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प्रधानमंत्री ने कानूनी और गैरकानूनी धन के मध्य एक दीवार खड़ी कर दी है। इसके कारण कालाधन देश में लाने के सारे रास्ते बंद हो गए हैं। उद्योगपति या व्यवसासियों का कालाधन जहां था, अब वहीं फंस गया है। तभी एक के बाद एक निर्माण क्षेत्र से जुड़ी कंपनियां बंद हो रही हैं
‘कुछ समय से भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर आलोचना देख रहा हूं। एक आलोचना यह है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली लोकसभा का चुनाव हार गए थे। अत: उनको वित्त मंत्री का पद नहीं देना चाहिए था। लेकिन लोग यह नहीं पूछते कि मनमोहन सिंह को राज्यसभा के रास्ते लाया गया था और वे 10 साल देश के प्रधानमंत्री बने रहे। इसके अलावा, राष्ट्रीय सलाहकार परिषद बनाकर सोनिया गांधी को उसका अध्यक्ष बना दिया गया, उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला और उनके घर में वित्त, नियुक्ति तथा अन्य नीतियां एनजीओ के लोग निर्धारित करते थे। अब आते हैं मुद्दे पर। यह कहा जाता है कि नोटबंदी से लोगों का पैसा खत्म हो गया है। लेकिन फिर यह भी सुनने में आया कि 99 प्रतिशत पैसा बैंकों में वापस आ गया। अगर पैसा कहीं गया नहीं तो वह पैसा क्यों नहीं खर्च या निवेश हो रहा है? अगर 8 नवंबर, 2016 और 31 दिसंबर, 2016 के मध्य सारा पैसा बैंकों में वापस आ गया तो समस्या किस बात की है?
आर. जगन्नाथ स्वराज्य पत्रिका में लिखते हैं कि मंदी का एक बहुत बड़ा कारण यह है कि अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कानूनी और गैरकानूनी धन के मध्य एक दीवार खड़ी कर दी है। पहले धनी लोग अपने नंबर 2 के पैसे को मॉरिशस या साइप्रस ले जाते थे। वहां पर उन्हें टैक्स नहीं देना पड़ता था। फिर वह उस पैसे को शेल या कागजी कंपनियों के जरिए भारत ले आते थे। उदाहरण के लिए, वे लोग किसी शेल कंपनी का शेयर बाजार में उतारते थे और मॉरिशस या भारत से उस शेयर को कई गुना दामों में खरीद लेते थे। दिखाया जाता था कि शेल कंपनी को शेयर बेचने से भारी लाभ हुआ है। इस तरह वह पैसा नंबर एक का हो जाता है। दूसरा उदाहरण-भ्रष्ट लोग किसी वस्तु का विदेशों में दाम कई गुना बढ़ाकर निर्यात करते थे। आप मानिये कि उस वस्तु का वास्तविक दाम 200 रुपये है, लेकिन विदेश में बैठा व्यवसायी उस वस्तु की कीमत 5000 रुपये देने को तैयार है। यानी आपको बैठे-बिठाए उस पर 4800 रुपये का फायदा हो गया। मजे की बात यह है कि भारत से निर्यात करने वाला और विदेश में उस वस्तु को खरीदने वाला व्यक्ति एक ही है। यहां से शेल कंपनी के द्वारा निर्यात किया, वहां पनामा या मॉरिशस में पंजीकृत शेल कंपनी ने उसे आयात किया। इस तरीके से फिर वह पैसा नंबर 1 का बन गया।
उनका कालाधन, चाहे भारत में हो या विदेश में, फंसा हुआ है और वह धन व्यापारी और उद्योगपतियों की सहायता करने में असमर्थ है। प्रधानमंत्री स्वयं बता चुके हैं कि एक लाख कागजी कंपनियों का पंजीकरण रद्द किया जा चुका है, जबकि दो लाख शेल कंपनियों के बैंक अकाउंट फ्रीज या बंद कर दिए गए हैं।
वर्ष 2010-11 में इंजीनियरिंग कंपनियों ने 30 बिलियन डॉलर (1,32,000 करोड़ रुपये) का निर्यात किया, जबकि मुंबई स्टॉक एक्सचेंज में पंजीकृत इंजीनियरिंग कंपनियों के द्वारा किया गया निर्यात केवल 1.8 बिलियन डॉलर (6100 करोड़ रुपये) है। यह 28 बिलियन डॉलर (लगभग 1,23,000 करोड़ रुपये) का निर्यात कहां से हुआ और किस इंजीनियरिंग कंपनी ने किया? क्या यह संभव है कि 28 बिलियन डॉलर का निर्यात छोटी-छोटी कंपनियां कर सकें जो मुंबई स्टॉक एक्सचेंज में पंजीकृत ही नहीं हैं? ऐसे हो गया 1,23,000 करोड़ रुपये का ‘निर्यात’ या क्या कालेधन का आगमन! बड़े उद्योगपति और व्यवसायी जो प्रोजेक्ट चलाना चाहते थे, या निवेश करना चाहते थे या बड़ी-बड़ी कॉलोनियां बनाना चाहते थे, अब उनके पास विदेशों में जमा कालाधन भारत में लाने के रास्ते बंद हो गए हैं। तभी आप देख रहे हैं कि एक के बाद एक कंस्ट्रक्शन कंपनियां बंद हो रही हैं। तभी तो चिदंबरम और यशवंत सिन्हा चिल्ला रहे हैं। चिदंबरम के परिवार के बारे में तो आप पढ़ ही रहे होंगे कि कैसे एक के बाद एक उनके पुत्र के विदेशों में 28 बैंक खातों का पता चल चुका है। यशवंत सिन्हा के बारे में गूगल में सर्च करके देख लीजिए, वे केजरीवाल पार्टी के सलाहकार हैं। अंत में, मैं फिर दोहरा रहा हूं कि प्रधानमंत्री भारत में जमे हुए, खानदानी भ्रष्ट लोगों का रचनात्मक विनाश कर रहे हैं। इस कार्रवाई के बिना नए भारत की नींव नहीं पड़ सकती। आप स्वयं सोचिए कि भारत के नवयुवकों और नवयुवतियों को कैसे उद्यम लगाने का मौका मिलेगा? कैसे वह इन भ्रष्ट लोगों से स्पर्धा कर पाएंगे जब उनके पास पूंजी ही नहीं है? जबकि भ्रष्ट लोग विदेशों से जब चाहे, काली पूंजी ला सकते हैं। प्रधानमंत्री की कार्रवाई से आने वाले भविष्य का रास्ता साफ हो रहा है और कोई भी व्यक्ति ईमानदारी और मेहनत के साथ अपना उद्यम लगा कर इन लोगों से टक्कर ले सकता है। कुछ समय के लिए तकलीफ जरूर है। इसको ऐसा मानिए कि जब शरीर का आॅपरेशन होता है तो स्वस्थ होने के बाद भी तेजी से चलने में कुछ समय लगता है। यह एक टेम्पररी फेज है। मुझे भारत के नवयुवाओं पर पूर्ण विश्वास है कि अगर उन्हें सही वातावरण मिले तो वे किसी टाटा, बिरला, सहारा, जेपी, जुकरबर्ग, बिल गेट्स, टिम कुक, जेफ बेजोस से कम नहीं हैं। (अमित सिंघल की फेसबुक वॉल से)
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