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इंडिया गेट के हरे-भरे मैदान हर मौसम में आम लोगों को खुली बांहों से अपनी ओर आमंत्रित करते हैं, परन्तु इन मैदानों के चारों ओर खड़े अनेक भवनों में सरकारी कार्यालयों के होने के चलते ये भवन आम जनता को अपने से दूर ही रखते आए हैं। नेशनल स्टेडियम से कुछ आगे इंडिया गेट के गोल चक्कर पर ही बने जयपुर हाउस में स्थित राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय से भी आमजन दूर ही रहते आए हैं। लेकिन वहां आम लोगों के न पहुंचने का एक कारण इस संग्रहालय के एक अति-विशिष्ट कुलीन संस्कृति के आधिपत्य का शिकार होना भी रहा है, लेकिन इस प्रवृत्ति को खत्म करने और इस 'कुलीन' संस्कृति को समाप्त करके आम जनता को भारत की आधुनिक कला के इस संग्रहालय के प्रति आकृष्ट करने के लिए इसके महानिदेशक अद्वैत गणनायक ने एक अनूठा प्रयोग किया है। प्रत्येक मास के आखिरी शुक्रवार को सायं साढ़े पांच बजे एक 'आर्ट अड्डा' आयोजित करके उन्होंने इस विश्व-विख्यात संग्रहालय के ऊंचे सिंहद्वार जन-साधारण के लिए खोल दिए हैं।
पिछले हफ्ते 29 सितंबर को आयोजित दूसरे आर्ट अड्डा का कार्यक्रम ललित कलाओं के समीक्षक जॉनी एम. एल. के विशिष्ट वक्तव्य के साथ प्रारंभ हुआ, लेकिन जल्दी ही कार्यक्रम एक 'अड्डे' में बदल गया। संग्रहालय के मुक्ताकाशी प्रांगण ने कार्यक्रम को 'अड्डे' में बदलने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। उपस्थित चित्रकारों, चित्रकला के आध्यापकों, कला-प्रेमियों, समीक्षकों, पत्रकारों आदि ने एक के बाद एक वक्तव्य देकर वातावरण को सजीव बना दिया। वहां कही गईं बहुत-सी बातें केवल राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय से संबंधित न होकर देश की कला-नीति, साधारण कलाकारों की समस्याओं, ललित कला अकादमी के दिल्ली स्थित गढ़ी स्टूडियो इत्यादि से संबंधित थीं परन्तु युवा और वरिष्ठ कलाकारों के इन्हीं सब विविध वक्तव्यों ने वातावरण को एक सरकारी आयोजन की बजाय एक आत्मीय गोष्ठी में परिवर्तित कर दिया, जहां सभी अपने मन की बात खुल कर रख रहे थे। दशकों तक कला-जगत् के भयभीत कर देने वाले ऊंचे, बंद सिंह-द्वारों के पीछे चलती गतिविधियों के अचानक जन-सामान्य के बीच प्रत्यक्ष हो जाने पर ऐसा होना बहुत अस्वाभाविक भी नहीं था। चर्चा के दौरान उठाए गए विषयों में कला-जगत् में व्याप्त अतिविशिष्ट-वाद के दंभ और वरिष्ठ कलाकारों की दादागीरी के विषय से लेकर भारत में चित्रकला की शिक्षा की विसंगतियों तक अनेक विषयों पर खुल कर चर्चा हुई।
1975 के आपातकाल के दौरान कनॉट प्लेस स्थित कॉफी हाउस को जमींदोज कर दिए जाने के बाद से दिल्ली में कलाकारों, पत्रकारों इत्यादि के लिए अड्डेबाजी की किसी जगह की कमी लगातार महसूस की जाती रही है। ऐसे में मूर्तिकार अद्वैत गणनायक का मासिक आर्ट अड्डा आयोजित करने का यह कार्यक्रम दिल्ली तथा दिल्ली के बाहर से यहां आने वाले कलाकारों, कला-प्रेमियों, पत्रकारों इत्यादि के लिए एक आकर्षण बन सकता है। उनका यह कदम सरकारी तंत्र के खुलेपन का भी शुभ संकेत है। यदि यह संग्रहालय संगीत, नृत्य, रंगमंच, साहित्य, व्यक्तिगत संग्रहों इत्यादि अन्य कला और शिल्प-विधाओं के कलाकारों की गोष्ठियों, प्रदर्शनियों इत्यादि के लिए भी अपने इस मुक्ताकाशी प्रांगण के द्वार खोल सके, तो वास्तव में यह दिल्ली के सांस्कृतिक जगत् के लिए एक क्रांतिकारी कदम होगा।
-अनिल गोयल
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