|
नाम : सुमन संथोलिया (37 वर्ष)
व्यवसाय : हस्तशिल्प
प्रेरणा : महिलाओं का स्वावलंबन
अविस्मरणीय क्षण : 2009 में जब फैक्ट्री डाली
200 से अधिक महिलाओं को जोड़ा अपने साथ
कोलकाता के एक परंपरागत मारवाड़ी परिवार से आने वाली और हिन्दी माध्यम से स्नातक सुमन की एक सफल युवा उद्यमी बनने की कहानी खासी दिलचस्प है। जब उनकी शादी लोहा व्यवसायी बी.बी. संथोलिया से हुई तो उन्होंने सोचा नहीं था कि वे एक दिन हस्तशिल्प के क्षेत्र में कई देशों में लोहा मनवाएंगी। सुमन बताती हैं कि शादी के बाद वे घर में काफी समय खाली बैठी रहती थीं। इस तरह फालतू बैठकर समय जाया करना बहुत अखरता था। अचानक एक दिन उनके मन में ख्याल आया कि क्यों न हस्तशिल्प का सामान बनाया जाए। ताकि अल्पशिक्षित या अशिक्षित महिलाएं भी स्वावलंबी हो सकें। वैसे खुद उन्हें यह हुनर अपनी मां, दादी व मायके से विरासत में मिला था। सुमन बताती हैं कि इसके लिए उन्होंने पहलेे घर में काम करने वाली महिला को तैयार किया। उसे यह काम सिखाया। फिर सोचा कि क्यों न यह काम उन जरूरतमंद और खाली बैठी रहने वाली गरीब महिलाओं को सिखाया जाए जो अपनी छोटी-छोटी ख्वाहिशों को पैसों की तंगी के कारण पूरा नहीं कर पातीं। सुमन ने अपने इस विचार को अमलीजामा पहनाते हुए सबसे पहले अपने मुहल्ले में काम करने वाले मजदूरों, प्रेसवालों और ड्राइवरों की पत्नियों को अपने साथ काम करने को राजी किया।
इन महिलाओं को काम सिखाया और फिर एक छोटी सी जगह तलाश कर वहां सजावटी हस्तशिल्प का सामान तैयार करना शुरू किया। लोगों को उनका काम पसन्द आने लगा और इन गरीब महिलाओं की रुचि इसमें बढ़ने लगी तो सुमन ने अपने पति की मदद से वर्ष 2009 में औद्योगिक क्षेत्र में एक छोटी सी फैक्ट्री शुरू की। इसके बाद बहुत सी गरीब परिवारों की महिलाएं सीधे संपर्क में आने लगीं। सुमन ने इन महिलाओं को हैंडीक्राफ्ट की बारीकियां सिखाते हुए न सिर्फ काबिल वरन् आत्मनिर्भर बनाया। इस तरह एक-एक कर उन्होंने अपने साथ दो-ढाई सौ महिलाओं को जोड़ लिया। इतना ही नहीं, अपनी फैक्ट्री में दस नेत्रहीन कर्मी भी काम पर लगा लिये। इस तरह उनके इस उद्यम के साथ इन सबकी भी रोजी-रोटी चल निकली। प्रस्तुति : पूनम नेगी
टिप्पणियाँ