एक सांसद ने इस मुद्दे को सुलझाने की बहुत कोशिश की लेकिन हुआ कुछ भी नहीं। जरूरत है अमेरिकी सोच में बदलाव की। यह देखने की कि कौन से नियम बनाये जाएं कि सैंडी स्कूल कत्लेआम और लास वेगास जैसी रोंगटे खड़े कर देनी वाली घटनाएं न घटें।
शायद भारत की संस्कृति और सोच अमेरिका के लिए फायदेमंद हो। भारत का योग मंत्र, जो प्रधानमंत्री के द्वारा दुनिया के सामने रखा गया है, अमेरिकी समाज और लोगों को बदलने में कारगर हो सकता है। आज अमेरिका आर्थिक रूप से भी विघटित हो रहा है। दुनिया के कई देशों को तबाह करने वाला, आण्विक बमों के द्वारा हिरोशिमा और नागासाकी को तबाह करने वाला देश, अगर वास्तव में चीजें ठीक करना चाहता है तो उसे वैश्विक आतंकवाद की आहट सुनते हुए, इस्लामी उन्माद पर सर्तक रुख रखते हुए बंदूक की संस्कृति को खत्म करना ही होगा। अन्यथा दोनों का मेल खून और तबाही की और भी भयंकर कहानियां लिखेगा। अमेरिकी पैसे के मद में चूर हंै और निश्ंिचत भी, ऐसा माहौल इस्लामी आतंकवाद के लिए उर्वर भूमि साबित हो सकता है। यदि आज अमेरिका नहीं चेता तो दुनिया के लिए देर हो जाएगी।
(लेखक केंद्रीय विश्वविद्यालय, हरियाणा में प्रोफेसर हैं)
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