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मां से सीखा मदद करना

by
Oct 16, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 16 Oct 2017 13:24:57


गोरखपुर के व्यवसायी अतुल सर्राफ प्रचार से दूर रहते हुए कई छात्रों और सामाजिक संगठनों को मदद  दे रहे हैं। उन्होंने  शहीदों के परिजनों की सहायता के लिए भी एक अभियान चलाया है

नाम : अतुल सर्राफ (56 वर्ष)
व्यवसाय : आभूषण कारोबारी
प्रेरणा : मां
अविस्मरणीय क्षण : चाट की दुकान के बाहर जूठन में भोजन की तलाश करते बच्चों को देखना

कुमार हर्ष

गोरखपुर के प्रतिष्ठित बुद्धा इंटस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी में हर साल एक विशेष योजना के तहत इंजीनियरिंग की नि:शुल्क पढ़ाई कर रहे छात्र शायद ही कभी जान पाएंगे कि उनका महंगा शुल्क दरअसल कौन भर रहा था। शायद ही कभी संत रविदास प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाले निर्धन या सामान्य परिवारों के बच्चे और उनके अभिभावक यह जान पाएंगे कि साल दर साल उनके स्कूल में कंप्यूटर और बेहतरीन किताबों का पुस्तकालय कौन सजा जाता है। हालांकि तमाम ऐसे लोग भी हैं, जो उनसे मिलकर मदद हासिल कर चुके हैं। इंजीनिंयरिंग की पढ़ाई कर रही एक छात्रा, जिसके पिता के पास उसकी फीस भरने का कोई जरिया नहीं था; राष्टÑीय स्तर का एक उदीयमान निशानेबाज, जिसके पास स्पर्धाओं में भाग लेने के लिए संसाधन नहीं थे। देश और समाज के असहाय और वंचित लोगों के लिए जमीनी स्तर पर कार्य कर रहीं बेशुमार संस्थाएं और उनके कर्ताधर्ता जिनके न जाने कितने प्रकल्पों को यह शख्स चुपचाप मदद देता रहता है। ऐसे तमाम स्वयंभू खिदमतगारों से बिल्कुल उलट जो हर मदद के लिए मंच पर अपनी मौजूदगी जैसी उत्कट कामनाएं रखते हैं।
77 साल पुराने अपने पारिवारिक कारोबार की अतुल सर्राफ चुनौती भरी मंजिलों पर अपनी सहज मुस्कान सहित व्यस्त दिखाई देते हैं। इस व्यस्तता के वाजिब कारण भी हैं। सात दशक से भी ज्यादा समय से आभूषणों और हीरों के कारोबार में अग्रणी रही हरिप्रसाद गोपीकृष्ण नामक कंपनी को बदलते समय के साथ एचपीजीके और फिर एश्प्रा जैसे मशहूर ब्रांड में विस्तारित करनें में समय और परिश्रम तो लगता ही है।  इस परिश्रम के लिए उन्हें कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं। उनकी कंपनी का सालाना कारोबार तकरीबन 400 करोड़ रु. का है। कामकाज में व्यस्त होने के बावजूद वे अपने संस्कारों से दूर नहीं होते। वे कहते हैं, ‘‘मेरी मां त्योहारों सहित बड़े मौकों पर भी अपने लिए कपडेÞ खरीदने की बजाय वंचितों में बांटने की कोशिश में जुट जाती थीं।’’ यह पुण्य भाव अब पूरे परिवार में दिखता है।
इस पृथ्वी पर सबका बराबर का अधिकार है। किसी वजह से कोई संपन्न है और कोई विपन्न। संपन्न लोगों को समझना होगा कि इन विपन्न लोगों का ही हिस्सा उनके पास है। अब अगर उसे लौटा नहीं पा रहे तो कम से कम कुछ न कुछ वापस तो करते रहें।        

लंबे समय से जरूरतमंदों की निष्काम मदद करते रहे अतुल पिछले कुछ समय से इस ‘सहायता भाव’ को विस्तार देने में जुट गए हैं। इस साल जून महीने में उन्होंने ‘एक शपथ देश के नाम’ मुहिम आरंभ की है, जिसमें वे और उनसे जुड़े लोग एक रुपया प्रतिदिन का अंशदान बलिदानियों के परिजनों की सहायतार्थ कर रहे हैं। इसके अलावा स्टेनलेस स्टील के विशेष रूप से तैयार 500 से ज्यादा गुल्लक उन्होंने अपने ग्राहकों या परिचितों को भी इसी आशय से उपलब्ध कराए हैं। वे कहते हैं, ‘‘सिर्फ सेनानियों का इतिहास दोहरा कर दो फूल चढ़ा देने से हम उनकी सेवाओं से उऋण नहीं हो सकते।’’
इसके अलावा वे ‘नेत्रदान महादान’ नामक एक कार्यक्रम भी चला रहे हैं जिसमें वे अब तक 200 संकल्प पत्र भरवा चुके हैं। पिछले दिनों उन्होंने शहर के मुख्य हिस्से में 600 फुट की ‘वाल आॅफ चेंज’ के जरिए एक और अनोखी पहल की। दिल्ली और स्थानीय कलाकारों ने तीन दिन तक इस दीवार पर बदलते गोरखपुर की छवियों के साथ-साथ महत्वपूर्ण सामाजिक विषयों पर बेहतरीन पेंटिंग्स बनाई हैं, जिन्हें देखने के लिए हर रोज लोग-बाग जमा होते हैं। बकौल अतुल,‘‘दुनिया के विभिन्न हिस्सों में ऐसे प्रयोग हुए हैं जो वहां की बेहतर छवि प्रस्तुत करते हैं और हम ज्यादातर नकारात्मक छवियों की गिरफ्त में ही हैं।’’ यह बदलाव दिखाती दीवार है जिसे युवा पसंद कर रहे हैं और प्रोत्साहित भी हो रहे हैं।
उनके मन में योजनाओं की कतार है जिसे वे अपने व्यस्त दिनचर्या के बावजूद देख लेते हैं। समाज के लिए कुछ करने की प्रेरणा उन्हें अपनी मां से मिली है। अतुल कहते हैं, ‘‘मेरी माता जी हमेशा कहा करती थीं कि अपने ऊपर ज्यादा मत खर्च करो, उस पर करो जिसे उसकी ज्यादा जरूरत है। वही करने की कोशिश रहती है।’’ काश कि हर कोई ऐसे ही सोच पाता।     

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